Monday, 29 June 2015

!!हटाओ पर्दे, ये नकाब, ये घूंघट, ये बुर्के!!


अबे कौन बच्ची पर्दों में रहना चाहती है
ब्रेन वाश कर दो, और फिर बोलो कि देखो यह सब उनकी अपनी मर्ज़ी है, फ्री-विल

बुर्क़ा फ्री-विल है, घूंघट फ्री-विल है, पर्दा फ्री-विल है

शाबाश

कभी बच्चे , बच्चियां पाल कर देखो......उन्हें सिखाना मत कि यह तुम्हारी पवित्र किताब में लिखा, इसलिए यह ज़रूरी है

फिर देखना कि कितनी बच्चियां बुरका और घूंघट में रहना मांगती हैं, तब तुम्हें पता लगेगा कि फ्री-विल होती क्या है

कहीं उत्तेजित न हो जाए, मर्द औरत को देख, कहीं औरत उत्तेजित न हो जाए सेक्स के लिए आदमी को देख सो पर्दों में ढक दो ......सात पर्दों में ढक दो ....लाख पर्दों में ढक दो

वो, कुदरत , वो खुदा, वो प्रभु, वो स्वयम्भु ....वो पागल है जिसने सेक्स बनाया.....जिसने औरत को औरत और मर्द को मर्द बनाया...सबको हिजड़ा ही बना के भेज देता...बच्चों का क्या है, बना देता कोई और सिस्टम.......कुछ भी, सर्व शक्तिमान जो ठहरा....कान में उंगली हिलाओ, बच्चा बाहर, या फिर नाक में , या फिर कुछ भी और..... तो मूर्ख ही रहा होगा. वो तो आसमानी बाप....कपड़ों समेत क्यों नहीं पैदा किया इंसान को..........महामूर्ख.......कम से कम एक चड्ढी ही पहना भेजता , बेशर्म........

तुम समझदार, तुम्हारी आसमानी किताब समझदार ......कभी सोचा कि आसमानी किताब की कथनी और आसमानी बाप की करनी में इतना फर्क क्यों है......क्योंकि कोई किताब आसमानी नहीं है.....सब किताब ज़मीनी हैं.....लेकिन ज़मीनी हकीकत से दूर.

पर्दे ...अगर पर्दे डालोगे तो नज़रें और ज़्यादा तेज़ हो जायेंगे...नज़रें वो देखेंगी जो है भी नहीं, नज़रें हूरें देखेंगी, नज़रें गज़ल गायेंगे, शेरो-शायरी करेंगी......नजरें पागल हो जायेंगी

अब तो समझो कि यह पर्दे, ये नकाब, ये घूंघट, ये बुर्के .....ये सब इंसानियत को पागल करने के ढंग हैं...हटाओ........हटाओ, पर्दे डालने से नग्नता छुपती नहीं, और उभरती है.....

उम्मीद है समझेंगे.....नमन

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