Saturday, 27 June 2015

!!!! चुनाव-- उत्सव और उत्सव धर्मिता के बीच !!!!!

आपको पता है हम उत्सव क्यों मनाते हैं......?
चूँकि हमने जीवन में उत्सवधर्मिता खो दी.
चूँकि हमने दुनिया नरक कर दी
कभी बच्चे देखें हैं.......उत्सवधर्मिता समझनी है तो बच्चों को देखो....
हर पल नये...हर पल उछलते कूदते.....हर पल उत्सव मनाते 

क्या लगता है आपको बच्चे होली दिवाली ही खुश होते हैं.......?
वो बिलकुल खुश होते हैं....इन दिनों में.......लेकिन क्या बाक़ी दिन बच्चे खुश नही होते?

कल ही देख लेना ....यदि बच्चों को छूट देंगे तो आज जितने ही खेलते कूदते नज़र आयेंगे

यह है उत्सवधर्मिता

जिसे इंसान खो चुका है और उसकी भरपाई करने के लिए उसने इजाद किये उत्सव ...होली...दीवाली......

क्या सम्भव है कि आप एक निश्चित दिन, तारिख तय करें कि उस दिन आप सब खुश होंगें.....यदि ऐसा करते हैं तो निश्चित ही यह खुशी नकली होगी...नकली है.....खुशी कोई इस तरह से arrange की जा सकती है ...ख़ुशी होती है स्वस्फूर्त ...जैसे बच्चों का जीवन......तितली हो, फूल हो, पतंग हो, कंचे हों...बच्चे खुश

खुद को भुलावा देने के लिए ये चंद उत्सव इजाद किये हैं........खुद को धोखा देने के लिए...कि नहीं जीवन में बहुत ख़ुशी है ..बहुत पुलक है......बहुत उत्सव है

नहीं, बाहर आयें ..इस भरम से बाहर आयें...समझें कि दुनिया लगभग नरक हो चुकी है......हमने ..इंसानों ने दुनिया की ऐसी तैसी कर रखी है

कुछ नया सोचना होगा...कुछ नया करना होगा ताकि हम इन नकली उत्सवों को छोड़ उत्सवधर्मिता की और बढ़ सकें

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