Thursday, 18 June 2015

कश्मीर

बहुत तो जानकारी नहीं  है, फिर भी जब तब कश्मीर के बारे में कुछ कुछ लिखा है मैंने........चलिए मेरे साथ कश्मीर----

(1) "कश्मीर बनेगा पाकिस्तान"

पाकिस्तान खुद तो पाकिस्तान बन नही सका, कश्मीर को पाकिस्तान बनाएगा

सिर्फ़ नाम का पाकिस्तान है, वहां कुछ भी पाक नहीं, साफ़ नहीं......न हवा, न खाना, न पानी, न सियासत, न व्यापार

ऐसा नहीं कि यह सब समस्याएं भारत में नहीं है लेकिन वो भारत से कहीं गया बीता मुल्क है

पाकिस्तानी लीडर पाकिस्तान को तो ठीक से सम्भाल नहीं पाए, कश्मीर को सम्भालने की पड़ी है

कश्मीर सिर्फ सियासत का शिकार बना है आज तक..........पाकिस्तानी सियासत का, कश्मीरी  सियासत का

चालाक लोगों ने कश्मीरियों  को अलग मुल्क का सपना दिखाया, पाकिस्तान में मिल जाने का सपना दिखाया

कभी यह नहीं समझने दिया कि पाकिस्तानियों का क्या हाल है......हिंदुस्तान से बदतर हालात हैं वहां पर..........गरीबी है, जहालत है, आतंकवाद है

और  कश्मीरियों को यह समझने नहीं दिया गया कि एक आज़ाद मुल्क को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए तमाम तरह का सुरक्षा तंत्र खड़ा करना पड़ता है........परमाणु शक्ति तक बनना पड़ सकता है

पुरानी समय में दुनिया को देश, प्रदेश जैसे टुकड़ों में बांटना मजबूरी थी....दूरी बहुत माने रखती थी......आपको ध्यान हो कि मैराथन कैसे शुरू हुई......युद्ध के मैदान से कोई संदेश भेजने के लिए एक व्यक्ति दौड़ाया गया मीलों.......तब से मैराथन शुरू हुई...........ऐसे समय में प्रशासन को गाँव, प्रदेश, देश के स्तर पर रखना मजबूरी थी......विज्ञान के उत्थान के साथ साथ बड़ी राजनैतिक इकाईओं को जोड़े रखना आसन होता चला गया है

अंग्रेज़ों से पहले भारत में राजा लोगों के पास छोटे छोटे राज्य थे.......एक वजह यह भी थी कि बड़े राज्यों को एक सूत्र में पिरोये रखना तकनीकी तौर पर बहुत मुश्किल था.......अंग्रेज़ भारत को एक सूत्र में पिरो सके चूँकि उनके पास बेहतर तकनीक थी

आज दुनिया में व्यापार सार्वभौमिक है, समस्याएँ सार्वभौमिक है, हल सार्वभौमिक हैं

दिन-ब-दिन ग्लोबल कल्चर का उत्थान होता जा रहा है

आज तकनीक की वजह से दुनिया एक हुई ही हुई......कल तक आप विदेश फ़ोन करना एक बड़ा मुद्दा समझते थे...आज आप स्काइप पर दिन भर विडियो कॉल कर सकते हैं....वो भी बिना कोई अतिरक्त खर्चा किये....... दूरियां सिमटती जा रही हैं..........ऐसे में मुल्कों का अस्तित्व वैसे भी बहुत देर तक बचने वाला नहीं है

वैसे न तो अधिकाँश कश्मीरी पाकिस्तान में जाना चाहते हैं और न ही पाकिस्तानी कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने को मरे जाते हैं.......दोनों को पता है कि इससे कोई आलू सस्ते नहीं हो जायेंग, इससे कोई सरकारी कर्मचारी तमीजदार, इमानदार नहीं हो जायेंगे, इससे उनकी कोई भी दुश्वारियाँ कम नहीं हो जायेंगी

जैसे बंगला देशी भारत आ जाता है काम के लिए, जैसे  पूरबी भारतीय पश्चिम भारत आ जाता है काम के लिए, वैसे ही कश्मीरी काम के लिए पाकिस्तान जाने का सपना नहीं देखते, पाकिस्तान की असलियत वो भी जानते हैं, पाकिस्तानी भी पश्चिम के मुल्कों में स्थापित होने का सपना देखते हैं न कि कश्मीर में.....

यह कश्मीर का अलाव तो पाकिस्तान की सरकारें जलाए रखती हैं, वहां के सियासी लीडर, जो वहां की समस्या हल नहीं कर पाते, वो अपने मुल्क का ध्यान असल समस्याओं से हटा कश्मीर पर अटका देते  हैं, देशभक्ति को कुल जमा कश्मीर पर समेट देते हैं ....

लेकिन सियासी साजिशों की वजह से जन मानस उलझ तो जाता ही है, मज़हबी उन्माद और नकली देशभक्ति की ऐसी नशीली चाश्नी पिलाई जाती है कि असलियत दीखते हुए भी नहीं दीखती

कश्मीरी जनता को ही समझदार बनना होगा उसे समझना होगा कि कश्मीर की भारत  से अलग  होने  की डिमांड अहमकाना है, समझना होगा कि आतंकवाद से  कश्मीरी टूरिज्म तबाह हो गया, फिल्मों का छायांकन खत्म हो गया , उन्हें समझना होगा कि आतंक वाद से वहां समृधि आई या ग़रीबी, समझना होगा कि उनका भारत के साथ रहने में ही मंगल है....

कश्मीरी पब्लिक को यह समझाना ज़रूरी है कि उनका न तो पाकिस्तान जैसे खस्ताहाल मुल्क के साथ मिलने में कोई भला है और न ही अलग देश के तौर पर खड़े होना सम्भव है, सो बेहतरी भारत के साथ मिले रहने में है , लेकिन एक अलग तरह के राज्य बने रहना भी गलत है, इतिहास से ही वर्तमान तय नहीं होते रहना चाहिए, वर्तमान को फौसले अपने हाथ में लेने होंगे

भारत से हर तरह की सुविधा लेना लेकिन दूसरें राज्यों से अलग दर्जा बनाये रखने का कहीं कोई औचित्य नहीं, यदि ऐसा रहेगा तो कश्मीर जैसा है वैसा ही बना रहेगा ......भारतीय क्यों कश्मीर को झेले?

कश्मीर को पूर्णतया भारत का एक आम राज्य बन जाना चाहिए और भारतीय सरकार से हर हक़ माँगना चाहिए और भारतीय सरकार को कश्मीर की हर ज़रुरत का हर सम्भव ख्याल रखना चाहिए

कश्मीरी मुसलमान की  जो भी समस्या हो वो भारत की सरकार, भारत के निजाम से हक़ से कहनी  चाहिए, हल माँगना चाहिए लेकिन  कश्मीरी ब्राह्मण को दुबारा वहां बसने में भी पूरी मदद करनी चाहिए और "कश्मीर बनेगा   पाकिस्तान"   कहने वालों के, आतंकवाद को हवा देने वालों के पिछवाड़े पर पुरजोर लात मारनी चाहिए......

शायद कुछ मित्रों को यह कोई बड़ा काम दिखाई देता हो, मुझे नहीं दीखता, मैंने पंजाब का आतंकवाद देखा है, जब खत्म किया जाए तो दिनों में खत्म हो सकता है, फिलहाल मुझे कश्मीर का इससे बढ़िया हल नहीं सूझता

जो मित्र कश्मीर में सेना के अत्याचार का ज़िक्र करते हैं, उनको बस इतना ही कहना चाहता  हूँ, लहू  चाहे आतंकवादी  बहायें या सेना के जवान, बेक़सूर लहू लहू है

लेकिन  जब कश्मीरी मुसलमान सेना के अत्याचार का ज़िक्र करता है तो उसे मुस्लिम आतंकियों का ज़िक्र भी करना चाहिए, उसे कश्मीर से भगाए गए ब्रहामणों का ज़िक्र भी करना चाहिए, उसे यह भी देखना चाहिए कि हल क्या है

हल  कश्मीर बनेगा पाकिस्तान नहीं है, हल है, ब्रहामणों को वापिस स्थापित किया जाए, हल है आतंकवाद को दफा किया जाए, हल है सेना के जवानों बेकसूरों पर अत्याचार न कर पाएं, इसके लिए पुरजोर आवाज़ उठाई जाए....

लेकिन मेरा मानना है कि आतंकवाद का सफाया बिन ताकत के होगा नहीं, और गेहूं के साथ घुन पिसेगा ..पंजाब का इतिहास गवाह है

घुन न पिसे, इसके लिए सरकार को ज़्यादा से ज़्यादा इतेज़ाम करना चाहिए, कोशिश होनी चाहिए

क्या कश्मीर का भारत का एक आम राज्य बन जाने से उसकी सब समस्याएं खत्म हो जायेंगी? नहीं. बिलकुल नहीं. क्या भारत में सब सही है? सही होता तो यह जो रोज़ रोना हम रोते हैं उसकी क्या ज़रुरत?

जो सुझाया वो कश्मीर के हालात जो आज हैं, उससे बेहतर हो सकते हैं यह समझ कर सुझाया है......

कश्मीर आम राज्य बने तो टूरिज्म खुल जाएगा, बहुत से रोज़गार भी खुल पायेंगे तथा और भी बहुत सी विधायक सम्भावनाएं बन सकती हैं.

असल में सब राजनैतिक लकीरें झूठी हैं. जो कुछ मैंने सुझाया वो हालात, और वक्त को मद्दे नज़र रख कर सुझाया, वो यह खयाल में रख कर सुझाया जिसमें फिलहाल पाकिस्तान, भारत और कश्मीर सबका भला मुझे नज़र आता है.........

(2)  !!!! हैदर, यक तरफ़ा फिल्म !!!!

देखी पिछली रात, कुछ रिव्यु भी पढ़े, सब के सब प्रशंसा से भरे, विशाल भरद्वाज की प्रशंसा, गुलज़ार की प्रशंसा.....

लेकिन मुझे तो इस फ़िल्म में प्रशंसा लायक कुछ दिखा नहीं.....दिखा इस लिए नहीं कि इसे मात्र एक कहानी के तौर पे, एक ऐसी कहानी के तौर पे पेश किया जाता जो शेक्सपियर के नाटक पर आधारित है तो बात अलग थी

लेकिन इसे तो कश्मीर के आतंकवाद, कश्मीर के दर्द से जोड़ा गया

जोड़ो भाई जोड़ो ..... जोड़ो क्या, सीधा साफ़ दिखाओ...

बिल्कुल दिखाओ कि हिन्दू लोगों को कश्मीर से भगाने के लिए, उन्हें क़त्ल किया जाता रहा, उन को निशाना बनाया जाता रहा, कुछ वैसे ही जैसे पंजाब में हिन्दुओं को खालिस्तानियों द्वारा

आज तक पंजाब के लहुलुहान आतंकित दौर पर जितनी फिल्में बनी हैं, किसी ने सही तस्वीर नहीं दिखाई......हिन्दू पर कोई अत्याचार होता या तो दिखाया ही नही और दिखाया भी तो न के बराबर , अभी एक पंजाबी फिल्म देखी "साडा हक़" , बड़ा रौला रप्पा पड़ता रहा है, ...अधूरी फिल्म है, :माचिस" की तरह और इस विषय पर बनी बाक़ी फिल्मों की तरह ....

आतंकवादी इसलिए पैदा नहीं हुए कि उन पर अत्याचार हो रहे थे...न, न.......उन पर अत्याचार इसलिए हुए क्योंकि वो अत्याचार कर रहे थे........पैदा तो वो अपनी ही भ्रष्ट सोच समझ की वजह से हुए थे

और यहाँ भी "हैदर" फिल्म में, हैदर अपने पिता का बदला लेना चाहता है लेकिन देखने लायक बात यह थी कि उसके पिता आतंकियों के साथी थे, लेकिन पिता को हीरो दिखाया गया है और हैदर के चाचा को विलन, चाचा जिसकी मुखबिरी से हैदर का पिता पकड़ा जाता है, चूँकि उसने अपने घर में आतंकी छुपाया होता है ....पता नहीं, फिल्म बनाने वाले क्या साबित करना चाहते हैं?

और बड़ा मुद्दा दिखाया गया कि कश्मीरी मुसलमान गायब हो गये, निश्चित ही फ़ौज द्वारा मारे गये , टार्चर किये गये ...लेकिन क्या ये लोग आतंकी नहीं थे, या उनके साथी नहीं थे ? थे, फिल्म में दिखाया गया कि थे ....यहाँ लगता है कि फिल्म ठीक है

मेरा मानना है कि यदि कश्मीर का आतंक से भरा काल-खंड दिखाना है तो पूरा दिखाओ, दिखाओ कि हिन्दू क़त्ल किया गया मुस्लिम आतंकी द्वारा, बेघर किया गया.....दिखाओ कि फ़ौज ने आतंकी को पकड़ा और टॉर्चर किया और मारा, दिखाओ कि बहुत से गलत काम फ़ौज से भी हुए....पॉवर का बेजा इस्तेमाल दोनों तरफ से

दिखाओ कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति , चाहे खालिस्तानी हो चाहे कश्मीरी आतंकी , किसी को हक़ नहीं किसी को मारने का और यह दुनिया रही है रंग बिरंगे धर्म मानाने वाले लोगों से भरी.......

इस तरह बहुसंख्यक अगर अल्पसंख्यक लोगों को मारेंगे तो आधी दुनिया क़त्ल करने पड़ेगी

दिखाओ कश्मीरी ब्राह्मण का दर्द, कश्मीर के आतंकवाद से जुड़े काल-खंड का मुख्य किरदार

दिखाओ....नहीं दिखाते लेकिन .....दिखाते हैं "हैदर", बकवास हैदर..........वैसे ही जैसे "माचिस", जैसे "साड्डा हक़"

(3)  वाह भाई वाह, मोदी जी ने करोड़ों रूपया दे दिया कश्मीर बाढ़ राहत के लिए, जवान लगा दिए लोगों को बचाने के लिए......वाह!

इडियट्स, कमी नहीं है तुम्हारी.

मोदी जी ने करोड़ों दिए हैं अपने घर से दिए हैं, मेरा तेरा पैसा है.....

और

जो जवान लगाये हैं, उनको भी सैलरी मिलती है, और जिस पैसे से मिलती है, वो भी मेरा तेरा पैसा है.


यदि आज हमारे फ़ौज द्वारा कश्मीर में लोगों की जान बचाए जाने का श्रेय श्री मान मोदी भाई गुजराती को जाता है तो फिर गुजरात में उनके कार्यकाल में हुए क़त्ल-ए-आम का श्रेय भी उनको जाना चाहिए.

नहीं?

कॉपी राईट मैटर, सुझाव सादर आमंत्रित, सप्रेम नमन

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