Monday, 1 June 2015

"वहम"

वहम का इलाज़ हकीम लुकमान के पास भी नहीं था....हो सकता है न हो...लेकिन मेरे पास है और भी बहुत लोगों के पास है और सदियों से रहा है

वहम का एक ही इलाज़ है और वो है "वहम"
जैसे कहते हैं न कि  ज़हर का इलाज़ ज़हर होता है.... कांटे को निकालने के लिए दूसरा काँटा चाहिए होता है .....लोहे को लोहा काटता है.

अजी दफा कीजिये, लानत भेजिए, लकड़ी को लकड़ी चाहे न काटती हो लेकिन वहम को  वहम काटता है

आधुनिक दौर में इसे 'प्लेसबो' भी कहा जाता है, दवा के नाम पर पानी के टीके लगाए जाते हैं, मीठी गोलियां दी जाती है और उनका उतना ही असर होता है जितना किसी भी असल दवा का....

होमियोपैथी में तो दी ही मीठी गोलियां दी जाती हैं और बहुत दुनिया है जो यह मानती है कि 'होमियोपैथी' मात्र प्लेसबो है. मेरा वास्ता होमियोपैथी से पहली बार तब पड़ा जब उगती जवानी के कील कांटे चेहरे पर उगने लगे.......वहां बठिंडा में दवा लेता रहा, छोटी मीठी गोलियां...मुझे तो कोई असर होता कभी दिखा नहीं......फिर यहाँ दिल्ली में भी एक दो बार होमियोपैथी की दवा और वजहों से ली, मुझे कभी कोई फायदा नुक्सान नहीं हुआ हालाँकि आज भी होमियोपैथी के मुरीद  बहुत लोग हैं

मेरे एक मित्र, बड़े दबंग, सुविधा के लिए इनका नाम रख लेते हैं, "शेर सिंह शेर"..आगे भी शेर, पीछे भी शेर, बीच में शेर.....तो बड़े ही दबंग......हमने आपने कभी जितने लोगों को थप्पड़ मारने का ख्व़ाब भी न लिया हो  उतने लोगों मार कूट चुके, कईयों पर छुरियां चला चुके.......

एक बार लेकिन कुछ लड़कों के हत्थे चढ़ गये........ज़्यादा कुछ नहीं उन लोगों ने घेर कर कुछ गाली-वाली दे दी.........फिर अगले दिन उनमें से ही कोई इनके घर की खिड़की का शीशा तोड़ गया.....अब इनको झटका लग गया......हैरान, परेशान.......बीमार हो गए.....मैं पहुंचा, बोले किसी ने कुछ घोट के पिला दिया है......भूत चिपक गए हैं....खाना हज़म नहीं होता.........खून के साथ उलट जाता है, भभूत बाहर गिरती है.......फिर कुछ किताबें भी पढ़ चुके थे, ऊर्जा कभी मरती नहीं, रूप बदलती है......आत्मा अजर है, अमर है.....भूत भी बन सकती है......

समझाने का प्रयत्न किया कि आपको मानसिक आघात है, आप अपनी ज़रा सी हार बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं....आप भूत प्रेत का मात्र भ्रम पाले हैं...खुद को धोखा दे रहे हैं.......वहम से खुद को बहला रहे हैं.......लेकिन वो कहाँ मानने वाले? 'शेर सिंह शेर'.

दो साल तक वो घर छोड़ बहन के घर रहते रहे......फिर एक डेरा जाना शुरू हो गए, हर माह, धीरे धीरे काफी ठीक हो गए हैं...... लौट आये हैं ...इलाज़ डेरे के बाबा जी की मेहर से होता जा रहा है.......कौन समझाए इनको दुबारा कि आपकी बीमारी भी नकली थी और इलाज़ भी नकली है?.....आप मात्र आघात खा गए थे, जो समय के साथ और बड़े ड्रामों में उलझने की वजह से, हर माह उलझने की वजह से ओझल होता गया है? मुझसे कुछ पूछते भी बीच में तो मैं कहता था मेरा क्षेत्र ही नहीं है, शायद  आप जो भूत , प्रेत की बात कह रहे थे, वो ही ठीक हो, आप ठीक हो रहे हैं, अच्छी बात है


तो मित्र गण, आपने गौर फरमाया, वहम का इलाज़ दूसरा वहम है...

इस बीमारी के बीमार तो हर जगह हैं, हर गली में होते हैं.....हकीम साहेब के वक्त में भी होंगें......लेकिन इस बीमारी की तीमारदारी उनसे न हो पाती होगी, जभी तो कहावत मशहूर हुई. पता नहीं हकीम लुकमान के पास कैसे नहीं था यह वाला इलाज़? शायद सीधा सीधा इलाज़ करने की कोशिश करते होंगे जैसे मैंने अपने मित्र 'शेर सिंह शेर' के साथ शुरू में करने का प्रयास किया.

नीम हकीम खतरा-ए-जान. इस कहावत का मतलब शायद यही होता होगा कि जो हकीम हर बीमारी का इलाज़ नीम से करे या नीम जैसी जड़ी, बूटी से करे उससे जान को खतरा हो सकता है.....हो सकता है यह मतलब हो, हो सकता है न हो..लेकिन मेरे जैसे हकीमों के सीधे इलाज़ से तो खतरा है ही

पता नहीं हकीम लुकमान साहेब की इतनी शोहरत कैसे फ़ैल गई? वहम का सही इलाज़ तो आपकी गली के नुक्कड़ पर रहने वाले मौलवी साहेब तक को पता है......जोहड़ वाले मंदिर के पंडित जी को भी पता है........फेसबुक पर भी मौजूद कई ओझा , बाबा, देवियों तक को पता है...पता नहीं हकीम साहेब को क्यों नहीं पता था?

नमन-----कॉपी राईट----चुराएं  न ---साझा करें

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