कल से खबर तैर रही है वो यह है कि इंग्लैंड में कोई रेस्टॉरेंट था, जिसके खाने में मानव मल पाया गया और इसे खा कर कई लोग बीमार हो गए. मूल बात इस रेस्त्रां के मालिक दो मुस्लिम थे, पकड़े गए और इनको सज़ा भी मिली. मैंने देखा बीबीसी की साइट पर है. खबर पुराणी है. २०१५ की. अभी क्यों ऊपर आई. सिम्पल चूँकि भारत में कई वीडियो आए जिनमें मुस्लिम सब्ज़ी-फल पर थूकते दिख रहे हैं. कुछ विडियो सच्चे कहे जा रहे हैं, कुछ झूठे.
अब आप इस वीडियो देखें.
देखा आपने? मुस्लिम सब्ज़ी विक्रेता डेप्युटी CM को ज्ञापन दे रहे हैं कि लोग उनके मुस्लिम होने की वजह से उनसे सब्ज़ी नहीं खरीद रहे.
मैं कुछ पॉइंट रख रहा हूँ, आप सोचें, विचारें कि बात कहाँ तक सही है.
जिस ने पैसे खर्च करने है, क्या उसका कानूनी अधिकार नहीं कि वो जाने कि उसने कहाँ खर्च करने हैं कहाँ नहीं?
क्या उसका अधिकार नहीं कि वो जाने कि उसने किसे बिज़नेस देना है किसे नहीं?
क्या आपको पता नहीं होना चाहिए कि किस से डील करना है किस से नहीं?
क्या होटल में रुकने से पहले हमारी ID नहीं मांगी जाती?
मैं प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. किराए पर अपना घर देने से पहले मालिक सब पूछते हैं, किरायेदार जाट है, सिक्ख है, मुस्लिम है, पुलिस वाला है, वकील है कौन है? फिर तय करते हैं कि मकान दिखाना भी है कि नहीं. फिर किरायेदार की बाकायदा पुलिस वेरिफिकेशन होती है. यह बहुत पहले नहीं होता था. लेकिन जब कुछ अपराध हुए, आतंकवादी घटनाएं हुईं तो mandatory कर दिया गया.
यहाँ दिल्ली में जो सोसाइटी फ्लैट हैं, वहां हरेक को थोडा न घुसने दिया जाता है अंदर। गेट-कीपर रजिस्टर में हमारी जन्म कुंडली लिखवाता है. फोन नम्बर लिखवाता है. कौन आ रहा है अंदर। क्या गलत करता है?
तो अब अगर सब्ज़ी-फल बेचने वाले की ID माँगी जा रही है तो क्या गलत है? वो तो हिन्दू-मुस्लिम एंगल से न भी किया जाए, तो भी करना चाहिए ताकि कल यदि कोई और तरह का क्राइम हो जाए तो पूछ-ताछ करने में मदद मिले। हर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के पास रेहड़ी पटड़ी वालों का नाम पता ठिकाना होना ही चाहिए। क्या बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार किया जायेगा?
क्या खाने की आइटम पर हरा और लाल निशान नहीं लगाया जाता ताकि खाने वाले को पता रहे कि खाना वेज है या नहीं? क्या दुनिया भर में हलाल का निशान खाने पर नहीं होता?
क्या मुस्लिम ऐसा मीट खा लेगा जो हलाल न हो? झटका मीट खा लेगा क्या मुस्लिम? नहीं खायेगा। तो जब वो झटका खाने से इनकार करता है तो क्या हम यह कहें कि वो नफरत फैला रहा है? तो गैर-मुस्लिम को भी हक़ नहीं कि वो तय कर सके कि उसे किससे फल-सब्ज़ी-मीट-भोजन खरीदना है नहीं खरीदना? यह नफरत फैलाना कैसे हो सकता है?
जैसे मांस न खाने वालों के लिए पैक्ड आइटम पर हरा गोल चिन्ह लगा होता है ऐसे ही जिनको हलाल आइटम न प्रयोग करना हो तो उनके लिए भी कोई निशान होना चाहिए, जिससे पता लगे कि आइटम हलाल नहीं है. इसके लिए तमाम गैर-मुस्लिम समाज को मिल कर प्रयास करना चाहिए
मैं नहीं कह रहा कि आप किस से सब्ज़ी लें न लें. किसे किराए पर घर दें न दें. कौन सी आइटम खाएं न खाएं. वो सब आपका अपना फैसला होना चाहिए. मैं बस आइडेंटिफिकेशन हो न हो इस पर विचार पेश कर रहा हूँ.
बाकी आप मुद्दे के तमाम पहलु कानूनी, सामाजिक, व्यवहारिक पहलु सोचें, विचारें. कमेंट करें, अगर विडियो पसंद आया तो LIKE करें और शेयर करें, अपनी व्यक्तिगत राय के साथ शेयर करें. और मेरा प्रयास है कि हर विडियो में कुछ विचार करने के लिए दिया जाए. सो मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर आते रहिये। बाकी विडियो भी देखते रहिये।
नमस्कार
No comments:
Post a Comment