गली में कल कीर्तन था. कीर्तन क्या था "क्रंदन" था. रोना-पीटना था. इत्ती भद्दी, गला फाड़ आवाज़, ऊपर से लाउड-स्पीकर. पूरी गली को चार-पांच घंटे नरक बना दिया.
"कमली वाला मेरा यार है...". गा रही बाइयाँ. पति के सामने गाये तो सर पीट ले. बता इस का तो यार है. "कमली वाला". और खुल्ले में इज़हार है. कल्लो क्या करोगे?"आ जा...... आ जा, अम्बे रानी आ जा. शेरों वाली आ जा. पहाड़ों वाली आ जा."
शेरों वाली ऐसे बेसुरे आह्वान सुन कर शेर को वापिस पहाड़ों की तरफ ले जाएगी. तुम्हारे पास कभी नहीं आएगी.
शिव जी महाराज तांडव करने लगेंगे. उन का तीसरा नेत्र खुल जायेगा. कृष्ण जी, जंगलों में चले जाएंगे.
बात क्यों नहीं समझती अम्मा? जब हमारे जैसे नश्वर प्राणी तुम्हारी चीख चिल्लाहट बर्दाश्त नहीं कर सकते तो भोले बाबा कैसे करेंगे? कृष्ण कन्हैया, गोपाल, गोपाल जी की गौ कैसे करेंगी?
शेरों वाली का शेर भड़क गया तो कहीं तुम्हें ही न खा जाये. इसलिए रहम करो .. ....................खुद पे.
नर्क में पड़ोगी, पकौड़े तले जाएंगे तुम्हारे, कोई खायेगा भी नहीं इतने ही बेसुरे, मेरा मतलब बेस्वाद होंगे जितना तुम्हारा गायन.
और यह रुदन बंद करो. "काले रंग पे मोरनी रुदन करे..." मोरनी तो पता नहीं रुदन करती है या नहीं तुम ज़रूर करती हो सब बाइयाँ मिल कर.
क्या बवाल काटती हैं यार ये माइयाँ इन कीर्तनों में? तौबा!
एक फिल्म आई थी "रुदाली". कोई मर जाता था तो भाड़े की रुदन करने वाली बुलाई जाती थी. मतलब जिन का भाई-बंद मरा उन को तो रोना आ नहीं रहा तो किराये की रोने वाली रोती थीं, रुदन करती थीं. रुदाली.
यहाँ किराए की भगवान जी को प्रसन्न करने वाली बुलाई जाती हैं. ऐसे में भगवान जी ज़रूर आएंगे? उन को तो जैसे पता ही नहीं कि हो क्या रहा है. नहीं?
बड़ी बिटिया कह रही थीं, पापा यह रेचन का तरीका है. इस तरह से ये लोग अपना गुब्बार निकाल लेती हैं. हाँ, वो गुब्बार अब दूसरों पर क्या इमपैक्ट डालता है उस की इन को क्या चिंता.
अबे, बच्चे भी समझते हैं माता कि तुम कर क्या रही हो. भंते, अब तो बाज आ जाओ.
खूब हो-हल्ला. कीर्तन से दुखी मोहल्ला. तेज़ लाउड स्पीकर लगा कर फटी आवाज़ में क्रन्दन रूपी कीर्तन करने वाली बाईयां जान लें, अगर भगवान कहीं होगा भी तो तुम्हारी आवाज़ से बचने के लिए छुप जाएगा कहीं जंगलों में, कन्दराओं में, समन्दरों में. और निश्चित जानो कि तुम्हारे लिए नरक के भयंकर अग्नि-कुण्ड तैयार हैं.
दूसरी घटना कहूँ, या दुर्घटना जो कल हुई, मिलती-जुलती है.
किसी श्रीमान जी ने बुलाया था. घर के पास वाले मंदिर में शाम का भजन-कीर्तन रखा था. श्रीमती जी को ही भेजा.
पंद्रह मिनट बाद ही कॉल आ गया, "मुझे ले जाओ, मेरी तबियत खराब हो रही है."
मैंने कहा, "क्या हुआ?"
बोली, "बहुत तेज आवाज है. मंदिर के अंदर ही तेज लाउड स्पीकर लगा रखे हैं. मेरा दिमाग फट रहा है."
"तुरत के तुरत बाहर आ जाओ, मैं आता हूँ लेने." मैंने कहा.
मैं भगा-भगा पहुंचा. देखा तो श्रीमती जी के चेहरे पे हवाईयां उड़ रहीं थीं. संभाला. घर लाया.
बड़ी बिटिया ने डांटा, "आप पहले ही क्यों मंदिर से बाहर नहीं आईं? मत्था टेकती, शक्ल दिखातीं और बाहर आ जातीं."
खैर, बड़ी देर में श्रीमती जी संभलीं.
Moral:- जैसे-तैसे तो लिखा है. अब मोरल भी हम ही निकालें. न. हम से न होगा. खुद्दे ही निकालो मोरल. अब इत्ती सी मेहनत तो करो. नमस्ते.
Tushar Cosmic
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