इजराइल-फ़लस्तीन-यहूदी-मुसलमान-ज़मीन-आसमान
बड़ी बहस है कि इजराइल की धरती यहूदियों की है या मुसलमानों की है. मुसलमान कहते हैं कि वो ज़मीन उन से छीन कर यहूदियों को दी गयी है. जब कि यहूदी उस ज़मीन पर अपना हक़ बताते हैं. ऐसा ही कुछ मामला कश्मीर का है. हिन्दू उस ज़मीन पर अपना पुराना हक़ जमाते हैं, जब कि इस वक्त ज़यादातर मुस्लिम रहते हैं वहाँ. तो हक़ किसका हुआ? असल बात यह है कि किसी भी ज़मीन पर किसी का कोई हक़ नहीं है. धरती माता ने आज तक किसी के नाम कोई रजिस्ट्री नहीं की है. ज़मीन पर कब्जा खेती जब शुरू हुई तभी से है. वो कब्ज़ा कबीलों से ले कर मुल्कों तक फैला है और उस कब्जे के झगड़े पूरी दुनिया में हैं. क्या हवा किसी एक की है, क्या दरिया किसी एक के हैं? वैसे दरिया भी बाँट लिए गए हैं. ऐसे ही धरती भी बाँट ली गयी है. बस चले तो हवा भी बाँट ली जाएगी और शायद आसमान भी. यह क्या बेवकूफी है? हम पशु-पक्षियों से भी बदतर हैं. इलाकों के लिए शायद वो भी इतना नहीं लड़ते जितना हम लड़ते हैं. हम उन से ज़्यादा समझदार हैं. हम में इन मुद्दों को लेकर तो कतई कोई झगड़ा होना ही नहीं चाहिए. लेकिन हमारी पीढ़ियां लड़ रही हैं. कबीले लड़ रहे हैं, गाँव लड़ रहे हैं. मुल्क लड़ रह...