कल कहीं पढ़ा, "उधार चाहिए. दो शर्तों पर. पहली शर्त, रकम पे कोई ब्याज नहीं मिलेगा. दूसरी शर्त, रकम भी नहीं मिलेगी."
वाह! वल्लाह!! गजब ईमानदारी है. ऐसे ईमानदार को तो रकम मिलनी ही चाहिए. वैसे भी ब्याज है ही झगड़े की जड़. सुना है, इस्लाम में तो ब्याज हराम है.
और ग़ालिब ने भी लिखा था, "क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां, रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन."
चार्वाक ने भी कहा है, "यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत." अर्थात उधार ले कर भी घी पी लेना चाहिए.
मैं उधार लेने वाले साहेब जिन का ज़िक्र किया मैंने ऊपर, ग़ालिब और चार्वाक से बिलकुल सहमत हूँ. ~ तुषार कॉस्मिक
Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Sunday, 13 March 2022
उधार चाहिए. दो शर्तों पर. पहली शर्त, रकम पे कोई ब्याज नहीं मिलेगा. दूसरी शर्त, रकम भी नहीं मिलेगी
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