सबसे बड़ा महाभारत व्यक्ति के मन में चलने वाला तर्क युद्ध है.
तर्क है तपस्या ---1
असल में इंसानी मन तर्क को बहुत झेल नहीं पाता.....उसे तर्क से तिलमिलाहट होने लगती है
वो बहुत जल्द किस्से कहानियों में खो जाता है, पश्चिम में हैरी पॉटर जैसी कहानियों की पूरा एक परम्परा है, शुद्ध फंतासी
उससे पीछे देखें तो हमें अलिफ़ लैला, अली बाबा जैसे किस्से पूरी दुनिया में बिखरे मिलेंगे
हमारी फिल्में, चाहे भारतीय हों या विदेशी, तर्कातीत हैं......हमें पता है कि रजनीकान्त मात्र भुलावा पेश करते हैं, अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख़ खान तक ओवर एक्टिंग करते हैं, फिर भी हम उन्हें पसंद करते हैं, सर आँखों पर बिठाते हैं
हमारा गायन, संगीत सब तर्क को पार कर जाता है....आप आम बातचीत में कब कुछ शब्दों को बहुत खींचते हैं...कब किन्ही शब्दों को भींचते हैं...लेकिन गायन में सब चलता है
हमारी कविता में हम चाँद तारों को अपनी महबूबा के बालों में गूंथ देते हैं....लेकिन सब चलता है
हमारे सपने......वो तो हैं ही सपने.....तर्क का गड्ड-मड्ड
कुल मिला कहना यह है कि मानव मन, तर्क से परेशान होता है....आपने नोट किया क्या कि इतिहास बच्चों को गणित से ज़्यादा आसान लगता है.....इतिहास में किस्से हैं, गणित में मात्र तर्क
और अब, आज कल बहुत से अध्यात्मिक गुरु तर्क के खिलाफ तर्क देते दीखते हैं. वाह, वाह जनाब, और वाह मोहतरमा!
मेरा मानना यह है कि दुनिया में संघर्ष पूर्व पश्चिम का नहीं है, न स्त्री पुरुष का है....न हिन्दू , मुस्लिम का है, न गोरे काले का है
संघर्ष तर्क और कुतर्क का है, संघर्ष तर्क और जमी हुई मान्यताओं का है, जो बहुत कुछ कुतर्क पर टिकी हैं
तर्क ताकत है, तर्क विज्ञान है
सो आज ज़रुरत तर्क से बचने की नहीं है...आज ज़रुरत है तर्क की आंधी की...ऐसी आंधी जिसमें सब कचरा, सहास्त्रियों से जमा कूड़ा बह जाए
आज ज़रुरत है, कुतर्क के खिलाफ तर्क खड़े करने की...आज ज़रुरत है, तर्क के पक्ष में तर्कों की
तर्क तपस्या है, तर्क ही सबसे बड़ा धर्म है.
ऐसा नहीं कि हमारे गायन, हमारे संगीत, हमारे नृत्य में तर्क नहीं है, तर्क है, सबका अपना तर्क है, तर्क से हटते हुए भी तर्क है
तभी तो हम कहते हैं कि कोई सुर में गाता है कोई बेसुरा....तभी तो हम किसी चुटकले को जानदार मानते हैं है किसी को बकवास.....तभी तो हम किसी के नृत्य को लय में मानते हैं , किसी को बेढब
और हमारे सपने, वो भी एक दम तर्क से हट के नहीं होते, वो अपना ही एक तर्क घड़ लेते हैं, हमने जो दिन में चाहा होता है, देखा होता, वो सब का एक अजीब मिश्रण............
हमारे दिवास्वपन, हमारी कल्पनाएँ सब हकीकत और गैर-हकीकत का जोड़.......सबका मोल है, यदि किसी ने परिंदे को उड़ते देख उड़ने की कल्पना न की होती तो हवाई जहाज़ तक न पहुँचते....यदि किसी ने चाँद को देख कहानियाँ न घड़ी होती तो चाँद पर कदम न रखा होता इंसान ने
हमारे चुटकले तर्क का शीर्षासन हैं, यदि चुटकले न हो तो इन्सान जीवन के बोझ में वैसे ही मर जाए
यदि नृत्य न हो तो इन्सान अपंग हो जाए
यदि गीत, संगीत न हो तो आधी दुनिया तुरत पागल हो जाए, देख होगा आपने ट्रक ड्राईवर ट्रक चलाता जाता है, गाने सुनता जाता है, फैक्ट्री में मज़दूर काम करता जाता है, संगीत सुनता जाता है
लेकिन तर्क का, गणित का भी जीवन में फैलाव कम नहीं. यह जो इन्टरनेट प्रयोग करते हैं न हम और आप, कहते हैं यह सब गणित का खेल है. अभी मैंने देखा एक फिल्म में नायक एक गणितज्ञ है, वो कहता है कि सारा जगत ही गणित का खेल है, उसे सब जगह गणित का पसारा नज़र आता है. कहते हैं कि हेब्रू भाषा शुद्ध गणित है और कोई पुरातन धार्मिक किताब “तोराह” मे गणित के बहुत से रहस्य छुपे हैं
तो जब मैं यह कहता हूँ कि तर्क की आंधी चलनी चाहिए, मेरा मतलब यह नहीं कि आप गीत, संगीत, नृत्य, चुटकले, हँसी ठठा से हट जाएँ...सपने , कल्पनाएँ, दिवा स्वप्न न देखें
नहीं....आप नाचेंगे, गायेंगे, हंसेंगे, दिवा स्वप्न देखेंगे तभी खुश रहेंगे
लेकिन इस सब में यह नज़र अंदाज़ न कर दें कि तर्क की, विज्ञान की अहमियत क्या है.
मैंने शुरू में ही कहा मानव मन तर्क को बहुत देर तक बर्दाश्त नहीं कर पाता......वो खो जाना चाहता है गीत, संगीत में, वो हंसना चाहता है, वो सपने देखना चाहता है, वो किस्से कहानियां में यात्रा करना चाहता है......ठीक है.......वो सबके बिना जीना सम्भव नहीं
लेकिन यदि वो तर्क को नज़र अंदाज़ करेगा तो पिट जाएगा
आपने देखा भारत में बहुत ऊंचे दर्जे का गीत, संगीत, नृत्य और मूर्तिकला थी और भी बहुत कुछ....लेकिन कहीं समाजिक विज्ञान में पिछड़ गया, कहीं भौतिक विज्ञान में पिछड़ गया, कहीं खो गया बेतुकी बहसों में, कहीं पड़ गया मात्र आत्मा परमात्मा के चक्करों में.......और पिट गया, ऐसे लोगों से जो जीवन के किन्ही मामलों में बहुत पिछड़े थे.....जो बस बर्बर थे......जो बस मरना मारना, लूटना पीटना जानते थे और यहाँ व्यक्ति फंसा था जीवन के तमाम दर्शन शास्त्रों में.
कभी आप अक्सर सुनते हों कि यदि कहीं कोई और सभ्यताएं होंगी कायनात में तो हमसे हज़ारों साल उनका विज्ञान आगे होगा, हो सकता है .............यह जो पीछे सभ्यताओं का संघर्ष है, या जो आज भी है यह तर्क का ही संघर्ष है, यह सभ्यताओं के विज्ञान का ही संघर्ष है
यह विज्ञान कहाँ से आता है......तर्क से...... तर्क मतलब फैक्ट्स, तर्क मतलब एक्सपेरिमेंट, तर्क मतलब वैज्ञानिकता
तर्क का मामला बड़ा अजीब है, दूसरे का तर्क कुतर्क और खुद का तर्क तर्क लगता है, यह ऐसे ही है जैसे हमें अपना बच्चा दूसरे के बच्चे से हमेशा सुन्दर और बुद्धिमान लगता है......तर्क हमारी उपज है, हमारे दिमाग के बच्चे.....या इससे भी बढ़ कर तर्क हमारे जीवन का आधार होते हैं....यदि मानव जीवन को एक कार माना लिया जाए तो विचार इसके ड्राईवर हैं और ये विचार तर्कों पर ही तो आधारित होते हैं
अब यह बात दीगर है कि वो तर्क कितने तर्क हैं और कितने कुतर्क...अधिकाँश तो कुतर्क ही ही होते हैं....... उथले, छिछले तर्क ......पुरानी पीढ़ियों की बकवास, कूड़ा........धार्मिक राजनैतिक गुरुओं का फैलाया जाल, जंजाल
ज़रुरत है, तुरत ज़रुरत है, इससे बाहर आने की.....उसके लिए लम्बे संघर्ष की ज़रुरत होती है...अनेकों तर्कों की......जैसे कांटे से काँटा निकालते हैं......लम्बा संघर्ष, यह दूसरे अगर आपके साथ करेंगे तो आप को दुश्मन नज़र आयेंगे, खुद ही खुद के साथ करें तो बेहतर, दूसरे सिर्फ कुछ मदद कर सकते हैं, ज़्यादा मदद तो खुद ही को खुद की करनी होती है
तो कहना यह है मित्र, तर्क आपका मित्र है, तर्क आपके जीवन का गाइड है, तर्क भविष्य है, तर्क विज्ञान है, तर्क से दुश्मनी मत करें, तर्क से दुश्मनी अक्ल से दुश्मनी है..........तर्क का भी मज़ा लेना सीखें, तर्क को खेल बना लें, जैसे गणित से अधिकांश बच्चे घबराते हैं लेकिन एलन टुरिन और आइंस्टीन जैसे लोग गणित को खेल समझते हैं...तर्क को प्रेम करने वालों की बदौलत ही आज सब विज्ञान फैला है, तार्किकों की धुन की वजह से ही हम आज जहाँ हैं, हैं
आज भी जो समाज तर्क को पकड़े हुए हैं वो ही तरक्की कर रहे है और आगे भी जो समाज तर्क को प्रेम करेंगे वो ही बचेंगे, बाकी धीरे धीरे विलुप्त हो जायेंगे
नमन
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तर्क है तपस्या----2
बहुत तर्क दिए जाते हैं, तर्क के खिलाफ़.......पीछे एक मित्र ने दो मज़ेदार तर्क पेश किये तर्क के ख़िलाफ़, लीजिये पेशे-ए-खिदमत हैं.
पहला तर्क ---कल्पना करें कि आप अँधेरे कमरे में हैं, अचानक एक रस्सी का टुकड़ा आपके ऊपर आन गिरता है....एक दम आपको डर जकड़ लेता है कि आपके ऊपर सांप या कोई और ज़हरीला कीड़ा गिरा है ..आपकी धड़कन बढ़ जाती है ...और जब आप रोशनी on करते हैं तो देखते हैं कि वहां कोई सांप-वांप नहीं, बस एक रस्सी का टुकड़ा है...आप हंसने लग जाते हैं....आपका डर एक तार्किक निष्पत्ती थी ....आप एक काल्पनिक सांप से वास्तविक हृदयाघात के शिकार हो सकते थे .....जबकि वहां असल में कोई सांप नहीं था ..सो सत्य तर्क से अलग होता है... सत्य का तर्क से कोई लेना देना नहीं
मेरा उत्तर था इनको, "अँधेरे में रस्सी को सांप समझा जा सकता है.....बिलकुल समझा जा सकता है....सांप को भी रस्सी समझा जा सकता है ..यहाँ गलत समझ के पीछे का कारण अँधेरा है.......जिसकी वजह से गलत नतीज़ा निकाला जा सकता है......अगर किसी कंप्यूटर में गलत या आधा अधूरा डाटा डालेंगे तो सही नतीजा कैसे आएगा.......यहाँ गलती कंप्यूटर की नहीं है.....न ही उसके कम्प्यूटेशन की......अब यदि आपको यहाँ कंप्यूटर की कम्प्यूटेशन की गलती दिखती हो तो यह निश्चित ही आपकी खराब कम्प्यूटेशन है"
दूसरा तर्क--एक व्यक्ति जो तर्क शास्त्र में पी. एच. डी. करके अपने घर लौटा....और बड़ी अकड़ से अपने माँ बाप को कहने लगा-- मैं तर्क से कुछ भी कर सकता हूँ..उसके पेरेंट्स ने पूछा --कैसे? उसने कहा--जैसे इस प्लेट में दो सेब हैं ..मैं लॉजिक से साबित कर सकता हूँ कि ये तीन हैं. उसके पेरेंट्स ने पुछा --ये कैसे संभव है? उनके बेटे ने पहले सेब को छूया और कहा--- यह है एक सेब.....फिर दूसरे को छूया और कहा --ये दो सेब फिर कहा--एक और दो कितने होते हैं? पेरेंट्स ने कहा--तीन. बेटे ने हँसते हुए कहा--हो गए न तीन. लेकिन पेरेंट्स की भी समझ कुछ गहरी थी. उन्होनें बेटे को कहा--तू ठीक कहते हो, ये एक सेब मैं ले लेता हूँ और एक तेरी माँ खा लेती है और तीसरा तू खा ले. सो तर्क ऐसा है. दिखने में बहुत बड़ा....पर मात्र शब्दों का खेल
मेर उत्तर था इनको,"पहला सेब एक है और दूसरा सेब भी एक है...दोनों का जोड़ तीन बनता है......दूसरा मतलब ...जो गिनती में नंबर दो पे है....दूसरा मतलब दो नहीं होता.."
तर्क मात्र शब्दों का खेल समझ लिया गया .....
जबकि शब्द सिर्फ वाहन हैं, विचारों को, स्थितियों को, भावनायों को प्रकट करने के ......
तर्क शब्द मात्र कतई नहीं है........
तर्क है प्रश्न उठाना और प्रश्नों के सही उत्तर पाने का प्रयास...
तर्क है "प्रभाव" ( Effect) के पीछे "कारण" (Cause) ढूँढने का प्रयास....
तर्क है प्रयोग करना..तर्क है वैज्ञानिकता ....तर्क है ज्ञान विज्ञान का जन्म दाता....
एक उदहारण देता हूँ मैं.... एक कोर्ट केस था......एक वृद्धा के मकान पे किसी ने कब्ज़ा कर लिया था ........किरायेदार ने कहा कि वृद्धा दिल्ली में रहती नहीं, वो दिल्ली से बाहर वर्षों से सेटल हैं ...सो उन्हें मकान वापिस नहीं मिलना चाहिए.......अब वृद्धा का राशन कार्ड, वोटर कार्ड, गैस सिलिंडर की पर्चियां....और ऐसे कितने ही दस्तावेज़ पेश किये ...साथ ही विडियो और फोटो ( नेगेटिव सहित ) कोर्ट में पेश किये........सो अब इनकार न कर सका किरायेदार...फैसला वृद्धा के हक़ में गया...इसे कहते हैं तर्क....
भारत में विज्ञान का विकास अवरुद्ध हुआ...यहाँ तर्क को कुछ ऐसा मान लिया गया कि जिसे जिधर मर्ज़ी घुमा लो....
तर्क को वेश्या कहा गया, तर्क को वकील कहा गया जिसका रुख कहीं भी मोड़ा जा सकता है .....
जब कि ऐसा है नहीं...तर्क मात्र शब्द नहीं होते...उनके पीछे सॉलिड ग्राउंड पेश करनी होती हैं
तर्क तथ्यात्मक होने चाहियें .....और स्थितियात्मक भी....
ज़रा सी स्थति बदली ...तर्क बदल सकता है
ज़रा सा तथ्यों में अंतर आया ....तर्क बदल सकता है
और इन तर्कों के बदलते ही निष्कर्ष बदल जाते हैं.
सो सावधान रहें....मिसालें धोखा दे सकती हैं.
बहुत प्रयास किया जाता है कि उठाये गए मुद्दों की दिशा और दशा बदल दी जाए, तमाम हथकंडे प्रयोग किये जाते हैं, और ऐसा आम तौर पे तभी किया जाता है जब उनकी पवित्र पावन धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं, जब उन्हें भीतर से कहीं पता होता है कि वो तर्कों से जवाब नहीं दे सकते
और यह पवित्र भावनाएं भी क्या कमाल है, शायद संसार की सबसे ज़्यादा भँगुर चीज़ें..........इनकी बुनियाद ही इतनी कमज़ोर होती हैं कि ज़रा सी चोट, और आहत हो जाती हैं...ज़रा तेज़ हवा तक बर्दाश्त नहीं कर पातीं....
यदि आपकी चलती कार में से इंजन आयल लीक हो रहा हो और आपको यह न पता हो और कोई आपको यह बता दे तो आप उसे दुश्मन मानेंगें या धन्यवाद करेंगें
लेकिन यहाँ तो दोस्त लोगों द्वारा हर सम्भव कोशिश की जाती है कि स्टेटस का बंटाधार किया जा सके
मुख्य मुद्दे को छोड़ कर कुछ भी बात उठाई जाती हैं...
व्यक्तिगत हमले किये जाते हैं, अक्ल पे तो छींटाकशी की ही जाती है, शक्ल तक को नहीं बक्शा जाता, जैसे कोई मात्र सुन्दर होने से कोई सही साबित होता हो
गाली गलौच की जाती है, अपशब्दों को ही तर्क माना जाता है
हर कोशिश की जाती है कि किसी तरह से सामने वाले को भी मजबूर कर दें ऊट पटांग बातों में उलझने को, ताकि देखने वालों को मात्र दो लड़ते हुए लोग दिखें...असल मुद्दा गौण हो जाए......
और कुछ मित्र तो इतने महान हैं कि बिना किसी तर्क को पेश किये लिख देंगें कि उन्हें लेख पसंद नहीं, वो असहमत हैं, लेख गलत है, लेख की विषयवस्तु परिपक्व नहीं...आदि आदि...
अब इन्हें कितना ही समझायो कि भाई जी, मात्र इतना लिखना काफी नहीं, कुछ तर्क भी पेश करें अपने कथनों के समर्थन में, लेकिन बहुत कम ही समझ आती है यह बात ...
तर्क पेश करना ही तो मुश्किल है...तर्क में पड़ना ही तो झंझट है....तर्क की आंधी को झेलना ही तो सबसे बड़ी तपस्या है...
चोट खुद पे पड़ती हैं...यह ऐसे है जैसे खुद की ही मूर्ती घड़ना....
जो हिम्मत दिखायेंगें, वो ही एक सुन्दर आकृति बन पायेंगें, वरना पड़े रहें अनघड पत्थरों की तरह, मर्ज़ी उनकी.
किसी भी मुद्दे पे, या किसी भी मौके पे, कोई बहुत बुद्धिमान व्यक्ति मूर्खतापूर्ण बात कर सकता है और कोई बहुत मूर्ख बहुत बुद्धिमत्ता पूर्ण बात .......इसलिए बात होनी चाहिए वक़्त दर वक़्त, मुद्दा दर मुद्दा.....और मुद्दों के आधार पे ही हमेशा विरोध और समर्थन होना चाहिए.......और कुतर्क की बात करें तो सब विरोधी तर्क शुरू में कुतर्क ही महसूस होते हैं और बहुधा अंत तक......बस स्वयं को express करने का बेहतर से बेहतर प्रयास ही किया जाना चाहिए
मात्र जानकारियाँ होना काफी नहीं..आप क्या चुनते हैं उनमें से वो महत्वपूर्ण है ...
मात्र सब तरह के तर्क जानना ज़रूरी नहीं, आप एक जज की तरह क्या चुनते हैं, किस बात की हिमायत करते हैं, वो महत्वपूर्ण है...
सवाल सिर्फ जानकारी होने का नहीं होता है भाई जी, जानकारी को समझने का होता है.......आप किसी जानकारी से क्या निष्कर्ष निकालते हैं.....वो महत्वपूर्ण है .....
Sherlock Holmes अवश्य पता होगा आपको.....कैसे सामने दिखने वाली जानकारियों से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालते हैं....या फिर NEWTON का उदाहरण लें....सेब क्या पहले न गिरता था....या सेब का गिरना क्या बहुत बड़ी घटना है........एक दम आम घटना, लेकिन निष्कर्ष आम नहीं....
इसे कहते हैं दिमाग.......और इस तरह का दिमाग ही चाहिए भारत को, इसी तरह से विज्ञान पनपता है ....
जब तक तर्क से न जूझेगी दुनिया.....दुनिया ज़हालत से भरी रहेगी
युद्ध चाहिए तर्क का ....गली गली ......
नुक्कड़ नुक्कड़
तर्कयुद्ध बहुत युद्धों को टाल सकता है.....
यहाँ तो सब बचते हैं तर्क से......
पॉजिटिव टॉक करो....
तर्क करो तो नेगेटिव.....हा!
डर है, कहीं ग़लत साबित न हो जाएँ, डर है कहीं जीवन भर की जमापूंजी बिखर न जाए, जिसे जीवन भर सीने से लगाये रखा अलंकार समझ वो ही सीने की बीमारी साबित न हो जाए.....जैसे व्यक्ति धन इकट्ठा करता है, वैसे ही धारणाएं इकट्ठी करता है.....ग़लत ठीक बहुतेरी .......और उन बहुतेरियों में से बहुतेरी ग़लत......
अब तर्क करें तो जुआ हो गया, तर्क युद्ध हार भी सकते हैं.......दूसरे क्या सोचेंगे? कैसा मूर्ख है! सो तर्क में भाग ही नहीं लेना.....तर्क से भाग लेना है....... चाहे जीवन भर मूर्ख बने रहें, वो मंज़ूर है.....
लेकिन तर्क युद्ध में हिस्सा लेकर मूर्ख साबित होना कहीं बेहतर है तर्क से बच कर जीवन भर मूर्ख बने रहने से ...
और यह जो तथाकथित गुरु लोग तर्क के विरुद्ध तर्क देते हैं, वो मात्र बुद्धि के विरोधी हैं...वो मात्र चाहते हैं कि आप अपनी बुद्धि उनके पास हमेशा के लिए गिरवी रख दो.....वो शायद कहना चाहते हैं कि कुदरत बेवकूफ है जो सब को बुद्धि देती है, कुदरत ने गलती की जो सबको बुद्धि दी, वो गलती गुरु के पास अपनी बुद्धि त्याग कर सुधारी जा सकती है.....
बकवास!
असल में से जो किताबें पढ़ने का विरोध करते हैं, बुधि का विरोध करते हैं, मूर्ख हैं, अक्ल के दुश्मन .....
ध्यान को कुछ ऐसा मान बैठे हो जैसे ध्यान का बुधि से विरोध हो ...
कैसे हो सकता है?
वो कुदरत कोई पागल है ..जो अक्ल देती है.......
असल में विवेक का प्रयोग ही ध्यान है.............
ध्यान से जीना ही ध्यान है ......
और ये कतई एसा कुछ नहीं जो बुधि के विपरीत हो...
कोई सभ्यता आगे नहीं बढ़ सकती जो तर्क से परहेज़ करे....
लेकिन तर्क के लिए सर खपाना पड़ता है, मेहनत करनी होती है, खुद को ग़लत साबित होने की हिम्मत जुटानी पड़ती है, तर्क तपस्या है, तर्क श्रम है, तर्क दुनिया का महानतम कर्म है ....
हम जितना जल्दी समझें, उतना अच्छा ...
अब तो हमें समझाना चाहिए कि इसी तर्क के सहारे दुनिया कहाँ कि कहाँ पहुँच गयी, अब तो हमें तर्क की तार्किकता को समझाना चाहिए
कॉपी राईट मैटर
तुषार कॉस्मिक
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