एक दोस्त है मेरा, पप्पू. पप्पू को जब मैं जानने लगा तब वो सुबह अखबार बांटता था और दिन में बिजली की फिटिंग आदि का काम करता था...दोनों काम बहुत मेहनत से करता था.....हम दोनों की उम्र रही होगी कोई उनीस बीस साल.
पिता उसके शराबी, नकारा. माँ एक गुरुद्वारे की डिस्पेंसरी में छोटी मोटी कोई नौकरी करती थी. एक जवान बहन थी उससे बड़ी और दो भाई. भाई निकम्मे. घर खर्च सारा माँ और पप्पू चलाते.
फिर माँ की नौकरी छूट गई. माँ को लकवा मार गया....सारा खर्च पप्पू चलाता रहा. बहन की शादी भी उसी ने की.
पप्पू चाहता था कि उसकी शादी हो. लेकिन कैसे हो? घर में न तो रहने की जगह अलग से और न ही उसकी कमाई इतनी कि वो अपने बीवी बच्चे भी पाल सके और माँ बाप और भाई भी.
ऊपर से उसके माँ बाप कोई दिलचस्पी न लें उसकी शादी में...लें भी तो कैसे? हालात सब सामने थे.
फिर जाने क्या हुआ पप्पू ने हिम्मत कर के खुद ही एक लड़की ढूंढी और अपना रिश्ता पक्का किया. हम भी गए उसकी सगाई पर.
बस हालात यहीं से एक दम बदल गए......जैसे ही उसने रिश्ता पक्का किया...उसके एक दो दिन में ही माँ को हार्ट अटैक हुआ और वो गुज़र गईं....उसके ठीक तीन चार दिन बाद पिता भी गुज़र गए.
पप्पू का दिमाग एक दम चल गया, उसे वो लड़की ख़ास पसंद नहीं थी, उससे शादी करने को तो राज़ी वो मात्र इसलिए हुआ था कि उसे कोई और मिल ही नहीं रही थी ...बहाना बना दिया कि उस लड़की से रिश्ते की वजह से माँ बाप दोनों गुज़र गए हैं सो वो मनहूस है, रिश्ता छोड़ दिया.
असल बात यह थी कि उसे अब अपना भविष्य कुछ बेहतर नज़र आने लगा था.......माँ बाप गुज़र गए, सो घर में जगह बन गई रहने को और ऊपर से घर खर्च भी घट जाना था ......अब वो ऐसी लड़की से शादी क्यों करे जो उसे पसंद नहीं थी?
अब पप्पू बिलकुल बदल गया है. वो जितना सीधा था. श्रवन पुत्तर. उतना ही टेढ़ा हो गया है. शातिर. कोई लड़की भगा लाया....पहले वाली से तो कहीं सुंदर......जिस मकान में किराए पर रहा रहा था उस पर कब्जा कर लिया......एक नेता के साथ लग जाता है. ख़ास कर चुनाव में. दारु आदि बांटने का ज़िम्मा उसका होता है.....बेटी को जुगाड़ बिठा पब्लिक स्कूल में करवा लिया है, फीस माफ़ करवा ली है.
मैं हैरान होता हूँ कभी कभी, क्या यह वो ही पप्पू है, जो कभी कोई नशा नहीं करता था, जो चुटकले सुना सुना हँसता हंसाता रहता था...जिसे छोटी छोटी चीज़ों में ही ख़ुशी हासिल हो जाती थी!
हो सकता है कि आपको पप्पू हरामी लगे....कसूरवार दिखे.......मुझे वो हमारे समाज का आइना लगता है.....आपको अपने इर्द गिर्द बहुत से लड़के- लड़कियां दिख जायेंगी जो परिवार का पूरा बोझा उठाये होते हैं और उनके माँ बाप उनकी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे होते. कारण होता दुधारू गाय का, कोल्हू के बैल का खूंटे से छूट जाने का डर.
बहुत से माँ बाप ने अपने बच्चों को पैदा ही जैसे मात्र अपने लिए किया होता है. बच्चे का शुरू से दिमाग खराब किया होता है, बड़ों की इज्ज़त करो, बड़ों का कहा मानो, बड़ों का सहारा बनो. अब पप्पू जैसे बहुत लोगों को देर -सबेर समझ आ जाता है कि यह तो मात्र बुद्धू बनाए रखने के मन्त्र हैं.
और उनको समझ आ जाता है कि माँ बाप तक ने अपने लिए उन्हें हांका है , फांसा है, झांसा है . दुनिया की हकीक़त खुल के सामने आ जाती है. ऐसे में पप्पू की तरह वो गियर बदल ले तो काहे कि हैरानी?
एक स्कूल है, पश्चिम विहार दिल्ली में, जहाँ मैं रहता हूँ, इसका पुराना नाम संत ज़ेवियर स्कूल है, अब नाम बदल गया है, स्कूल भी बहुत ऊंचे दर्जे का माना जाता है.
इसके गेट के बाहर एक तरफ श्रवण की मूर्ती लगी थी, जैसी आपने देखी होगी माँ बाप को कंधों पर उठाए. और दूसरी तरफ एकलव्य की मूर्ती थी अंगूठा काट के गुरु को देते हुए. अभी भी टूटी फूटी श्रवण वाली मूर्ती लगी है बाहर...स्कूल पूरा टूट के दुबारा बन गया, वो मूर्ती अभी भी बाहर है......यह मूर्तियाँ सारी कहानी कह देती हैं... समाज को बच्चे चाहियें श्रवण जैसे, एकलव्य जैसे.. जो माँ-बाप-गुरु के कहने पर कुर्बान हो जाएँ.
अब पप्पू जैसे बच्चों का कब दिमाग घूम जाए, कब वो पप्पू बने रहने से इनकार कर दें, कब उनको लगने लगे कि हमें बस इस्तेमाल किया जा रहा है और कब वो भी समाज को इस्तेमाल करने पर उतारू हो जाएँ, किसे पता है?
जब आप देखते हैं कि हर तरफ आपको लूटा जा रहा है, तो आपके पास भी जिंदा रहने के लिए सिवा अपने इर्द गिर्द दूसरों को लूटने के, हेराफेरियां करने के क्या चारा रह जाता है?
बदलाव "सदा इमानदार रहो", "सच बोलो", ऐसी बकवासबाजी से न आया है न आएगा. यह सिखाना ही इसीलिए पड़ता है कि हमारे समाज का ढांचा ऐसा है कि इस में सच्चा, इमानदार रहना अव्यवहारिक है....इसलिए थोपना पड़ता है ऊपर से...यदि सहज हो तो आपको सिखाना नहीं पड़ेगा...रटाना नहीं पड़ेगा....संसद की इमारत पर लिखना नहीं पड़ेगा "सत्यमेव जयते".
सदियों से तो हमने देख लिया कि हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारा साहित्य, हमारा कानून आदमी को ईमानदार नहीं बना पाया फिर भी हम मानते नहीं. यदि आपका एक ढंग एक बार असफल हो जाए, दो बार असफ़ल हो जाए...दस बार असफल हो जाए और आप उसी ढंग को प्रयोग करते रहे, करते ही रहें तो आप मूर्ख हैं.
वो किंग ब्रूस और मकड़ी की कहानी हम सब ने पढ़ी सुनी है, प्रयास करते रहना चाहिए. अब अगली कहानी पढ़िए. दो मक्खियाँ एक बार एक ठंडे कमरे में फंस गई, कमरा बंद सिर्फ एक शीशे की खिड़की ज़रा सी खुली थी. ठंड इतनी कि सुबह तक दोनों का मरना तय था. एक शीशे पर एक जगह जा बैठी और अब बार बार वहीं टक्करें मारने लगी.......दूसरी ने एक जगह शीशे को छू के देखा, फिर दूसरी जगह, फिर तीसरी जगह.......सुबह तक जानते हैं क्या हुआ? पहले वाली मक्खी वहीं मरी पड़ी थी और दूसरी वाली कमरे से बाहर हो चुकी थी. दूसरी वाली जानती थी कि प्रयास करते रहना चाहिए और ज़रुरत के मुताबिक नतीजे न आयें तो अलग तरह से प्रयास करें, एक ही तरह का प्रयास नहीं करते रहना चाहिए.
लेकिन हम मानते ही नहीं, दिल है कि मानता नहीं.........हम सदियों से वोही पुराने राग अलापते हैं...हमारे मंदिर अलापते हैं, हमारे गुरुद्वारे अलापते हैं, हमारी मस्जिदें अलापते हैं, हमारे धर्म ग्रन्थ अलापते हैं, स्कूली किताबें अलापती हैं, सुबह से शाम तक अलापती हैं. हमें समझ ही नहीं आता कि व्यक्ति अच्छा हो ही नहीं सकता जिस तरह की सामाजिक व्यवस्था है. उसे खुला छोड़ दो, वो हर तरह की बेईमानी करेगा......चोरी करेगा.....क्योंकि अभाव ग्रस्त है.....असुरक्षित है.
पप्पू के जीवन का जो अंश प्रस्तुत किया उसे यदि ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि पप्पू जो कुछ गलत कर भी रहा है तो भी गहरे में वो खुद इस सब का ज़िम्मेवार नहीं है. वो सर्वाइवल के लिए जो ज़रूरी है वो ही कर रहा है......उसे क्यों हक़ नहीं था कि वो शादी करे, उसके भी बच्चे हों, अच्छे स्कूल में पढ़ें..उसके पास भी एक गुज़ारे लायक ही सही, रहने को घर हो? वो बहन की मदद करने को आज भी तैयार रहता है, करता भी है लेकिन अपनी कुर्बानी पर नहीं, अपने परिवार की कुर्बानी पर नहीं
सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि पप्पू जैसे व्यक्तियों को जैसे ही लगता है कि उन्हें मात्र पप्पू बनाया जा रहा है तो वो दूसरों को पप्पू बनाने पर उतारू हो जाते हैं और इस तरह से समाज में एक दूसरे के साथ बेईमानी का ईविल सर्किल चलता रहता है.
मित्रवर, यदि हमें एक सुथरा समाज चाहिए तो समाज का पुनर्गठन करना होगा, सब नए सिरे से सोचना होगा......गन्ने की मशीन में सड़े गन्ने डाल डाल कब तक स्वास्थ्यकर रस की उम्मीद करते रहेंगे? ऐसे न हुआ है, न होगा. न भूतो, न भविष्यति.
सादर नमन....कॉपी राईट....चुराएं न....साँझा करें.
पिता उसके शराबी, नकारा. माँ एक गुरुद्वारे की डिस्पेंसरी में छोटी मोटी कोई नौकरी करती थी. एक जवान बहन थी उससे बड़ी और दो भाई. भाई निकम्मे. घर खर्च सारा माँ और पप्पू चलाते.
फिर माँ की नौकरी छूट गई. माँ को लकवा मार गया....सारा खर्च पप्पू चलाता रहा. बहन की शादी भी उसी ने की.
पप्पू चाहता था कि उसकी शादी हो. लेकिन कैसे हो? घर में न तो रहने की जगह अलग से और न ही उसकी कमाई इतनी कि वो अपने बीवी बच्चे भी पाल सके और माँ बाप और भाई भी.
ऊपर से उसके माँ बाप कोई दिलचस्पी न लें उसकी शादी में...लें भी तो कैसे? हालात सब सामने थे.
फिर जाने क्या हुआ पप्पू ने हिम्मत कर के खुद ही एक लड़की ढूंढी और अपना रिश्ता पक्का किया. हम भी गए उसकी सगाई पर.
बस हालात यहीं से एक दम बदल गए......जैसे ही उसने रिश्ता पक्का किया...उसके एक दो दिन में ही माँ को हार्ट अटैक हुआ और वो गुज़र गईं....उसके ठीक तीन चार दिन बाद पिता भी गुज़र गए.
पप्पू का दिमाग एक दम चल गया, उसे वो लड़की ख़ास पसंद नहीं थी, उससे शादी करने को तो राज़ी वो मात्र इसलिए हुआ था कि उसे कोई और मिल ही नहीं रही थी ...बहाना बना दिया कि उस लड़की से रिश्ते की वजह से माँ बाप दोनों गुज़र गए हैं सो वो मनहूस है, रिश्ता छोड़ दिया.
असल बात यह थी कि उसे अब अपना भविष्य कुछ बेहतर नज़र आने लगा था.......माँ बाप गुज़र गए, सो घर में जगह बन गई रहने को और ऊपर से घर खर्च भी घट जाना था ......अब वो ऐसी लड़की से शादी क्यों करे जो उसे पसंद नहीं थी?
अब पप्पू बिलकुल बदल गया है. वो जितना सीधा था. श्रवन पुत्तर. उतना ही टेढ़ा हो गया है. शातिर. कोई लड़की भगा लाया....पहले वाली से तो कहीं सुंदर......जिस मकान में किराए पर रहा रहा था उस पर कब्जा कर लिया......एक नेता के साथ लग जाता है. ख़ास कर चुनाव में. दारु आदि बांटने का ज़िम्मा उसका होता है.....बेटी को जुगाड़ बिठा पब्लिक स्कूल में करवा लिया है, फीस माफ़ करवा ली है.
मैं हैरान होता हूँ कभी कभी, क्या यह वो ही पप्पू है, जो कभी कोई नशा नहीं करता था, जो चुटकले सुना सुना हँसता हंसाता रहता था...जिसे छोटी छोटी चीज़ों में ही ख़ुशी हासिल हो जाती थी!
हो सकता है कि आपको पप्पू हरामी लगे....कसूरवार दिखे.......मुझे वो हमारे समाज का आइना लगता है.....आपको अपने इर्द गिर्द बहुत से लड़के- लड़कियां दिख जायेंगी जो परिवार का पूरा बोझा उठाये होते हैं और उनके माँ बाप उनकी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे होते. कारण होता दुधारू गाय का, कोल्हू के बैल का खूंटे से छूट जाने का डर.
बहुत से माँ बाप ने अपने बच्चों को पैदा ही जैसे मात्र अपने लिए किया होता है. बच्चे का शुरू से दिमाग खराब किया होता है, बड़ों की इज्ज़त करो, बड़ों का कहा मानो, बड़ों का सहारा बनो. अब पप्पू जैसे बहुत लोगों को देर -सबेर समझ आ जाता है कि यह तो मात्र बुद्धू बनाए रखने के मन्त्र हैं.
और उनको समझ आ जाता है कि माँ बाप तक ने अपने लिए उन्हें हांका है , फांसा है, झांसा है . दुनिया की हकीक़त खुल के सामने आ जाती है. ऐसे में पप्पू की तरह वो गियर बदल ले तो काहे कि हैरानी?
एक स्कूल है, पश्चिम विहार दिल्ली में, जहाँ मैं रहता हूँ, इसका पुराना नाम संत ज़ेवियर स्कूल है, अब नाम बदल गया है, स्कूल भी बहुत ऊंचे दर्जे का माना जाता है.
इसके गेट के बाहर एक तरफ श्रवण की मूर्ती लगी थी, जैसी आपने देखी होगी माँ बाप को कंधों पर उठाए. और दूसरी तरफ एकलव्य की मूर्ती थी अंगूठा काट के गुरु को देते हुए. अभी भी टूटी फूटी श्रवण वाली मूर्ती लगी है बाहर...स्कूल पूरा टूट के दुबारा बन गया, वो मूर्ती अभी भी बाहर है......यह मूर्तियाँ सारी कहानी कह देती हैं... समाज को बच्चे चाहियें श्रवण जैसे, एकलव्य जैसे.. जो माँ-बाप-गुरु के कहने पर कुर्बान हो जाएँ.
अब पप्पू जैसे बच्चों का कब दिमाग घूम जाए, कब वो पप्पू बने रहने से इनकार कर दें, कब उनको लगने लगे कि हमें बस इस्तेमाल किया जा रहा है और कब वो भी समाज को इस्तेमाल करने पर उतारू हो जाएँ, किसे पता है?
जब आप देखते हैं कि हर तरफ आपको लूटा जा रहा है, तो आपके पास भी जिंदा रहने के लिए सिवा अपने इर्द गिर्द दूसरों को लूटने के, हेराफेरियां करने के क्या चारा रह जाता है?
बदलाव "सदा इमानदार रहो", "सच बोलो", ऐसी बकवासबाजी से न आया है न आएगा. यह सिखाना ही इसीलिए पड़ता है कि हमारे समाज का ढांचा ऐसा है कि इस में सच्चा, इमानदार रहना अव्यवहारिक है....इसलिए थोपना पड़ता है ऊपर से...यदि सहज हो तो आपको सिखाना नहीं पड़ेगा...रटाना नहीं पड़ेगा....संसद की इमारत पर लिखना नहीं पड़ेगा "सत्यमेव जयते".
सदियों से तो हमने देख लिया कि हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारा साहित्य, हमारा कानून आदमी को ईमानदार नहीं बना पाया फिर भी हम मानते नहीं. यदि आपका एक ढंग एक बार असफल हो जाए, दो बार असफ़ल हो जाए...दस बार असफल हो जाए और आप उसी ढंग को प्रयोग करते रहे, करते ही रहें तो आप मूर्ख हैं.
वो किंग ब्रूस और मकड़ी की कहानी हम सब ने पढ़ी सुनी है, प्रयास करते रहना चाहिए. अब अगली कहानी पढ़िए. दो मक्खियाँ एक बार एक ठंडे कमरे में फंस गई, कमरा बंद सिर्फ एक शीशे की खिड़की ज़रा सी खुली थी. ठंड इतनी कि सुबह तक दोनों का मरना तय था. एक शीशे पर एक जगह जा बैठी और अब बार बार वहीं टक्करें मारने लगी.......दूसरी ने एक जगह शीशे को छू के देखा, फिर दूसरी जगह, फिर तीसरी जगह.......सुबह तक जानते हैं क्या हुआ? पहले वाली मक्खी वहीं मरी पड़ी थी और दूसरी वाली कमरे से बाहर हो चुकी थी. दूसरी वाली जानती थी कि प्रयास करते रहना चाहिए और ज़रुरत के मुताबिक नतीजे न आयें तो अलग तरह से प्रयास करें, एक ही तरह का प्रयास नहीं करते रहना चाहिए.
लेकिन हम मानते ही नहीं, दिल है कि मानता नहीं.........हम सदियों से वोही पुराने राग अलापते हैं...हमारे मंदिर अलापते हैं, हमारे गुरुद्वारे अलापते हैं, हमारी मस्जिदें अलापते हैं, हमारे धर्म ग्रन्थ अलापते हैं, स्कूली किताबें अलापती हैं, सुबह से शाम तक अलापती हैं. हमें समझ ही नहीं आता कि व्यक्ति अच्छा हो ही नहीं सकता जिस तरह की सामाजिक व्यवस्था है. उसे खुला छोड़ दो, वो हर तरह की बेईमानी करेगा......चोरी करेगा.....क्योंकि अभाव ग्रस्त है.....असुरक्षित है.
पप्पू के जीवन का जो अंश प्रस्तुत किया उसे यदि ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि पप्पू जो कुछ गलत कर भी रहा है तो भी गहरे में वो खुद इस सब का ज़िम्मेवार नहीं है. वो सर्वाइवल के लिए जो ज़रूरी है वो ही कर रहा है......उसे क्यों हक़ नहीं था कि वो शादी करे, उसके भी बच्चे हों, अच्छे स्कूल में पढ़ें..उसके पास भी एक गुज़ारे लायक ही सही, रहने को घर हो? वो बहन की मदद करने को आज भी तैयार रहता है, करता भी है लेकिन अपनी कुर्बानी पर नहीं, अपने परिवार की कुर्बानी पर नहीं
सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि पप्पू जैसे व्यक्तियों को जैसे ही लगता है कि उन्हें मात्र पप्पू बनाया जा रहा है तो वो दूसरों को पप्पू बनाने पर उतारू हो जाते हैं और इस तरह से समाज में एक दूसरे के साथ बेईमानी का ईविल सर्किल चलता रहता है.
मित्रवर, यदि हमें एक सुथरा समाज चाहिए तो समाज का पुनर्गठन करना होगा, सब नए सिरे से सोचना होगा......गन्ने की मशीन में सड़े गन्ने डाल डाल कब तक स्वास्थ्यकर रस की उम्मीद करते रहेंगे? ऐसे न हुआ है, न होगा. न भूतो, न भविष्यति.
सादर नमन....कॉपी राईट....चुराएं न....साँझा करें.
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