Sunday, 28 June 2015

समाजनीति

???? है हिम्मत ????


मित्रो, मैं तो बस इतना ही कहना चाहता हूँ, जिस तरह से हमने राजनीति शुरू की है, या करना चाहते हैं वैसी कम से कम मुझे तो कहीं नहीं दिखा......

तुम मुझे २००० हजार लोग दो, जो मेरे साथ खड़ा हो सकें, मैं तुम्हें नया सिस्टम दूंगा और वो कैसा होगा उसकी खुली घोषणा कर रखी है मैंने


करप्शन का या लोकपाल का ही सवाल है क्या भारत के लिए...पूरे सिस्टम का सवाल है....और सिस्टम मतलब सामाजिक सिस्टम ......जहाँ से सब आता है....भ्रष्ट राजनीति, वकील, जज, पुलिस सब....पहले सिस्टम से टकराना सीखें...मतलब समाज से...है दम?

समाज के अन्धविश्वास से टकराना सीखें...है दम?

ऊपरी ऊपरी ...है सब...कुछ न होगा

मैं कहता हूँ....कांवड़ यात्रा बकवास है........अमरनाथ का शिवलिंग मात्र एक बर्फ का बना पिंड है जो कहीं भी बन सकता है...और आपको शिवलिंग बनता देखना है अपने रेफ्रीजिरेटर के फ्रीजर में देखें यदि कई दिन न खोलो तो आपको बर्फ के शंकु लटकते दिखेंगे.......

कहीं भी बर्फीला तापमान होगा और पानी बूँद बूँद टपकेगा तो जो आकृति बनेगी वो शिव लिंग जैसी ही होगी........भूगोल का सिंपल सिद्धांत है...गूगल कर लीजिये मिल जाएगा........दयानंद ने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में भी अमरनाथ शिवलिंग पूजा का विरोध किया है......लेकिन जब अग्निवेश ने किया तो वह समझ नहीं आया........अंध हिन्दू लोगों को...


और नेता है आपके मुस्लिम के पास जायेंगे मुस्लिम टोपी पहन लेंगे...हिन्दू के पास जायेंगे हिन्दू तिलक टीका लगा लेंगे.........मैं कहता हूँ जब तक समाज इन सब से पीछा न छुड़ा ले......सदियों पीछे रहेगा...रह रहा है.....है दम

एजेंडा पढ़ मात्र लें एक बार IPP का समझ जायेंगे....वो मात्र कोई पोलिटिकल एजेंडा नहीं है...पूरी व्यवस्था को उखाड़ कर नए सिस्टम को लाने का पूरा प्रोग्राम है

मिसाल के तौर पर एक जगह लिखा है मैंने कि व्यक्ति को पैसे कमाने का हक़ होना चाहिए लेकिन वो अपनी अगली पीढी को पांच करोड़ से ज्यादा ट्रान्सफर नहीं कर पायेगा....बाक़ी का पैसा उसे सामाजिक कामों में लगाना अनिवार्य होगा.....अब समझते हैं यह क्या है...सारी व्यवस्था पलट जायेगी...है दम

इसे ही समझना कहना पूरे समाज को जड़ तक हिला कर रख देगा

और ऐसी एक क्या अनेक बाते हैं एजेंडा में....एक बार समाज के सामने आ भर जाए.....गली गली गूँज न हो जाए तो कहना...जितना लोग हाँ कहेंगे उतना ही गाली देंगे

मैंने लिखा है कि जब तक आप स्त्री पुरुष के आपसी रिश्तों को आसान बनाने का प्रयास न करेंगे..समाज में तनाव ही तनाव रहेगा.....


उसके लिए कितने ही सुझाव दिए हैं.......लिव-इन, ग्रुप लिव-इन, कॉन्ट्रैक्ट मैरिज, होमो मैरिज, हिजड़ों को शिक्षा, उनको रोज़गार, बहुत सारे रास्ते......स्त्री पुरुष के लिए मात्र शादी ही एक विकल्प नहीं होना चाहिए साथ रहने का.....


शादी उनमें से एक होना चाहिए न कि मात्र एक


यह जो बलात्कार और स्त्रियों का पुरुष पर दहेज कानून का सहारा लेकर अत्याचार...सब घट जाएगा......यदि समाज अपने सिस्टम सुधार ले

वहां तो काम करने की हिम्मत नहीं...बस लेकर मोमबती खड़े हो जायेंगे...बलात्कारी को फांसी दो


कभी यह सोचा कि एक लल्लू से लड़के को किस ने हक़ दिया कि वो एक सुन्दर लडकी को कार में घुमाये और एक गरीब बस उसे देख कर मन मसोसे.....सिर्फ इस लिए कि तुम ने अमीर गरीब खड़े कर रखे हैं


अब यदि उस गरीब ने चुरा लिया तो उसे सज़ा दो.......अब यदि उसने बलात्कार कर लिया तो उसे फांसी दो...लानत!!

है हिम्मत.....कि कहें कि नहीं सेक्स वर्कर को लाइसेंस दो...जो मर्ज़ी से आना चाहे इस धंधे में उसे सम्मान मिलेगा, सुरक्षा मिलेगा, स्वस्थ्य सुविधा मिलेगी?


वो सब नहीं कहना बस बकवास बाज़ी में उलझना है....कुछ नहीं होगा....बस बहुत उपरी फर्क आयेंगे वो भी एक तरफ से कुछ ठीक होता दिखेगा तो दूसरे तरफ से गड़बड़ हो जायेगी

दहेज क़ानून से लडकी के ससुराल पर शिकंजा कसोगे तो लड़की उस कानून का नज़ायाज़ फ़ायदा उठाने लगेगी

बलात्कार की रोक के लिए कानून बनाओगे तो भी इस कानून का सहारा लेकर स्त्री पुरुष को ब्लैक मेल करने लगेगी

इस तरह से कभी समाज में बैलेंस नहीं आएगा...बैलेंस आएगा गहरे में कूदने से... समाज के साथ टकराने से....भले ही समाज को स्वीकार हो न हो


एक समय था समाज ने राजा राम मोहन रॉय का विरोध किया, कोर्ट केस हुए कि सती प्रथा न बंद की जाए...लेकिन जिसे समाज की चिंता हो वो क्या ख़ाक भला करेगा समाज का

मेरी बला से जिसे गाली देनी हो देता रहे....मुझे जो ठीक लगा मैंने लिखा और मुझे कोई चारा नहीं दिखता इसके सिवा

मित्र कहते है कि एजेंडा प्रैक्टिकल होना चाहिए....अरे , हमें कोई वोट लेने की चिंता है.......हमें तो आग लगानी है

मेरा काम है आग लगाना, भयंकर आग...बाक़ी अपने आप जो होना है होता रहेगा

मेरे साथ खड़े होने कि एक बार हिम्मत करें....सारे के सारे सिस्टम की चूलें न हिला दें तो

खैर....मेरा सीधा फार्मूला है...एजेंडा ही IPP की रीढ़ है.....वो मेरा नहीं है......वो समाज का है.......उसे जो पकड़ ले...वो IPP का मेम्बर हो गया....बस....यहाँ कोई उंच नीच नहीं...

जो काम करना चाहे कर सकता है............है हिम्मत?????




लेखन मात्र लेखन नहीं होता...वो विचार भी होता है.....आईडिया भी होता है...वो साहित्य भी होता है...वो भविष्य की प्लानिंग भी होता है....वो नए समाज का नक्शा भी होता है...मूर्ख है वो लोग जो एक लेखक को यह कहते हैं कि तुमने समाज के लिए किया ही क्या है


फिर तो मुशी प्रेम चंद, मैक्सिम गोर्की और ऑस्कर वाइल्ड ने भी कुछ नहीं किया



एक कांसेप्ट होता है "कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट"....जहाँ तक हो सके फालतू के सींग फसाने से बचें और अपना काम निकालें........"सर्वाइवल ऑफ़ दी फिट्टेस्ट".....जीना भी तो है....लेकिन जहाँ सम्भव हो समाज की बकवास पर चोट करें.........."बेक अटैक" ........"छद्म आक्रमण" ..........."गुरिल्ला युद्ध"
आप समाज का सीधा सीधा तो कुछ भला भी करना चाहें तो समाज शायद ही करने दे, समाज बहुत चालाक है, आपको उससे ज़्यादा चालाक बनना होगा........ज़रूरी नहीं भगत सिंह ही शहीद हों.....हमारे जैसे समाज में जीना और जीते रहना और समाज को बेहतर करने का प्रयास करते रहना भी भगत सिंह होने से कम नहीं है .....


"नयी समाजनीति"

भारत को एक नई समाजनीति की ज़रुरत है, उससे नई राजनीती निकलनी चाहिए

और केजरीवाल को लोगों ने विकल्प समझा लेकिन वो उथला है

एक भ्रष्ट समाज को लोकपाल की नहीं...अपनी जड़ों को देखने की ज़रुरत है
सज़ा का प्रावधान बनाने से पहले यह देखना है कि ज़रूरी है कि हम भ्रष्ट हैं ही क्यों? और हम क्या इतेज़ाम करें कि गड़बड़ हों ही न .....यदि हम  वर्तमान व्यवस्था में, न्याय व्यवस्था में  ही सुधार कर लें तो शायद ही अलग से लोकपाल की कोई ज़रुरत हो......केजरीवाल के पास कोई गहरी समझ नहीं...शुरू से नहीं...वो बस बबूला है

भारतीय समाज की सोच अवैज्ञानिक है......हर व्यवस्था  अवैज्ञानिक है 

सब देखने  की ज़रुरत है
सामाजिक नीति चाहिए
मात्र राजनीति से कुछ नहीं होगा

केजरीवाल ने ऐसा दिखाया जैसे समाज ठीक हो, मात्र नेता चोर हो
और उसके लिए लोकपाल रामबाण हो
जैसे उसी से  सब हो जायेगा

असल में बीमारी समाज खुद है
लेकिन ऐसा कहने की हिम्मत कहाँ से लाये?
ऐसी चोट करने की हिम्मत कहाँ से लाये?
इसलिए वो अंततः भारत को बहुत कुछ दे नहीं पायेगा

भारत को दे वो ही कुछ सकता है,
भाई साब जिसे वोट की परवाह न हो
जिसे समाज पर चोट की परवाह हो

जो डंके की चोट से कहे.....हमारी बला से....हम सिर्फ तुम्हें हल देने आये हैं, मीठी गोली नहीं...चुनो घटिया  नेता और फिर रोते रहो इनकी जान को, तुम्हें हल चाहिए ही नहीं था...मीठी गोली चाहिए थी, हल चाहिए तो खुद को खोदो, हल चाहिए तो खुद पे हल चलाओ

बस हमारा काम यही है कि हम समाज की बकवास मान्यताओ पर प्रहार करें.....
मुद्दों के गीत गाये जाने से ही थोड़ा हल होते हैं....उसके लिए जड़ में जाकर जो भी हल निकलता हो  वो पेश किया जाना चाहिए 

हम AAP नहीं हैं, हम IPP हैं

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"हम हैं नई राजनीति"
यदि आप देश में बिलकुल अलग तरह की राजनीति देखना चाहते हैं, तो हमें धन से सहयोग कीजिये, तन और मन भी लगा सकें तो और बेहतर......
नई राजनीति का अर्थ निश्चित ही केजरीवाल या मोदी नहीं.......
ये लोग असल मुद्दों के तो पास भी नहीं फटकते .......
"जैसे मुल्क को जनसंख्या वृद्धि रोकना चाहिए, हर तरह के जाति आधारित आरक्षण बंद करने चाहिए, शिक्षा के नाम पर बच्चों के दिमागों में कचरा भरना बंद होना चाहिए, बदलते सामाजिक परिवेष में सेक्स के प्रति नया नज़रिया और कानून"
डिटेल में कुछ भी पूछ सकते हैं
असल मुद्दा हमारे लिए "धन" है, धन जिससे हम जन प्रदर्शन आयोजित कर सकें
आप या आप के कोई भी मित्र, या मित्र के मित्र यदि सच में सोचते हों कि भारत को बिलकुल ही अलग तरह की राजनीती की ज़रुरत है तो हमसे सम्पर्क करें
स्वागत है




!!!!!हल्ला बोल!!!!!

बहुत मित्रों को गुमान है कि भारतीय संस्कृति बहुत महान है, चिरंतन है, पुरातन है, सनातन है...

मित्रवर, असल में भारतीय संस्कृति को संस्कृति कहना ही गलत है...संस्कृति का मतलब समझते हैं ...ऐसी कृति जिसमें समता हो.......संतुलन हो......

इतिहास उठा कर देख लें....कितनी समता है.

समाज का एक बड़ा हिस्सा शूद्र कर दिया गया, उसे शिक्षा, धन, बल से हीन रखा गया

और इसे आप संस्कृति कहते हैं

हज़ारों बरसों तक गुलामी झेलते रहे......छुट पुट हमलावरों से हारते रहे और इसे आप संस्कृति कहते हैं

महान थे तो हारे ही क्यों, गुलामी ही क्यों ....?

नहीं, समता नहीं थी...संतुलन नहीं था......संस्कृति नहीं थी और न है....हाँ संस्कृति के नाम पर हमने मात्र विकृति को ढोया है और ढो रहे हैं

आज भी हम कोई वैज्ञानिक सोच नहीं रखते

हमें पता ही नहीं वैज्ञानिक सोच होती क्या है

पीछे खबर पढी कि सुनीता विलियम, जो स्पेस यात्री हैं...वो अपने साथ हनुमान की प्रतिमा रखती हैं.....अब यह वैज्ञानिक हैं!

कलाम साब को बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है.......क्या आविष्कारक किया था उन्होंने....कोई पेटेंट है उनके नाम पर?

खोजी जा चुकी चीज़ों के आधार पर कुछ निर्मित करना आविष्कार नहीं होता

और हमें समझना होगा कि संस्कृति के लिए आविष्कारक की बुद्धि होना ज़रूरी है
और आविष्कार सिर्फ टीवी फ्रिज बनाना ही नहीं होता, बढ़िया समाज बनाना, नया समाज बनाना भी आविष्कार होता है ..और ऐसा आविष्कारक तो समाज को बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता....पुराने समाज की मृत्यु जो लेकर आता है ऐसा आविष्कारक, कैसे बर्दाश्त हो सकता है अपना ही कातिल किसी को?

इसी डर से समाज को समाज-वैज्ञानिक का क़त्ल करना पड़ता है

फिर समाज बरसों बाद इन क़त्ल किये गए, खुद द्वारा क़त्ल किये गए प्यारे लोगों को शहीद मान लेता है, महान आत्मा मान लेता है.....पूजना शुरू कर देता है....लेकिन बना रहता है जस का तस, ढीठ

बहुत जोर का हल्ला करना होगा

हल्ला बोल!

अब एक आध सुकरात, एक गैलिलियो, एक जॉन ऑफ़ आर्क से काम न चलेगा

बहुत लोगों को साथ आना होगा
इस बार क़त्ल होना होगा समाज को, मतलब समाज की पुरानी, बेकार मान्यतायों को

इस बार बाज़ी पलटनी होगी

स्वागत है!!!!!!

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