Saturday, 20 June 2015

रावण कितना महान, कितना मूर्ख, आयें देखें

1) रावण को राक्षस तो मानते ही हैं पर बहुत सम्मान भी देते हैं, दशहरे पे तो मैंने अक्सर देखा ही लोग जलते रावण की एक लकड़ी घर ले जाना पसंद करते हैं......घर में ले जा के कहीं ठूंस के रखते हैं साल भर.....बहुत शुभ मानते हैं ऐसा करना......कहीं कहीं तो रावण की पूजा भी होती है .....दस सर जितनी बुद्धि मानी जाती है रावण में .......एक अकेला, दस जितना बुद्धिमान ......

2) कहा जाता है कि रावण जैसा महान भाई सब को मिले जो अपनी बहन शूर्पनखा के सम्मान के लिए सब कुछ कुर्बान कर गया......तो मित्रो, आपको बता दूं यही रावण ने शूर्पनखा को विधवा किया था.....शक्ति के मद में चूर रावण युद्ध में अपने जीजा को पहचान न सका और गर्दन काट दी उसकी (उत्तर कांड/ सर्ग 23-24)

3) अगली बात, रावण महाराज एक बलात्कारी व्यक्ति है ....वो बलात्कार करता है बहुत सी स्त्रियों का .....उसके फलस्वरूप उन्हें एक श्राप मिला होता है कि उसकी मृत्यु का कारण कोई स्त्री ही बनेगी ....और वो रम्भा का भी बलात्कार करता है जिसके फलस्वरूप उसे श्राप मिला होता है कि वो किसी भी स्त्री यदि भविष्य में बलात्कार करेगा तो उसके सर के सात टुकड़े हो जायेंगे, इसी लिए वो सीता के साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करता, मनाने की कोशिश करता रहता है.(उत्तर कांड/सर्ग 27)

4) रावण बिना मतलब वाली से जा भिड़ता है, महज युद्ध की खातिर युद्ध, फिर तो वाली उसकी वो गत बनता है कि तौबा तौबा, और उस रावण को महान शक्तिशाली, महान बुद्दिशाली बताया जाता है.(उत्तर कांड/सर्ग 34) 

5) रावण को पता था कि सीता हरण के बाद राम प्रयास करंगे सीता छुड़ाने का, आक्रमण का, बजाये उस आक्रमण को निष्फल करने के, वो देखता रहता है कि राम समुद्र पे पुल बना लें और उस तक पहुँच के आक्रमण कर दें, यह कहाँ की युद्ध विद्या? 

यह सरासर मूर्खता है ....राम खर और दूषण आदि को मार चुके थे.....उसके बाद रावण ने सीता हरण किया था......क्या रावण इतना मूर्ख था कि यह तक न समझ सका कि राम आक्रमण कर सकते हैं? ....क्या उसकी गुप्तचर व्यवस्था इतनी अशक्त थी कि उस तक कोई ख़बर न पंहुचा सकी कि राम क्या कर रहे थे?

यहाँ यह बात बताना चाहता हूँ कि वाली को सर्वप्रथम राम के बारे में अपनी बीवी तारा के मुख से पता लगता है और तारा को अपने पुत्र अंगद के जासूसों से --(वाल्मीकि रामायण/ किष्किन्धा कांड/ सर्ग-15/ 15-21)

6) रावण को पता लग चुका था.....मारीच के ज़रिये...हनुमान के ज़रिये भी ....कि राम कोई साधारण योधा नहीं.....फिर हनुमान भी कत्लेआम मचा चुके थे लंका में

हनुमान कोई दूत की तरह लंका में प्रवेश नहीं हुए थे, दूत होते तो सीधा रावण से मिलते, नहीं, वो पहले जासूस की तरह सीता से मिलते हैं, रावण की अशोक वाटिका उजाड़ते हैं, उसके योधयों को मारते हैं, फिर रावण दरबार में पहुंचाए जाते हैं....इस तरह के उत्पाती जासूस को रावण विभीषण के कहने पे मृत्युदंड देने का विचार त्याग देता है

7) और तो और रावण को पता था कि विभीषण खुले आम शत्रु का पक्ष लेता था, ऐसे में बजाये विभीषण को कैद करने के या उसका वध करने के, खुला छोड़ देता है जो तुरंत ही शत्रु पक्ष से जा मिलता है और रावण की पराजय का एक कारण बनता है 

8 ) रावण को राम की शक्ति के बारे में खर और दूषण के वध से ही पता लग चूका था, उसके बावजूद, वो एक एक करके अपने योधा भेजता है राम से लड़ने और वो एक कर के सब मरते रहते हैं...

उधर से सब लड़ रहे हैं इकठा...क्या हनुमान, क्या राम, क्या लक्ष्मण, क्या बन्दर, क्या भालू, सब...

और यहाँ से एक एक करके आते हैं योधा लड़ने मरने 

और ऐसा तब था जबकि राम वाली को मार चुके थे, उस वाली को जिसने रावण को बड़ी आसानी से धूल चटा दी थी, उस वाली को जो रावण को कांख में ले ऐसे उड़ रहा था जैसे रावण कोई तिनका हो, उस राम से लड़ने को रावण एक एक कर के योधा भेजता रहता है...... इसे अक्ल कहेंगें?..इसे युद्ध विद्या का ज्ञान कहेंगें?

नहीं, सब को टूट पड़ना था एक साथ...फिर शायद कहानी कुछ और होती..फिर शायद आप हम रामायण की जगह रावणयण पढ़ रहे होते ...फिर शायद रावणलीला खेली जाती गली गली.....
"जयमेव सत्य"

9) और क्या महानता है रावण की, अपने अपमान का बदला लेने के लिए लंका की लाखों स्त्रियों, बच्चों को जिंदा जलाया गया उस युद्ध में.....नर मारे गए....जलाये गए......लंका बर्बाद हो गयी.......किसलिए? 

मात्र रावण की बेवकूफियों की वजह से और वो बुद्धिमान है, शक्तिशाली है.....

इतना ही महान था तो सीधा राम को दो दो हाथ करने की, एक के साथ एक लड़ने की चुनौती देता.....

शायद बाकी लोग बच जाते इस तरह .....

जैस आज राजनेतायों की आपसी खींचातान में आम आदमी दंगों का शिकार होता है, आम आदमी सरहदों पे शहीद होता है, आम आदमी के घर बम से उड़ा दिए जाते हैं.....वो ही सब तो हुआ तब भी.....बेचारे आम लोग मारे गए दोनों तरफ से......

आपको बता दूं वानर सेना भी कोई अपने आप न आयी थी लड़ने, वानरों को भी डरा धमका कर, लालच दे कर या फ़िर मार कूट कर इकठा किया गया था....
मृत्यु के भय और आर्थिक लाभ के कारण लड़ी थी वानर सेना, देखें .

See how Vanar Sena was gathered by Sugreev. Sugreev ordering Hanuman, "Oh, Hanuma, you quickly summon all of the topmost speeded vanara-s by employing concessions, conciliations and the like procedures. [4-37-2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9]

"And such of those vanara-s that do not arrive within ten days by my command, those miscreants are eliminable as the abusers of king's decree. [4-37-12]

Sugreev says similar thing to Nal,
"And, the monkey who arrives here after fifteen nights, to him termination of life is the punishment, there is no business for further adjudication. [4-29-32]

On hearing that command of the king of kings of Vanara-s, Sugreeva, who is semblable with the Death-god and Time-god, all of the monkeys have arrived with the terror of Sugreeva haunting them. [4-37-19]


10) 
Ravna Committed a strategic mistake in War against Ram.He sent Meghnada who got killed.
Then he sent KumbhaKaran who also got killed.
Then he himself jumped in the war & got himself killed.

11) रावण को जो हम बड़ा करके दिखाते हैं, वो मात्र राम को बड़ा करने को....


यदि विलेन बड़ा न होगा तो हीरो कैसे बड़ा दिखेगा......

हालाँकि रामायण में हीरो कोई भी नहीं दीखता मुझे...

मैं राम और रावण दोनों की आलोचना करता हूँ....दोनों को अपनी अपनी जगह गलत मनाता हूँ......

एक बात सुनी होगी अक्सर आपने कि सब अपनी जगह ठीक हैं......लेकिन है उल्टा ...सब अपनी जगह ग़लत हैं.......हमारा पूरा समाज गलत है......जो लोग एक दूसरे के कट्टर विरोधी होतें हैं, वो भी गलत होते हैं......अपनी जगह पे सब ग़लत.....जैसे टीवी पे आप बहस सुनते हैं न विरोधी दल के नेतायों की......एक नेता दूसरे पे आरोप लगाता है जब वो स्वयं को सही साबित नहीं कर पाता....हाँ, दूसरे की कमियां ज़रूर गिनवा देता है......जैसे दूसरे के गलत होने से वो सही हो जाएगा.....नहीं....सब गलत हैं अपनी अपनी जगह......समाज का पूरा तानाबाना ही गल चूका.....हम बस लाश ढो रहे हैं.........दाह संस्कार करने की हिम्मत ही नहीं हम में....

12) और जब तक पुराना विदा न करेंगें, नया न ला पायेंगें...इस मुल्क का दुर्भाग्य है कि हम आज भी लाशें ढो रहे हैं और इस वहम में जी रहे हैं कि हम कोई जिंदा कौम हैं ..नहीं... बस वहम है जिंदा होने का...जिंदा कौमें लाशें नहीं ढोती ....यह काम मरी मराई कौमें ही कर सकती हैं.....जिंदा कौमें ज़िंदगी जीती हैं ...सदैव तारो ताज़ा

13) गाली देने वालों की सहूलियत के लिए वाल्मीकि रामायण के शलोक नंबर तक लिख दिए हैं मैंने, कृपया पढ़ लें पहले ..बेहतर हो पूरी वाल्मीकि रामायण पढ़ लें....खुद समझ में आ जाएगा....गाली लिखना आसान है बजाये पढने और समझने के....और तुलसी की राम चरित मानस या और कोई भी रामायण को प्रमाणिक नहीं माना जा सकता, वो सब बाद की कृतियाँ हैं ....वाल्मीकि रामायण ही पहली रामायण है, उसे ही आधार बना कर लिखा है मैंने, पास वाले मंदिर में जाएँ, अव्वल तो आपको वाल्मीकि रामायण मिलेगी नहीं, तुलसी रामायण मिलेगी, यदि वाल्मीकि रामायण मिल जाए तो पढ़ लें उठा कर, फिर जो लिखना हो लिखें, स्वागत है 


सप्रेम नमन..कॉपी राईट मैटर...चुराएं न, समझें

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