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Showing posts from January, 2016

इस्लाम- संघ- भारत- दुनिया

मुझे आरएसएस मुस्लिम मुद्दे पर सही लगने लगा है मैं जैसे-जैसे समझ रहा हूँ ..इस्लाम दुनिया को अगले विश्व युद्ध की और धकेल रहा है तौबा! यहाँ भारत का बुद्धिजीवी अभी भी नहीं समझता और मुझे लगता है कि गांधी भी गलत थे...इस मुद्दे पर और सावरकर सही थे, मुस्लिम मुद्ददे पर संघी मुस्लिम के बारे में जो कहते हैं, आज सारी दुनिया लगभग वो ही कह रही है जबकि यहाँ संघ को गाली पड़ती है आज लगता है कि गोडसे सही था गांधी का ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाना....बकवास! उन्हें पता ही नहीं था कि मुसलमान होना क्या है. इस्लाम कोई पूजा पद्धति मात्र नहीं है. जैसा संघी आज भी कहते हैं कि पूजा पद्धति कोई भी हो, लेकिन निष्ठा भारतीय मूल्यों और भारतीय पूर्वजों पर हो बकवास! वो भी ठीक ठीक नहीं समझते यह हो ही नहीं सकता इस्लाम सोशल आर्डर है इस्लाम राजनीतिक आर्डर है और पूजा पद्धति तो है ही इस्लाम कभी किसी मुल्क का कायदा कानून नहीं मान सकता उसके कायदे कानून इस्लाम में ही अंतर्निहित हैं नहीं...संघ मुस्लिम मुद्दे पर बहुत सही है......बहुत. संघ और सौ जगह गलत है ...इस मुद्दे पर नहीं मैं कह रहा था कि इस्लाम पूरा आ...

"ओवेसी"

जब भी बड़े वाले से छोटे ओवेसी के हिन्दुओं को 15 मिनट में मारने के बोल बच्चन के बारे में पूछा गया तो इसने कहा कि कानून अपना काम कर रहा है...मामला अदालत में है, मेरा टिप्पणी करना सही नहीं.... अब यह होता है बकवास जवाब. इससे किसी ने यह नहीं पूछा पलट कर कि किस किताब में लिखा है कि आप अदालत में चलते मामले पर टिप्पणी नहीं कर सकते.....तेरी पर्सनल राय पूछी है, वो बता....बता कि सहमत कि असहमत...... और असहमत तो फिर तूने अपने भाई के बोल बच्चन के खिलाफ आज तक कोई पब्लिक ब्यान क्यूँ नहीं दिया? और सहमत तो फिर तुझ में और तेरे भाई में क्या फर्क? और तेरा अपने भाई के ब्यान का खंडन न करना क्या यह साबित नहीं करता कि तू अपने भाई से सहमत है?. और फिर तेरे जैसों को भारत में रहने का क्या हक़? या फिर यह कहता है कि मुझ से छोटे वाले के किसी ब्यान के लिए क्यूँ पूछते हों, उसी से पूछो....अरे भाई, क्यूँ नहीं पूछें? आप बाबरी मस्ज़िद तोड़ने वालों के लिए अपनी राय ज़ाहिर करते हो न? तो फिर हिन्दुओं को पन्द्रह मिनट में मारने वालों के लिए अपनी राय क्यूँ नहीं रखते? इसलिए कि वो आपका सगा भाई है, आपकी पार्टी का मेंबर है....

“असहिष्णुता का मामला – ब्लैक, वाइट या फ़िर ग्रे?”

सहन करना, बर्दाश्त करना, tolerate करना ये सब शब्द सहिष्णुता की पोल खोल देते है. आप कब कहते हैं कि मैं सहन कर रहा हूँ, बर्दाश्त करता हूँ, tolerate कर रहा हूँ?  जब आपको कुछ ऐसा करना हो जो करना आपकी मर्ज़ी के खिलाफ  हो, कुछ ऐसा जो आपको ज़बरदस्ती करना पड़ रहा हो, ऐसा जो आपको पसंद नहीं है, आपको प्रिय नहीं है. कुल मतलब यह है कि एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के क्रिया कलापों को असल में तो नापंसद करते हैं, फिर भी जैसे-तैसे बर्दाश्त करते हैं. यह कैसी दुनिया है? हम क्यों ऐसी जीवन शैली नहीं घड़ पा रहे कि जिसमें एक दूजे के प्रति गहन में नापसन्दगी न हो? क्यूँ हम सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित जीवन पद्धति विकसित नहीं कर पा रहे? पेप्सी सारी दुनिया पी सकती है, पिज़्ज़ा सारी दुनिया खा सकती, कम्पनी लोकल से Multi- national हो सकती हैं, लेकिन  हम जीवन शैली सार्वभौमिक विकसित नहीं कर पा रहे. हम ऐसी दुनिया में क्यूँ रहें जहाँ हमें एक दूजे को बर्दाश्त कर कर जीना पड़े? जहाँ सहिष्णुता को बड़ा गुण माना जाता हो, ऐसे दुनिया के ताने बाने में निश्चित ही कुछ तो गड़बड़ है. है कि नहीं? वैसे ह...

चौर्य कला

बहुत पहले पढ़ा था कि चोरी करना भी भारत में एक कला मानी जाती थी. चोर सेंध लगाते थे तो बड़ी कलाकारी से. ताकि बाद में नाम हो कि किस महान चोर का यह काम होगा. जैसे आपने देखा होगा फिल्मों में कि कातिल कत्ल के बाद जानबूझ कर अपनी कोई निशानी छोड़ता है, सिग्नेचर, ताकि उसके महान काम की पहचान हो.  "उत्सव" फिल्म में देखा हो,  चोर बहुत ही कलाकारी से सेंध लगाता है. हमारे यहाँ तो कृष्ण थे ही चोर. उनका एक नाम हरी है. हरी जो हर ले. वैसे मक्खन चुराते थे बचपन से ही. लेकिन भक्त लोग कहते हैं कि दिल चुराते हैं. रोबिन हुड का नाम सुना होगा आपने. कहते हैं अमीर को लूटता था, गरीब में बाँट देता था. सो चोरी हमेशा गलत ही हो यह ज़रूरी नहीं है. सरकार भी रोबिन हुड बनने का असफल प्रयास करती है. अमीर से टैक्स द्वारा लूटने का नाटक करती है और गरीब में बांटने का बहाना. लेकिन अमीर गरीब सबको पीसती   है और ज़्यादातर खुद ही खा जाती है. नकली रॉबिनहुड. और जितने भी लोग अमीर बने होते हैं, ज्यादातर कोई न कोई चोरी कर के. आपको सिखाया जाता है कि मेहनत से अमीरी आती है लेकिन वो अधूरी सीख है, पूरी सीख यह है कि चोरी करने म...