Tuesday, 24 March 2020

कोरोना से मानव को भविष्य के लिए क्या सीखना चाहिए? कोरोना- करुणा अवतार॥


कोरोना .... देर सबेर चल ही जायेगा. लेकिन इस से मानव को क्या सीखना है?

पहली बात.      तुम्हारे बनाये हुए राजनितिक अखाड़े जिन्हे तुम बड़े फख्र से मुल्क कहते हो. वतन कहते हो. बकवास है. और वतनपरस्ती को बहुत ही इज़्ज़त देते हो, राष्ट्रवाद को पूजते हो, बकवास है.

देखा तुमने एक नन्हे वायरस ने सारी दुनिया को एक धरातल पर ला पटका. तुम्हें लगता है कि तुम्हारा मुल्क कोई अलग ही दुनिया है तो तुम मूर्ख हो.

कभी चादर बिछाई है बेड  पर. एक कोना खींचोगे तो  खिंच जायेगा. ठीक वैसे ही है दुनिया. वायरस चीन में था तो क्या हुआ, पूरी दुनिया हो गयी न आड़ी-टेढ़ी? 

तो आज समझने की ज़रुरत है की भारत माता से बड़ी धरती माता है. चीन माता, रूस माता से बड़ी धरती माता है. आज समस्या जो लोकल नज़र आती हैं, वो लोकल नहीं हैं, ग्लोबल हैं. उनके हल भी ग्लोबल ही होने चाहियें.

जैसे आज पूरी दुनिया लगी है कोरोना से लड़ने. ठीक वैसे. स्वास्थ्य , शिक्षा, वैज्ञानिकता सारी दुनिया में फैलनी चाहिए, ऐसा नहीं चलेगा कि  कहीं बहुत स्वस्थ, साफ़-सुथरे  लोग हों और कहीं बदबू-गंदगी से बिदबिदाते हुए घर, गलियां, बस्तियां हों.  कहीं बहुत बहुत पढ़े-लिखे लोग हों  और कहीं निपट अनपढ़  लोग. ऐसा कैसे चलेगा?

पूरी दुनिया को खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. आपने देखा लोग गन उठा के बेक़सूर लोगों को भून देते हैं. बम बांध कर खुद भी मरते हैं और कई बेक़सूर लोगों को अपने साथ ले मरते हैं.

क्यों हैं ऐसा?

चूँकि ऐसे लोगों को  कहीं यह सब करना सिखाया गया है. अब कौन इन्हे सिखाएगा कि  यह नहीं करना है?

कल कोई मूर्ख एटम बम फोड़ देगा. कौन है ज़िम्मेदार?

पूरी दुनिया की ज़िम्मेदारी है.

आपको पता है, दिल्ली में हर साल पड़ोस के राज्यों की किसानी की वजह से एयर-पोलुशन बढ़ जाता है.

मतलब यह है भाई कि  हवा पानी  कोई एक राज्य, कोई एक मुल्क बरबाद करेगा और नतीजा पड़ोस को,  पड़ोसी मुल्क को भुगतना पडेगा, सारी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है.

सो पूरी दुनिया को एक प्लेटफार्म पर आने की बहुत ज़रूरत है.

आबादी, कितनी होनी चाहिए, शिक्षा कैसी होनी चाहिए, स्वास्थ्य  प्रबंधन कैसा होना चाहिए, न्याय व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, सफाई व्यवस्था क्या हो .... यह सब अब पूरी दुनिया को कलेक्टिवेली देखनी होगी. ये सब अब ग्लोबल इशू हैं. सारी दुनिया को मिल के संभालने होंगे.

कोरोना के मामले में देखा आपने अगर एक मुल्क की भी मेडिकल व्यवस्था कमज़ोर है तो उसका नुक्सान बाकी दुनिया को भुगतना पड़  सकता है. एक कोई अरब का आदमी अमेरिका जाके बम फोड़ आता है. चीन का वायरस दुनिया बर्बाद कर देता है.

यह राइट टाइम है, दुनिया समझे कि दुनिया में एक वर्ल्ड आर्डर लाना बहुत ज़रूरी है.

ठीक वैसे ही जैसे भारत के सब राज्य एक  संविधान के तले हैं,  ऐसे ही पूरी दुनिया का एक "विश्व संविधान" के तले होना ज़रूरी है.


दूसरी बात........ आपने देखा लगभग सभी धार्मिक, मज़हबी स्थल बंद कर दिए गए. क्यों भई? तुम्हारे अल्लाह, गुरु, भगवान, गॉड की मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता,  सब करने-कराने वाला तो वही है.  सब दुःख-तकलीफ हरने वाला वही है न?

ॐ जय जगदीश हरे, दुःख तकलीफ हरे.

अल्लाह-ताला, लगा दे हर परेशानी पर ताला.

जीसस, इश्वर के पुत्र. ये तो हमारे लिए आपके लिए आज भी सूली पर लटके हैं.

नहीं ?

तो फिर आज क्यों बंद कर रहे हो इनकी मुकद्द्स जगहें?


चूँकि तुम्हे पता है कोई मदद नहीं आने वाली वहां से.  मदद अगर आएगी तो अस्पताल से आएगी. डॉक्टर से आएगी. वैज्ञानिक से आएगी.

तो तुम्हें क्या सबक लेना चाहिए?

समझ जाओ भाई, ये जो दिन रात तुम मत्थे रगड़ते फिरते हो, बेकार है. ये जो तुमने अपना सारा जीवन, जन्म से लेकर मरण तक मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारे के गिर्द लपेट रखा है बेकार है. तुम्हें मौलवी, पंडित की नहीं सुननी, तुम्हे वैज्ञानिक की सुननी है. वैज्ञानिक कोई लेबोरेटरी में परख नली पकड़े बैठा व्यक्ति ही नहीं होता, समाज शास्त्री, सोशल साइंटिस्ट भी वैज्ञानिक  भी होता है. जो तुम्हें बताता है कब तुम्हारा समाज किस ढंग से चलना चाहिए. लेकिन ऐसे में तुम उसकी न सुन कर अपने धार्मिक ग्रंथ निकाल लेते हो. इडियट हो.

खैर, यह मौका है सीखो. सीखो, अगर सीख सकते  हो तो सीखो. इंसान बनो. बिना ठप्पे के, बिना ब्रांड के, बिना लेबल के इंसान बनो. बाकी अगर तुम हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ही बने रहना चाहते हो तो तुम्हारी मर्ज़ी.


तीसरी बात ...     विज्ञान के प्रयोग में भी वैज्ञानिकता होनी चाहिए.

मिसाल से समझिये, विज्ञान ने प्लास्टिक पैदा किया तो उसका मतलब यह नहीं कि  हर तरफ प्लास्टिक ही प्लास्टिक कर दें. विज्ञान ने एटम बम बना दिए तो उसका मतलब यह नहीं कि  हर मुल्क एटम बनाने की दौड़ में शामिल हो जाए. यह समझ है वैज्ञानिकता.

विज्ञान की पैदा की हर चीज़ का उत्पादन नहीं करना.  विज्ञान की पैदा की हर चीज़ प्रयोग नहीं करनी. विज्ञान रोज़ नई चीज़ें ईजाद करता है.  लेकिन हर चीज़ इंसानी जीवन में उतारी ही जाए, यह ज़रूरी नहीं है. यह समझ वैज्ञानिकता है.

आज यह देखने का है कि कहीं इंसानी ईजाद धरती ही न खा जाए. मोटर वाहन, हवाई जहाज, समंदरी जहाज, क्या ये सब जो धरती की छाती रौंद रहे हैं, धरती को बर्दाश्त हैं क्या? धुआं उगलती फैक्टरियां कुदरत को बर्दाश्त हैं क्या?

अपने ड्राइंग रूम  में आप गंदे नालों की, फैक्टरियों की तस्वीरें लगाते हैं क्या? नहीं .. आप साफ़-सुथरे नदी-तालाब, फूल, बाग़-बगीचों की तस्वीर लगाते हैं.

तो सोचिये धरती माता को अपने घर में क्या पसंद होगा? उसे भी फैक्ट्री  पसंद नहीं है.  ज़हरीला धुआं उगलती, ज़हरीले केमिकल उगलती फैक्ट्री उसे भी नहीं पसंद.

तो आज पूरी दुनिया को यह समझना है कि इंसानी  जीवन में विज्ञान की खोज और फिर उस खोज का  प्रयोग ऐसा न हो कि  प्रकृति को  विकृति कर दे. तभी इंसानी सभ्यता  संस्कृति कही जा सकती है.

आज सारी दुनिया की चिंता बस एक है कि  किसी तरह से कोरोना  छूट जाए. लेकिन यह तीन बिंदु जो मैंने दिए इन  पर पूरी दुनिया को सोचने-समझने की ज़रूरत है.  राम रावण युद्ध ध्यान कीजिये. आप खरदूषण मार देंगे तो मेघनाद आ जायेगा. मेघनाद मार देंगे तो कुम्भकरण  आ जायेगा. मिसाल के लिए समझाया है.  मतलब  कि कोरोना  से पिंड छुड़ा लेंगे और सुधरेंगे नहीं तो तबाही की कोई और वजह आ जाएगी, उससे छुड़वा लेंगे तो उससे भी बड़ी कोई और वजह आ जाएगी.  कब तक बचोगे ऐसे?  नहीं बदलोगे  तो कुदरत बदला लेगी, कुदरत सब बदल देगी. हो सकता है उसे इंसान का सफाया ही करना पड़े.

मैंने कहीं पढ़ा है. "Human Beings are the virus for mother Earth and Corona is the Vaccine." इंसान है वायरस और कोरोना है वैक्सीन. वैक्सीन जो कुदरत ने अपने लिए तैयार की है. ताकि इंसान से पिंड  छुड़ा सके.

उम्मीद है समझोगे.

जनाब इकबाल का शेर पेश है, थोड़ी तबदीली के  साथ

"दुनिया की फ़िक्र कर ऐ नादाँ, मुसीबत आने वाली है
तेरी  बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में

न समझोगे तो मिट जाओगे ए  दुनिया वालों,
तुम्हारी दास्ताँ  भी न होगी दास्तानों में."

आप लगे रहते हैं भविष्य पीढ़ी का जीवन सुधारने में. और पैसा कमा लूँ, और कमा लूँ . गुड. आपको पता है अम्बानी की अगली पीढ़ी अनिल अम्बानी दीवालिया हो चूका है. नेहरू, इंदिरा की अगली पीढ़ी राहुल गांधी तक आते आते उनकी राजनीतिक  विरासत लगभग खतम हो चुकी है.

देखने के लिए थैंक्यू, शुक्रिया, धन्यवाद. कमेंट  करके अपने विचार ज़रूर लिखयेगा. मिल जुल कर काम आगे बढ़ाएंगे. और बाकी कोरोना पर यह चौथा वीडियो है, बाकी भी मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर मिल  जाएंगे. सबके लिए खुला अकाउंट है. और हाँ, शेयर ज़रूर कीजियेगा, तभी तो बात आगे जायेगी, बात आगे जायेगी तभी तो बात बनेगी.

नमस्कार.

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