"ध्यान"
#ध्यान शब्द बहुत ध्यान खींच रहा है आज कल... बहुत से स्वामी, महाराज, बड़े छोटे गुरु और गुरु घंटाल ध्यान की बात करते हैं, ध्यान सिखाते हैं
स्कूल से ही टीचर शिकायत शुरू कर देते हैं, बच्चे ध्यान नहीं देते पढाई पर......एक बीमारी है ADHD (Attention Deficiency Hyper-activity Disorder). माना जाता है कि बच्चों में पाई जाती है. यानि कुछ बच्चों में ध्यान की कमी रहती है, उनका ध्यान बहुत तेज़ी से भटकता है. मैंने लिखा कि यह माना जाता है, इसलिए कि मेरी नज़र में यह कोई बीमारी है ही नहीं.
मेरे एक जानकार एक नर्सिंग होम में लैब असिस्टेंट हैं बरसों से. एक बार मुझे बता रहे थे कि उनके बच्चे को यह बीमारी है और किसी बड़े डॉक्टर से अपॉइंटमेंट भी लिया है. मैं हतप्रभ. मैंने पूछा कि बच्चे का जो ध्यान कम लगता है वो पढाई में ही कम लगता है या खेल में भी. उन्होंने कहा, नहीं, खेल में तो ठीक है. मैंने कहा, "ये बात. भाई साहेब, बीमार आपका बच्चा नहीं, हमारी पढाई है. आपका बच्चा बीमार नहीं है औरों से ज़्यादा समझदार है. इलाज उसका नहीं, हमारे स्कूलों का होना चाहिए. कई बार कोई स्वस्थ बीमारों के बीच आ जाए तो सब बीमारों को लगेगा कि वो बीमार है उसका इलाज होना चाहिए. जैसे मेरी बेटी कुहू, वो बहुत तेज़ भागती, दौडती है लेकिन सब उसके इर्द -गिर्द मोटे हैं सो सबको लगता है कि वो कमज़ोर है, उसे कोई टोनिक देना चाहिए. मैं आज ही कह रहा था कि उसे टोनिक की ज़रुरत नहीं है हमें जिम शुरू करने की ज़रुरत है और जो मैं एक आध दिन में करने भी वाला हूँ."
खैर....मैंने कहा उन मित्र को कि यह डॉक्टर की अपॉइंटमेंट कैंसिल करो....यह कोई बीमारी है नहीं, ठीक वैसे ही जैसे हस्तमैथुन को बड़ी बीमारी समझा जाता है, वैसे ही बहुत से रोग होते नहीं, बस रोग समझे जाते हैं और फिर व्यक्ति सच में रोगी हो जाता है, बात उनको समझ में आ गई और वो बच्चा समाज की होशियारी और यारी का शिकार होते-होते बच गया
एक और अवधारणा चर्चा में है आज कल, "MULTI- TASKING", यानि एक ही समय में एक से ज़्यादा काम.....अब यह भी एक तरह की बकवास है.....आप अपनी उंगली अपने चेहरे के सामने लाओ....अब ध्यान से उंगली देखो, अब उस उंगली के पीछे किसी चीज़ पर ध्यान लगाओ, फिर उंगली पर ध्यान लगाओ....आप देखेंगे कि जब आप उंगली देखते हैं तो पीछे की चीज़ ओझल हो जाती है, जब आप पीछे की चीज़ देखते हैं तो उंगली ओझल हो जाती है, आप दोनों एक साथ देखने का प्रयास करें दोनों धुंधले हो जायेंगे......मतलब साफ़ है आप एक समय में एक ही जगह अपने ध्यान को फोकस कर सकते हैं.....एक से ज़्यादा विषय पकड़ने की कोशिश करेंगे, सब गड्ड-मड्ड हो जाएगा....सो MULTI- TASKING एक तरह की बकवास है....आप एक ही समय में अपने चेतन मन (Conscious Mind) से एक से ज़्यादा काम कभी नहीं कर सकते.....हाँ, वैसे हम हर वक्त एक से ज़्यादा काम कर रहे होते हैं, मिसाल के लिए पहली बार बच्चा चलता है तो उसे बहुत ध्यान रखना पड़ता है, एक एक कदम सम्भाल कर फिर वो धीरे धीरे पारंगत हो जाते हैं, बड़ा हो जाता है, अब वो चलता जाता है, सिग्रेट भी पीता जाता है, फ़ोन पर बात भी करता जाता है ....कुछ इस तरह से MULTI- TASKING हर वक्त हम सब करते रहते हैं लेकिन निश्चित ही कोई भी कार्य जिनको आप के चेतन मन ने करना है वो एक से ज़्यादा करने का प्रयास घातक नतीजे देगा...ध्यान एक समय एक ही जगह लगाया जा सकता है
ध्यान एकाग्र ही होता है, ध्यान का स्वभाव है एकाग्रता, एकाग्रता के भिन्न ध्यान कुछ हो ही नहीं सकता.....हाँ एकाग्रता घनी हो सकती है या फिर छिछली...एकाग्रता लम्बी हो सकती है या छोटी अवधी की, लेकिन ध्यान होगा एकाग्र ही
तब ध्यान, वो ध्यान जिसकी हमारे आध्यात्मिक गुरु चर्चा करते हैं वो क्या है? आयें समझें.
जैसा मैंने कहा कि हमारे अवचेतन मन (Subconscious Mind) को हम बहुत से काम सौंप देते हैं.....असल में आप समझें कि हमने कोई नौकर रखा हो और कोई निश्चित काम सीखाने के बाद हम वो काम उसे सौंप दें और खुद कोई और काम करने लगें........अवचेतन मन वह नौकर है.......
जैसे कंप्यूटर में हम कई बैक प्रोग्राम चलाए रखते हैं, वो अपना काम करते रहते हैं, हम अपना, लेकिन कई बार बैक प्रोग्राम इतने भारी हो जाते हैं कि वो हमारे कामों को बाधित करने लगते हैं और हमें बहुत से प्रोग्राम बंद करने पड़ते हैं, फिर से सारा सिस्टम सेट करना पड़ता है.....
जैसे नौकर ज़्यादा शक्तिशाली हो जाए और हमारे बिना चाहे ही काम करता रहे और बिना मतलब के काम करता रहे...ठीक वैसे ही हमारा अवचेतन मन काम करता रहता है......
यह एक un-organized प्रोग्राम है, यह कब किधर मुड़ जाएगा, कब क्या सोचने लगेगा इसे बहुत कुछ बाँधा नहीं जा सकता.....अभी आप मेरे शब्द पढ़ रहे हैं लेकिन आपकी बेटी का रिजल्ट आना है दसवीं का आपको उसकी चिंता है, अब उसका रिजल्ट कैसा भी आए अप कुछ कर नहीं सकते उसमें कुछ, लेकिन चिंता है, चिंता नुक्सान कर सकती है लेकिन आप पढ़े जा रहे हैं मुझे और वो चिंता आपके दिल पर सवार हो चुकी है, आपको दर्द होने लगता है, आप पढ़े जा रहे हैं और उधर दर्द बढ़ता जाता है...एकाएक आप उठ खड़े होते हैं, चहलकदमी करने लगते हैं, छाती जोर से मलने लगते हैं, अब धीरे धीरे यह दर्द घटने लगता है...वजह जानते हैं क्या है? अवचेतन मन ने आपको घेर रखा था, वो नौकर की जगह मालिक बन चुका था, वो अनियंत्रित प्रोग्राम है, वो कैसे भी चलता रहता है
वैसे उसका आपको चिंतित करना भी यह बताना है कि आप कुछ करो, सोचो बेटी के बारे में, उसके इम्तिहान के बारे में, उसके भविष्य के बारे में, अवचेतन मन भी अपना फर्ज़ निभा रहा है लेकिन अवचेतन को आप समझा भी दोगे तो भी ज़रूरी नहीं कि वो समझ जाए, वो अनियंत्रित रहता है और यही मानव की दिक्कत है.
यह दो भागों में विभक्ति मानव जीवन के लिए वरदान भी है और श्राप भी..वरदान इसलिए कि मानव एक से ज़्यादा काम कर सकता है एक वक्त में.......और श्राप इसलिए कि अवचेतन अनियंत्रित हो जाता है...जैसे शुरू में आप सिग्रेट पीते हैं, वो आपका चुनाव होता है, चेतन मन से...फिर धीरे-धीरे यह चुनाव आपका नहीं रहता, आप छोड़ना चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते, सिगरेट छोड़ो आप खाने के, ज़रुरत से ज़्यादा खाने तक को नहीं छोड़ पाते.......बस यहीं नौकर के मालिक बनने की कहानी.....यही है.....जब आप कई बार किसी प्रोग्राम को ctrl+alt+ delete के बाद भी बंद नहीं कर पाते......तब आपको पूरा सिस्टम ही बंद करना पड़ता है इसी तरह से आपको अपने अवचेतन को रिप्रोग्राम करना पड़ता है.....आप अपने अवचेतन को बारबार इंस्ट्रक्शन दे सकते हैं, फिल्में दिखा कर, काल्पनिक फिल्में, मनस-चित्र....शब्दों से ज़्यादा मन चित्र, चल-चित्र पकड़ता है सो इस तरह से अवचेतन के अनियंत्रंण को कुछ दिशा दे सकते हैं
अब समझ लीजिये मन दो भागों में विभक्त हो काम करता रहता है, ध्यान वह उर्जा है, वह इलेक्ट्रिसिटी है जिसके बिना चेतन मन काम नहीं करता, आप बढ़िया खाना खा रहे हों, अपना मनपसंद लेकिन आपका ध्यान नहीं है यदि वहां, तो खाने का स्वाद मालूम न होगा लेकिन आपका अवचेतन फिर भी बिजी है, असल में अवचेतन ने ही सारा ध्यान खा लिया, सारी उर्जा खा ली इसलिए ही तो आपका चेतन निष्क्रिय रहा.
बच्चे में बहुत कम अवचेतन मन है, लगभग न के बराबर, वो वर्तमान में जीता है, इंसान जैसे जैसे बड़ा होता जाता है लगभग बेहोशी में जीता है, उसका अवचेतन मन भरता जाता है, वो कभी भी चेतन होता ही नहीं, वर्तमान में होता ही नहीं, अवचेतन मन से ही सारा जीवन जी जाता है
तो इस सारे मामले में दिक्कत क्या है? अवचेतन अपना काम कर रहा है, अपना फर्ज़ निभा रहा है, चेतन अपना काम करता है, अपनी ड्यूटी कर रहा है....क्या परेशानी है?
परेशानी है और परेशानी यह है कि अवचेतन नौकर से मालिक हो जाता है, बेकाबू हो जाता है, अनियमित है, दिशाहीन है और निरंतर है, अबाध है और अवचेतन ठस्स है, जड़ है.
परेशानी यह है कि आप सिग्रेट छोड़ना चाहते हैं, नहीं छोड़ पाते....आप मीठे सपने देखना चाहते हैं, लेकिन अवचेतन आपको भयंकर सपने दिखाता है, हालांकि अपनी तरफ से उस तरह के सपने दिखा वो आपकी मदद ही कर रहा होता है लेकिन उसकी मदद भी जान-लेवा साबित होती है, मेरा मानना है कि बहुत सी हत्याएं तो स्वप्न ही करते हैं.
परेशानी यह है कि आप हर वक्त एक मशीन की तरह जीते जाते हैं, आपके सारे जीवन को अवचेतन घेर लेता है, आप सोये-सोये जीते हैं, आपको न खाने का ठीक से स्वाद पता लगता है, न पीने का, न मरने का-न जीने का. मरने का पता भी उसे लगता है जो जीया हो, जो जीया ही मरा-मरा हो उसे क्या पता लगे कि जीना क्या है?
परेशानी यह है कि आप अवचेतन को काम करने को बंद कराना चाहें तो यह नहीं करेगा, यह चलता ही रहेगा, आप सोये हों, जागे हों यह चलता ही रहेगा और जब तक मन बंद न हो, मन अ-मन न हो अमन कैसे हो, शांति कैसे हो?
परेशानी यह है कि अवचेतन ठस्स है, इसमें जल्दी कुछ घुस जाए तो निकलता नहीं, यदि बचपन में आपको सिखा दिया गया कि आप हिन्दू हैं और हिन्दू एक सर्वश्रेष्ठ धर्म है तो आप सारी उम्र हर तथ्य को, हर तर्क को उसी सांचे में ढालते रहोगे, जो बात उस ढाँचे में, उस सांचे में फिट हो गयी वो सही, अन्यथा सब गलत.....अब लाख आपको कोई तर्क से समझाता रहे कि हिन्दू होना, मुस्लिम होना इंसानियत के लिए, आपके लिए, कायनात के लिए सही नहीं है, शायद ही समझें आप....चूँकि जो अवचेतन में जड़ जमाए बैठी धारणाएं हैं, वो अपनी जगह छोड़ने को राज़ी ही नहीं होती, पुराने प्रोग्राम डिलीट हो के राजी ही नहीं.
हल क्या हैं?
एक तो हल यह है कि अवचेतन को अपने हिसाब से ढाला जाए, उसके साधन हैं, मिसाल के तौर पर मेरा जन्म हिन्दू-सिक्ख परिवार में हुआ, कायदे से मुझे भी वैसी ही मान्यताओं में जीना चाहिए ...लेकिन अरसा लगा, हजारों तर्क-वितर्क तब जा के इस जंजाल से निकल पाया.......सो तर्क काम आ गए, बहुत बार तर्क काम नहीं आते, जैसे कोई सिग्रेट छोड़ना चाहे तो भी न छोड़ पाए....लेकिन वहां सम्मोहन काम आ सकता है....सम्मोहन चेतन मन के अवरोध को हटा देता है और सीधे प्रोग्राम को अवचेतन में अपलोड कर देता है.....आप खुद को भी सम्मोहित कर सकते हैं.....खुद को निरंतर शब्दों से प्रेरित कर सकते हैं, मनस चलचित्र दिखा सकते हैं.
दूसरा हल यह भी है कि आप सोने से पहले अपने आपको जैसे सपने दिखाना चाहते हैं वैसी इंस्ट्रक्शन दें....जैसे आपको पता होता है कि सुबह उठना है तो बिन अलार्म के या अलार्म के बजने से पहले ही आपका अवचेतन आपको (हमें) उठा देता है ...अवचेतन को पता था कि आपने सुबह उठना है सो उसने अपना काम कर दिया ..ऐसे ही अवचेतन को कुछ हद तक सपने दिखाएं जा सकते हैं ..और सपने हमारे चेतन को प्रभावित करते हैं.......आज तक हम यह समझते आएं हैं कि हमारे सपने हमारी जागृत अवस्था से बनते हैं.....यही है आज का मनोविज्ञान..लेकिन मेरा मानना है कि हमारे सपने हमारे चेतन को भी प्रभावित करते हैं, दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं.....यदि नींद से उठते ही सपने कागज़ पर उतार लिए जाएँ तो बहुत से काम के आईडिया मिल सकते हैं, अवचेतन सब समस्याओं का हल खोजता रहता है और सुझाता भी रहता है.....यह है एक तरीका अवचेतन को मालिक से नौकर बना उसका फायदा उठा लेने का.
तीसरा हल है कि सोते हुए व्यक्ति पर सम्मोहन प्रयोग लिया जाए. आपने आज तक जिस सम्मोहन को पढ़ा-समझा है, वो जागे व्यक्ति पर प्रयोग किया जाता है, मैं सोये व्यक्ति पर सीधे सम्मोहन प्रयोग की बात कर रहा हूँ.....बहुत मद्धम, बहुत महीन आवाज़ से सोये व्यक्ति को निर्देश दिए जा सकते हैं...........आवाज़ इतनी तेज़ की सोये व्यक्ति को सुन जाए, लेकिन इतनी मद्धम कि वो नींद से उठ भी न जाए....मैंने अपनी बड़ी बेटी जब वो लगभग छः-सात बरस की थी उन दिनों यह प्रयोग बहुत किया था और नतीजे उत्साह-वर्धक थे....यह प्रयोग इंसानियत के लिए खतरनाक है....इंसान को पहले ही रोबोट बनाया जाता है.....इस विधि का शैतानी लोग प्रयोग कर इन्सान को और जल्दी रोबोट बनाने में सफल हो सकते हैं.....मैंने बहुत सोचा, लेकिन आज लगा कि हर ज्ञान इंसानियत का अच्छा बुरा दोनों कर सकता है......यदि यह विधि विध्वंसक लोगों के हाथ पड़ेगी तो विधायक लोगों के हाथ भी पड़ेगी और मेरा बहुत यकीन है कि अब इंसानियत के पास इन्टरनेट जैसा वो अस्त्र है जो बहुत तेज़ी से इंसानियत के अंधेरों को काट देगा.
चौथा हल है कि बीच में अवचेतन को दिए गए काम उससे छीन लिए जाएँ.....जैसे आप पार्क में सीधे चलते हैं और सोचते जाते हैं.....अब आप उल्टा चलना शुरू कर दें, आपको पीछे देखते चला होगा, सम्भल कर....आपकी सोच बंद हो जायगी चूँकि अवचेतन को ध्यान की उर्जा मिलनी बंद हो जायेगी.....आप चेतन हो जायेंगे. आप दांत साफ़ करते हैं, मानो सीधे हाथ से और सोचते जाते हैं कुछ भी ....अब उलटे हाथ को यह काम सौंप दें .....तुरत चेतन हो जायेंगे.
पांचवां हल है, हर कार्य जागृत हो कर करने का. आप पानी पीते हैं, बस गले में उड़ेल लेते हैं जैसे ड्रम में पानी डालते हैं...खाना खाते हैं ऐसे जैसे गोदाम में माल फेंकते हैं.......इसे बदलें, एक-एक घूँट का स्वाद ले के पीएं...एक-एक कौर का स्वाद ले के धीरे-धीरे खाएं......आज कल एक और बीमारी चली है ...कम समय में ज़्यादा काम करने की....ज़िंदगी छोटी है, और बस एक ही है सो सब झपट लो...झट-पट ....सो भागो हर वक्त, हर काम को जल्दी से निपटा दो.....जिन लक्ष्यों के लिए ये काम किये जा रहे हैं, उनको भी जल्दी निपटा दो........पैसा कमाना है अच्छे भोजन के लिए, अच्छे सम्भोग के लिए....लेकिन उसकी भी जल्दी है सो उसे भी झटाक से, पटाक से निपटाना है.......बेहोशी में ही खा लेना है, बेहोशी में नहा लेना है, बेहोशी में सम्भोग कर लेना है.....सब बस निपटाना है ....सो इस निपटान संस्कृति से थोड़ा बाहर आयें .....भोजन बनाना खाना जो फ़ास्ट हो गया है, उसे स्लो करें....स्वाद लें बनाने का भी और खाने का भी.....Conscious Doer Mode कह सकते हैं चौथे और पांचवे हल को.
छठा हल है, साक्षी होना, मिसाल के लिए हम चलते जा रहे हैं और सोचते जा रहे हैं, हम चल रहे हैं अवचेतन मन से और सोच रहे हैं चेतन मन से.....अब हम चाहते हैं कि चेतन हो जाएँ, निश्चित ही हम अपने चेतन को सोच से हटा देते हैं और उसे साक्षी बना देते हैं, उसका रोल thinker से हटा कर Seer बना देते हैं....लेकिन अब यह सोच नहीं पाएगा अब बस यह जो भी कार्य अवचेतन मन से हो रहे हैं उनको देखता जाएगा, इसका खुद का कार्य कुछ भी नहीं है सिवा घटना को देखने के, यह है एक विधि जागृत रहने की, लेकिन यह हर वक्त के लिए नहीं है कदापि. हमें सोचने की भी तो ज़रुरत है न. हमें बहुत से काम चेतन होकर करने की भी तो ज़रुरत रहती है.
Seer का मतलब होता है दर्शक, आत्मिक दर्शन करने वाला, अध्यात्मिक. लेकिन आप या तो Thinker हो सकते हैं या Seer या Conscious Doer. आप, यानि आपका चेतन मन एक समय में एक से ज़्यादा नहीं हो सकते. यह पहला नियम हमेशा याद रखें, ध्यान एक वक्त में एक ही जगह लग सकता है. ध्यान मतलब चेतन मन.
सो जब भी सम्भव हो गियर बदल सकते हैं. जागृत होने के लिए SEER/ साक्षी बन जाएं लेकिन यह गियर भी तभी बदलना चाहिए जब आप ऐसे काम कर रहे हों जिनमें चेतन मन का उपयोग न हो, जब आपको गहन सोचने की ज़रुरत न हो.
मिसाल के लिए आप गहन चिंतन में डूबे हैं, कोई बिज़नस प्लान सोच रहे हैं. बाहर कुत्ता भौंक रहा है, आपको उसका होश ही नहीं रहेगा, आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं, उसके नीचे गद्दी कितनी नर्म है, कितनी मुलायम, बिलकुल मक्खन लेकिन आपको उसका होश ही नहीं रहेगा. आपका सारा ध्यान, सारा होश, सारा चेतन मन सोच में डूबा है. इस वक्त वो THINKER MODE में है.
अब मानो आप सेक्स कर रहे हैं, आप अपने पार्टनर के साथ डूबे हैं, सम्भोग क्रियाओं में. आपको और कुछ भी होश नहीं है. इस वक्त आपका होश, चेतना सब Conscious Doer Mode में हैं, चेतन मन न "विचार प्रक्रिया" में है, न साक्षी स्थिति में, वो अभी "कर्ता प्रक्रिया" में है, भोग में है.
अब मानो आप पार्क में अकेले चल रहे हैं, चलना आपका अवचेतन सम्भाले है और आप चेतन से साक्षी हो जाते हैं. चले जा रहे हैं और खुद के प्रति, इर्द गिर्द के प्रति साक्षी हैं. आप SEER MODE में हैं, दार्शनिक/साक्षी स्थिति में हैं.
जहाँ तक मेरा तज़ुर्बा है Thinker Mode तो चलता ही रहता है अपने आप उसके लिए तो कुछ करना ही नहीं होता, Conscious Doer Mode में कोशिश करते रहना चाहिए कि बीच-बीच में आते रहें, उलटे हाथ से लिखना शुरू कर दीजिये, यदि बाल्टी से नहाते हैं तो शावर से नहा लें, यदि चावल खाते आ रहे हैं तो रोटी खाएं, यदि नमकीन खाते हैं तो मीठा खा लें....हम करते भी हैं ऐसा, एक ही स्वाद, चाहे कितना भी स्वादिष्ट हो, बेस्वाद लगने लगता है जल्द ही, वो तरीका है कुदरत का हमें बताने का कि जाग जाओ, बोरियत तरीका है हमें बताने का कि जागो, स्वाद बदलो, दृश्य बदलो.
मेरी समझ से साक्षी होने की प्रक्रिया बेहद साधारण कार्यो में ही प्रयोग की जानी चाहिए. जैसे पार्क में चलते हुए, लेकिन भीड़ भरी सड़क पर कार चलाते हुए नहीं. साक्षी होना बहुत सेफ स्थितियों में, निरापद स्थितियों में ही प्रयोग किया जाना चाहिए.
और पहले जो विधियाँ सम्मोहन और आत्म सम्मोहन से जुड़ी लिखी हैं मैंने, उनका प्रयोग कर खुद को कब कब चेतन रहना है उसका निर्देश दे सकते हैं
अब मेरी समझ यह है कि हर वक्त जाग्रत रहने का, हर कार्य जागृत रह कर करने का आग्रह गलत है......इस आग्रह को मानने का मतलब यह है कि हम अवचेतन को कोई भी काम सौंपने को तैयार नहीं हैं.....तब आप चलते हुए कोई ज़रूरी फ़ोन कैसे अटेंड कर सकते है? नहीं बस चलते जाएं और चलने पर ही ध्यान रखें......नहीं, यह कतई व्यवहारिक नहीं है....यह बेतुका है.
जागृत रहने का मतलब यही है कि हम पर सदैव के लिए अवचेतन कब्ज़ा न कर ले, हम अवचेतन के शिकार न हो जाएं, उसके लिए यदा-कदा, यथा सम्भव जागृत हो जाएं, और जागृत होना सप्रयास होता है, अन्यथा अवचेतन रहना तो अपने आप चलता ही रहता इसीलिए जागृत होने पर जोर दिया जाता है.
और बुद्ध होने का मतलब मेरी समझ से यही है कि एक बुद्ध अपने अवचेतन और चेतन को अपने हिसाब से निर्देश दे सकता है.....जैसे हम सोते हैं तो हमारा चेतन सोता है लेकिन अवचेतन जागता रहता है, सपने बुनता है.....एक बुद्ध अवचेतन को भी बंद कर सकता है....बुद्ध अवचेतन का मालिक बन जाता है पूरी तरह से तभी उसे स्वामी कहा जाता है, साईं कहा जाता है .......उसे अवचेतन एक पूरी तरह से कंट्रोल्ड प्रोग्राम बन जाता है, जिसे अपनी मर्ज़ी से शुरू किया जा सकता हो, चलाया जा सकता हो, बंद किया जा सकता हो, बस मेरी नज़र में बुद्धत्व का इतना ही मतलब है.
असल में अक्सर ध्यान ऑब्जेक्टिव होता है यानि इसे कोई न कोई विषय चाहिए...लेकिन विषय-हीन जब हो ध्यान, तो असल में इसे आप आत्मिक अर्थों में ध्यान कह सकते है......मैं इसे आत्मिक अर्थ इसलिए कहा चूँकि आप ध्यान के अलावा कुछ भी नहीं हैं....ध्यान ही जीवन उर्जा है.........आप विषय-हीन ध्यान दो तरह से कर सकते हैं......एक तो उदासीन हो जाएँ,साक्षी हो जाएं, अपने मनस पटल पर चलने वाले चित्र- चलचित्रों के प्रति ...चलने दीजिये, रस न लीजिये....ध्यान मत दीजिये...जब ध्यान न देंगे तो इन चित्रों को उर्जा न मिलेगी....बिन बिजली के पंखा कितनी देर चलेगा? चलेगा कुछ देर लेकिन फिर बंद हो जायेगा......और अब ध्यान की उर्जा वापिस ध्यान पर ही रहेगी...केंद्र पर ही....उद्गम स्थल पर ही.
वैसे आप सीधा भी ध्यान जहाँ से उठ रहा है, वहां ध्यान लगा सकते हैं, यह डायरेक्ट मेथड है.......कभी याद हो बचपन में एका-एक टकटकी बिंध जाना, आंखें खुली की खुली राह जाना.....शायद ही आपको ख्याल हो, यह कुदरती ध्यान में पहुँच जाना है......बड़े होते-होते यह विलुप्त हो जाता है.
दोनों ही विधियाँ ठीक हैं.
नतीजा दोनों का एक ही है ........विषय-मुक्त ध्यान...सब्जेक्टिव ध्यान.......दृश्य और दर्शक का भेद खत्म....... जितनी देर आप जागृत रहें उत्तम.....आप को पता लगेगा कि शांति होती क्या है, अमन होता क्या है. बेहतर है कि बैठ कर करें, आंख बंद कर करें चूँकि आप शयन मुद्रा में हैं तो यह विधि आपको सुला देगी और मैं अक्सर सोने से पहले यह विधि प्रयोग करता हूँ.....जितना भी तनाव हो कुछ ही समय में छू और मैं इसी विधि के ज़रिये अक्सर दिन में कभी भी आंख बंद कर सो जाता हूँ.
यह एक अलग ही अनुभव है, जब तक इस से गुजरेंगे नहीं, आपको पता ही नहीं चलेगा कि आप क्या खोते रहे हैं. ध्यान सर्वोतम दवा है. वो कहते भी हैं,"Meditation is the best Medication".
बीमारी आती कैसे है हम तक? बहुत बीमारी तो मन की उपज है. हमने ग़लत जगह ऊर्जा लगाई, ध्यान की ऊर्जा. जैसे आप किसी खराब रेडियो को बिजली दिए जाएँ, वो संगीत न देगा, मात्र शोर देगा, सर दर्द देगा.
एक उदहारण देता हूँ. एक बहन हैं मेरी, अच्छे खासे घर में शादी हुई, एक बेटा है कोई उन्नीस साल का. लेकिन अब वो बीमार रहती हैं. खड़े-खड़े गिर जाती हैं. वजह यह है कि वो इस बात का बहुत शोक मनाती हैं कि उनके देवर, जेठ साझे काम में से, बराबर काम में से उनके पति से ज़्यादा पैसा खींच रहे हैं.....बात तो ठीक है उनकी, हक़ की बात है......लेकिन दूसरे हिसाब से देखें उनकी चिंता यह है कि उनको पास छोटी कार है जबकि उनके देवर जेठों के पास बड़ी कार है......उन्हें समझाया मैंने कि आप यह क्यों नहीं देखती कि कितने ही लोग हैं जिनके पास कोई कार ही नहीं है, जो बेकार हैं, जिनको यदि दुनिया की सबसे छोटी कर भी मिल जाए तो मानो स्वर्ग मिल जाए. लेकिन हक़ की बात. हक़ की बात पर तो सारा महाभारत लड़ा गया. वो कैसे छोड़ दें? सो मामला तो पति के हाथ में है सारा. भारतीय समाज. वो कुछ कर नहीं सकती सिवा पति को कहने के. मायका बहुत दखल दे नहीं सकता. सो अंदर-अंदर ही इतनी परेशान हैं कि खुद को बेहद बीमार कर चुकी हैं. मैंने यही समझाया कि आप अपनी उर्जा कहीं और लगाएं. गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ना शुरू कर दें या कुछ भी और करें जो ठीक लगता हो. चूँकि ध्यान एक समय, चेतन मन का ध्यान एक समय एक ही जगह रहता है. देखें कि जिन खुशियों को वो छोटा मान रही हैं. वो गरीब बच्चों के लिए कितनी बड़ी हैं. दवा शुरू की गई है लेकिन दवा कितने दिन असर करेगी, मुझे शंका है. बीमारी तो आमंत्रित की गई है. जब तक व्यक्ति खुद बीमारी छोड़ना न चाहे, बीमारी कैसे छोड़ जायेगी? आप खुद सिग्रेट छोड़ना नहीं चाहते यदि, अपने आप तो सिग्रेट आप को छोड़ के जाने से रही. सम्मोहन की भी सलाह दी मैंने. लेकिन वहां भी यही बात है. सम्मोहन में भी वही निर्देश दिए जा सकते हैं जो वो चाहें. सम्मोहन भी तो उनकी मर्ज़ी के खिलाफ नहीं हो सकता.
वैसे यह भी कहते हैं कि सम्मोहन में आप किसी की मर्ज़ी के खिलाफ काम नहीं करवा सकते, वो हर जगह सही नहीं है....आप किसी हिन्दू को सम्मोहित करके हिन्दू के खिलाफ़ कुछ कहने को, करने को कहो, शायद आपको उठ कर थप्पड़ मार दे. लेकिन फिर बहुत से हिन्दू आज भी मुस्लिम बन रहे हैं. यह एक सम्मोहन से दूसरे सम्मोहन में ही तो जाना है. सो हम सारा जीवन ही सम्मोहन में जी रहे होते हैं, हमारा जीवन ही समाज, परिवार, धार्मिक और राजनीतिक नेता डिज़ाइन कर देते हैं. हमें पता ही नहीं लगता कि हम जिस धर्म के लिए जान तक देने को तैयार हो जाते हैं, वो मात्र एक सम्मोहन का नतीजा है, लम्बा सम्मोहन, बचपन से चला आ रहा सम्मोहन. सो मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं किया, कराया जा सकता सम्मोहन में ऐसा मैं नहीं मानता. तुरत नहीं किया कराया जा सकता लेकिन लम्बे समय में यह सम्भव है
खैर, उनके मामले में सम्मोहन भी घर के किसी व्यक्ति की मौजूदगी में होगा, यह तक मैंने कहा लेकिन मुझे आज 5-6 दिन बाद भी कोई सूचना नहीं मिली कि ऐसा कुछ किया जाए. अब वो कैसे ठीक होंगी? ठीक होना ही नहीं चाहती. मैंने कहा कि आपका हक़ बिलकुल बनता है व्यापार में बराबर का, और बड़ी गाड़ी में घूमने का लेकिन उसके लिए जितना मिल रहा है, उसका भी आनंद क्यों गवा रही हैं और वो भी इस कदर कि खड़ी खड़ी गिर जाती हैं? कभी ज़्यादा नुक्सान भी हो सकता है......यह कहाँ की समझदारी है कि और ज़्यादा के लिए जो है वो भी गवा दो?....कुछ चीज़ें हमारे हाथ में नहीं होतीं.....उनके लिए प्रयास तो किया जा सकता है लेकिन बीमारी मोल नहीं ली जा सकती....और मोल भी कैसा? अपने जीवन का.......खैर, शायद उनको मेरी बात समझ में आए, प्रयास ज़ारी रहेगा, यह आर्टिकल भी पढने को दूंगा, शायद कुछ अच्छा हो जाए.
तो इस सन्दर्भ से कहना यह है मित्रवर कि बीमारी तो हमारी ज्यादातर मानसिक होती हैं, शरीर पर तो बस वो प्रकट होती हैं. हमने गलत जगह ध्यान की ऊर्जा लगाई अब वो ऊर्जा शरीर पर बीमारी बन कर फूटती है. जैसे वो बहन बड़ी गाड़ी लेना चाहती हैं, उनका बस चले तो एक सेकंड में ले आयें, नहीं ला पा रही हैं लेकिन ध्यान ने जो ऊर्जा पैदा की वो तो प्रकट होगी, वो बीमारी बन प्रकट होती है.
सो ध्यान यदि विषय-हीन हो जाए तो तुरत स्वास्थ्य प्रकट होता है, स्वस्थ शब्द का अर्थ ही स्वयं में स्थित होना है....ध्यान का उद्गम स्थल पर ही रहना....जब ध्यान ही आपका कहीं और नहीं है तो कैसे कोई मानसिक विकार उत्पन्न होगा.....आपने ख़राब TV को बिजली दी ही नहीं,कैसे वो खर्र....खर्र....की आवाजें निकालेगा?
मानो आपको किसी चिंता से नींद नहीं आ रही, पहले तो देखें कि आपका अवचेतन आपको कुछ बताना चाह रहा है, आप इस चिंता को नज़र अंदाज़ न करें. इसका सामना करें. इस विषय पर गहनता से सोचें. लेकिन बहुत बार सोचने के बाद भी चिंता घेरे रहती है. जैसा मैंने ऊपर लिखा कि अवचेतन अनियंत्रित, अबाध काम करता रहता है, अवचेतन एक बिगडैल नौकर है जो मालिक पर हावी होने के प्रयास में लगा रहता है और कामयाब भी रहता है. सो इस चिंता को दूर करने का एक उपाय है कि आप ध्यान करें. जैसे ही आपकी चिंता को ऊर्जा मिलनी बंद हुई वो हट जाएगी...और यदि आप शयन मुद्रा में हैं तो कुछ ही देर में सो भी जायेंगे.
सो ध्यान को ठीक से समझें, तो ही फायदा ले सकते हैं, वैसे ही जैसे साइकिल भी आप ठीक से सीखें तभी कोई फायदा ले पायेंगे, वरना गिर-गिर दांत तुडवा लेंगे. वैसे ही आप ध्यान के साथ पंगे लेंगे, बेवकूफियां करेंगे तो पागल हो सकते हैं, ध्यान कोई और नहीं आप स्वयं हैं.....आप का कोर, केंद्र क्या है सिवा ध्यान के? कोशिश कीजिये ढूँढने की. सिवा ध्यान के आप कुछ भी नहीं है, और इस ध्यान पर ध्यान करना ही ध्यान है.
सादर नमन........कॉपी राईट........चुराएं न....साँझा करें
ध्यान हट ही नहीं रहा....
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