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Showing posts from October, 2015

आरक्षण पर ओशो से मेरा मत विरोध

प्रस्तुत लेख में मैं आरक्षण के विषय में उनके और फिर बाद में अपने ख्यालात पेश कर रहा हूँ.....ओशो आरक्षण  का समर्थन करते हैं और मैं विरोध...पढ़िए, आशा है अच्छा लगेगा----- "ओशो की दृष्टि में आरक्षण" यही ब्राह्मण.... इस देश में, इस देश की बड़ी से बड़ी संख्या शूद्रों को सता रहे हैं, सदियों से........... ये कैसे शान्त लोग हैं?........ और अभी भी इनका दिल नहीं भरा, अभी भी वही उपद्रव जारी है....... अभी सारे देश में आग फैलती जाती है.... और गुजरात से क्यों शुरू होती है आग?...... पहले भी गुजरात से शुरू हुई थी, तब ये जनता के बुद्धू सिर पर आ गये थे, अब फिर गुजरात से शुरू हुई है.... गुजरात से शुरू होने का कारण साफ़ है..... ये ‘’महात्मा गाँधी’’ के शिक्षण का परिणाम है, वे दमन सिखा गये हैं, और सबसे ज्यादा गुजरात ने उनको माना है, क्यों कि गुजरात के अहंकार को बड़ी तृप्ति मिली है, की गुजरात का बेटा और पूरे भारत का बाप हो गया..... अब और क्या चाहिए? गुजराती का दिल बहुत खुश हुआ, उसने जल्दी से खादी पहन ली. मगर खादी के भीतर तो वही आदमी है जो पहले था, महात्मा गाँधी के भीतर खुद वही आदमी था जो पहले था, उस...

“नया समाज-1”

मैंने घोषणा की हैं मैं अपना गुरु खुद हूँ, मुझे किसी का हुक्मनामा नहीं चाहिए मैं अपना पैगम्बर खुद हूँ, मुझे किसी की हिदायत  नहीं चाहिए मैं अपना मसीहा खुद हूँ, किसी और की कमांडमेंट  की क्या ज़रुरत? मैं स्वयम ब्रह्म हूँ, मैं खुद खुदा हूँ खुद का, मुझे क्या ज़रुरत  पुराण कुरान की? मैं स्वयं की रोशनी स्वयं हूँ, मुझे शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों पुराने व्यक्तियों की आँखों से नहीं, खुद की आँखों से जीना है बड़े साधारण शब्द हैं मेरे ..लेकिन काश कि आप भी यह सब कह पाते! दुनिया चंद पलों में बदल जायेगी. इन्सान जिस जन्नत का हकदार है, वो दिनों में नसीब होगी मुल्ले, पण्डे, पुजारी, पादरी विदा हो जायेंगे मंदर, मसीत, गुरुद्वारे, गिरजे बस देखने भर की चीज़ रह जायेंगे हिन्दू मुस्लिम, इसाई आदि का ठप्पा लोग उतार फेंकेंगे सदियों की गुलामी से आज़ादी लोग आज के हिसाब से जीयेंगे..... किसी किताब से नहीं बंधेंगे किताब हो, इतिहास हो, बस उसका प्रयोग करेंगे....जो सीखना है सीखेंगे उनसे लेकिन इतिहास की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेंगे   बहस इस बात की नहीं होगी कि मेरी किताब में यह लिखा ह...

नया समाज-2

मैं लिख रहा हूँ अक्सर कि एक सीमा के बाद निजी सम्पति अगली पीढी को नहीं जानी चाहिए.......बहुत मित्र तो इसे वामपंथ/ कम्युनिस्ट सोच कह कर ही खारिज कर रहे हैं.....आपको एक मिसाल देता हूँ......भारत में ज़मींदारी खत्म हुई कोई साठ साल पहले......पहले जो भी ज़मीन का मालिक था वोही रहता था...लेकिन कानून बदला गया....अब जो खेती कर रहा था उसे मालिक जैसे हक़ दिए गए.....उसे “भुमीदार” कहा जाने लगा...यह एक बड़ा बदलाव आया...."ज़मींदार से भुमिदार". भुमिदार ज़रूरी नहीं मालिक हो... वो खेती मज़दूर भी हो सकता था....वो बस खेती करता होना चाहिए किसी भूभाग पर....उसे हटा नहीं सकते....वो लगान देगा...किराया देगा...लेकिन उसकी अगली पीढी भी यदि चाहे तो खेती करेगी वहीं. कल अगर ज़मीन को सरकार छीन ले, अधिग्रहित कर ले तो उसका मुआवज़ा भी भुमिदार को मिलेगा यह था बड़ा फर्क यही फर्क मैं चाहता हूँ बाकी प्रॉपर्टी में आये......पूँजी पीढी दर पीढी ही सफर न करती रहे...चंद खानदानों की मल्कियत ही न बनी रहे ...एक सीमा के बाद पूंजी पब्लिक डोमेन में जानी चाहिए इसे दूसरे ढंग से समझें....आप कोई इजाद करते हैं...आपको पेटेंट मिल सकता...