सयाना और शयाणा होने में उतना ही फर्क है जितना आसमान और ज़मीन में, जितना मीठे और नमकीन में, भद्दे और हसीन में, जितना बेवकूफ़ और ज़हीन में
पंजाबी में बूढों के लिए 'सयाणा' शब्द भी प्रयोग कर लिया जाता है, आशय यही है कि एक उम्र तक पहुँचते -2 व्यक्ति समझदार हो जाता है
लेकिन मैं तो देखता हूँ, उम्र के साथ साथ व्यक्ति सयाना नहीं, शयाणा हो जाता है
चाल बिगड़ जाती है, पर चालें आ जाती हैं
समझदानी नादानी में बदल जाती है
कुछ न सीखा इन्होने, बस सीखी होशियारी
झूठी इनकी यारी, झूठी रिश्तेदारी
बचपन में प्यासे कव्वे की समझदारी की कहानी सबने पढी है, लेकिन एक कहावत भी सुनी होगी ज़रूर "सयाना कव्वा गूं खाता है"
राधे चरण तकरीबन चार सौ गज के प्लाट में रहते हैं, दिल्ली पश्चिम विहार में. कोई तीन साल पहले मुलाकात हुई. उस वक्त उस प्लाट की कीमत तकरीबन दस करोड़ आंकी.
उनकी डील आयी नए सिरे से बिल्डिंग बनवाने के लिए, वो न होनी थी न हुई. चूँकि उसमें उनके भाई का आधा हिस्सा था जिसे वो देना नहीं चाहते थे. बड़ी जल्दी हाई कोर्ट में केस चला गया.
और आज तक चल रहा है, उन्हें समझाया कि प्रॉपर्टी में भाई का नाम है, सो हिस्सा भाई को देना ही पड़गे. और समझाया कि बीवी आपकी अच्छी नौकरी कर रही है, बेटी की शादी हो चुकी है, दूसरी बेटी भी सेटल हो चुकी है, छोड़ो यह झंझट, लेकिन वो कहाँ मानने वाले. चार गज को आधा कट कल्पना तक उन्हें गवारा नहीं थी.
कोर्ट केस इस उम्मीद में खींच रहे हैं कि शायद भाई को मना लें बीच में ही, लेकिन मामला भाई के बच्चों के हाथ में है, सो कुछ नहीं होना उनकी उम्मीद के मुताबिक.
इस बीच दिल्ली में प्रॉपर्टी के रेट तेज़ी से गिर चुके हैं. अब आज बड़ी मुश्किल कोई छ करोड़राह गयी उस प्लाट की कीमत. सयाना बनने के चक्कर में वो अपना समय, शांति, भाई से रिश्ता और तकरीबन दो करोड़ रूपया गंवा चुके हैं.
हरकेश कोई पचास साल के थे. अकेले रहते थे. अपना फ्लैट था. लेकिन कमाते धमाते नहीं थे. कागज़ बड़े भाई के घर पड़े थे. भाई सब दुःख सुख देख रहा था, उनकी दवा दारू, रोटी तक का खर्च दे रहा था, वर्षों से दे रहा था. इन सज्जन को होशियारी सूझी, भाई से मकान के कागज़ात मांगे. भाई ने आनाकानी की. जब सब हर्जा- खर्चा वो करे तो उसे यह गणना करना कि मरने के बाद हरकेश वाला फ्लैट उनके परिवार को मिल जाए कोई गलत न था. सो टाल मटोल की. लेकिन इन सज्जन को जोश चढ़ा. मेरी चीज़, वो कैसे रख ले? थाणे जा पहुंचे. भाई की हाजिरी लग गई. भाई ने कागज़ात दे दिए. लेकिन फिर तौबा कर ली. पीठ फेर ली. अब हरकेश फिर से हाय, हाय करता फिरता रहा, खाने तक के लाले पड़ गए. फ्लैट बेच अलटा पलटा करने की हिम्मत न हुई, कोई हेरा फेरी न कर जाए. कहता फिरे कि भाई नहीं पूछता. मैंने फ़ोन किया भाई को, उसने कहा, "इसे कहो, कागजों को चाट कर खा ले." भाई नहीं आया. दवा समय से न मिलने की वजह से फ्लैट में अंदर ही मर गया हरकेश. लोगों ने भाई को फ़ोन किया, भाई दौड़ा आया. मकान का कब्जा और कागज़ फिर उसी के पास. ज़्यादा सयाना मारा गया.
रमाकांत अपनी फैक्ट्री में अधिकतर लड़कों को ही रखते थे. पुराना जानकार, कोई पचपन साल का, वीर सिंह, आ पहुंचा उनके पास, काम नहीं मिल रहा था. खाने तक के लाले पड़े थे. मिन्नत की, काम के लिए. वो देना नहीं चाहते थे, मैंने कारण पूछा, बोले उम्रदराज़ लोग काम नहीं कर के देते, एक तो शरीर साथ नहीं दे रहा होता, ऊपर से हरामी हो जाते हैं और चोट वोट खा जाएं तो और मुसीबत. फिर भी मेरे कहने पर रमाकांत ने वीर सिंह को रख लिया. दो साल तक काम करता रहा. फिर जो माल रमाकांत बना रहे थे, एकाएक उसकी डिमांड घट गई. उन्होंने कहा वीर सिंह से कि अभी रेगुलर मासिक वेतन पर नहीं रख सकते, दिहाड़ी के हिसाब से रख लेंगे. जब काम होगा तो ही बुलायेंगे. अब ये साहेब तो बिदक गए. ये कोई तरीका है काम करवाने का? ऐसे कौन काम करता है. रमाकांत ने कहा ठीक है, हिसाब ले जाओ. ये सज्जन अब लेबर चौक पर बैठते हैं, वहां भी कभी काम मिलता है, कभी नहीं. और पहले से कहीं सख्त. रमाकांत का काम फिर चल रहा है और उन्होंने रेगुलर लड़के रख लिए हैं. इनका ज़िक्र आते ही उनका ज़ायका कसैला हो जाता है. शयाणा.
प्रेस वाली को एक फैक्ट्री से रोज़ दो सौ कमीज़ प्रेस पैक करने को मिलती थी. वो ढंग से भी करती थी और बेढंग से भी. एक बार माल मालिक ने देख लिया बारीकी से. कोई दो हज़ार रुपैया काट लिए मालिक ने. अब यह बिफर गई, हमारी मेहनत के कमाई है, कोयला लगा है, दिन रात एक की है. लड़ झगड़ दो हज़ार ले आयी और हमेशा के लिए अपना काम गवा आई...शयाणी.
अमित फ्रिज मकैनिक, सर्टिफाइड है.. वोल्टास में नौकरी कर रहा था.. लेकिन जहाँ जाए कंपनी की तरफ से काल पर, वहीं अपना नंबर टिका दें. अगली बार ग्राहक उसे डायरेक्ट फ़ोन करके आधे रेट पर सीधा बुला ले. कम्पनी को शंका हुई...अपना ही बन्दा फिट किया और काल पर अमित को उसके भेजा गया, अमित रंगे हाथों पकड़ा गया. नौकरी से गया, और आगे के किये कैरिअर पर धब्बा लग गया.....शयाणा.
कितनी मिसालें दूं मैं आपको?......भरा है संसार... मारामार..हाहाकार
पुराने किरायेदार को मकान मालकिन ने सिक्यूरिटी के पैसे वापिस नहीं किये. बहाना बना दिया कि वो तय समय से पहले खाली कर रहा है, सो पैसे नहीं मिलेंगे.......किरायेदार अनपढ़ था, उसे पता भी नहीं था कि अग्रीमेंट में लिखा क्या है, न उसे पढ़ कर सुनाया किसी ने, बेचारा पैसे गवा बैठा.......फिर कहीं नए किरायेदार को कहीं मिल गया पुराना किरायेदार, आप बीती सुना दी. नए किरायेदार ने किराया बंद कर दिया, यह कह कर कि वो खाली कर रहा है, सिक्यूरिटी मनी किराए में खत्म कर दी, फिर भी खाली नहीं किया. बोला दो महीने और रहेगा और किराया मालकिन को नहीं पुराने किरायेदार को देगा. और दिया. लेकिन दो के चार महीने रह कर गया और उस चार महीने का एक पैसा किराया नहीं देकर गया. मालकिन को पता था कोर्ट केस से मामला और लटक जाएगा, सो सहना पड़ा. शयाणी.
'मैं शराबी, मैं शराबी' गाने की तर्ज़ पर हर तरफ 'मैं शयाणा, मैं शयाणी' गाते फिर रहे हैं लोग
सयाने और शयाणे के फर्क को समझाने के लिए एक वार्तालाप पेश करता हूँ, उम्मीद है मेरी बात समझ आयगी.
श्रीमान अवस्थी जी, "सेठ जी, आपको पता है, राधे चरण समय खराब करता है, पैसों में भी थोड़ी बहुत हेराफेरी कर जाता है, फिर भी आप उसे कुछ कहते नहीं, क्या बात है?"
सेठ," क्या लगता है आपको, मुझे नहीं पता यह सब? भाई जी, मैंने इंसान रखें हैं काम पर, रोबोट नहीं...इंसान यह सब गड़बड़ करते ही हैं......जानते बूझते हुए मक्खी निगलते हैं हम......"
अवस्थी जी ,"फिर भी सेठ जी, कुछ तो आप करते ही होंगें?"
सेठ,"नहीं, कुछ नहीं करते, आपको हज़म इसलिए नहीं ही रहा चूँकि आप नौकरी करते हो, कभी आगे कर्मचारी रखे नहीं हैं आपने......भाई, कभी कम समझदारी रखना, ज़्यादा समझदारी होती है....It is wiser to be unwise sometimes."
शयाणे और सयाने का फर्क इतना है कि अक्ल पर ताला है और दूजे की अक्ल आला है.
एक को अभी का फायदा दीखता है, दूजे की नज़र दूर तक जाती है. एक छोटे फायदे के लिए बड़ा फायदा गवा देता है और एक बड़े फायदे के लिए छोटा नुक्सान करवा लेता है. एक लड़ाईयां जीतने को युद्ध हार जाता है, दूजा युद्ध जीतने को लडाइयां हार जाता है. एक दूसरों को बेवकूफ समझता है और बनाता है, दूजा खुद को समझदार समझता है और समझदारी बढाने की कोशिश करता है
सयाने बनो यारो, शयाणे मत बनो, इस आर्टिकल को शेयर करो, चुराओ मत, सादर नमन
कॉपी राईट
पंजाबी में बूढों के लिए 'सयाणा' शब्द भी प्रयोग कर लिया जाता है, आशय यही है कि एक उम्र तक पहुँचते -2 व्यक्ति समझदार हो जाता है
लेकिन मैं तो देखता हूँ, उम्र के साथ साथ व्यक्ति सयाना नहीं, शयाणा हो जाता है
चाल बिगड़ जाती है, पर चालें आ जाती हैं
समझदानी नादानी में बदल जाती है
कुछ न सीखा इन्होने, बस सीखी होशियारी
झूठी इनकी यारी, झूठी रिश्तेदारी
बचपन में प्यासे कव्वे की समझदारी की कहानी सबने पढी है, लेकिन एक कहावत भी सुनी होगी ज़रूर "सयाना कव्वा गूं खाता है"
राधे चरण तकरीबन चार सौ गज के प्लाट में रहते हैं, दिल्ली पश्चिम विहार में. कोई तीन साल पहले मुलाकात हुई. उस वक्त उस प्लाट की कीमत तकरीबन दस करोड़ आंकी.
उनकी डील आयी नए सिरे से बिल्डिंग बनवाने के लिए, वो न होनी थी न हुई. चूँकि उसमें उनके भाई का आधा हिस्सा था जिसे वो देना नहीं चाहते थे. बड़ी जल्दी हाई कोर्ट में केस चला गया.
और आज तक चल रहा है, उन्हें समझाया कि प्रॉपर्टी में भाई का नाम है, सो हिस्सा भाई को देना ही पड़गे. और समझाया कि बीवी आपकी अच्छी नौकरी कर रही है, बेटी की शादी हो चुकी है, दूसरी बेटी भी सेटल हो चुकी है, छोड़ो यह झंझट, लेकिन वो कहाँ मानने वाले. चार गज को आधा कट कल्पना तक उन्हें गवारा नहीं थी.
कोर्ट केस इस उम्मीद में खींच रहे हैं कि शायद भाई को मना लें बीच में ही, लेकिन मामला भाई के बच्चों के हाथ में है, सो कुछ नहीं होना उनकी उम्मीद के मुताबिक.
इस बीच दिल्ली में प्रॉपर्टी के रेट तेज़ी से गिर चुके हैं. अब आज बड़ी मुश्किल कोई छ करोड़राह गयी उस प्लाट की कीमत. सयाना बनने के चक्कर में वो अपना समय, शांति, भाई से रिश्ता और तकरीबन दो करोड़ रूपया गंवा चुके हैं.
हरकेश कोई पचास साल के थे. अकेले रहते थे. अपना फ्लैट था. लेकिन कमाते धमाते नहीं थे. कागज़ बड़े भाई के घर पड़े थे. भाई सब दुःख सुख देख रहा था, उनकी दवा दारू, रोटी तक का खर्च दे रहा था, वर्षों से दे रहा था. इन सज्जन को होशियारी सूझी, भाई से मकान के कागज़ात मांगे. भाई ने आनाकानी की. जब सब हर्जा- खर्चा वो करे तो उसे यह गणना करना कि मरने के बाद हरकेश वाला फ्लैट उनके परिवार को मिल जाए कोई गलत न था. सो टाल मटोल की. लेकिन इन सज्जन को जोश चढ़ा. मेरी चीज़, वो कैसे रख ले? थाणे जा पहुंचे. भाई की हाजिरी लग गई. भाई ने कागज़ात दे दिए. लेकिन फिर तौबा कर ली. पीठ फेर ली. अब हरकेश फिर से हाय, हाय करता फिरता रहा, खाने तक के लाले पड़ गए. फ्लैट बेच अलटा पलटा करने की हिम्मत न हुई, कोई हेरा फेरी न कर जाए. कहता फिरे कि भाई नहीं पूछता. मैंने फ़ोन किया भाई को, उसने कहा, "इसे कहो, कागजों को चाट कर खा ले." भाई नहीं आया. दवा समय से न मिलने की वजह से फ्लैट में अंदर ही मर गया हरकेश. लोगों ने भाई को फ़ोन किया, भाई दौड़ा आया. मकान का कब्जा और कागज़ फिर उसी के पास. ज़्यादा सयाना मारा गया.
रमाकांत अपनी फैक्ट्री में अधिकतर लड़कों को ही रखते थे. पुराना जानकार, कोई पचपन साल का, वीर सिंह, आ पहुंचा उनके पास, काम नहीं मिल रहा था. खाने तक के लाले पड़े थे. मिन्नत की, काम के लिए. वो देना नहीं चाहते थे, मैंने कारण पूछा, बोले उम्रदराज़ लोग काम नहीं कर के देते, एक तो शरीर साथ नहीं दे रहा होता, ऊपर से हरामी हो जाते हैं और चोट वोट खा जाएं तो और मुसीबत. फिर भी मेरे कहने पर रमाकांत ने वीर सिंह को रख लिया. दो साल तक काम करता रहा. फिर जो माल रमाकांत बना रहे थे, एकाएक उसकी डिमांड घट गई. उन्होंने कहा वीर सिंह से कि अभी रेगुलर मासिक वेतन पर नहीं रख सकते, दिहाड़ी के हिसाब से रख लेंगे. जब काम होगा तो ही बुलायेंगे. अब ये साहेब तो बिदक गए. ये कोई तरीका है काम करवाने का? ऐसे कौन काम करता है. रमाकांत ने कहा ठीक है, हिसाब ले जाओ. ये सज्जन अब लेबर चौक पर बैठते हैं, वहां भी कभी काम मिलता है, कभी नहीं. और पहले से कहीं सख्त. रमाकांत का काम फिर चल रहा है और उन्होंने रेगुलर लड़के रख लिए हैं. इनका ज़िक्र आते ही उनका ज़ायका कसैला हो जाता है. शयाणा.
प्रेस वाली को एक फैक्ट्री से रोज़ दो सौ कमीज़ प्रेस पैक करने को मिलती थी. वो ढंग से भी करती थी और बेढंग से भी. एक बार माल मालिक ने देख लिया बारीकी से. कोई दो हज़ार रुपैया काट लिए मालिक ने. अब यह बिफर गई, हमारी मेहनत के कमाई है, कोयला लगा है, दिन रात एक की है. लड़ झगड़ दो हज़ार ले आयी और हमेशा के लिए अपना काम गवा आई...शयाणी.
अमित फ्रिज मकैनिक, सर्टिफाइड है.. वोल्टास में नौकरी कर रहा था.. लेकिन जहाँ जाए कंपनी की तरफ से काल पर, वहीं अपना नंबर टिका दें. अगली बार ग्राहक उसे डायरेक्ट फ़ोन करके आधे रेट पर सीधा बुला ले. कम्पनी को शंका हुई...अपना ही बन्दा फिट किया और काल पर अमित को उसके भेजा गया, अमित रंगे हाथों पकड़ा गया. नौकरी से गया, और आगे के किये कैरिअर पर धब्बा लग गया.....शयाणा.
कितनी मिसालें दूं मैं आपको?......भरा है संसार... मारामार..हाहाकार
पुराने किरायेदार को मकान मालकिन ने सिक्यूरिटी के पैसे वापिस नहीं किये. बहाना बना दिया कि वो तय समय से पहले खाली कर रहा है, सो पैसे नहीं मिलेंगे.......किरायेदार अनपढ़ था, उसे पता भी नहीं था कि अग्रीमेंट में लिखा क्या है, न उसे पढ़ कर सुनाया किसी ने, बेचारा पैसे गवा बैठा.......फिर कहीं नए किरायेदार को कहीं मिल गया पुराना किरायेदार, आप बीती सुना दी. नए किरायेदार ने किराया बंद कर दिया, यह कह कर कि वो खाली कर रहा है, सिक्यूरिटी मनी किराए में खत्म कर दी, फिर भी खाली नहीं किया. बोला दो महीने और रहेगा और किराया मालकिन को नहीं पुराने किरायेदार को देगा. और दिया. लेकिन दो के चार महीने रह कर गया और उस चार महीने का एक पैसा किराया नहीं देकर गया. मालकिन को पता था कोर्ट केस से मामला और लटक जाएगा, सो सहना पड़ा. शयाणी.
'मैं शराबी, मैं शराबी' गाने की तर्ज़ पर हर तरफ 'मैं शयाणा, मैं शयाणी' गाते फिर रहे हैं लोग
सयाने और शयाणे के फर्क को समझाने के लिए एक वार्तालाप पेश करता हूँ, उम्मीद है मेरी बात समझ आयगी.
श्रीमान अवस्थी जी, "सेठ जी, आपको पता है, राधे चरण समय खराब करता है, पैसों में भी थोड़ी बहुत हेराफेरी कर जाता है, फिर भी आप उसे कुछ कहते नहीं, क्या बात है?"
सेठ," क्या लगता है आपको, मुझे नहीं पता यह सब? भाई जी, मैंने इंसान रखें हैं काम पर, रोबोट नहीं...इंसान यह सब गड़बड़ करते ही हैं......जानते बूझते हुए मक्खी निगलते हैं हम......"
अवस्थी जी ,"फिर भी सेठ जी, कुछ तो आप करते ही होंगें?"
सेठ,"नहीं, कुछ नहीं करते, आपको हज़म इसलिए नहीं ही रहा चूँकि आप नौकरी करते हो, कभी आगे कर्मचारी रखे नहीं हैं आपने......भाई, कभी कम समझदारी रखना, ज़्यादा समझदारी होती है....It is wiser to be unwise sometimes."
शयाणे और सयाने का फर्क इतना है कि अक्ल पर ताला है और दूजे की अक्ल आला है.
एक को अभी का फायदा दीखता है, दूजे की नज़र दूर तक जाती है. एक छोटे फायदे के लिए बड़ा फायदा गवा देता है और एक बड़े फायदे के लिए छोटा नुक्सान करवा लेता है. एक लड़ाईयां जीतने को युद्ध हार जाता है, दूजा युद्ध जीतने को लडाइयां हार जाता है. एक दूसरों को बेवकूफ समझता है और बनाता है, दूजा खुद को समझदार समझता है और समझदारी बढाने की कोशिश करता है
सयाने बनो यारो, शयाणे मत बनो, इस आर्टिकल को शेयर करो, चुराओ मत, सादर नमन
कॉपी राईट
No comments:
Post a Comment