जित्ता धन, समय और ऊर्जा आज तक मन्दिर, गुरूद्वारे और चर्चों में लगा है, उत्ता अगर वैज्ञानिकता पैदा करने में लगा होता तो इंसान को शायद ही नकली खुदाओं के आगे हाथ जोड़ने- मत्थे रगड़ने की ज़रूरत पड़ती.

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