पञ्च तत्व....हवा, पानी, मिट्टी, अग्नि, आकाश...
हवा---यदि हवा शुद्ध न हो, पूर्ण न मिले तो इन्सान बीमार... इलाज है....गहरी सांस, ताकि ऑक्सीजन मिले ज्यादा और कार्बन-डाई-ऑक्साइड हो बाहर ज़्यादा... यानि किया जाये शुद्ध हवा में प्राणायाम.
पानी--पानी पीयें खूब...लेकिन सिर्फ पानी.... चाय, काफी, कोल्ड-ड्रिंक नहीं.....नीबूं पानी भी चलेगा.
मिटटी--मिटटी से मतलब....हम जो अनाज और फल-सब्जी खा रहे हैं वो मिटटी का ही रूप है..... है उसमें जल भी, हवा भी.....लेकिन ज्यादा मिटटी का ही रूप है....अब मिटटी जाये तन में लेकिन शुद्ध रूप में...सो हो सके तो कच्चा खाएं... जो भी हो सके.
अग्नि....अग्नि से मतलब रसोई की अग्नि से बचें, जहाँ तक हो सके सूरज की अग्नि का प्रयोग करें...धूप में रहें, कुछ समय ज़रूर-गर्मी हो चाहे सर्दी.....और सूरज की अग्नि से पके फल और सब्जियां खाएं-पीयें.
और आकाश.....तो आकाश को निहारें.....पतंग उड़ायें या उड़ती पतंग देखें...रात को तारे देखें...चाँद देखें.....और आकाश को निहारते हुए भीतर के आकाश में उतर जायें....मतलब ध्यान पर ध्यान करते हुए.....आकाश-मय हो जायें...स्वस्थ हो जायें.
तुषार कॉस्मिक
तुषार कॉस्मिक
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