रिश्तेदारियां
आज मैं निश्चित ही परिवार व्यवस्था के खिलाफ हूँ और भविष्य को परिवार विहीन देखता हूँ या दूसरे शब्दों में "वसुधैव कुटुम्बकम" और "विश्व बंधुत्व" की धारणाओं को साकार हुआ जाता देखता हूँ असल में "वसुधैव कुटुम्बकम" और "विश्व बंधुत्व" जैसी धारणाएं और परिवार व्यवस्था दोनों विपरीत हैं, जब तक परिवार रहेंगे तब तक विश्व एक नहीं होगा....कभी आपने सोचा हो कि दुनिया में जितनी भी दीवारें हैं, वो हैं क्यों? आपके और आपके पड़ोसी के बीच दीवार क्यों है? मात्र इसलिए कि वो अलग परिवार है, आप एक अलग परिवार हैं. लेकिन जब तक यह समझ आया शादी हो चुकी थी.....शादी हुई , तो परिवार बन गया, रिश्तेदारी बढ़ गई...........किसी का जीजा, किसी का फूफा, तो किसी का मासड बन गया अब रिश्तेदारी हुई तो निभानी भी पड़ती हैं, चयूइंग गम स्वाद हो न हो चबानी भी पड़ती हैं, ढोल हो या ढोलकी, जब गले पड़ गई तो बजानी भी पड़ती है......डिश बेमज़ा हो, बेल्ज्ज़त हो लेकिन खानी भी पड़ती है मुझे लगता था कि रिश्तेदार मात्र रस्में निभाते हैं...कोई मर गया तो जाना आना होता है.... कोई शादी हो तो शक्ल दिखाना होता...