Saturday, 27 June 2015

मेरा मुल्क समृद्ध कैसे होगा

प्रधानमंत्री जी और उनका अर्थशास्त्र -------मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री कम है "प्रधानसंत्री" ज़्यादा, संत्री गाँधी सल्तनत के, कब बच्चा बड़ा होगा, कब गद्दी सौपेंगे, वैसे बच्चा दाढ़ी के सफ़ेद बाल दिखाने लगा है कि सयाना समझा जाए, भारत में वैसे भी जब तक बाल न पकें किसी को सयाना नहीं माना यहाँ तो बूढों के लिए शब्द ही सयाना प्रयोग होता रहता है....

सुना है प्रधानमंत्री जी अर्थशास्त्री  हैं बहुत बड़े..... प्याज़ सच्चे प्यार की तरह हो गए आम आदमी को दिखने मुहाल, पेट्रोल अब लीटर की बजाये मिलीलीटरों में लेने कि नौबत आ गयी है, मकान लेना एक जनम के प्रयासों से तो संभव ही नहीं   

हाँ खूब भरमाया जा रहा है कि गेहूं, चावल एक दो रुपए किलो दिया जा रहा है, वो जो दिया जाएगा सस्ता अनाज प्रधानमंत्री की अर्थशास्त्र के गहन ज्ञान की वजह से नहीं होगा, अगर ऐसा होता तो सब को कर देते सस्ता 

और न ही ऐसा प्रधानमंत्री अपने घर से सस्ता कर के देंगे, वो जाएगा टैक्स देने वालों की जेबों से, बुल्लेशाह बाबा ने एक बार कहा था, "बुल्लेया रब दा की पाणा, एधरों पुटना ओधर लाणा" 

तनख्वाह बढ़ाये जायो सरकारी नौकरों की, धेले का काम नहीं करते वो लोग, लगभग सब सरकारी उद्यम दीवालिया होने की कगार पे.......और तनख्वाह बढ़ानी है कर्मचारियों की

कुछ नहीं बस वोट लेने है, वोट लेने है अंधाधुंध जनसँख्या बढ़ाने वालों के, 
वोट लेने हैं अकर्मण्य सरकारी तंत्र में गुलछर्रे उड़ाने वालों के 

आपने सुना होगा महंगाई घट गयी, कभी यह सुना है "सस्ताई" बढ़ गयी, ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि हम जानते हैं कि महंगाई घटने से भी सस्ताई नहीं बढ़ती, चीज़ें महंगी ही रहती हैं 

कहते रहो प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री हैं, मैं तो उन्हें अनर्थशास्त्री ही कहूँगा, या फ़िर व्यर्थशास्त्री

वैसे अर्थशास्त्र कुछ ऐसा नहीं होता कि जो समाज विज्ञान से अलग हो.....एक उदहारण है ..आपके घर में कमाने वाले बढ़ जाएँ, खाने वाले घट जाएँ.......जीवन स्तर बढेगा या घटेगा? 

आपके घर के लोग आपस में लड़ते रहें तो कमाई बढ़ेगी या घटेगी?

अपने समाज के मर्म को समझना नहीं.....सोचते रहना कि रुपया क्यों गिर गया...अरे आपका रुपया गिरा ही नहीं.....उनका डॉलर बढ़ा.......जो दर्शाता है कि उनकी अर्थव्यवस्था आपसे बेहतर है, जो दर्शाता है कि उनका जनजीवन स्तर आपसे बेहतर है, उनका समाज विज्ञान आपसे बेहतर है

अर्थव्यवस्था बेहतर करनी है तो समाज व्यवस्था बेहतर करनी होगी और उसके लिए समाज से टकराने की हिम्मत चाहिए, ऐसे मिटटी के माधो नहीं जो ठीक से बोलना तक नहीं जानते, जो मात्र नौकरी बजा रहे हैं एक खानदान की 

अर्थशास्त्री ..हुहं ....अनर्थशास्त्री ... व्यर्थशास्त्री
प्रधानमंत्री...हुहं...........................प्रधानसंत्री

COPY RIGHT MATTER...STEALING IS AN OFFENCE
TUSHAR COSMIC





!!!! धन तेरस - मौक़ा है कुछ विचार करने का !!!!


यदि कुबेर या लक्ष्मी पूजन से धन आता होता तो हर भारतीय समृद्ध होता और भारत दुनिया का सबसे अमीर देश..लेकिन ऐसा है नहीं...तथ्य भांडा फोड़ देते हैं इस तरह के पूजन का...फिर भी हम अक्ल के अंधे हैं....लकीर के फ़कीर....दिन त्योहार मात्र इसलिए मनाये चले जाते हैं क्योंकि हम सदियों से मानते आ रहे हैं...

मिस्टर समुएल एक रेस्तरां में पिछले बीस साल से खाना खाए चलेजाते हैं क्योंकि वो उसी रेस्तरां में खाते आये हैं......क्या बकवास है ..यह भी कोई तर्क हुआ...लेकिन क्या हमारी अधिकाँश मान्यताएं इसी तरह के तर्कों पे नहीं टिकी हुईं ?

धन आता है, बुद्धि से और हम ठहरे अक्ल के दुश्मन ....डंडा ले कर अक्ल के पीछे पड़े हैं....आ तू ज़रा इधर....झाँक सही तू इधर ज़रा..

बिल्ली रास्ता काट जाए तो रुक जाते हैं, छींक आ जाए तो रुक जाते हैं....हम बिल्लियों से, छींको तक से डरने वाले लोग....क्या समृद्ध होंगे?

हो गया कोई व्यक्ति उंच नीच करके किसी तरह से अमीर.....मुल्क इस तरह से अमीर नहीं हुआ करते.....

मुल्क मतलब हम सब..

हम सब मतलब, हम सब की सामूहिक सोच ...जो सोच है ही नहीं...
बस कुछ अंधविश्वासों का जोड़ तोड़ भर है...

हम सब की सामूहिक सोच मतलब समाज में बहती धारणायों की धारा...जो कोई तरीके की धारा है ही नहीं......जो सदियों से ढंग से बह ही नहीं रही, बस गोल गोल घूम रही है, कहीं आगे बढ़ ही नहीं रही....

धन आता है उद्यमशीलता से..धन आता है प्रयोग करने से.....धन आता है बुद्धि के घोड़े दौड़ाने से

यहाँ तो सरकार को अपनी बुद्धि, अपनी उद्यमशीलता से ज़्यादा भरोसा किसी शोभन सरकार नामक संत के सपने पर है, वो निरथर्क उद्यमशीलता को तैयार हो जाती है चाहे सारा जग उसकी बेवकूफी पर हँसता रहे

इस मुल्क की बुद्धि के घोड़े जब नहीं दौड़ेंगे, तब तक लाख लक्ष्मी पूजते रहो , लक्ष्मी दूर ही रहेंगी, लाख कुबेर पूजते रहो, कुबेर का खज़ाना न मिलेगा कभी, भजन पूजन करते रहो, कुछ न होगा....चंद पूंजीपति अमीर होते जायेंगें बस.

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तुषार कॉस्मिक

मेरा मुल्क समृद्ध कैसे होगा-----

मिस्टर समुएल एक रेस्तरां में पिछले बीस साल से खाना खाए चले जाते हैं क्योंकि वो उसी रेस्तरां में खाते आये हैं......क्या बकवास है ..यह भी कोई तर्क हुआ...लेकिन क्या हमारी अधिकाँश मान्यताएं इसी तरह के तर्कों पे नहीं टिकी हुईं ?

धन आता है, बुद्धि से और हम ठहरे अक्ल के दुश्मन ....डंडा ले कर अक्ल के पीछे पड़े हैं....आ तू ज़रा इधर....झाँक सही तू इधर ज़रा..

बिल्ली रास्ता काट जाए तो रुक जाते हैं, छींक आ जाए तो रुक जाते हैं....हम बिल्लियों से, छींको तक से डरने वाले लोग....क्या समृद्ध होंगे?

हो गया कोई व्यक्ति उंच नीच करके किसी तरह से अमीर.....मुल्क इस तरह से अमीर नहीं हुआ करते.....

मुल्क मतलब हम सब..

हम सब मतलब, हम सब की सामूहिक सोच ...जो सोच है ही नहीं...
बस कुछ अंधविश्वासों का जोड़ तोड़ भर है...

हम सब की सामूहिक सोच मतलब समाज में बहती धारणायों की धारा...जो कोई तरीके की धारा है ही नहीं......जो सदियों से ढंग से बह ही नहीं रही, बस गोल गोल घूम रही है, कहीं आगे बढ़ ही नहीं रही....

धन आता है उद्यमशीलता से..धन आता है प्रयोग करने से.....धन आता है बुद्धि के घोड़े दौड़ाने से 

यहाँ तो सरकार को अपनी बुद्धि, अपनी उद्यमशीलता से ज़्यादा भरोसा किसी शोभन सरकार नामक संत के सपने पर है, वो निरथर्क उद्यमशीलता को तैयार हो जाती है चाहे सारा जग उसकी बेवकूफी पर हँसता रहे 

इस मुल्क की बुद्धि के घोड़े जब नहीं दौड़ेंगे, तब तक कुछ न होगा....चंद पूंजीपति अमीर होते जायेंगें बस.

Tushar Cosmic



!!!!!!!!स्विस बैंक का काला धन, मेरा नज़रिया!!!!!!

इस मुद्दे में बहुत सारे पहलु ऐसे हैं जो आज तक, शायद ही किसी ने टच किये हों

वैसा सीधा सीधा काला धन वापिस लाना ही बहुत बड़ा मुद्दा लगता नहीं मुझे

धन क्या होता है........संचित प्रयास, मेहनत...उसे हमने एक कंक्रीट रूप दे दिया है

एक आदमी बीस साल मेहनत करता है, उसकी मेहनत को हमने धन के रूप में कंक्रीट रूप दे दिया

और यदि वो अपना धन सरकार नामक चोर से बचा ले तो वो धन काला हो गया..नहीं?

अब सवाल यह है कि सरकार बड़ी चोर  है या आम आदमी,और जवाब है सरकार, सरकारी आदमी

काले धन की ही बात  करें तो भारत में ही स्विस बैंक से ज्यादा काला धन प्रॉपर्टी मार्किट में लगा है

पूरी की पूरी प्रॉपर्टी मार्किट ही काला धन की है
प्रॉपर्टी जो लाखों से करोड़ों रुपये तक पहुँची है..वो मात्र काले धन की वजह से

भारत का स्थानीय  स्विस बैंक

धन होता क्या है....धन समय का समाजिक परिप्रेक्ष्य में सदुपयोग है
धन समय का सदुपयोग है सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
उसका कंक्रीट रूप

और जब हम यह समझ लेते हैं तो आगे यह भी समझना चाहिए कि कोई व्यक्ति या कोई मुल्क कैसे गरीब अमीर होता है

आज अमेरिका भारत से कैसे अमीर है

चूँकि उसके प्रयास भारत के प्रयासों से उसके अपने मुल्क वासियों और बाकी दुनिया के लिए भारत के प्रयासों से ज़्यादा मीनिंगफुल हैं

समय का सदुपयोग......
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में

उसके प्रोग्राम, उसकी नीतियाँ, उसके अन्वेषण, उसके आविष्कार, लोगों को ज्यादा फ़ायदा देते हैं या देते दिखाई देते हैं
सिंपल
यह है धन

अब या तो तुम काला गोरा धन चिल्लाते रहो

या अपने प्रयास, अपने कार्यक्रम, अपने कार्य......इनको ऐसी दिशा दो कि ये धन बन जाएँ या फिर ऐसी दिशा दो कि इनका क्रियाकर्म हो जाए

और भारत यही गलती कर रहा है

जितना प्रयास किया जा रहा है..बाहर से काला धन लाने का......यदि  भारत के बैंकों में पड़े सफ़ेद धन का ...ऐसा धन जिसको लेने वाला कोई नहीं...जिस धन के मालिक मर खप गए....उस धन का सामजिक कार्यों में सदुपयोग कर लिया जाए तो तस्वीर थोड़ी बेहतर हो

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि भारत की प्रॉपर्टी मार्किट में सर्किल रेट असली रेट के बराबर कर दिया जाए तो तस्वीर बेहतर हो और काला धन जो अनाप शनाप धन लगा है, लग रहा है प्रॉपर्टी में वो दफ़ा हो और प्रॉपर्टी की काला बाजारी, जमाखोरी बंद हो, और जिनको घर चाहिए अपने  रहने को, उन्हें आसानी से नसीब हो, जिनको दूकान, ऑफिस चाहिए अपने प्रयोग के लिए, उन्हें वो सब नसीब हो

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि दिलवाडा के जैन मंदिर, खजुराहो के मंदिर और  भारत के नए पुराने पर्यटक स्थलों को दुनिया के पर्यटकों को दिखाने के लिए और उन्हें सुरक्षित सफर प्रदान करने के लिए प्रयास किया जाता तो धन ही धन हो जाता...धनाधन

जितना प्रयास किया जा रहा है बाहर से काला धन लाने का यदि विदेशों में NRI जो धन छूट गया है उसे लाने का प्रयास किया जाता तो धनाधन हो जाता

यह है सामाजिक उर्जा का सदुपयोग जो धन बनता है

कोई एक ही पहलु नहीं है कि चिल्ला चिल्ली करते रहो ..स्विस बैंक से काला धन लाना है
वो सिर्फ एक पहलु है
आ जाए तो बेहतर

न भी आये तो यदि हम अपने खनिज, अपने रिसोर्सेज का इस्तेमाल करें तो धन ही धन हो जाएगा

हमारे वैज्ञानिक जो बेचारे यदि कुछ आविष्कार करते भी हैं तो कोई पूछता नहीं है....
इन सबका सदुपयोग धन बनता है

IPP का एजेंडा क्रियान्वित होगा तो धन बनेगा

यह जो समय और उर्जा कांवड़ यात्रा जैसे बकवास कामों में व्यर्थ होता है वो यदि किसी तरह से कोई आविष्कार करने में लगे तो धन बनता है

व्यक्तिगत उर्जा का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सदुपयोग ही धन है

और यदि किसी ने टैक्स नहीं दिया तो वो धन काला हो गया यह भी मैं कतई नहीं मानता....

तुम चोरों जैसा टैक्स लगायो और फिर कहो कि जिसने नहीं दिया वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

तुम दिए गए टैक्स को चुरा लो और फिर जिसने टैक्स नहीं दिया और कहो कि वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

तुम दिए गए टैक्स को प्रयोग करना ही न जानते हो  और फिर जिसने टैक्स नहीं दिया और कहो कि वो चोर है, उसका धन काला....क्या बकवास है

नहीं.......स्विस बैंक से काला धन वापिस लाना हमारी इकॉनमी को थोड़ा सम्बल दे सकता है , लेकिन असली सुधार तो होगा यदि हम अपना सारा ताम झाम सुधार पाएं, सामजिक सुधार ही इकनोमिक सुधार लाता है, सामाजिक सुधार ही इकोनोमिक सुधार है

अरे आप एक शराबी, एक बेअक्ल को धन पकड़ा दो क्या होगा.......बन्दर के हाथ में उस्तरा

थोड़ा धन आ भी गया स्विस बैंक से....क्या होगा
आपके प्रोग्राम, आपके सिस्टम ठीक नहीं तो क्या होगा

थोड़ा बहुत फर्क आएगा बस

लेकिन यदि आप अपने सिस्टम ठीक कर लो.....तो धन ही धन है
अमेरिका या किसी भी मुल्क में अमीरी मात्र इसलिए है चूँकि उनके सिस्टम हमारे से बेहतर हैं
बस

आर्टिकल शायद आपको पसंद आये शायद न आये, बकवास लगे , लेकिन फिर भी  कॉपी राईट है, चुराएं न, शेयर करें जितना मर्ज़ी 

और यह आर्टिकल, प्रियंका विजय जी को समर्पित है क्योंकि उन्होंने ही मुझे कुरेदा इस विषय पर, जो भी उनसे इस विषय में सवाल जवाब हुए, उन्ही का नतीज़ा यह आर्टिकल है


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