बुधिया सिंह याद है?
कोई तीन चार साल का लड़का, मीलों दौड़ लेता था ..बिना रुके
गूगल करेंगे तो आप को मिल जाएगा आसानी से
लेकिन जो मैं आपको दिखाना चाहता हूँ वो नहीं मिलेगा आपको कहीं
ये बच्चा एक निहायत गरीब घर में पैदा हुआ, बाप तो शायद था ही नहीं, सुनते हैं माँ ने बेच दिया
फिर किसी जूडो कोच बिरंची दास के पल्ले पड़ गया
अब बिरंची दास इससे गुस्सा हो गया एक दिन किसी बात से
बिरंची ने सजा के तौर पर इस लड़के को मैदान के चक्कर दौड़ कर लगाने को बोल दिया
बिरंची फिर कहीं बाज़ार चला गया, लौटा घंटों बाद.....बच्चा अभी भी दौड़ रहा था....दरयाफ्त किया कि रुका तो नहीं, बैठा तो नहीं......लेकिन नहीं, वो तो बिन रुके ही दौड़ा था
बिरंची हैरान, लड़का है या मशीन
फिर तो कहते हैं बिरंची ने उसे कई बार दौड़ाया ..लड़का मशीन की तरह बिन रुके दौड़ता था....सेना के जवानों के साथ दौड़ाया, लम्बी दूरी तक.......... लेकिन जवान हट गए, वो बच्चा नहीं हटा
फिर न जाने क्या हुआ, बच्चा सरकारी तंत्र के हत्थे चढ़ गया और आज यह बच्चा सरकारी हॉस्टल में रहता है और इसे स्पोर्ट्स ट्रेनिंग दी जा रही है लेकिन वो जादू खो गया, अब यह बच्चा साधारण हो गया है, उससे भी नीचे
आपको कहानी क्यों सुना रहा हूँ?
कुछ पकड़ में आया क्या आपके?
जो मुझे समझ आया वो पेश करता हूँ
मेरी नज़र में हर बच्चा हमारे समाज की मान्यतायों से कहीं ज़्यादा क्षमता रखता है...हर तरह की
बुधिया सिंह, पहले क्यों दौड़ पाया....वजह यह है कि उसके सर पर माँ, बाप का साया नहीं था......कोई ऐसे लोग नहीं थे जो उसे कहते कि इतना मत दौड़, थक जायेगा, बीमार हो जायेगा, मर जायेगा.....उसे क्या पता कि कितना दौड़ा जा सकता है कितना नहीं...कोई सीमा पता नहीं...उसकी दौड़, उसकी उड़ान की सीमा अभी कहाँ तय करी गयी, उसके मन पर कोई छाप नहीं..किसी को परवा नहीं
लेकिन बाद में सारा सरकारी अमला उसके पीछे पड़ गया, उसके मेडिकल टेस्ट हुए, कहीं उसे कोई बीमारी तो नहीं हो जायेगी, कहीं उसे ह्रदयाघात तो नहीं हो जाएगा,कहीं मर तो नहीं जायेगा,...मेडिकल बोर्ड की खींची सीमायों को कैसे कोइ लांघ सकता है....अबे, हम जो इतनी मास्टरी करे बैठे हैं, पागल हैं क्या, हमारा विज्ञान गलत है का?
बस फिर तो और खींचा तानी.... अब तो जिस माँ ने उसे बेच दिया था, वो भी दावेदार हो गयी...अब जब यह सब हो गुज़रा तो जादू खतम, लड़का साधारण, उससे भी नीचे
वो आज फिर से ट्रेन किया जा रहा है कि दौड़ पाए, ग्यारह, बारह साल का होगा, लेकिन अब बहुत कम उम्मीद है
एक और मिसाल देता हूँ, एक हैं फौजा सिंह, सिख हैं, इंग्लैंड में रहते हैं, यदि बुधिया सिंह, चार साल की उम्र में दौड़ रहा था तो फौजा सिंह कोई सौ साल के हैं, अपनी उम्र के ग्रुप में मैराथन चैंपियन रहे हैं, आज भी खूब दौड़ते हैं, Adidas की मॉडलिंग करते देखा है मैंने इनको ..लोग प्यार से टरबंड टॉरनेडो ( पगड़ी वाला तूफान ) कहते हैं.....
पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए..टाँगे बहुत कमज़ोर थी....बच्चे छेड़ते थे.....छेड़ थी "डंडा"
क्या है यह जलवा, क्या है यह जादू जो बुधिया सिंह में खो गया और फौजा सिंह में जाग गया?
एक ही है यह जादू
"सीमा रेखा को लाँघ जाना. सीमाओं को तोड़ देना"
बुधिया को पता ही नहीं थी कि सीमा क्या है, वो अनजाने में लांघ गया
फौजा सिंह ने जानते बूझते सीमा रेखा को इनकार कर दिया
आपको क्या लगता है कि फौजा सिंह ने यह सब बकवास नहीं सुनी होगे कि उम्र के साथ व्यक्ति यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता.कमज़ोर होता जाता है , मौत के करीब आ जाता है......सब सुना होगा, लेकिन इनकार कर दिया
अब क्या आज बुधिया नहीं दौड़ सकता है, बिलकुल दौड़ सकता है ....सिर्फ उसे भी समाज की थोपी सीमा को तोड़ने की ज़रुरत है
और उसे ही नहीं आपको भी इस तरह की सब बकवास सीमाएं लांघने की ज़रुरत है, जो आपकी क्षमतायों को काट-छांट रही हैं
हमारे यहाँ तो लड़कियों का नाम तक "सीमा" होता है, लानत है....
असीम हो जाओ
चार साल के बुधिया हो जाओ, सौ साल के फौजा सिंह हो जाओ, लेकिन ग्यारह साल के बुधिया मत हो जाना कहीं
कभी सोचा है कि लोग बाईस किलोमीटर गोवेर्धन परिक्रमा नंगे पाँव कैसे कर लेते हैं? गोमुख तक कैसे पहाड़ों पे चढ़ जाते हैं, कैसे हरिद्वार से पैदल कांवड़ ले आते हैं?......यह सब सीमा को तोड़ने की वजह से है, वो "जय माता दी" का नारा, वो "राधे राधे" का जाप, वो "हर हर महादेव" की गुंजार....सब यह सीमा को तोड़ने का काम करते हैं ..और जिस व्यक्ति के कदम एक किलोमीटर तक हांफ जाते हैं....वो मीलों कैसे चल लेता है?..सब थोपी हुई सीमाओं को तोड़ने की वजह से है
सो अगली बार जूता मारना खेंच (यदि असल में नहीं मार सकते तो मन ही मन मारना ) यदि कोई कहे तुमसे कि तुम यह नहीं कर, वह नहीं कर सकते चूँकि तुम बच्चे हो, औरत हो, बूढ़े हो ....यदि बच्चा कहे तो उसे कहना "छोटा बच्चा समझ के न डराना रे".....और यदि कहे बूढ़ा तो कहना "बूढ़ा होगा तेरा बाप" और यदि कहे कि लड़की तो कहना "लड़की हूँ पर लडाकी भी हूँ , हालात से लड़ सकती हूँ"
जय हो !
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कोई तीन चार साल का लड़का, मीलों दौड़ लेता था ..बिना रुके
गूगल करेंगे तो आप को मिल जाएगा आसानी से
लेकिन जो मैं आपको दिखाना चाहता हूँ वो नहीं मिलेगा आपको कहीं
ये बच्चा एक निहायत गरीब घर में पैदा हुआ, बाप तो शायद था ही नहीं, सुनते हैं माँ ने बेच दिया
फिर किसी जूडो कोच बिरंची दास के पल्ले पड़ गया
अब बिरंची दास इससे गुस्सा हो गया एक दिन किसी बात से
बिरंची ने सजा के तौर पर इस लड़के को मैदान के चक्कर दौड़ कर लगाने को बोल दिया
बिरंची फिर कहीं बाज़ार चला गया, लौटा घंटों बाद.....बच्चा अभी भी दौड़ रहा था....दरयाफ्त किया कि रुका तो नहीं, बैठा तो नहीं......लेकिन नहीं, वो तो बिन रुके ही दौड़ा था
बिरंची हैरान, लड़का है या मशीन
फिर तो कहते हैं बिरंची ने उसे कई बार दौड़ाया ..लड़का मशीन की तरह बिन रुके दौड़ता था....सेना के जवानों के साथ दौड़ाया, लम्बी दूरी तक.......... लेकिन जवान हट गए, वो बच्चा नहीं हटा
फिर न जाने क्या हुआ, बच्चा सरकारी तंत्र के हत्थे चढ़ गया और आज यह बच्चा सरकारी हॉस्टल में रहता है और इसे स्पोर्ट्स ट्रेनिंग दी जा रही है लेकिन वो जादू खो गया, अब यह बच्चा साधारण हो गया है, उससे भी नीचे
आपको कहानी क्यों सुना रहा हूँ?
कुछ पकड़ में आया क्या आपके?
जो मुझे समझ आया वो पेश करता हूँ
मेरी नज़र में हर बच्चा हमारे समाज की मान्यतायों से कहीं ज़्यादा क्षमता रखता है...हर तरह की
बुधिया सिंह, पहले क्यों दौड़ पाया....वजह यह है कि उसके सर पर माँ, बाप का साया नहीं था......कोई ऐसे लोग नहीं थे जो उसे कहते कि इतना मत दौड़, थक जायेगा, बीमार हो जायेगा, मर जायेगा.....उसे क्या पता कि कितना दौड़ा जा सकता है कितना नहीं...कोई सीमा पता नहीं...उसकी दौड़, उसकी उड़ान की सीमा अभी कहाँ तय करी गयी, उसके मन पर कोई छाप नहीं..किसी को परवा नहीं
लेकिन बाद में सारा सरकारी अमला उसके पीछे पड़ गया, उसके मेडिकल टेस्ट हुए, कहीं उसे कोई बीमारी तो नहीं हो जायेगी, कहीं उसे ह्रदयाघात तो नहीं हो जाएगा,कहीं मर तो नहीं जायेगा,...मेडिकल बोर्ड की खींची सीमायों को कैसे कोइ लांघ सकता है....अबे, हम जो इतनी मास्टरी करे बैठे हैं, पागल हैं क्या, हमारा विज्ञान गलत है का?
बस फिर तो और खींचा तानी.... अब तो जिस माँ ने उसे बेच दिया था, वो भी दावेदार हो गयी...अब जब यह सब हो गुज़रा तो जादू खतम, लड़का साधारण, उससे भी नीचे
वो आज फिर से ट्रेन किया जा रहा है कि दौड़ पाए, ग्यारह, बारह साल का होगा, लेकिन अब बहुत कम उम्मीद है
एक और मिसाल देता हूँ, एक हैं फौजा सिंह, सिख हैं, इंग्लैंड में रहते हैं, यदि बुधिया सिंह, चार साल की उम्र में दौड़ रहा था तो फौजा सिंह कोई सौ साल के हैं, अपनी उम्र के ग्रुप में मैराथन चैंपियन रहे हैं, आज भी खूब दौड़ते हैं, Adidas की मॉडलिंग करते देखा है मैंने इनको ..लोग प्यार से टरबंड टॉरनेडो ( पगड़ी वाला तूफान ) कहते हैं.....
पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए..टाँगे बहुत कमज़ोर थी....बच्चे छेड़ते थे.....छेड़ थी "डंडा"
क्या है यह जलवा, क्या है यह जादू जो बुधिया सिंह में खो गया और फौजा सिंह में जाग गया?
एक ही है यह जादू
"सीमा रेखा को लाँघ जाना. सीमाओं को तोड़ देना"
बुधिया को पता ही नहीं थी कि सीमा क्या है, वो अनजाने में लांघ गया
फौजा सिंह ने जानते बूझते सीमा रेखा को इनकार कर दिया
आपको क्या लगता है कि फौजा सिंह ने यह सब बकवास नहीं सुनी होगे कि उम्र के साथ व्यक्ति यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता.कमज़ोर होता जाता है , मौत के करीब आ जाता है......सब सुना होगा, लेकिन इनकार कर दिया
अब क्या आज बुधिया नहीं दौड़ सकता है, बिलकुल दौड़ सकता है ....सिर्फ उसे भी समाज की थोपी सीमा को तोड़ने की ज़रुरत है
और उसे ही नहीं आपको भी इस तरह की सब बकवास सीमाएं लांघने की ज़रुरत है, जो आपकी क्षमतायों को काट-छांट रही हैं
हमारे यहाँ तो लड़कियों का नाम तक "सीमा" होता है, लानत है....
असीम हो जाओ
चार साल के बुधिया हो जाओ, सौ साल के फौजा सिंह हो जाओ, लेकिन ग्यारह साल के बुधिया मत हो जाना कहीं
कभी सोचा है कि लोग बाईस किलोमीटर गोवेर्धन परिक्रमा नंगे पाँव कैसे कर लेते हैं? गोमुख तक कैसे पहाड़ों पे चढ़ जाते हैं, कैसे हरिद्वार से पैदल कांवड़ ले आते हैं?......यह सब सीमा को तोड़ने की वजह से है, वो "जय माता दी" का नारा, वो "राधे राधे" का जाप, वो "हर हर महादेव" की गुंजार....सब यह सीमा को तोड़ने का काम करते हैं ..और जिस व्यक्ति के कदम एक किलोमीटर तक हांफ जाते हैं....वो मीलों कैसे चल लेता है?..सब थोपी हुई सीमाओं को तोड़ने की वजह से है
सो अगली बार जूता मारना खेंच (यदि असल में नहीं मार सकते तो मन ही मन मारना ) यदि कोई कहे तुमसे कि तुम यह नहीं कर, वह नहीं कर सकते चूँकि तुम बच्चे हो, औरत हो, बूढ़े हो ....यदि बच्चा कहे तो उसे कहना "छोटा बच्चा समझ के न डराना रे".....और यदि कहे बूढ़ा तो कहना "बूढ़ा होगा तेरा बाप" और यदि कहे कि लड़की तो कहना "लड़की हूँ पर लडाकी भी हूँ , हालात से लड़ सकती हूँ"
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