रामजादे और हरामज़ादे ...क्या है फर्क

मुझे ठीक से नहीं पता, हरामजादे का मतलब क्या होता है, शायद मुस्लिम बादशाहों के हरम में रखी औरतों से पैदा हुए बच्चे ....शायद उन्हें ठीक से सम्मान नहीं मिलता होगा .....इस शब्द हरामजादे के प्रयोग से तो ऐसा ही लगता .....लेकिन जिस तरह कोई बच्चा अवैध नहीं होता, मात्र माँ बाप ही अवैध होते हैं जो ऐसे बच्चे पैदा करते हैं जो बेचारे इस समाज में स्वीकारे ही नहीं जाने, इसी तरह से मेरे ख्याल से तो हरम में पैदा हुए बच्चों को भी इस नफरत से भरे शब्द हरामज़ादे से आप सम्बोधित तो कर सकते हैं लेकिन इस शब्द के साथ जुड़ा गलगलापन अगर दिखाना ही है तो उन बादशाहों के प्रति दिखाईए, जिन्होंने अपने समय में औरतों को भेड़-बकरियों की तरह मात्र सेक्स के लिए रखा था और उनसे पैदा हुए बच्चों को जो सम्मान तक नहीं दिला सके समाज में. उन बादशाहों के लिए शब्द रख लीजिये जैसे कमीने, घटिया या फिर कोई भी और गालीनुमा शब्द. यदि कोई हठधर्मिता से माने ही बैठा है कि नहीं भई, हम तो हरामज़ादे से मतलब वो ही लेंगे जो आम तौर पे माना जाता है......जैसे अपने बाप की औलाद न होकर किसी और की औलाद होना ...तो जानकारी के लिए बता दूं राम अपने पिता श्री दशरथ के बेटे नहीं थे, दशरथ तो बूढ़े हो चुके थे, किसी जवान ऋषि को खोजा गया था जंगले से और फिर उससे पुत्र-प्राप्ति यज्ञ कराया गया था और फिर राम और उसके बाकी भाई पैदा हुए थे ....अब भैया आपने जो मानना हो मान लो, लेकिन मुझे तो एक ही बात समझ आती है कि पुत्र-पुत्री एक ही तरह के यज्ञों से पैदा होते हैं और वो यज्ञ है सम्भोग-यज्ञ. फिर भी बनना है रामजादे तो बनो अब बात कर लेते हैं, कोई साध्वी की, जिसे रामजादे और हरामज़ादे का फर्क समझा दिया जाए. पहले तो यह समझ लीजिये कि ये जो भगवे कपड़े पहने घुमते हैं न या घूमती हैं, ये कोई साधू साध्वियाँ नहीं हैं, मात्र राजनेता-राजनेत्री हैं, जिनके पास कोई नीति नाम की चीज़ है नहीं. वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि जो खुद को रामजादा समझते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि जो रामजादे थे उनके साथ राम ने क्या सलूक किया था? छोड़ दिया था जंगले में उनकी माँ को, जब वो पेट में थे माँ के......उनकी माँ ने इसी राम को स्वीकार करने से बेहतर खाई-खन्दक में कूद आत्महत्या करना बेहतर समझा था. फिर भी बनना है रामजादे तो बनो. और बता दूं, रामजादों की माँ को जब रावण से छुड़ा लिया जाता है तो राम कहता है उसे कि मैंने रावण को तेरे लिए नहीं मारा, मैंने तो अपने नाम पर लगे धब्बे को मिटाने के लिए उसे मारा है, अब तुम चाहो तो सुग्रीव, विभीषण आदि के पास चली जाओ या जहाँ मर्जी चली जाओ, सब दिशायें तुम्हारे लिए खुली हैं. फिर भी रामजादा बनना है तो बनो भाई, बनो. वैसे एक और बात बता दूं सन्दर्भ में, इन्ही राम के एक पूर्वज ने अपने ही गुरु की बेटी के साथ बलात्कार किया था और गुरु के श्राप से अपना सब कुछ गवा दिया था, रघुकुल रीत. बनना है रामजादे तो बनो. एक कोई ऋषि, तथा कथित ऋषि, शायद विश्वामित्र ने एक औरत, जिसे राक्षसी बताया गया है, ताड़का के पति को मारा होता है बिना वजह, अब यह औरत ताड़का उस ऋषि को तंग कर रही होती है, ऋषि के बस में नहीं होता उससे लड़ना, ऋषि राम और लक्ष्मण को बुला लाता है और ये श्री राम बिना कुछ जाने ही ताड़का को मार देते हैं......बिना ताड़का से कोई संवाद किये....बस विश्वामित्र की बात पर ही ताड़का को मार देते हैं........एक औरत को. बनना है रामजादे बनो. ऐसा ही कुछ ये श्रीराम वाली के साथ करते हैं, एक तरफ़ा बात सुन कर ही वाली को कायरों की भांति छुप छुपा कर मार देते हैं. ये तो मात्र कुछ नमूने हैं, झड़ी लगा सकता हूँ इस तरह के उद्धरणों के. अबे तुम्हे सच में ही इस समाज की चिंता है तो आंखें खोलो खुद की भी और फिर इस समाज की भी ...बताओ अपने समाज को कि राम कहाँ गलत थे-कहाँ ठीक थे .....बहस आमंत्रित करो.....देखो-दिखाओ कि राम मंदिर में बिठाने के काबिल हैं भी नहीं. इन्हें तो बस इतना ही पता है चूँकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग राम को पूजते हैं इसलिए वो हिन्दू हैं, लेकिन लोग पूजते हैं चूँकि तुम्हारे जैसे पुजारीनुमा सियासी लोगों ने समाज को गुमराह किया है आज तक. इन्होने ही राम के नाम पर देश में अफरा-तफरी मचाई थी...इन को कोई मतलब थोडा है कि देश में तरक्की हो, अमनो-चैन हो, इन को तो बस मतलब है कि इनकी सड़ी-गली ऊट-पटांग फिलोसोफी किसी तरह मुल्क की छाती पर सवार हो जाए. नमन....तुषार कॉस्मिक

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