Friday 22 May 2020

मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना




जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा

कहाँ कोई इंसान रहेगा

कब तक सदियों पुरानी लाशें ढोयेंगे

कब तक मरे अलफ़ाज़ में ज़िन्दगी खोयेंगे

कब तक गिरवी रखेंगे अक्ल

कब तक खोयेंगे असली शक्ल

कब तक बूढों के जाल में गवाएंगे रवानी

कब तक  पुरखों के जंजाल में फसायेंगे जवानी

मरी इमारतों में कब तक ज़िन्दा इंसान दफन करेंगे

जिंदा इंसानों में कब तक मरी इमारते दफन करेंगे

कब तक करेंगे बच्चों के कपड़ों को कफ़न

कब तक करेंगे जवानी को, रवानी को दफन

न  कोई ज़बरदस्ती, न कोई ज़िद

मैं तोडू मंदिर, तुम तोड़ो मस्ज़िद

जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा

कहाँ कोई इंसान रहेगा

 हिन्दू, मुस्लिम, सिख इसाई, आपस में सब भाई भाई

भाई भाई तो फिर क्यों हैं हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई

जब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे

बारूद की दूकान बने रहोगे

सियासत ...लगाएगी इक तिल्ली

उड़ाएगी तुम्हारी अक्ल की खिल्ली

कब आएगी तुम को अक्ल

कब पहचानोगे अपनी शक्ल

तुम न हिन्दू हों, न मुसलमान हो

तुम, तुम बस इंसान हो

बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो

खुद अल्लाह हो, भगवान हो

उतार फेंको यह हिन्दू मुसलमान का जूआ

क्या कभी कोई बच्चा गुलाम पैदा हुआ

आज़ाद तुम पैदा हुए थे, आज़ाद हो जाओ

मौलवी पंडित के पिंजरे से परवाज़ हो जाओ

जिन्हें खैर ख्वाह मानते हो,शैतान हैं

खूनी हैं, दरिन्दे हैं, हैवान हैं,

कब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे

बारूद की दूकान बने रहोगे

पहचानो, तुम बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो

तुम खुद अल्लाह हो, भगवान हो

पिंजर के पिंजरे को छोड़ने से पहले, आज़ाद हो जाओ

परवाज़ हो जाओ...परवाज़ हो जाओ......परवाज़ हो जाओ

पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं

हर गली, हर मोहल्ला, हर बाज़ार मिलतें हैं

रोम, काबा, हरिद्वार मिलतें हैं

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वार मिलतें हैं

ईद, दिवाली,क्रिसमस, हर त्यौहार मिलतें हैं

गले मिल, गला काटने को, मेरे यार मिलतें हैं

इक बार, दो बार नहीं, बार बार मिलतें हैं

पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं

सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा

ज़मीन ही नहीं आसमान गिर जाएगा

आंधी ही नहीं, तूफ़ान घिर जाएगा

पांडा ही नहीं इमाम गिर जाएगा

हिन्दू गिर जाएगा, मुसलमान गिर जाएगा

सियासत और सरमाया तमाम गिर जाएगा

नंगा और नंगे का हमाम गिर जाएगा

सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा

आसमानी किताबों का सबसे पंगा है

ज्ञान से, विज्ञान से, संविधान से

सबसे पंगा है.... नंगा है, दंगा है

दुनिया हर कदम आगे बढ़ना चाहती है

आसमानी बापों से बंध, नहीं सड़ना चाहती है

सो मुल्ले, पुजारी, पादरी पाद रहे हैं

चेले चांटे यहाँ वहां सरपट भाग रहे हैं

कायम अभी जलाल है
अंदर बहुत मलाल है

कर रहे कतल हैं
उल्टी सीधी मसल हैं

कुछ भी न असल हैं
सब बस नकल हैं

सब बस नकल हैं
सब बस नकल हैं

ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है

उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है

तेरा धरम भरम है
मेरा धरम धरम है

कट्टरता चरम है
खूनी करम है

न कोई शरम है
दुनिया हरम है

कोई न नरम है
न कोई मरहम है

ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है

उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है

हम्म...तो तुम्हें परमात्मा के होने का सबूत चाहिए....
ज़िंदगी बिखरी है हर जगह, फिर भी ताबूत चाहिए

हैरानी है, तुम्हें परमात्मा नज़र न आया,
या शायद नज़र तो आया लेकिन तुम्हारा नजरिया कुछ और है,

मेरी नज़र में जो परमात्मा है वो तुम्हारी नज़र में कुछ और है
और तुम्हारी नज़र में जो परमात्मा है  मेरी नज़र में वो कुछ और है

परमात्मा

समन्दर से बना है ,
हवाओं में बहा  है,
बादल बन उड़ा है
पेड़ बन खड़ा है

ये बच्चा जो  खेल रहा
जो पह्लवान दंड पेल रहा

ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये जो संगीत है, ये जो मौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है

मज़हब ही है सिखाता, आपस मैं बैर रखना
सीखो अक्ल, सीखो आपस में खैर रखना

धर्म का धंधा ...
बनाए अँधा.......
दो इसे कन्धा......
रफा करो...
इसे दफा करो

बिन खुद की खुदाई, खुदा कहीं न मिलेगा
और खुदा मिले न मिले, जो मिलेगा वो खुदा होगा

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