दिल्ली पुलिस
हालाँकि देश की पुलिस लगभग एक ही जैसा बर्ताव करती है, लेकिन चूँकि मेरा सीधा वास्ता दिल्ली पुलिस से पड़ता है सो मैं दिल्ली पुलिस के बारे में ही लिखूंगा
बहुत हो हल्ला मचाया जा रहा है, एक केस को लेकर....एक महिला अपने बच्चों सहित दोपहिया वाहन पर थीं....कहा सुनी हो गयी पुलिस कर्मचारी से......एक दूजे को ईंट तक मारी गयीं.....किस की गलती निकलेगी, निकाली जायेगी, कितनी निकाली जायेगी, वक्त बताएगा....
कुछ मित्र, मोदी समर्थक, मुझे पुलिस का बचाव करते दिखे....उनका बनता भी है, केजरीवाल दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अंडर चाहते हैं, ...मोदी सर्मथक इसलिए विरोध कर रहे हैं कि उनका केजरीवाल का विरोध करना बनता है...दिल्ली पुलिस इसलिए विरोध कर रही है चूँकि वो नहीं चाहती कि उसके आज तक के कामकाज के ढंग में कोई खलल पड़े.....
वो ढंग, जो आम जन को, ख़ास करके अनपढ़-कम पढ़े लिखे जन को, गरीब-कम पैसे वाले जन को अपनी जूती की नोक के नीचे समझती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस झगड़े की कॉल पर वकील, जज , कानून सब खुद बन जाती है और समझौता कराने के दोनों तरफ से पैसे खाती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस स्टेशन पिटाई और उगाही के अड्डे हैं
वो ढंग, जिससे आम जन घबराते हैं, इसलिए कि वो कोई भी उल्टा सीधा केस लगा कर किसी के भी सालों खराब कर सकती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस अपने इलाके में रेहड़ी, रिक्शा वाले तक से पैसे वसूलती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस का IO (INSPECTION OFFICER) यह नहीं देखता कि कोर्ट में केस सही ढंग से कैसे पहुंचे, बल्कि यह देखता है कि किसे धमका कर ज़्यादा से ज़्यादा पैसे वसूले जा सकते हैं
वो ढंग, जिसमें पुलिस यदि ट्रैफिक के लिए नियुक्त हो तो उसका काम यह देखना नहीं कि ट्रैफिक कैसे सुचारू रूप से चले, बल्कि ऐसे नाके, ऐसे पॉइंट पर खड़े होना है, जहाँ पब्लिक से न चाहते हुए भी गलती होनी है और इन महाशयों ने पैसे वसूलने हैं
वो ढंग, जिसमें पुलिस के लॉक-अप रूम अपने आप में सज़ा हैं, जहाँ वहीं आदमी को सोना है और वहीं पेशाब करना होता है. होता रहे बाद में निर्दोष साबित, सज़ा तो पहले ही मिल जाती है, थाने तक पहुँचने की सज़ा
वो ढंग, जिसमें पुलिस बात करने की तमीज़ से कोसों दूर है, "आप" कहना ही नहीं आता और "तू, तडांग" को अपना पैदाईशी हक़ समझा जाता है
वो ढंग, जिसमें पुलिस रिश्वत तो लेती है लेकिन होशियार हो गई है कि कहीं कोई रिकॉर्डिंग न हो जाए
वो ढंग, जिसमें पुलिस सज़ा देना अपना हक़ समझती है और वो भी कोर्ट के हुक्म से नहीं, अपनी मर्ज़ी से, जिसमें थर्ड नहीं फोर्थ, फिफ्थ डिग्री तक अपनाना कला समझा जाता है
खैर.....
मैं केजरीवाल का कतई समर्थक नहीं हूँ, उनको मैं बहुत ही उथला व्यक्ति मानता हूँ, शुरू से....लेकिन मैं दिल्ली पुलिस का, इसके काम काज के ढंग का निश्चित ही विरोध करता हूँ
नमन.
बहुत हो हल्ला मचाया जा रहा है, एक केस को लेकर....एक महिला अपने बच्चों सहित दोपहिया वाहन पर थीं....कहा सुनी हो गयी पुलिस कर्मचारी से......एक दूजे को ईंट तक मारी गयीं.....किस की गलती निकलेगी, निकाली जायेगी, कितनी निकाली जायेगी, वक्त बताएगा....
कुछ मित्र, मोदी समर्थक, मुझे पुलिस का बचाव करते दिखे....उनका बनता भी है, केजरीवाल दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अंडर चाहते हैं, ...मोदी सर्मथक इसलिए विरोध कर रहे हैं कि उनका केजरीवाल का विरोध करना बनता है...दिल्ली पुलिस इसलिए विरोध कर रही है चूँकि वो नहीं चाहती कि उसके आज तक के कामकाज के ढंग में कोई खलल पड़े.....
वो ढंग, जो आम जन को, ख़ास करके अनपढ़-कम पढ़े लिखे जन को, गरीब-कम पैसे वाले जन को अपनी जूती की नोक के नीचे समझती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस झगड़े की कॉल पर वकील, जज , कानून सब खुद बन जाती है और समझौता कराने के दोनों तरफ से पैसे खाती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस स्टेशन पिटाई और उगाही के अड्डे हैं
वो ढंग, जिससे आम जन घबराते हैं, इसलिए कि वो कोई भी उल्टा सीधा केस लगा कर किसी के भी सालों खराब कर सकती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस अपने इलाके में रेहड़ी, रिक्शा वाले तक से पैसे वसूलती है
वो ढंग, जिसमें पुलिस का IO (INSPECTION OFFICER) यह नहीं देखता कि कोर्ट में केस सही ढंग से कैसे पहुंचे, बल्कि यह देखता है कि किसे धमका कर ज़्यादा से ज़्यादा पैसे वसूले जा सकते हैं
वो ढंग, जिसमें पुलिस यदि ट्रैफिक के लिए नियुक्त हो तो उसका काम यह देखना नहीं कि ट्रैफिक कैसे सुचारू रूप से चले, बल्कि ऐसे नाके, ऐसे पॉइंट पर खड़े होना है, जहाँ पब्लिक से न चाहते हुए भी गलती होनी है और इन महाशयों ने पैसे वसूलने हैं
वो ढंग, जिसमें पुलिस के लॉक-अप रूम अपने आप में सज़ा हैं, जहाँ वहीं आदमी को सोना है और वहीं पेशाब करना होता है. होता रहे बाद में निर्दोष साबित, सज़ा तो पहले ही मिल जाती है, थाने तक पहुँचने की सज़ा
वो ढंग, जिसमें पुलिस बात करने की तमीज़ से कोसों दूर है, "आप" कहना ही नहीं आता और "तू, तडांग" को अपना पैदाईशी हक़ समझा जाता है
वो ढंग, जिसमें पुलिस रिश्वत तो लेती है लेकिन होशियार हो गई है कि कहीं कोई रिकॉर्डिंग न हो जाए
वो ढंग, जिसमें पुलिस सज़ा देना अपना हक़ समझती है और वो भी कोर्ट के हुक्म से नहीं, अपनी मर्ज़ी से, जिसमें थर्ड नहीं फोर्थ, फिफ्थ डिग्री तक अपनाना कला समझा जाता है
खैर.....
मैं केजरीवाल का कतई समर्थक नहीं हूँ, उनको मैं बहुत ही उथला व्यक्ति मानता हूँ, शुरू से....लेकिन मैं दिल्ली पुलिस का, इसके काम काज के ढंग का निश्चित ही विरोध करता हूँ
नमन.
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