Monday, 29 June 2015

!!!बदलो ग्रन्थों को किताबों में !!!



किसी भी किताब को मात्र एक सलाह मानना चाहिए, सर पर उठाने की ज़रुरत नहीं है, पूजा करने की ज़रुरत नहीं है..... किताबें मात्र किताबें हैं.....उनमें बहुत कुछ सही हो सकता है बहुत कुछ गलत भी हो सकता है, आज शेक्सपियर को हम कितना पढ़ते हों....पागल थोड़ा हैं उनके लिए, मार काट थोड़ा ही मचाते हैं...और शेक्सपियर, कालिदास, प्रेम चंद सबकी प्रशंसा करते हैं तो आलोचना भी करते हैं खुल कर.....

यही रुख चाहिए सब किताबों के प्रति......एक खुला नजरिया.....चाहे गीता हो, चाहे शास्त्र, चाहे कुरआन, चाहे पुराण, चाहे कोई सा ही ग्रन्थ हो

ग्रन्थ असल में इंसान की ग्रन्थी बन गए हैं......ग्रन्थ इंसान के सर चढ़ गए हैं...ग्रन्थ इंसान का मत्था खराब करे बैठे हैं...

इनको मात्र किताब ही रहने दें.....ग्रन्थ तक का ओहदा ठीक नहीं......

ग्रन्थ शब्द का शाब्दिक अर्थ तो मात्र इतना कि पन्नों को धागे की गाँठ से बांधा गया है...धागे की ग्रन्थियां....

लेकिन आज यह शब्द एक अलग तरह का वज़न लिए है...ऐसी किताबें जिनके आगे इंसान सिर्फ़ नत मस्तक ही हो सकता है...जिनको सिर्फ "हाँ" ही कर सकता है....तुच्छ इंसान की औकात ही नहीं कि वो इन ग्रन्थों में अगर कुछ ठीक न लगे तो बोल भी सके...ये ग्रन्थ कभी गलत नहीं होते...इंसान ही गलत होते हैं, जो इनको गलत कहें, इनमें कुछ गलत देखें वो इंसान ही गलत होते हैं....

सो ज़रुरत है कि इन ग्रन्थों को किताबों में बदल दिया जाए....इनमें कुछ ठीक दिखे तो ज़रूर सीखा जाए और अगर गलत दिखे तो उसे खुल कर गलत भी कहा जाए...इनको मन्दिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों से बाहर किया जाए..इनके सामने अंधे हो सर झुका, पैसे चढ़ा, पैसे मांगने का नाटक बंद किया जाए

नमन

No comments:

Post a Comment