Sunday, 28 June 2015

राजनीति

कहो दिल से, कांग्रेस फिर से--BULLSHIT

दिमाग मत लगाना, दिमाग लगयोगे तो IPP में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखेगा...

राजनीतिज्ञ होशियार है, वो दिल की बात करता है, दिमाग की नहीं....

वो कहता है यह मुफ्त दूंगा, यह करूंगा, वह करूंगा....कैसे दूंगा, किसकी जेब काटूँगा, कैसे विकास करूंगा, प्रोसेस नहीं समझाएगा.....

असल बात यह कि राजनीतिज्ञ की वजह से तरक्की होती नहीं, बल्कि रूकती है, पब्लिक तक देर से पहुँचती है, आधी अधूरी पहुँचती है और नहीं भी पहुँचती....

यह दिल, विल की बात बकवास है, पब्लिक को दिमाग लगाना चाहिए

लेकिन आप खुश हो सकते हैं कि आपके धर्म का, तबके का व्यक्ति पॉवर में आये....आप वोट मज़हब, बिरादरी, समाज की वजह से देते हैं

सब दिल की बातें हैं, कुछ बेहतरी न होगी

दिमाग लगायें

IPP का एजेंडा पढ़ें, यह पूरा प्रोग्राम है , पूरा प्रोसेस है कि भारत का विकास कैसे किया जा सकता है, और यह एजेंडा कोई वोट लेने को नहीं लिखा गया, यह कड़वी गोली है

बीमार यदि डॉक्टर से मीठी गोली मांगे, अपनी ही पसंद की दवा खाने की जिद पर अड़ा रहे तो शायद ही ठीक हो, और जो डॉक्टर दवा मरीज़ की डिमांड के अनुरूप दे वो शायद ही मरीज़ को ठीक कर पाए.....

IPP का एजेंडा कड़वी गोली है, शायद हज़म न हो, शायद असम्भव जैसा लगे, लेकिन लगता रहे कैसा भी, यह एजेंडा शुद्ध तार्किक आधार पर है.

मैं तो कहूँगा, दिमाग लगायें, तर्क करें और ठीक लगे तो IPP में शामिल हो जाएँ और IPP के कार्य को अपना कार्य मान कर, IPP के एजेंडा को फैलाते चले जाएँ, IPP में नए मित्रों को जोड़ते चले जाएँ 


जिस तरह से राजनैतिक दल प्रचार पर खर्चा कर रहे हैं, साफ़ है कि जंग लड़ रहे हैं, किसी भी तरह जीतना चाहते हैं.....
प्रचार कर रहे हैं या सम्मोहित कर रहे हैं,किसी भी अन्य व्यापारिक कंपनी की तरह?
इनसे भला होगा राष्ट्र का....?
शंका है
यह सब पैसा, जो पानी की तरह बहाया जा रहा है, आपसे-हमसे वसूला जाएगा
मुद्रा की राजनीती न करने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी
मुद्दों की मुर्दा राजनीति करने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी
मुर्दा मुद्दों की राजनीति करने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी
मुर्दों की राजनीति करने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी

मुद्दों की राजनीती न करने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी



उद्घोष -----

भारत को बदलाव की ज़रुरत है लेकिन यह ज़रुरत मात्र राजनीतिक नहीं है, भारत को पूरी तरह से बदलना होगा, समाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक सब स्तरों पर.....

AAP कोई ज़वाब नहीं है भारत के बदलाव का...असल में यह तो ठीक ठीक सवाल भी नहीं है.

चुनाव निकट हैं.......महीने-दो-महीने में नतीजे सामने दिखने लगेगें.....आप देखेंगे कि शोर शराबा तो बहुत होगा.....टीवी, अखबार, रेडियो सब भरे रहेंगे राजनीतिक बातचीत से..लेकिन कुल जमा बहुत सुधार नज़र न आएगा भारत में

जब राजनीतिक दल वोट को ध्यान में रख कर अपनी नीतियाँ बनायेंगे तो बहुत कुछ हासिल न कर पाएंगे....बस ढुलमुल रवैया अख्तियार करना पड़ेगा....

असली नेता को तो वोट की परवा ही नहीं होनी चाहिए......

असली नेता तो झकझोर कर रख देगा समाज को......

वो समस्या का जो हल देगा, वो असली हल होगा..चाहे समाज को स्वीकार हो न हो.....

बीमार की पसंद को बहुत तूल नहीं दे सकता असली डॉक्टर, और जो एसा करेगा वो क्या ख़ाक डॉक्टर है

IPP का एजेंडा पढ़िए....आप पायेंगे कि इसमें दिए गए सुझाव इस तरह के हैं कि वोट लेने के लिए तो कदापि नहीं लिखे गए.......

यह लिखे गए हैं, जिनसे समस्याओं का हल निकलता हो.....पसंद हो तो बढ़िया..न हों तो बढ़िया...लेकिन देर सबेर इसी तरह की नीतियों को अपनाना होगा भारत को

तो आ जाईये हमारे साथ यदि सच में भारत की बेहतरी में भागीदार होना चाहते हैं.....




मुझ से किसी ने पूछा कि क्या मैं वर्तमान व्यवस्था को पलटने का षड्यंत्र कर रहा हूँ


मेरा जवाब था, " षड्यंत्र क्यों.....अष्ट यंत्र ....दश यंत्र...सहस्त्र यंत्र क्यों नहीं.........मेरे साथ मित्र आ जाएँ तो मैं तो सब पलट के रख देने में यकीन रखता हूँ और नया के होगा, नया निजाम क्या होगा, इसका खाका दे चुका हूँ...IPP एजेंडा में...



तुम खुश हो रहे हो कि तुम्हारे नेता, यह कर रहे हैं, वो कर रहे हैं...

तुम्हें पता ही नहीं कि जो होना चाहिए था, जो किया जा सकता था, वो कितना है, क्या है...
तुम्हे पता ही नहीं कि तुम्हारे नेता तरक्की की वजह नहीं हैं, वो तरक्की रोकने की, देरी की वजह हैतुम खुश हो रहे हो कि तुम्हारे नेता, यह कर रहे हैं, वो कर रहे हैं...
तुम्हें पता ही नहीं कि जो होना चाहिए था, जो किया जा सकता था, वो कितना है, क्या है...
तुम्हे पता ही नहीं कि तुम्हारे नेता तरक्की की वजह नहीं हैं, वो तरक्की रोकने की, देरी की वजह है
सरकार किसी की भी हो.....
यदि सरक सरक कर काम करे....
यदि किये वायदे पूरे न करे.....
ज़रूरी नहीं इसे पांच साल तक सरकाना....
इन्हें मंत्री, संत्री मौज मारने को नहीं, काम करने को बनाया गया है 
उखाड़ फेंको.....क्योंकि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतेज़ार नहीं करती


नेता भूखों मरे, तभी हमें क्यों स्वीकार होता है---------हम क्यों चाहते हैं कि हमारे पथ प्रदर्शक, लीडर, महान गुरु निपट सादगी भरा जीवन जीयें, जेल यात्रा करें, अनशन करें, भूखों मरें....

कोई महापुरुष या महान स्त्री हमें जीवन का आनंद लेते हुए दिखे तो शायद हम उसे महान मानने से इनकार कर दें

हमें कहाँ आसानी से अपने महान लोग पतंग उड़ाते, फूटबाल खेलते या सेक्स करते हज़म होंगें

हमें तो तब तक सब्र न होगा, जबतक वो हमारे लिए सड़ा गला जीवन न जीयें

लाठी डंडे न खाएं

गोली न खाएं

उससे पहले हम कहाँ तैयार हैं किसी की महानता को समझने को?

और ऐसा क्यों है?

हम है परपीड़क समाज
हम अपने शहीदों को इतना सम्मान जानते हैं क्यों देते हैं .......क्योंकि भीतर से हम सोचते हैं अच्छा है हमें नहीं मरना पड़ा इनके बदले

कोई और ही मरता रहे हमारे बदले और हम बस सम्मान देकर जान छुड़ा लें...कितना सस्ता सौदा है

नहीं?

हम हैं कम अक्ल समाज

हमें लगता है कि दुनिया में यदि गरीबी है है तो हमारा नेता कैसे आसान जिन्दंगी जी सकता है?

दुनिया में अगर दिक्कते हैं तो हमारा नेता कैसे गोल्फ खेल सकता है ?

दुनिया में अगर बीमारी है तो उसे भी बीमार होना चाहिए, नहीं?
असल बात यह है कि एक स्वस्थ शरीर और दिमाग का व्यक्ति ही अच्छे से सोच सकता है, एक शांत व्यक्ति ही गहरे से सोच सकता है

सो मेरा ख्याल है कि अब नज़रिया बदलना चाहिए...

यदि हमें अपने महान लोगों को तसवीरें सेक्स करते हुए, या पांच सितारा रेस्तरां में खाते हुए, या सिनेमा देखते हुए मिले तो इसमें बिलकुल भी परेशान होने की ज़रुरत नहीं है, हमें उन्हें बक्श देना चाहिए, उन्हें जीने देना चाहिए

हाँ यह देखना ज़रूरी है कि वो यह सब अपने खर्च से करें और यह सब करते हुए अपने दायित्व ठीक से निभाएं

असली कसौटी यह होनी चाहिए कि हमारा नेता कितना गहरा सोचता है, कितना बढ़िया प्लान पेश करता है और फिर उनके क्रियान्वन में कितना श्रम करता है.......

कसौटी यह नहीं होनी चाहिए कि वो कितना लम्बा अनशन करता है, कितने ज़्यादा दिन भूखा रह सकता है, या जेल में रह सकता है....

नहीं, यह गलत है और इसके लिए ज़िम्मेदार हैं हम सब, हमारी सोच इतनी उथली है कि हम अपने नेता की वैल्यू उसकी सोच की गहराई से न नाप कर उसके कष्ट सह सकने की क्षमता से नापते हैं

न, मैं विरोध करता हूँ समाज की इस तरह की सोच का, और हमारे अन्ना और केजरीवाल जैसे मित्रों का जिन्होंने विचार को विचार की शक्ति से प्रस्तुत न कर के इस तरह के हथकंडे अपनाये और अपना रहे हैं

जानता हूँ कि विचार कितना ही बढ़िया हो, कितना ही समाज के फायदे में हो समाज अँधा बहरा बना रहता है, जल्दी देखता सुनता नहीं है.......

समाज और इसके नेता दोनों को थोड़ी परिपक्वता की ज़रुरत है

विचार को विचार की ताकत से ही आंकना चाहिए, भांपना चाहिए न कि उसे पेश करने वाले की खुद को पीड़ा देने की क्षमता से


!!!!हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा!!!!!!

जब तक हमारे राजनेता कलाकार न होंगें, वैज्ञानिक न होंगें, कवि न होंगें, नर्तक न होंगें.....ध्यानी न होंगें...............कुछ बेहतर न होगा...या जो होना है उसका बालिश्त भर होगा........इनसे कोई उम्मीद करते हो.......क्या औकात है इन जोकरों की, जिन्हें नेता मान बैठे हैं हम तुम.........अरे कोई आदमी किसी पागल पार्टी में बरसों लगा चुका.......इसलिए वो नेता हो जाता है.....मंत्री.....प्रधानमंत्री बन जाता है.......यह है हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा..........

जब तक हमारे नेता, हिन्दू मुस्लिम आदि होने को गुनाह मानने वाले न होंगें.........कुछ बेहतर न होगा...या जो होना है उसका बालिश्त भर होगा......क्या औकात है इन जोकरों की, जिन्हें नेता मान बैठे हैं हम तुम......ये हिन्दू मुस्लिम के नाम पर लड़वाने वाले लोग.....ये मंदिर मस्जिद पर लड़वाने वाले लोग...यह मुर्दा ईंट पत्थरों के लिए जिंदा इंसानों का व्यापार करने वाले लोग.......ये भूतकाल के लिए वर्तमान को कुर्बान करने वाले लोग.........यह है हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा..........

कभी सोचा भी हमने तुमने कि राजनीति जो जीवन के हर पहलु को प्रभावित करती है...और बहुत ज़्यादा प्रभावित करती है.......उसे चलाने वाले लोग कितनी गहरी सोच समझ के लोग होने चाहिए......इन सडक छाप भाषणबाज़ लोगों के हाथों सत्ता देते हो......यह है हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा..........

कभी सोचा हमने तुमने कि जो वायदे चीख चीख कर नेता कर रहा है, वो पूरे करेगा कैसे, यह "कैसे" पूछना सीखा हमने क्या? "कैसे" "कैसे" यह पूछना सीखा हमने? नहीं न ...बस ताली पीटना या गाली पीटना या फिर पीटना सीखा ....... हमारे तुम्हारे नेता चाँद तोड़ कर लाने जैसे वायदे करते हैं और औकात इनकी पेड़ से एक फ़ल तोड़ कर लाने जितनी नहीं होती....यह है हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा..........

मैंने हमारे तुम्हारे नेता को जोकरों से compare किया...माफ़ी चाहता हूँ...जोकर तो खुद एक बड़ा कलाकार होता है...इनकी क्या औकात जोकरों के सामने......यह है हमारी तुम्हारी राजनीति की परकाष्ठा..........

कॉपी राईट मैटर
तुषार कॉस्मिक



जिसको मत दिया वो जीता या हारा उससे क्या मतलब ?

मैंने अपना मत देना था......अपनी राजनितिक समझ के मुताबिक अपना मत रखना था...रख दिया.....बात खत्म हो गयी.......

और हारा गया कैंडिडेट भी अगर सही सोच समझ का सक्षम व्यक्ति हो तो वो जीतने वाले को सही काम करने को विवश कर सकता है ......

और हारने वाला यदि सही सोच समझ का सक्षम व्यक्ति हो.तो वो हमारे मत की शक्ति से भविष्य में जीत भी सकता है....

बहुत सी सम्भावनाएं हैं...
इसलिए कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि अपना मत उसे दिया जाये जिसके जीतने की उम्मीद हो.....बल्कि मत सही उम्मीदवार को दिया जाये चाहे उसके जीतने की बिलकुल भी उम्मीद न हो.... "भारत की राजनीति, एक नज़र, एक नज़रिया"
अब एक नाई का काम होना चाहिए कि वो अपनी दूकानदारी बढ़िया से कैसे चलाए, बाल बढ़िया कैसे काटे , ग्राहक कैसे खुश रहे और उसे अपने काम के सही पैसे कैसे मिलें.. लेकिन राम अवतार जी तो इन कामों में कम और पड़ोस की गली के लड़के के सामने वाली लडकी के साथ अफेयर में पीएचडी करे बैठे हैं भाई जी, आप तो छोड़ ही दो ये नाई वाई का काम......आपका इस क्षेत्र से क्या लेना देना अब ये मस्जिद तोड़ने, मंदिर बनाने वाले लोगों का राजनीति से क्या काम, राजनेता का कुल मतलब है मुल्क की व्यवस्था कैसे बढ़िया चले..... लोगों को काम मिले, आर्थिक व्यवस्था कैसे बेहतर हो......स्वस्थ्या कैसे बेहतर हो......टैक्स कैसे कम हों......आदि आदि न, लेकिन यहाँ तो दूसरे पंगों में पीएचडी करे हुए लोग चढ़ बैठे हैं मुल्क की छाती पर.....और वो भी अपने चेले चपाटों के साथ बोलो श्री राम चन्द्र के जय वकत लगेगा अभी लेकिन यह संघी राजनीति ध्वस्त होगी.....आयी इसलिए नहीं कि लोगों को कोई संघी सोच पसंद है/थी....आयी मात्र इसलिए कि कांग्रेस का कोई मज़बूत, साफ़ सुथरा विकल्प नहीं था........विकल्प भाजपा द्वारा लूटा गया है....लूटा गया है, धनतंत्र का प्रयोग कर, दुष्प्रचार का प्रयोग कर....... अभी भारत को गुज़रना है सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक बदलाव के इक दौर से.....वैसे तो सारी दुनिया को ही.....वहां अमेरिका तक में कॉर्पोरेट को राजनीति से अलग करने को ले कर लोग परेशान हैं....लेकिन हम जैसे मुल्कों को तो और भी बहुत ज्यादा ज़रुरत हैं बदलावों की.....भारत का दुर्भाग्य है कि कांग्रेस के जाते जाते कोई विकल्प नहीं बन पाया.... ठीक वैसे ही जैसे मुल्क अंग्रेज़ छोड़ गए लेकिन पीछे कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं थे......मुल्क बटा, लोग कटे....अफरा तफरी मची कांग्रेस से छुटकारा होना था...लेकिन पीछे कोई पुख्ता तैयारी नहीं थी....सैतालिस के बाद पतंग कांग्रेसियों ने लूट ली...इस बार पतंग भाजपा ने भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर कांग्रेस का कोई समय रहते विकल्प पैदा नहीं हो सका.....और नतीजतन एक संघी सोच की पार्टी और विचारधारा हावी हो गयी......अगले पांच साल में यदि कोई बेहतर समाजिक और राजनितिक विकल्प पैदा न हुआ तो भारत की सोच समझ पर बहुत सी अवैज्ञानिक धारणाएं हावी रहेंगी अभी मुल्क को जो एक तेज़ बदलाव की ज़रुरत थी...वो गया तेल लेने.....अभी तो बस मुल्क उलझा है बकवास बाज़ी में बुलेट ट्रेन से विदेशों तक में India Shining जैसी तस्वीर पेश कर सकते हैं लेकिन नीचे की असलियत उससे बिलकुल उलट होगी... मेरी नज़र में अभी इस बुलेट ट्रेन जैसे शिगूफे की बजाए हजारों लाखों काम हैं जो हमारी सारी सामाजिक व्यवस्था, राजनितिक व्यवस्था और कानूनी व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था को सुधार सकती हैं..... बेहतर है ज़मीनी लेवल पर अभी जो बहुत कुछ किया जाना है ...वो सब किया जाए...... एक मुल्क अपना समय और अपनी उर्जा और अपना पैसा कहाँ लगाता है और कब लगाता है ...यह है देखने की बात... ग्लैमर ठीक नहीं...वो गलत तस्वीर पेश करता है विकास कि ठीक वैसे ही जैसा कांग्रेस ने India Shining दिखया दुनिया को दिल्ली की यातायात व्यवस्था इतनी ख़राब थी और है कि सडक पर गाड़ियाँ रेंगती हैं...... मेट्रो आने से क्या सडकों पर यातायात कम हो गया.....प्रदूषण घटा गया...? नहीं बल्कि बढ़ गया हो शायद यहाँ पर ही मैं कहता हूँ कि जब आप बड़े लेवल पर प्रयास नहीं करेंगे...तस्वीर पूरी सामने नहीं रखेंगे तो कुछ होगा नहीं..... ऐसा होता ही क्यों है कि चंद शहरों में ही विकास है...रोटी है......तभी तो भागते हैं लोग दिल्ली मुंबई......क्योंकि उल्लू के पट्ठे नेताओं ने चंद शहरों को छोड़ बाकी जगह विकास दिया ही नहीं.......यह मेट्रो आदि शिगूफा ही है.......बेहतर होता कुछ यूनिफार्म विकास करते भारत का...क्यों जाए बन्दा बिहार से दिल्ली मुंबई....क्यों छोड़े अपना गाँव? क्यों हो बेतहाशा भीड़ चंद शहरों में ही......उस तरफ तो कुछ कर नहीं सके...दिल्ली. मुंबई, बंगलोर को मेट्रो दे रहे हैं....बकवास है यह सब मुल्क को बस बकवासबाज़ी में उलझा रखा है. लेकिन लाख कोशिश कर लें.......आरएसएस....बहुत जल्द सब बदलेगा....तख्ता पलट होगा और तख़्त भी



जो लोग व्यवस्था परिवर्तन को इसलिए नकार रहे हों कि नई व्यवस्था में भी कमियां होंगी इनको पूछिए कि तुम्हारा कच्छा सड़ा हो, बदबू मार रहा हो, तो क्या तुम नया कच्छा इसलिए नहीं लोगे कि धोना पड़ेगा या इसलिए नहीं लोगे कि अभी ऐसा कच्छा आविष्कृत नहीं हुआ जो मैला न हो, और सदैव सड़ा कच्छा ही पहनते रहोगे क्या?

चुनाव जीतने से पहले आप गरीब नवाज़ बने, मुल्क की सडकें नापते हो, शहर की गलियां छानते हो, हर रेहड़ी पटड़ी वाले तक से हाथ मिलाते फिरते हो, गले मिलते हो
जब आप जीत जाते हैं, हाथ आप तब भी मिलाते हो, गले आप तब भी मिलते हो, बस आम आदमी की जगह ख़ास आदमियों से और ख़ास चमक दमक के साथ
खैर, चमक दमक तो राजा लोगों की नहीं रही, आपकी कहाँ रहेगी, बस थोड़ा वक्त लगेगा अभी


वैसे बता दूं, याद दिला दूं, FDI का रिटेल में निवेश एक समय आपके मुताबिक सुशासन नहीं था



वैसे बता दूं, पीछे भाजपा के ही हिसाब से पेट्रोल डीज़ल का रेट बढना सुशासन नहीं था


"हम हैं नई राजनीति"
यदि आप देश में बिलकुल अलग तरह की राजनीति देखना चाहते हैं, तो हमें धन से सहयोग कीजिये, तन और मन भी लगा सकें तो और बेहतर......
नई राजनीति का अर्थ निश्चित ही केजरीवाल या मोदी नहीं.......
ये लोग असल मुद्दों के तो पास भी नहीं फटकते .......
"जैसे मुल्क को जनसंख्या वृद्धि रोकना चाहिए, हर तरह के जाति आधारित आरक्षण बंद करने चाहिए, शिक्षा के नाम पर बच्चों के दिमागों में कचरा भरना बंद होना चाहिए, बदलते सामाजिक परिवेष में सेक्स के प्रति नया नज़रिया और कानून"
डिटेल में कुछ भी पूछ सकते हैं
असल मुद्दा हमारे लिए "धन" है, धन जिससे हम जन प्रदर्शन आयोजित कर सकें
आप या आप के कोई भी मित्र, या मित्र के मित्र यदि सच में सोचते हों कि भारत को बिलकुल ही अलग तरह की राजनीती की ज़रुरत है तो हमसे सम्पर्क करें
स्वागत है

कमल में कीचड़ खिला है
कौन कहता है कि रजनीकांत को कोई मात नहीं दे सकता......राहुल गांधी हैं न......वो खेल खतम होने के बाद भी खेलते रह सकते हैं
एक मित्र ने लिखा है,"देश के प्रत्येक नागरिक तक मूल भूत सुविधायें पहुंचे यह सरकार की जिम्मेदारी हैं "
मेरा जवाब है, "लोग बच्चे पैदा करते रहें और ठेका सरकार ने ले रखा है .....सरकार के पास पैसा किसका है......टैक्स का.........उसपे हक़ करेक का कैसे हो गया......?"



"मरते धंधे"

कहते हैं न बुझता दिया भभकता है, वैसे ही धर्मों और धर्मों पर टिकी राजनीति का धंधा बस भभक रहा है .........अपना अस्तित्व बचाने को मारा काटी पर उतारू है

समझदार लोग जब धंधा मरने लगता है तो उसे छोड़ नया धंधा तलाशते हैं, बंजर ज़मीन छोड़ नयी ज़मीन तलाशते हैं, मूर्ख वहीं टिके रहते हैं, अड़े रहते हैं

जैसे कोई वक्त था, आपको याद हो तो लोग वीडियो कैसेट, टीवी किराए पर दिया करते थे, तकनीक बदली, धंधा खतम,

प्रॉपर्टी को लोगों ने अनाप-शनाप पैसा खपाने का ठिया बना रखा था, समाज बदला, रुख बदला, धंधा खतम

तकनीक बदली, आज आप बहुत देर तक लोगों को बेवकूफ बनाये नहीं रख सकते, बच्चा बच्चा आज इन्टरनेट पर आता जा रहा है

यह जो हाथी, गाय, बंदर पूजने वाले लोग हैं.....ये जो पंद्रह सदी पहले की किसी किताब को आसमानी किताब समझ मार काट मचाने वाले लोग हैं......ये जो किसी भी किताब को अपना गुरु मानने वाले लोग हैं ....इनका आखिरी दौर है ......अभी आप को बहुत दिख जायेंगे सोशल मीडिया पर इस तरह के लोग, लेकिन बहुत देर तक नहीं

इन्टरनेट ही है जो इन सब धर्मों और इनके नाम पर टिकी राजनीति का खात्मा करेगा
ये गंदे धंधे बस मरने ही वाले हैं



मुझ से किसी ने पूछा कि क्या मैं वर्तमान व्यवस्था को पलटने का षड्यंत्र कर रहा हूँ


मेरा जवाब था, " षड्यंत्र क्यों.....अष्ट यंत्र ....दश यंत्र...सहस्त्र यंत्र क्यों नहीं.........मेरे साथ मित्र आ जाएँ तो मैं तो सब पलट के रख देने में यकीन रखता हूँ और नया के होगा, नया निजाम क्या होगा, इसका खाका दे चुका हूँ...IPP एजेंडा में......."

--------- राजनीति तीन नज़रिए -----------

"मान लीजिये किसी कैलकुलेटर मे किसी ने कुछ गडबड़ी कर दी !
और उस कलकुलेटर मे 2 और 2 जोड़ने पर 5 आ रहा है !
अब उस कलकुलेटर को आप नेहरू के हाथ मे दीजिये तो भी 2 और 2 जोड़ने पर परिणाम 5 आएगा ! मनमोहन के हाथ मे दीजिये तो भी परिणाम 5 आएगा और मोदी के हाथ मे दीजिये तो भी परिणाम 5 ही आने वाला है अर्थात कलूलेटर कोई भी चलाये परिणाम एक जैसा ही आने वाला है क्योंकि समस्या कलकुलेटर चलाने वाले मे नहीं बल्कि कलकुलेटर मे ही है ! इसलिए जबतक कलकुलेटर नहीं बदला जाएगा परिणाम वही रहेगा !
67 साल से हम देश मे कलकुलेटर चलाने वाले को बदल रहे है कलकुलेटर नहीं बदल रहे !
67 साल से हम इस देश मे ड्राईवर बदलते है आ रहे है लेकिन गाड़ी नहीं बदल रहे !!"--- यह मैंने पढ़ा कि राजीव दीक्षित जी ने कहा


इधर मैंने बहुत से विडियो देखिएं हैं हस्सन निसार साहेब के, पाकिस्तानी दानिशमंद, बुद्धिजीवी हैं वो, बहुत पसंद भी हैं मुझे वो बहुत से मुद्दों पर.

उनका नुक्तानज़र कुछ इस तरह हैं, " यदि कीमा बनाने की मशीन में आप करोड़ बार भी सूअर डालोगे तो कीमा सूअर का ही निकलेगा, यदि कीमा कोई और चाहिए तो जानवर बदलो"


मेरा ख्याल है कि दोनों नज़रिए अधूरे हैं, न सिर्फ ड्राईवर बदलने के ज़रुरत है, गाड़ी बदलने की भी ज़रुरत है, गाडी ही ऐसी हो कि आधा अधूरा, ड्राईवर गाडी की ड्राईवर सीट पर बैठ ही न सके,शराब पिए हो गाडी खुद उसे इनकार कर दे ....


कैलकुलेटर ही, नहीं हमारे पास सुपर कंप्यूटर हों, और उन्हें चलाने वाले भी बेहतरीन किस्में के हों , कुछ इस तरह के सिस्टम बनाये जाने चाहिए.



गाडी बदलो, ड्राईवर भी बदलो, कैलकुलेटर बदलो, चलाने वाले भी बदलो और मैं हसन निसार साहेब वाली मिसाल में नहीं कहूँगा कि जानवर बदलो और कीमा बनाने की मशीन भी बदलो...चूँकि मैं मांस खाता नहीं और न ही खाने की सिफारिश करता हूँ......

No comments:

Post a Comment