लॉकडाउन बढ़ते ही मुंबई बांद्रा में इकट्ठे हुये मज़दूर. आख़िर प्र्वासी मज़दूर जाए तो जाए कहाँ?

सुबह मंगलवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की और शाम को बांद्रा में प्रवासी मज़दूरों की भीड़ इकट्ठा हो गई. कुछ दिन पहले इसी तरह के सीन दिल्ली के आनंद विहार में देखने को मिले थे. कोरोना वायरस के दौर में ये भीड़ कितनी ख़तरनाक हो सकती है, देखने का है। मज़दूर जाए तो जाए कहाँ? कोरोना से मरे या फिर भूख से, बस यही सवाल है? लॉक डाउन ज़रूरी है , बहुत ज़रूरी है. ठीक है सरकार जी, रखिये, रखिये,   हमें क्या है? साल भर रखिये,
लेकिन  हमें खाना-दाना देते रहिये, 
दवा दारु का खर्च देते रखिये, 
हमारे बच्चों की फीस देते रखिये. 
बिजली पानी के बिल, फोन इंटरनेट का बिल देते रखिये. 
हमारे तमाम खर्चे भरते रहिये  बस. हम आम लोग हैं बई. 
अमीर का क्या है? उसे दस साल लॉक-डाउन में रोक लो.

ठीक है सरकार जी, तो मान रहे हैं न आप?

ठीक है ओये  सरकार जी मान जाएंगी . अब तुम मत इकट्ठ  जमा करना न आनदं  विहार, दिल्ली में और न बांद्रा मुंबई में. और न ही कहीं और।  
ठीक? राइट? 


जी सरकार जी, आम आदमी राइट बोल रिया है।  सुन लीजिये बस.

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