!!पंगे और स्यापे !!

या तो मरी मरी ज़िंदगी जीयो या फिर पंगे लो
पंगा पंजाबी शब्द है....बड़ा प्यारा
इसके आसपास का ही शब्द स्यापा
इनके शाब्दिक अर्थों पर मत जाएँ, वो तो दोनों का मतलब जुदा है, लेकिन फिर भी दोनों शब्द एक दूसरे की जगह फिट किये जा सकते हैं
तो मैं कह यह रहा था साहेबान, हाज़रीन की इंसानी तरक्की जितनी भी हुयी है, हुयी पंगे लेने वालों की वजह से है
तजुर्बे करने वाले...स्यापा पायी रखने वालों की वजह से
कहते हैं, कितना सही कहते हैं इसका मेरा कोई ठेका नहीं चूँकि कहते वो हैं मैं नहीं, तो जनाब / मोहतरमा कहते हैं कि गल्लैन नाम का आदमी कब्रों में से लाशें निकाल उन्हें रात को अपनी टेबल पर चीर फाड़ करता था और जिस्म के अंदर की anatomy की तस्वीरे बनाता था, तफसील से लिखता था
पंगेबाज़
सब पंगेबाज़
या तो मरी मरी ज़िंदगी जीयो या मुर्दों को उठा दो
उखाड़ दो
बहुत पहले एक फिल्म देखी थी Frankenstein, उसमें एक वैज्ञानिक मुर्दों को कब्र से ला ला कर उनके हाथ पैर काट काट एक नया शरीर तैयार करता है आड़ा टेड़ा ...और वो ही मुर्दा जिंदा हो जाता है, उसी का नाम होता है Frankenstein.....लेकिन वो मुर्दा जहाँ तक मुझे याद है अच्छा मुर्दा होता है, अच्छाई से भरा
लेकिन सब मुर्दे ऐसे नहीं होते , उन्हें उखाड़ो तो वो कोई ऐसे ही तो बख्श नहीं देंगे...ज़िंदगी छीन लेते हैं...जो उनको उठाये, उखाड़े, ज़िंदगी देने की कोशिश करे...उसकी ज़िंदगी छीन लेते हैं
मुर्दे तो मुर्दे हैं.......कबीरा यह मुर्दन का गाँव
सो पंगे लो, स्यापे डालो .......बस होशियार रहो, मुर्दे मार न डालें

Comments

Popular posts from this blog

Osho on Islam

RAMAYAN ~A CRITICAL EYEVIEW