एक मित्र हैं, अभी अभी जुड़ी हैं अनामिका सिंह.....इनके साथ नोक-झोंक में इनके नाम पर ध्यान गया तो कुछ अटपटा सा लगा.......नामिका हैं, लेकिन नाम अनामिका और स्त्री हैं फिर भी सिंह....फिर थोड़ा और सोचा तो एक और नाम ख्याल आया "नामवर सिंह"
फर्क सूझा मित्रगण, पुरुष हैं तो "नामवर" और "सिंह" और स्त्री हैं तो अनामिका और स्त्री होते हुए भी सिंह ......स्त्री को तो अनामिका ही होना चाहिए और पुरुष की छाया में ही उसका स्त्रीत्व ढक जाना चाहिए ....कभी आपको कोई पुरुष मिला जिसका नाम "अनाम या अनामिक सिंहनी" हो?.....एक पुरुष कैसे अपने नाम के पीछे जनाना पुच्छल टांग सकता है?
जनानी अगर मर्दानी हो तो वाह!
खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी
और मर्द अगर जनाना हो गया तो आह!
मर्द का जनाना होना ही गाली हो गया
और पुरुष कैसे अनाम हो सकता है, अनामिक हो सकता है, "अनामिका" होना तो स्त्री के खाते में ही है, पुरुष तो "नामवर" होते हैं.....और कभी "सिंहनी" नहीं "सिंह" होते हैं ...लेकिन इस सारी प्रक्रिया में इंसान से पशु होते जा रहे हैं ...अरे भई सिंह होवोगे तो भी बन तो पशु ही जाओगे.....खैर, वो तो कोई बात नहीं, लेकिन हैरानी इस बात की कि अपनी स्त्रियों को स्त्री-पशु बनने की आज़ादी नहीं दी, उन्हें सिंहनी तक नहीं होने दिया, उन्हें भी बना दिया "सिंह"....जैसे अनामिका सिंह
अब एक बहुत सीक्रेट बात, सुना है इंसान अपने नाम के पीछे "सिंह" इस लिए लगाता है कि वो खुद को जंगल के राजा की तरह, सिंह की तरह प्रकट करना चाहता, सिंह की ताकत रखना चाहता है ..लेकिन जंगल में हुई मीटिंग में सर्वसम्मती से यह प्रस्ताव पास हुआ है कि कोई भी पशु अपने बच्चों के नाम के पीछे कभी "इंसान" नहीं लगाएगा...इंसान के दुर्गुण कोई पशु नहीं चाहता कि उनके बच्चों में आयें ...बहुत से गुणी पशुओं ने तर्क दिया कि इंसान सबसे अधिक बुद्धिशाली है, शक्तिशाली है सो उसका नाम प्रयोग किया जाना चाहिए
लेकिन फिर बहुत से अन्य पशुयों का तर्क था कि नहीं, इंसान सर्वाधिक बुद्धीहीन भी है, उसके पास न सुख है, न शांति......वो तो एक दूजे के साथ ठीक से बैठना ही नहीं सीखा.....वो खुद को सभ्य कहता है ..लेकिन सभा तक करना नहीं सीखा..उसकी सभा में कब दंगे हो जाएँ, कुछ पता नहीं...कब वो एक दूजे को मार काट दे कुछ पता नहीं.....उसकी शक्ति तो खुद को ही नष्ट करने में लगी है....न सिर्फ खुद को बल्कि पशुओं को भी और सारी वनस्पति को भी...बल्कि सारी पृथ्वी को ही....
और यह भी तर्क था कि उस इंसान का नाम कैसे प्रयोग कर सकता है कोई पशु, जो इंसान एक दूजे की सुरक्षा के लिए तो कानून, पुलिस, कचहरी, जेल बनाये बैठा है लेकिन पशुओं को बड़े मज़े से मार कर खा जाता है .....तर्क देता है कि पेड़ पौधों में भी तो जान है...फिर यदि उन्हें खा सकते हैं तो पशु क्यों नहीं......इनसे कोई यह नहीं पूछता कि फिर अपने ही बच्चे क्यों नहीं मार कर खा जाता.....सुना है कुछ इंसान तो ऐसा भी करते हैं....न बाबा न...ऐसे इंसान का तो नाम कभी अपने बच्चों के नाम के पीछे नहीं लगाना ..
और यह भी तर्क था कि इंसान को अपने नाम के पीछे पशुओं का नाम लगाना है लगाये चूँकि उस तो अभी पशु जितने ही गुण विकसित करने हैं, उतना भर तो हो जाए ..... चींटियाँ कभी ट्रैफिक जैम नहीं लगाती लेकिन इंसान को हड़बड़ी रहती है, अपनी हद कभी भी लांघ जाता है और सारा ट्रैफिक का बंटाधार कर देता है....असल में तो सारे जीवन का ही ट्रैफिक का बंटाधार किये बैठा है..... कारण...कारण यह है कि अपनी हद लांघने की पड़ी है इसे हर दम.
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सो पशुयों ने तो इनकार कर दिया है "इंसान" को अपने नामों के पीछे पुच्छल बनाने से, सर्वसम्मती से .
हाँ, इंसान का अपने नामों के पीछे "सिंह" या "टाइगर" या कुछ और लगाना फिर भी ठीक है चूँकि उसमें तो अभी पशुयों जितने भी गुण विकसित नहीं हुए हैं ....वो तो अभी पशुओं से भी नीचे कहीं खड़ा है .....सो ठीक ही है लगायें अपने नाम के पीछे "सिंह".....लेकिन अपनी स्त्रियों को थोड़ा बख्श दें. ..उन्हें बनाना ही है तो सिंहनी बनाएं...और अनामिका मत बनाएं...नामिका बनाएं..
नामिका सिंहनी
फर्क सूझा मित्रगण, पुरुष हैं तो "नामवर" और "सिंह" और स्त्री हैं तो अनामिका और स्त्री होते हुए भी सिंह ......स्त्री को तो अनामिका ही होना चाहिए और पुरुष की छाया में ही उसका स्त्रीत्व ढक जाना चाहिए ....कभी आपको कोई पुरुष मिला जिसका नाम "अनाम या अनामिक सिंहनी" हो?.....एक पुरुष कैसे अपने नाम के पीछे जनाना पुच्छल टांग सकता है?
जनानी अगर मर्दानी हो तो वाह!
खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी
और मर्द अगर जनाना हो गया तो आह!
मर्द का जनाना होना ही गाली हो गया
और पुरुष कैसे अनाम हो सकता है, अनामिक हो सकता है, "अनामिका" होना तो स्त्री के खाते में ही है, पुरुष तो "नामवर" होते हैं.....और कभी "सिंहनी" नहीं "सिंह" होते हैं ...लेकिन इस सारी प्रक्रिया में इंसान से पशु होते जा रहे हैं ...अरे भई सिंह होवोगे तो भी बन तो पशु ही जाओगे.....खैर, वो तो कोई बात नहीं, लेकिन हैरानी इस बात की कि अपनी स्त्रियों को स्त्री-पशु बनने की आज़ादी नहीं दी, उन्हें सिंहनी तक नहीं होने दिया, उन्हें भी बना दिया "सिंह"....जैसे अनामिका सिंह
अब एक बहुत सीक्रेट बात, सुना है इंसान अपने नाम के पीछे "सिंह" इस लिए लगाता है कि वो खुद को जंगल के राजा की तरह, सिंह की तरह प्रकट करना चाहता, सिंह की ताकत रखना चाहता है ..लेकिन जंगल में हुई मीटिंग में सर्वसम्मती से यह प्रस्ताव पास हुआ है कि कोई भी पशु अपने बच्चों के नाम के पीछे कभी "इंसान" नहीं लगाएगा...इंसान के दुर्गुण कोई पशु नहीं चाहता कि उनके बच्चों में आयें ...बहुत से गुणी पशुओं ने तर्क दिया कि इंसान सबसे अधिक बुद्धिशाली है, शक्तिशाली है सो उसका नाम प्रयोग किया जाना चाहिए
लेकिन फिर बहुत से अन्य पशुयों का तर्क था कि नहीं, इंसान सर्वाधिक बुद्धीहीन भी है, उसके पास न सुख है, न शांति......वो तो एक दूजे के साथ ठीक से बैठना ही नहीं सीखा.....वो खुद को सभ्य कहता है ..लेकिन सभा तक करना नहीं सीखा..उसकी सभा में कब दंगे हो जाएँ, कुछ पता नहीं...कब वो एक दूजे को मार काट दे कुछ पता नहीं.....उसकी शक्ति तो खुद को ही नष्ट करने में लगी है....न सिर्फ खुद को बल्कि पशुओं को भी और सारी वनस्पति को भी...बल्कि सारी पृथ्वी को ही....
और यह भी तर्क था कि उस इंसान का नाम कैसे प्रयोग कर सकता है कोई पशु, जो इंसान एक दूजे की सुरक्षा के लिए तो कानून, पुलिस, कचहरी, जेल बनाये बैठा है लेकिन पशुओं को बड़े मज़े से मार कर खा जाता है .....तर्क देता है कि पेड़ पौधों में भी तो जान है...फिर यदि उन्हें खा सकते हैं तो पशु क्यों नहीं......इनसे कोई यह नहीं पूछता कि फिर अपने ही बच्चे क्यों नहीं मार कर खा जाता.....सुना है कुछ इंसान तो ऐसा भी करते हैं....न बाबा न...ऐसे इंसान का तो नाम कभी अपने बच्चों के नाम के पीछे नहीं लगाना ..
और यह भी तर्क था कि इंसान को अपने नाम के पीछे पशुओं का नाम लगाना है लगाये चूँकि उस तो अभी पशु जितने ही गुण विकसित करने हैं, उतना भर तो हो जाए ..... चींटियाँ कभी ट्रैफिक जैम नहीं लगाती लेकिन इंसान को हड़बड़ी रहती है, अपनी हद कभी भी लांघ जाता है और सारा ट्रैफिक का बंटाधार कर देता है....असल में तो सारे जीवन का ही ट्रैफिक का बंटाधार किये बैठा है..... कारण...कारण यह है कि अपनी हद लांघने की पड़ी है इसे हर दम.
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सो पशुयों ने तो इनकार कर दिया है "इंसान" को अपने नामों के पीछे पुच्छल बनाने से, सर्वसम्मती से .
हाँ, इंसान का अपने नामों के पीछे "सिंह" या "टाइगर" या कुछ और लगाना फिर भी ठीक है चूँकि उसमें तो अभी पशुयों जितने भी गुण विकसित नहीं हुए हैं ....वो तो अभी पशुओं से भी नीचे कहीं खड़ा है .....सो ठीक ही है लगायें अपने नाम के पीछे "सिंह".....लेकिन अपनी स्त्रियों को थोड़ा बख्श दें. ..उन्हें बनाना ही है तो सिंहनी बनाएं...और अनामिका मत बनाएं...नामिका बनाएं..
नामिका सिंहनी
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