कोरोना है करुणा। सामाजिक विकृतियों का इलाज है। Corona is a Bliss. Corona is Cure of social Disbalance......
लॉकडाउन (Lockdown/ Quarantine) तो ठीक है. चला लीजिये छह महीने. लेकिन गरीब और मध्यम वर्गीय तबके का क्या होगा? उनको खाना-दाना कौन देगा? उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी? वीडियो देखिये और समझिये वो, जो कोई नहीं बोल रहा, हल जिसे कोई नहीं सुझा रहा.
प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन के आदेश दिया. लेकिन उस आदेश के साथ उनको बहुत कुछ और आदेश नहीं दिए जो की उनको देने चाहिए थे.
मैं आपको एक-एक कर के बता रहा हूँ और वो आदेश उनको क्यों देने चाहिए थे यह भी बताऊंगा.
कोरोना का शोर शराबा जब तक है तब तक यदि किसी के घर या दूकान का किराया पंद्रह हज़ार रुपये तक है तो उसे वो किराया देने से छूट मिलनी चाहिए थी.
बस ट्रैन का किराया माफ़ करना चाहिए था.
स्कूल कॉलेज की फीस माफ़ होनी चाहियें.
जितना आपका एवरेज बिल आता है, कम से कम उतना बिजली पानी का बिल माफ़ होना चाहिए.
जिस किसी ने कैसे भी पैसा उधार लिया हो, चाहे सोना रखकर चाहे घर रख कर, अगर उसका ब्याज पंद्रह हज़ार रुपये माह तक का है तो वो ब्याज माफ़ होना चाहिए था.
गाड़ी, घर की EMI पोस्टपोन कर देनी चाहिए थी, जब तक कोरोना का हो हल्ला शांत नहीं होता. .
और
जिन लोगों ने व्यक्तिगत प्रयोग हेतु कार रखी हैं, उनको छोड़ कर बाकी सब को प्रति व्यक्ति गृह खर्चे के लिए कम से कम सात हज़ार रुपये महीना देना चाहिए थे.
यह सब मैं सिर्फ उनके लिए कह रहा हूँ जिनकी आमदनी इस लॉक-डाउन में लॉक हो गयी है.
जिनको इस समय में भी कहीं से सैलरी मिल रही है या ब्याज आ रहा है या फिर कोई और आमदनी आ रही है, उनके लिए यह सब बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिए.
और यह सब उस क्ष्रेणी के लिए तो बिलकुल नहीं है जो अमीर है, सुपर रिच है. न...न. वो तो यह सब खर्चा वहां करेंगे.
सीधा सा सवाल है कि यह सब देगा कौन? तो यही अमीर वर्ग देगा.
जो रिच है, जो सुपर रिच है उससे छीना जायेगा. आप कहेंगे कि यह कैसे संभव है?
तो मेरा जवाब है कि यह सब बहुत आसानी से संभव है. सिर्फ आपको समझ आ जाये कि यह संभव है तो यह संभव है.
मैं एक मिसाल से समझाता हूँ.
सोना ज़्यादा कीमती है या लोहा?
सोना. जवाब होगा.
लेकिन काम क्या ज़्यादा आता है. लोहा.
तो फिर जो चीज़ कुछ ख़ास काम ही नहीं आती उसे क्यों इतना कीमती माना है?
वो सिर्फ इसलिए चूँकि हमने ऐसा माना है.
यदि इंसान सोने को कीमती मानना छोड़ दे तो फिर सोना कीमती रहेगा क्या लोहे के मुकाबले में?
नहीं न?
तो यह है ताकत मानने की.
तुमने मान रखा है कि एक आदमी अमीर रखा जा सकता है, बहुत अमीर और दूजे को भिखारी रखा जा सकता है.
तुमने मान रखा है बस. वरना कुदरत थोड़ा न किसी को अमीर गरीब पैदा करती है.
कोई बच्चा गरीब पैदा नहीं होता. सब एक जैसे पैदा होते हैं.
सबको दो हाथ, दो पैर, दो कान मिलते हैं.
ठीक है दो कानों के बीच दिमाग सबके अलग हैं लेकिन यह भी तो समझिये कि जो भी इस धरती पर आता है उसे खाने, पीने, रहने का हक़ है.
कौन जानवर किराया देता है इंसान के अलावा? अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम.
मतलब पागलों की तरह कौन चाकरी करता है? सिर्फ काम ही काम कौन करता है? सुबह से शाम तक काम ही काम कौन करता है?
ऐसा सिर्फ इडियट इंसान करता है.
असल में जो कुछ भी जीवन के लिए बहुत ज़रूरी हैं, वो सब लगभग मुफ्त होना चाहिए या फिर बहुत थोड़े प्रयास से मिलना चाहिए. यह सब संभव है. बिलकुल संभव है.
हमने कानून बनाया न कि कोई कितना ही अमीर हो उसे एक से ज़्यादा बीवी या एक से ज़्यादा पति नहीं मिल सकते. बनाया न कानून?
इसी तरह से हम कानून बना सकते हैं कि एक सीमा के बाद पैसा पब्लिक डोमेन में आ जायेगा, चाहे किसी का भी हो.
एस करते ही आपको सुपर रिच नहीं दिखेंगे. और आपको अथाह गरीब नहीं दिखेंगे.
मैं हैरान होता हूँ कि गरीबी रेखा से नीचे भी कोई होता है. तो फिर वो होता ही क्यों है भाई?
कत्ल कर दो न उसे.
यह तुम्हे अमानवीय लगता है?
तो फिर उसे इत्ता गरीब क्यों रखा है?
तो यह मौका है अमीर, बेइंतेहा अमीर से पैसा छीनने का और ज़रूरतमंद को देने का.
मौका है और दस्तूर न भी तो बनाया जा सकता है ......
यह मौका है यह सोचने का कि क्या हमने जो संस्कृति बनाई है, वो संस्कृति है?
तीन शब्द हैं. प्रकृति..संस्कृति...विकृति
इंसान को फ्रीडम है.
वो प्रकृति से ऊपर उठ सकता है. वो प्रकृति से नीचे भी गिर सकता है.
ऊपर उठा तो संस्कृति...
नीच गिरा तो विकृति.
तो जो समाज बनाया है हमने, जिसमें गरीब बड़े शहर छोड़ हज़ारों किलोमीटर पैदल ही चल पड़े, भूखे-प्यासे चल पड़े हों, इस समाज को संस्कृति कह सकते हैं?
यह सिर्फ और सिर्फ विकृति है.
संस्कृति तो ऐसी कृति को कहते हैं जिसमें कुछ बैलेंस हो, कुछ सौंदर्य हो. कुछ समन्वयता हो.
जो कृति टेडी-मेढ़ी हो उसे संस्कृति कैसे कहेंगे?
जिस संस्कृति में कोई बहुत अमीर और कोई बहुत बहुत गरीब हो, उसे संस्कृति कैसे कहेंगे?
यह मौका है कि समझने का कि समाज के बड़े हिस्से को अथाह गरीब रखने का दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ सकता है.
यह मौका है गहन अध्ययन करने का, ब्रेन स्टॉर्मिंग का कि गरीबी अमीरी के बड़े फासले को काम कैसे किया जा सकता है?
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह अमीरी को, अथाह गरीबी को कैसे सीमित किया जाए.
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह आबादी को कैसे सीमित किया जाए.
यह मौका है सोचने का कि सामजिक फासलों कैसे कम किया जाये?
वकती दिक्क्तें, इमीडियेट खड़ी समस्याएं आपको मौका दे रही हैं, सदा सदा से मौजूद समस्यायों को हल करने का.
कोरोना ने इंसान के दूषित किये नदी नाले, हवा पानी ही साफ़ नहीं किया, समाजिक डिस-बैलेंस, विकृत समाज को भी सही करने का मौका दिया है.
आप भी सोच कर देखिये.
वीडियो देखने के धन्यवाद, जहा भी देख रहे हों, जिस भी प्लाटफॉर्म पर कमेंट ज़रूर कीजिये शेयर ज़रूर कीजिये और अपनी राय के साथ शेयर कीजिये.,
नमस्कार
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