राजा गार्डन से धौला कुआं को चलो तो शुरू में ही सड़क के दोनों तरफ मार्बल की मार्किट है. ये दूकान-दार कोई छोटे व्यापारी नहीं हैं. करोड़ों के मालिक हैं. लाखों का धंधा रोज़ करते होंगे. इन्होनें अपनी दुकानों के आगे सैंकड़ों फुट जगहें घेर रखीं थीं. मार्बल का काम ही ऐसा है. जगह चाहिए.
आज ही पढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी मोनिटरिंग कमिटी के सदस्य वहां से गुज़र रहे थे. एकाएक उनका ख्याल बन गया. आधी मार्किट सील कर दी. कुछ दंगा-वंगा भी हुआ. कोई दुकानदार गिरफ़्तार भी हो गए.
अब ऐसे लोगों के साथ खड़े हैं सब के सब नेता. केजरीवाल भी.
एक दम बकवास बात है.
मेरा मानना है कि जो इस धरती पर आ गया, उसे रहने की जगह मिलनी ही चाहिए और किराए का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. असल में तो प्रॉपर्टी का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. लेकिन वो बहुत दूर की बात है अभी. कम से कम गरीब लोगों को बक्श दिया जाना चाहिए या फिर उन्हें तरीके के घर मिलने चाहियें और वो भी मुफ्त. लेकिन ऐसे अमीर, ऐसे करोड़ों अरबों के मालिकों द्वारा ज़मीन की घेरा-घारी न रोकेंगे तो अराजकता ही फैलेगी और दिल्ली में अराजकता ही है. जिसका जहाँ मन करता है, जगह घेर लेता है.
पीछे खबर थी कि छतरपुर की तरफ सैंकड़ों बीघे ज़मीन घेर ली गई. बड़े नेता और धार्मिक नेता शामिल थे. राधा-स्वामी सत्संग वालों ने भी ज़मीन घेर रखी थी. आलीशान बिल्डिंग बना रखीं थी. तोड़ दीं गयीं, फिर भी कब्जा नहीं छोड़ रहे थे. अब पता नहीं क्या स्थिति है.
तो भैये, समझ लीजिये. ये बिक गई है गौरमिंट. सारे मिल के तूचिया बना रहे हैं हमें. बस. कुछ नहीं होना इनमें से किसी से. सब ऐसे भगवान भरोसे है, जो पता नहीं है भी कि नहीं, पता नहीं जिसे हम से कोई मतलब है भी कि नहीं.
नमन....तुषार कॉस्मिक
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