Wednesday, 20 February 2019

!!!! सावधान !!!!

सुना है भारत -पाक सीमा पर तनाव बढ़ गया है, दोनों तरफ से मूंछों पर ताव दिया जा रहा है, जवान मारे जा रहे हैं, कोई मित्र कह रहे हैं कि टमाटर के बढे भाव की शिकायत मत करो, मोदी को बस पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगाने दो.......टमाटर के भाव की शिकायत करने वाली कौमें क्या जवाब देंगी जंगी हमलों का.......... एक दम बकवास निरथर्क तर्क हैं, आपने डिफेन्स मिनिस्ट्री सुनी होंगी, कभी अटैक मिनिस्ट्री सुनी हैं...अब सब यदि डिफेन्स ही करते हैं तो अटैक क्या इनके भूत करते हैं? असल बात यह है कि झगड़ा आम पब्लिक का तो होता ही नही आम पब्लिक तो बेचारी अपने दाल रोटी से ही नहीं निबट पाती, जालंधर में रिक्शा चलाने वाला बेचारा क्यों मारेगा, लाहौर में ठेले वाले को कराची के दिहाड़ी मज़दूर का असल दुश्मन उसकी गरीबी है न कि पंजाब का खेत मजदूर झगड़ा किसका है फिर? झगड़ा तो इन बड़े लोगों का है भाई, बड़ी मूंछ वालों का, बड़े पेट वालों का, बड़ी तिजोरी वालों का... सिर्फ अपने वर्चस्व को बढ़ाने की हवस है......पब्लिक का ध्यान बटाने का टूल है....... जंग इनके लिए......... सावधान!! सियासती चाहता है कि वहां की जनता असल मुद्दे कभी न सुलटे, सुलट गए तो वो खुद भी सुलट जाएगा....और जंग ताकत देती है मौजूदा सियासती को, वो दुश्मन का डर दिखा पूरी ताकत हथिया लेता है.... सो यह जो पाकिस्तान को फ़ौजी जवाब दिया जा रहा है, वो तो ठीक है...लेकिन ज्यादा ज़रूरी यह है कि जंग को ही जवाब दे दिया जाए.....पाकिस्तान के आवाम को मेसेज दिया जाए कि जंग नही होनी चाहिए, वहां के आवाम-वहां के लेखक-वहां के सोचने-समझने वाले लोगों को मेसेज दिया जाए कि वहां की सरकार पर दबाव बनाएं, पब्लिक ओपिनियन बनाएं, जंग नही होनी चाहिए.......पूरी दुनिया में ओपिनियन बनाई जाए कि जंग नही होनी चाहिए....किसी भी तरह का कत्ल-ए-आम नही होना चाहिए........लगातार कोशिश करें.. लेकिन करेगा कौन?.....सरकारों से उम्मीद कम है, सो हम, हम जो बेचारी जनता हैं, हमें प्रयास करना होगा......लेकिन यहाँ तो देखता हूँ, लगभग सब शिकार हैं नकली देशभक्ती के, शिकार हैं राजनेता के......तो मित्रवर जागें, और पहचाने असली दुश्मन कौन है, उससे लड़ें न कि बेवकूफ बनें सीमा पर कोई जवान मरेगा, तो सरकारी अमला सलाम ठोकेगा उसकी लाश को, शायद उसे कोई तगमा भी दे दे मरणोंपरांत, हो सकता है उसके परिवार को कोई पेट्रोल पंप दे दे या फिर कोई और सुविधा दे दे. शहीदों को सलाम. नमन. किसी दिन कूड़ा उठाने वाली निगम की गाड़ी न आई हो तो झट से कूड़े को ढक दिया जाता है, बहुत अच्छे से, ताकि बदबू का ज़र्रा भी बाहर न आ सके. यह शहीदों का सम्मान-इनाम-इकराम सब वो ढक्कन है जो संस्कृति के नाम पर खड़ी की गई विकृति की बदबू को बाहर नहीं फैलने देता. "ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुरबानी." शहीद! वतन के लिए मर मिटने वाला जवान!! गौरवशाली व्यक्तित्व!!! है न? गलत. कुछ नहीं है ऐसा. जीवन किसे नहीं प्यारा? अगर जीवन जीने लायक हो तो कौन नहीं जीना चाहेगा? जो न जीना चाहे उसका दिमाग खराब होगा. और यही किया जाता है. दिमाग खराब. वतन के लिए शहीद हो जाओ. असल में तुम्हारे सब शहीद बेचारे गरीब हैं, जिनके पास कोई और चारा ही नहीं था जीवन जीने का इसके अलावा कि वो खुद को बलि का बकरा बनने के लिए पेश कर दें. एक मोटा 150 किलो का निकम्मा सा आदमी फौज में भर्ती होता है और जी जान से देश सेवा करता है। जी हाँ, शहीद होकर, वो और कुछ नहीं कर पाता लेकिन दुश्मन की एक गोली जरूर कम कर देता है. तुमने-तुम्हारी तथा-कथित महान संस्कृति ने उन गरीबों के लिए कोई और आप्शन छोड़ा ही नहीं था सिवा इसके कि वो लेफ्ट-राईट करें और जब हुक्म दिया जाए तो रोबोट की तरह कत्ल करें और कत्ल हो जायें. बस. तो अगली बार जब कोई जवान शहीद हो और उसे सम्मान दिया जाए तो कूड़े-दान के ऊपर पड़े ढक्कन को याद कीजियेगा. कितने जवान अमीरों के, बड़े राजनेताओं के बच्चे होते हैं, कितने प्रतिशत, जो फ़ौज में भर्ती होते हों, जंग में सरहद पर लड़ते हों...शहीद होते हैं? नगण्य यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको अम्बानी, अदानी, टाटा, बिरला आदि के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते? यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको गांधी परिवार के बच्चे, भाजपा के बड़े नेताओं के बच्चे या किसी भी और दल के बड़े नेताओं के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते? नहीं, इस तरह से शहीद होना कोई गौरव की बात नहीं है असल में यदि सब लोग फ़ौज में भर्ती होने से ही इनकार कर दें तो सब सरहदें अपने खत्म हो जायेंगी सारी दुनिया एक हो जायेगी लेकिन चालाक लोग, ये अमीर, ये नेता कभी ऐसा होने नहीं देंगे, ये शहीद को Glorify करते रहेंगे, उनकी लाशों को फूलों से ढांपते रहेंगे, उनकी मूर्तियाँ बनवाते रहेंगे और खुद को और अपने परिवार को और अपने बच्चों को AC कमरों में सुरक्षित रखेंगे समझ लें, असली दुश्मन कौन है, असली दुश्मन सरहद पार नहीं है, असली दुश्मन आपका अपना अमीर है, आपका अपना सियासतदान है वो कभी आपको गरीबी से उठने ही नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को वो कभी आपको असल मुद्दे समझ आने नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को लेकिन यहाँ सब असल मुद्दे गौण हो जाते हैं, बकवास मुद्दों से भरा पड़ा सारा अखबार, सारा संसार और यह भी साज़िश है, साज़िश है इन्ही लोगों की है अभी अभी एक अंग्रेज़ी फिल्म देखी थी हंगर गेम्स, उसमें टीचर अपनी शिष्या को समझाता है कि हर दम ध्यान रखो, असली दुश्मन कौन है क्योंकि असली दुश्मन बहुत से नकली दुश्मन पेश करता है और खुद पीछे छुप जाता है इनके . सावधान. मेरा भी आपसे यही कहना है कि ध्यान रखें असली दुश्मन कौन है. "इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें गरीब ही रहें, तभी तो कमअक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो गटर साफ़ करेंगे गरीब ही रहें, तभी तो फ़ौजी बन मरेंगे गरीब ही रहें, तभी तो जेहादी बनेंगे इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें और सब शामिल हैं सियासत शामिल है कारोबार शामिल है तालीम शामिल है मन्दिर शामिल है मस्जिद शामिल है इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें कब कोई बच्चा गरीब पैदा होता है कब कोई कुदरती फर्क होता है इक सारी उम्र एश करे दूजा घुटने रगड़ रगड़ मरे इक सवार, दूजा सवारी इक मजदूर, दूजा व्योपारी इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें" अब तुम भी जागो. विचारों. अक्ल का घोडा दौड़ाओ. कोई ठेका नहीं लिया कुछ चुनिन्दा लोगों ने शहीद होने का. तुम तो अपने बकवास सदियों पुराने विचार शहीद करने को तैयार नहीं ....ज़रा सी चोट पड़ते ही....लगते हो चिल्लाने ...लगते हो बकबकाने...गालियाँ देने. और दूसरे कोई लोग होने चाहिए जो अपने आप को शहीद करें और तुम पूजोगे बाद में अपने शहीदों को. तुम उनकी मूर्तियाँ बना के पूजा करने का नाटक करते रहोगे. नहीं, कुछ न होगा ऐसे ...ये सब नहीं चलना चाहिए........तुम्हे बलि देनी होगी अपने विचारों की.....तुम्हें शहीद करना होगा अपनी सड़ी गली मान्यताओं को. कोई फायदा न होगा व्यक्ति शहीद करने से. फायदा होगा विचार शहीद करने से...फायदा होगा समाज की, हम सब की कलेक्टिव सोच ..जो सोच कम है अंध विश्वास ज़्यादा...उस सोच पे चोट करने से...फायदा होगा इस अंट शंट सोच को छिन्न भिन्न करने से. फायदा होगा धर्म के नाम पे, राजनीती के नाम पे, कौम के नाम पे, राष्ट्र के नाम पे और नाना प्रकार के विभिन्न नामों पे जो वायरस इंसानों में, आप में , मुझ में, हम सब में पीढी दर पीढी ठूंसे गए हैं, उन वायरस के विरुद्ध जंग छेड़ने से. फायदा होगा विचार युद्ध छेड़ने से....फायदा होगा तर्क युद्ध छेड़ने से...फायदा होगा जब यह युद्ध गली गली, नुक्कड़ नुक्कड़ छेड़ा जाएगा. नमन....तुषार कॉस्मिक

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