Saturday, 27 June 2015

राजनीति

-----------   राजनीति तीन नज़रिए   -----------

"मान लीजिये किसी कैलकुलेटर मे किसी ने कुछ गडबड़ी कर दी !
और उस कलकुलेटर मे 2 और 2 जोड़ने पर 5 आ रहा है !
अब उस कलकुलेटर को आप नेहरू के हाथ मे दीजिये तो भी 2 और 2 जोड़ने पर परिणाम 5 आएगा ! मनमोहन के हाथ मे दीजिये तो भी परिणाम 5 आएगा और मोदी के हाथ मे दीजिये तो भी परिणाम 5 ही आने वाला है अर्थात कलूलेटर कोई भी चलाये परिणाम एक जैसा ही आने वाला है क्योंकि समस्या कलकुलेटर चलाने वाले मे नहीं बल्कि कलकुलेटर मे ही है ! इसलिए जबतक कलकुलेटर नहीं बदला जाएगा परिणाम वही रहेगा !
67 साल से हम देश मे कलकुलेटर चलाने वाले को बदल रहे है कलकुलेटर नहीं बदल रहे !

67 साल से हम इस देश मे ड्राईवर बदलते है आ रहे है लेकिन गाड़ी नहीं बदल रहे !!"--- यह मैंने पढ़ा कि राजीव दीक्षित जी ने कहा 

इधर मैंने बहुत से विडियो देखिएं हैं हस्सन निसार साहेब के, पाकिस्तानी दानिशमंद, बुद्धिजीवी हैं वो, बहुत पसंद भी हैं मुझे वो बहुत से मुद्दों पर.

उनका नुक्तानज़र कुछ इस तरह हैं, " यदि कीमा बनाने की मशीन में आप करोड़ बार भी सूअर डालोगे तो कीमा सूअर का ही निकलेगा, यदि कीमा कोई और चाहिए तो जानवर बदलो"

मेरा ख्याल है कि दोनों नज़रिए अधूरे हैं, न सिर्फ ड्राईवर बदलने के ज़रुरत है, गाड़ी बदलने की भी ज़रुरत है, गाडी ही ऐसी हो कि आधा अधूरा, ड्राईवर गाडी की ड्राईवर सीट पर बैठ ही न सके,शराब पिए हो गाडी खुद उसे इनकार कर दे ....

कैलकुलेटर ही, नहीं हमारे पास सुपर कंप्यूटर हों, और उन्हें चलाने वाले भी बेहतरीन किस्में के हों , कुछ इस तरह के सिस्टम बनाये जाने चाहिए.

गाडी बदलो, ड्राईवर भी बदलो, कैलकुलेटर बदलो, चलाने वाले भी बदलो और मैं हसन निसार साहेब वाली मिसाल में नहीं कहूँगा कि जानवर बदलो और कीमा बनाने की मशीन भी बदलो...चूँकि मैं मांस खाता नहीं और न ही खाने की सिफारिश करता हूँ......

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