"क्या इन्सान को अपने बच्चे खा जाने चाहिए?"
वैसे मच्छर मारना चाहिए कि नहीं, जवाब इस रौशनी में दीजिये कि मच्छर की मार से अनेकों इन्सान मरे हैं और मरते हैं?
और आपके जख्म में यदि कीड़े पड़ जाएँ तो आप वो कीड़े मारेंगे या नहीं?
और फसलें तो अपने आप में जीवित होती हैं, वो भी काटनी चाहिए कि नहीं?....भाई जी, जीवन जहाँ है और जीवन हर जगह है, और जीव ही जीव का भोजन है...जीव जीवस्य भोजनम.....लेकिन जीव कैसे जीव का भोजन करता है....किन स्थितियों में करता है यह तय करता है कि व्यक्ति कितना संवेदनशील है
आप यदि जीव हत्या का समर्थन यह तर्क देकर करें कि मच्छर भी तो मारे जाते हैं, फसलों के कीड़े भी तो मारे जाते हैं, फसलें भी तो काटे जाती हैं तो फिर बकरा, ऊँट, भेड़, मुर्गा खाने में क्या बुराई है...तो फिर मैं आपसे यह [पूछ सकता हूँ कि आप अपने बच्चे खा जाएँ उसमें भी क्या बुराई है....नहीं भाई, हम अपने बच्चे नहीं खाते, हम ऊँट, मुर्गा आदि भी नहीं खाते.....हम फसलें खाते हैं......फल खाते हैं......चूँकि यह जीवन का सबसे निम्न स्तर है...इसके नीचे जाया नहीं जा सकता
नहीं.......जीवन कितना विकसित है.......पौधे और इंसान के बच्चे में यदि बराबर विकसित है तो फिर खा लो इंसान के बच्चे?
यह तर्क बेकार है कि फसलों में जान है, कीड़े मारे जाते हैं फसलों के तो फिर जानवर और पक्षी भी खाने चाहिए......अगर ऐसा है तो फिर शक्तिशाली इंसान दूसरे इन्साओं को भी खा जाए, इन्सान इन्सान के बच्चे खा जाए......क्या हर्ज़ है......नहीं, भोजन के लिए जो न्यूनतम हिंसा, न्यूनतम तल की हिंसा, मज़बूरी वाली हिंसा, ऐसी हिंसा जिसके बिना भोजन सम्भव नहीं वो ही की जाए, या यूँ समझो कि वो ही हिंसा हो .....बस
"यदि हम नहीं खायेंगे तो इनकी जनसंख्या बहुत बढ़ जायेगी.....धरती पर पैर रखने की जगह नही बचेगी"
बाहरी दुनिया से आया एक राक्षसनुमा प्राणी भी यही कह रहा है
बढ़िया तर्क है, नहीं ?हमारे शरीर ऐसे होते हैं कि हम शाक मांस दोनों हज़म कर सकते हैं..कुदरत ने हमें ऐसा ही बनाया है....तो मांसहार ठीक है...लानत!
अब यदि कोई राक्षस आये और उसकी अंतड़ियाँ इंसान हज़म कर सकें तो उसे लाइसेंस मिल गया हमें खाने का...लानत!!
या फिर जब कोई शक्तिशाली इंसान तुम्हें नोचता हैं, लूटता है, खसूटता है, तो क्यों बिलबिलाते हो?
नहीं, इस तरह के लानती तर्क नहीं चलेंगे
Our world, here books titled as "Chicken soup for the soul" are a hit.
Are we cultured or vultured?
!!!!पत्थर भी जीवित है !!!!
इस अस्तित्व में सब कुछ चेतन है...... जर्रा जर्रा.
कल तक यह साबित नही था कि पेड़ पौधे जीवित हैं, लेकिन आज मानना पड़ता है, साइंस ने साबित कर दिया है.
आज आपको कोई कहे कि पत्थर भी जीवित है तो शायद आप अचम्भा करें, लेकिन सब्र रखें...साइंस साबित करने ही वाली है कि इस दुनिया में सिवा इंसान की खोटी अक्ल के कुछ भी मुर्दा नही, सब जिंदा है
दो राक्षसों की बहस हो रही थी ..एक शाकाहार का समर्थक था, दूसरा मांसाहार का......मांसाहारी ने आख़री तर्क दिया......"देख यार, इन इंसानों को अगर हम नहीं खायेंगे तो यह ज़मीन पर इतना बढ़ जायेंगे कि पैर रखने की जगह नहीं बचेगी..."
शाकाहारी निरुत्तर हो गया
दो राक्षसों की बहस हो रही थी ..एक शाकाहार का समर्थक था, दूसरा मांसाहार का......मांसाहारी ने आख़री तर्क दिया......"देख यार, इन इंसानों को अगर हम नहीं खायेंगे तो यह ज़मीन पर इतना बढ़ जायेंगे कि पैर रखने की जगह नहीं बचेगी..."
शाकाहारी निरुत्तर हो गया
"यदि हम नहीं खायेंगे तो इनकी जनसंख्या बहुत बढ़ जायेगी.....धरती पर पैर रखने की जगह नही बचेगी"
बाहरी दुनिया से आया एक राक्षसनुमा प्राणी भी यही कह रहा है
बढ़िया तर्क है, नहीं ?हमारे शरीर ऐसे होते हैं कि हम शाक मांस दोनों हज़म कर सकते हैं..कुदरत ने हमें ऐसा ही बनाया है....तो मांसहार ठीक है...लानत!
अब यदि कोई राक्षस आये और उसकी अंतड़ियाँ इंसान हज़म कर सकें तो उसे लाइसेंस मिल गया हमें खाने का...लानत!!
या फिर जब कोई शक्तिशाली इंसान तुम्हें नोचता हैं, लूटता है, खसूटता है, तो क्यों बिलबिलाते हो?
नहीं, इस तरह के लानती तर्क नहीं चलेंगे
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