सोशल मीडिया और उल्लू के ठप्पे लोग

सोशल मीडिया ने सब को अपनी बात-बकवास कहने का मंच दिया है.

कोई सुबह शाम गुड मोर्निंग, गुड इवनिंग कर रहे हैं.

कोई होली दीवाली, ईद-बकरीद की बधाई दे रहे हैं.

कोई उधार की सूक्तियां आगे पेलने को ही महान ज्ञान समझ रहे हैं.

कोई सिर्फ अपना धार्मिक या राजनीतिक एजेंडा ही पेले जा रहे हैं.

कोई अपनी भोंडी आवाज़ के साथ बेसुरे गायन को karaoke पर गाये जा रहे हैं.

कोई गाने पर हेरोइन जैसी सिर्फ़ भाव-भंगिमा दिखा के एक्टर बनने का शौक पूरा किये जा रही हैं.

ये सब सस्ते तरीके हैं. इन से आप को कोई नाम-दाम मिलने से रहा. और गलती से दो-चार दिन के लिए आप मशहूर हो भी गए तो वापिस गुमनाम होने में भी देर नहीं लगेगी."सेल्फी मैंने ले ली आज " वाली ढीन्ठक पूजा कितने लोगों को याद है आज?

कुल जमा मतलब यह कि कचरा लोग सोशल मीडिया पर कचरा ही फैला रहे हैं.

अबे, कुछ क्रिएटिविटी लाओ, कुछ बुद्धि लगाओ, कोई कला पैदा करो पहले. फिर आना सोशल मीडिया पर. वरना सीखो. सोशल मीडिया बहुत कुछ सिखाता भी है. सीखो पहले.

याद रहे, तुम्हारा कूड़ा दूसरों को साफ़ करने में भी मेहनत लगती है. होली दीवाली के अगले दिन जैसे गलियों में गन्दगी बढ़ जाती है, ऐसे ही फोन और कंप्यूटर पर भी कूड़ा बढ़ जाता है, जिसे डिलीट करना अपने आप में समय खाऊ काम होता है.
कूड़ा मत बढ़ाओ.

तुषार कॉस्मिक

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