Saturday, 30 May 2020

कुत्ता श्री की कथा




"कुतिया देवी का मन्दिर". झाँसी  में है "कुतिया देवी का मन्दिर". मतलब अब किसी लड़की को, किसी औरत को गाली देते हुये  कुतिया यानि bitch मत कहिएगा, चूंकि कुतिया भी देवी है।

छतीस गढ़  में एक मंदिर है, "कुकुर देव का मन्दिर". यानि कुत्ता देव का मंदिर।  धर्मेंदर को पता होता तो वो कभी नहीं कहता, "कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। "

चीन में कुत्ता उबाल के खा जाते हैं, आप हैरान हो सकते हैं,  भारत में गोमूत्र पी जाते हैं लोग, दुनिया हैरान हो सकती है।

भारत में गली के कुत्ते ने आपको काटा तो आप कुछ नहीं कर सकते कुत्ते के खिलाफ, आप ने कुत्ते को काट दिया मुकद्दमा हो जाएगा आपके खिलाफ।

मुर्गा काट लो सरे-आम
, कुछ नहीं होगा, कुत्ता काटोगे, जेल में सड़ोगे।
लेकिन उत्तर प्रदेश में सीतापुर में 2018 में कुत्तों ने कुछ  बच्चे मार दिये, गुस्से में लोगों ने सैंकड़ों कुत्ते मार दिये

इस वहम में मत रहें कि कुत्ता इन्सान का बढ़िया दोस्त होता है।
होता है, लेकिन सिर्फ मालिक नाम के इन्सान का।
बाकी तो किसी को भी, कभी भी काट सकता है।

भारत में कुत्तों द्वारा इन्सानो के काटने के इतने ज़्यादा केस होते हैं कि rabbies की vaccine की shortage बनी रहती है। सरकारी अस्पताल तो हाथ खड़े कर देते हैं। लिख के लगा देते हैं, हमारे पास न है वाककिने।

इंसान का कुत्ता प्रेम अनूठा है, विचित्र है। कुत्तों से प्रेम बहुत है लेकिन कुत्ता-कुतिया अगर प्रेम करें,  सड़क किनारे सम्भोग करते दिख जाएँ तो लोग उनको पत्थर मारने लगते हैं। शायद इसलिए चूंकि इंसान ने अपना सेक्स तो खराब कर ही दिया है, दूषित कर दिया है, सेक्स को गाली में बदल दिया सो कुत्तों का कुदरती कृत्य कैसे बरदाश्त हो?

कुत्ता मुझे खाने-पीने के मामले में भी इंसान से ज़्यादा समझदार  लगता
है। उसकी चॉइस फिक्स है कुदरती है। वो फल नहीं खाता। मांस दे दो, खा लेगा। इंसान कुछ भी खा लेता है॥ मैक-डोनाल्ड का बर्गर मुझे लगता है कि कुत्ता भी न खाए, इतना बेस्वाद और बासा सा ..निरा मैदा...लेकिन बाज़ारवाद....दिमाग खराब. हमारे यहाँ जो वडा पाव बिकता है......ताज़ा बनाया जाता है आपके सामने, वो उससे लाख गुणा बेहतर है, लेकिन हमें बर्गर खाना है, बर्गर जो कुत्ता भी न खाये   

आपने सुना ही होगा आबादी बहुत बढ़ गई है.....मैं इंसानों की नहीं
, कुत्तों की आबादी की बात कर रहा हूँ. वैसे तो कुत्तो की आबादी भी इसलिए बढ़ी है क्योंकि बेवकूफ इंसानों की आबादी बढ़ी है। आज शहरों में कुत्ता इन्सान का बेस्ट फ्रेंड नहीं बल्कि एक जबर्दस्त दुश्मन भी बन चुका है।
ये दीगर बात है कि इन्सान भी खुद का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है...

किसी ज़माने में जब घर बड़े थे और गाँव छोटे तो, जगह थी इन्सान के पास..... और ज़रूरत भी थी। कुत्ता एक साथी की तरह, चौकीदार की तरह इन्सान की मदद करता था। लेकिन अब जब.. शहर बड़े और घर छोटे हो गए तो अब कुत्ते मात्र सजावट के लिए रखे जाते हैं, शौक के लिए रखे जाते हैं। भला तेरा कुत्ता मेरे कुत्ते से ज्यादा कुत्ता कैसे?

जिस तरह मेट्रो सिटी में आजकल लोग कुत्तों को सोफों पर बिठाते हैं, बेड पर अपने साथ सुलाते हैं, अब कुत्तों को कुत्ता कहना उनकी इज्ज़त हत्तक माना जाना चाहिए. उन्हें "कुत्ता जी" ही कहना चाहिए, वरना सजा होनी चाहिए.

हिंदु के कुत्ते को कुत्ताराम जी कहा जाना चाहिए

मुस्लिम के कुत्ते को कुत्ता खान जी,

फिर कुत्ता सिंह जी,

कुत्ता फर्नाडीज जी . . . वगैरा वगैरा ... ना अगर कोई कहे तो कोर्ट केस तो बनना चाहिए। नहीं?

ग़लत कहा था शेक्सपियर ने कि नाम में क्या रखा है. अगर नहीं रखा
, तो क्यूँ नहीं लोग अपना नाम 'कुत्ता' रख लेते? हाँ, कुत्ते का नाम 'टाइगर' ज़रूर रखते हैं, “शेरु” ज़रूर रख लेते हैं. नाम में बहुत कुछ रखा है, तभी तो लोग अपने ब्च्चे का नाम तमूर रखते हैं।  इसीलिए  कुत्तों को कुत्ता कहने पर सजा तो होनी ही होनी चाहिए।  
इंसान के कुत्ता प्रेम को देखते हुये मैंने लिखा था एक बार, अगर अगला जनम है तो मैं कुत्ता बनना चाहूंगा, अच्छी नसल का कुत्ता" अगले जन्म मोहे कुत्ता कीजो। इस नाम से  किताब भी है, amazon से ले सकते हैं।
समाज में कुत्ता प्रेम की एक वजह है. खास करके हिन्दू समाज में. हिन्दू औरतों को कोई भी बाबा, पंडित, मौलवी आसानी से बहका सकता है.......घर में बरकत नहीं, पति बीमार है, बच्चा बार-बार फेल होता है तो जाओ काले कुत्ते को रोज़ दूध पिलाओ.....जाओ, पीले कुत्ते को रोज़ खिचड़ी खिलाओ.....बस ये महिलाएं गली-गली कटोरे ले के कुत्ते ढूंढती हैं....बीमार कुत्तों को दवा देती हैं..... इन बाबा बाबियों की करामात से औरतें कुत्तों की मदर टेरेसा बन जाती हैं और मर्द कुत्तों के godfather

खैर
, इन्सान हो चाहे कुत्ते......आज ये सब अल्लाह की देन कम हैं डॉक्टर की देन ज्यादा हैं.....अल्लाह तो अगर पैदा करता था तो फिर बीमारी भेज के मार भी देता था...इन्सान ने अल्लाह के नेक काम में दवा बना के बाधा डाल दी.....वो अब मरने नहीं देता......न अपनी औलाद को और न कुत्तों की.....वो बीमार नहीं होने देता...... वो भूखा नहीं मरने देता...    अल्लाह के नेक काम में बाधा डालता है........वैसे  अल्लाह, भगवान, गॉड के काम में दखल नहीं देना चाहिए सो इन्कलाब/जिंदा-बाद कहिये ...... और आने दीजिये संतानों को निरन्तर...चाहे आप की हों चाहे कुत्तों की.....लेकिन बीमारी भी आने दीजिये न.....बीमारी से मौत भी तो आने दीजिये तभी तो बैलेंस बनेगा......

या फिर दूसरा काम कीजिये, बच्चों के जन्म पर रोक लगाएं ................ अल्लाह के नेक काम में थोडा और बाधा डालिए, चाहे कुत्तों का जन्म  हो, चाहे इंसान  का,  इनके जन्म पर रोक लगाएँ।  कुत्तों  के मामले तो फिर बंध्याकरण कर दिया जाता है, इंसान के मामले तो बड़ी दिक्कत है. तमाम सामाजिक, धार्मिक दिक्क़ते हैं. अभी जनसंख्या कानून आने दीजिये, देखना  खास लोग  फिर सड़क पे होंगे. 

गली में कालीन या दरी बिछते ही बच्चे दौड़ना-खेलना शुरू कर देते हैं. धमा-चौकड़ी. आप पार्क में बैठ कर लौटते हैं तो पहले से कुछ जीवंत हो उठते हैं. जीवन जीने के लिए स्पेस की ज़रूरत है पियारियो. बंदे पर बन्दा न चढाओ.

शायर साहेब लगे हैं, माइक कस कर पकड़े हैं. कईओं को तो माइक खूबसूरत महबूबा से भी ज़्यादा अज़ीज़ होता है, मिल जाए बस, छोड़ना नहीं फिर.

तो शायर साहेब लगे हैं. "कुत्ते की दम पर कुत्ता. कुत्ते की दम पे कुत्ता. फिर उस कुत्ते की दम पे कुत्ता. बोलो वाह!" जनता चिल्ल-चिल्लाए,"वाह! वाह, वाह!!" वो आगे फरमाते हैं, "उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता., अब उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता..."

भीड़ में से किसी के बस से बाहर हो गया, वो चिल्लाया, पिल-पिल्लाया,"बस करो भाए, बस करो. दया करो, ये सब गिर जाएंगे."

हम में से कब कोई चिल्लाएगा? "बस करो भाई, ये गिर जायेंगे."
चलिये ये सारी बक.... बक  तो हो गई॥  सोल्यूशंस क्या है? समाज तो सुधरने से रहा, कुत्ता भैरों अवतार था, है, बना रहेगा। खास करके काला कुत्ता।  बहु काली किसी को नहीं  चाइए, काला कुत्ता पूजनीय है। काली माता पूजनीय है। खैर, वो अलग बात है।  तो सोल्यूशंस की तरफ आते हैं  ....
एक सोल्यूशंस है कि कुत्तों की Godmother Godfather जो गली-गली इनको ढूंढ खाना खिलते हैं, वो इनको अपने घर ले जाएँ, इनको गोद ले लें। लेकिन आज कल अपने रहने की तो जगह होती नहीं शहरों में कुत्तों को कहाँ रख लेंगे?

“जानते हैं जन्नत की हकीकत हम भी ए ग़ालिब
, मगर दिल के बहलाने को ख्याल अच्छा है।
दूसरा सोल्यूशंस है कि कुत्तों  की सिर्फ दो कैटेगरी होनी चाइए। एक घरेलू डॉग, दूसरा यतीम डॉग ...लेकिन यतीम डॉग नामकरण डॉग लवर को पसंद नहीं आयेगा। सो दूसरी श्रेणी सोश्ल dogs कही जा सकती है।  घरेलू डॉग घर में रहें, मालिक उसकी टट्टी, पेशाब, उल्टी अगर सड़क पर गिरे तो साफ करे। और सोश्ल डॉग रहे डॉग shelter होम में। सब के सब। सड़क पर एक भी कुत्ता नज़र न आए।

लेकिन क्या हमारी सरकार इतनी सक्षम है कि कुत्ते manage कर सके? इंसान तो होते नहीं manage इनसे। कुत्ते कैसे करेंगे manage?

खैर, हर गली मोहल्ले, कॉलोनी में कोई भी सार्वजनिक जगह पर गौशाला की तर्ज पे कुत्ता-शाला खोल देनी चाइए।  डॉग लवर उनको वहीं खाना-पीना  दें, दूध दें।  गर्मी में कूलर लगवा दें, हो से तो AC भी लगवा सकते हैं, सर्दी में हीटर भी दे सकते हैं ।

वहाँ रहे कुत्ते शान-आन-बान से।

बाकी इंसान? इंसान मरते रहें सड़कों पर। उनके बारे में हम फिर सोचेंगे।

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