Friday 24 May 2024

कोई आत्मा नहीं है.

कोई आत्मा नहीं है. अस्तित्व हमें केवल एक मौका देता है और उसके बाद वह हमसे छुटकारा पा लेता है। वह हमें बार-बार क्यों सहती रहे। यह नए लोगों को मौका क्यों नहीं देता? यह नए लोगों को मौका देता है। इसीलिए तो हर पल नये बच्चे जन्म लेते हैं। इसीलिए, अस्तित्व नये बच्चों के साथ खेलता है। और तो और अस्तित्व तो हमारा है, जीवित रहते हुए भी, न जीते हुए भी हम अलग कैसे हो सकते हैं? नहीं, हम अलग नहीं हैं. हम ही अस्तित्व हैं, सदैव। कुछ भी अलग नहीं, कुछ भी आत्मा नहीं।
आत्मा और परमात्मा दोनों बकवास कांसेप्ट हैं. एनर्जी कभी नहीं मरती. ठीक, बदलती है. यही विज्ञान भी मानता है. एनर्जी सिर्फ रूप बदलती है. और पदार्थ भी एनर्जी का ही रूप है. घना रूप. यह सब विज्ञान मानता है. हम अभी पदार्थ हैं. मर जायेंगे. घनत्व खत्म. एनर्जी जो अभी इस तन और मन की वजह से अस्तित्व से अलग आभासित है, वो आभास खत्म. द्वैत अद्वैत हो जायेगा. अलग दिखने वाली, महसूस होने वाली एनर्जी/घनत्व कॉस्मिक एनर्जी में विलीन हो जाएगी. न तो आत्मा आज है, न कल थी और न ही कल होगी. इसलिए आत्मा कोई वस्त्र नहीं बदलती है. जो लहर एक बार समंदर से उठी, वो विलीन हो गयी, बात खत्म. वो कल भी समंदर थी, आज भी समंदर है, कल फिर समंदर हो जाएगी. लहर को वहम है कि वो अलग है और वो दुबारा उठेगी, दुबारा उठेगी लेकिन वो वही लहर कतई न होगी. वो कोई और लहर होगी, और असल में तो वो भी समंदर ही है. असल में तो हम आज भी समंदर हैं, कल भी समंदर ही होंगे. असल में तो लहर लहर का अलग होना ही भरम है. सब लहर समंदर हैं.

आत्मा बकवास इस लिए चूँकि व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उस का अपना कोई अलग से अस्तित्व है, आत्म, आत्मिक. लेकिन है नहीं ऐसा. अलग से कुछ नहीं है, समग्र ही है जो है. अलग-विलग भरम है. परमात्मा इस लिए बकवास कांसेप्ट है चूँकि जिस तरह से लोग समझते हैं कि  वो कोई हमारी सुन रहा है, प्रतिफल दे रहे है, स्वर्ग-नर्क बनाये बैठा है, जैसे मंदर गुरद्वार समझा रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. जो है समग्र है, उसे परमात्मा कहना है तो कह लीजिये. बस वही है. तत सत. That is it.

लेकिन यह सब जो  वो धर्मों को पसंद आएगा नहीं चूँकि उन की तो दूकान ही आत्मा-परमात्मा  चलती है. आत्मा है, वो एक शरीर से दुसरे शरीर में यात्रा करती है. उस की सद्गति होती है, उस की दुर्गति होती है, अच्छे कर्म, बुरे कर्म, सब का फल-प्रतिफल मिलता है. स्वर्ग-नर्क, जन्नत-जहन्नुम, क्या -क्या. पूरा कर्म- कांड। जन्म से लेकर मौत तक. जब नहीं- परमात्मा नहीं जो फिर कौन पूछेगा, मंदर-मसीत को. कौन मत्थे रगड़ेगा?

सो धर्म तुम्हें समझाये जा रहे हैं, आत्मा है, परमात्मा है. परमात्मा तुम्हारे कर्मों का हिसाब रखता है. गर्र... जैसे उसे कोई और काम ही नहीं है. इतना बड़ा ब्रह्माण्ड और उसे पड़ी है कि राम लाल क्या कर रहा है. क्या मज़ाक है.

कुछ नहीं है ऐसा. मुक्त करो खुद को इस सारी बकवास से. मौज लो.  


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