Friday, 14 May 2021

कोरोना सच में कुछ है क्या?

एक बार राजा ने ढिंढोरा पीट दिया कि ताले खोलने वाले माहिर लोग आ जाएँ. प्रतियोगिता होगी और इनाम भी मिलेगा.  तक़रीबन कोई सौ लोग आ गए. सबको कमरों में बंद कर दिया गया और बोल दिया गया कि बाहर बड़ा ही जटिल ताला लगा है जो खोल के बाहर आ जायेगा वो जीत जाएगा. रात भर माहिर लोग सोचते रहे. लेकिन एक थोडा अनाडी किस्म का बन्दा भी था वहां जो ताले खोलना तो कुछ ख़ास नहीं जानता था लेकिन इनाम के लालच में आ गया था. ज़्यादा सोच थी ही नहीं उसके पास. उसने सोचा देखूं तो सही ताला लगा भी है कि नहीं।  वो उठा और दरवाज़ा जरा सा धकिया दिया और उसका ऐसे करते ही दरवाज़ा खुल गया. और वो कमरे से बाहर. इनाम जीत गया वो. 

जब मैं स्कूल में था तो हमें सिखाया गया था कि इम्तिहान में घबराना नहीं है. हर सवाल को तीन बार पढना है. सवाल ठीक से समझना है. हल की तरफ बाद में जाना है. हमें समझाया गया कि कई बार तो  सवाल के अंदर ही जवाब छुपा हो सकता है. वो सीख मुझे आज भी याद है. 

और यही सीख, यही समझ मैं आपको देना चाहता हूँ . घबराएं मत. 

आप देखते हैं जेम्स बांड की फिल्में? जेम्स बांड फंसा होता है हर तरफ से और लगता है कि अब मरा कब मरा लेकिन वो घबराता बिलकुल नहीं है बल्कि रास्ता खोजता है और खोज भी लेता है और जाल से निकल बाहर हो जाता है. 

पग्गल मत बनें, किसी ने कह दिया कि कव्वा कान  ले गया और आप भग लिए कव्वे के पीछे। पहले देख तो लीजिये कि कान अपनी जगह मौजूद है भी कि नहीं। शोर मच गया कि कोरोना है कोरोना है पहले देख तो लीजिये कोरोना है भी कि नहीं। तर्क भिड़ाएं. आंकड़ों को analyze कीजिये.  

लकिन आप कहेंगे यमराज हुंकार  रहे हैं, “यम हैं हम....” काले भैंसे पे सवार हैं  और गली-गली घूम रहे है. पकड़ ले जायेंगे साथ. ऐसे में क्या बुद्धि लगायें? सब तरफ तो मौत बरस रही है. इसमें क्या तर्क भिड़ाना? लोग मर रहे है. आंकड़े क्या देखने? लोग ऑक्सीजन ऑक्सीजन चिल्ला रहे हैं. श्मशानों में लाशों के ढेर लगे हैं. 

लेकिन फिर भी मैं आपसे कहूँगा कि थोड़ी सी हिम्मत करो, तर्क भिड़ाओ, आंकड़ों का विश्लेष्ण करो. 

01मई 2021 की नवभारत-टाइम्स के मुख-पृष्ठ पर खबर थी सोली सोराब जी, शूटर दादी हरियाणा की चन्दो देवी और रिपोर्टर रोहित सरदाना कोरोना से मर गए. जैसे ही खबर पढ़ेंगे आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे, हाथ-पैर फूल जायेंगे. कोरोना आया ही आया आपको दबोचने. लेकिन थोडा ध्यान से दुबारा खबर पढ़े तो पता लगेगा कि, चन्दो देवी 89  साल की थी और ब्रेन हेमरेज से मरी, रोहित सरदाना हार्ट अटैक से मरे. और सोली सोराब जी 91 साल के थे, जब मरे. 

थोड़ा तर्क लगायें. दो शख़्स नब्बे-नब्बे साल की उम्र के मर जाते हैं लेकिन इनको कोरोना ने मारा. एक शख्स हार्ट अटैक से मर जाता है लेकिन इसे भी कोरोना ने मार दिया. एक शख्स ब्रेन हेमरेज से मरी लेकिन ये भी कोरोना से मरी. सब को कोरोना ने मारा. आंकड़ों का खेल है. Data Manipulation है कि नहीं ये.

जो भी जायेगा अस्पताल इलाज करवाने सर्द दर्द का, पीठ दर्द का,  दाँत दर्द का; सबका कोरोना टेस्ट होगा और फिर कोई भी किसी भी बीमारी से कोई मर गया तो उसे कोरोना से मरा घोषित किया जायेगा. 

मिसाल के लिए समझिये कि पहले 25  लोग हार्ट अटैक से मरते, 25  ब्रेन हेमरेज से, 25  कैंसर से, 25  किडनी फेल होने से. लोग अब भी 100 ही मर रहे हैं. लेकिन अब ये सब  कोरोना से मर रहे हैं. हार्ट अटैक वाले, कैंसर वाले, किडनी फेल वाले, लीवर फेल वाले सब कोरोना से मर रहे हैं. मौत का आँकड़ा शिफ्ट किया गया है. सब तरह की मौतों को कोरोना की लिस्ट डाल दिया गया है. 

जो कोई भी कोरोना से मरे बताये जा रहे हैं, वो ज्यादातर कोई और बीमारियों से पीड़ित थे, सीरियस बीमारियों से पीड़ित. या फिर वृद्ध थे. वैसे भी उन्होंने मरना ही था औसतन. इसमें नया कुछ भी नहीं है. 

मृत्यु कोई नई चीज़ है क्या? गुरबाणी कहती है,"जो आया सो चलसी, सब कोई आई वारी ए." 

we are all dead, it is the matter of time only. 

एक बार बुद्ध के पास एक औरत आई. रोती बिलखती हुयी. बुद्ध बैठे थे अपने शिष्यों के साथ. वो आई और उसने बुद्ध के चरणों में अपने मृत बेटे का शव रख दिया और कहा कि यह असमय मृत्यु को प्राप्त हुआ है, इसका अभी कोई समय नहीं था जाने का. यह तो बच्चा था, इसने अभी जीवन देखना था. मैं इसकी माँ जिंदा हूँ, इसका बाप जिन्दा है लेकिन यह मर गया. यह अनहोनी हुई है. आप तो सिद्ध-बुद्ध हैं.आप इसे जिन्दा कर दीजिये. बुद्ध ने कहा ठीक है, "मैं जिन्दा कर दूंगा. बस छोटा सा काम करना होगा आपको माते. आप किसी ऐसे घर से एक मुट्ठी मिटटी ला दें जहाँ मृत्यु न हुई हो."  

वो औरत तो बावली सी हो ही चुकी थी. भागी गाँव की ओर. पूरा गाँव घूम गयी. लेकिन एक मुट्ठी मिटटी न ला पाई. सांझ वापिस आई बुद्ध के पास, आँखों में आंसू. लेकिन अब वो बात समझ चुकी थी. मृत्यु अवश्यम्भावी है. बुद्ध को नमन किया और बेटे का शव वापिस ले गयी. 

ग़ालिब का शेर  है, "मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती" 

मौत का एक दिन तय है. मौत सबको आनी है. परेशानी किस बात की? लेकिन  परेशानी  है बहुत. अब सब मौत कोरोना से आ रही हैं जैसे कोरोना न होता तो सब अमर हो जाते. जैसे पहले कभी लोग मरते ही न थे. जैसे मौत का आंकड़ा एक दम से कोई बहुत ज़्यादा बढ़ गया. आप worldometers.info  पर जाएँ,  देखें। सिर्फ वहां जनसंख्या का आंकड़ा देखें, वो हर पल बढ़ रहा है. महा-मारी होती तो जनसंख्या बढ़ क्यों रही होती? 

है क्या कि मौतें चाहे किसी भी कारण से हो रही हैं, उन पर कोरोना का ठप्पा मार के कोरोना का आंकड़ा बड़ा कर के दिखाया जा रहा है. और कोरोना वाले शवों का अंतिम संस्कार कुछ खास श्मशानों में करना तय कर दिया गया है. सो वहां भीड़ बढ़नी ही है. उस बढ़ी हुई भीड़ को दिखाया जा रहा है. 

अब अगर आगे मौत का आंकड़ा थोडा बहुत बढ़ेगा भी तो वो कोरोना के नाम पर फैलाई गयी अफरा-तफरी की वजह से होगा. बद-इन्तेज़ामी और बेरोजगारी और मानसिक तनाव और डर की वजह से होगा. वो इलाज न मिलने की वजह से होगा चूँकि डॉक्टर लोग बाकी किसी रोग वालों को पूरी तवज्जो ही नहीं दे पा रहे. वो आंकड़ा इसलिए बढ़ेगा चूँकि लोगों को ठीक से साँस नहीं लेने दी जा रही.  घर में भी मास्क लगाने को बोला जा  रहा है,  कार में अकेले व्यक्ति को भी मास्क लगाने को बोला, डबल मास्क लगाने को बोला जा रहा है. लोगों को जब कुदरती  साँस लेने ही न दी जाएगी, उनके नाक-मुंह घोंट दिए जाएंगे,  डरा दिया जायेगा तो उनको नकली सांस देनी ही पड़ेगी. किसी को ऑक्सीजन मिलेगी, किसी को नहीं मिलेगी।  मौत का आंकड़ा  अब थोड़ा बढ़ भी सकता है, लेकिन वजह कोरोना बिलकुल  भी नहीं होगा.  

कोरोना के Experts की क्या स्टडी है? कितनी गहरी स्टडी है? देखते जाइयेगा. लगेगा जैसे लाल बुझक्क्ड़ इनसे ज़्यादा जानते हैं।  

अभी तक कह रहे थे कि कोरोना एक दूसरे को छूने से, चीज़ों को छूने से फैलता है अब कह रहे हैं कि नहीं नहीं कोरोना सरफेस छूने से नहीं फैलता. लोग हाथ धो-धो बावले गए, sanitizer  मल-मल पग्गल हो गए, अब कह रहे कि सरफेस छूने से नहीं फैलता कोरोना. 

पहले कह रहे थे कि घर में रहो कोरोना से बचे रहोगे। अब कह रहे हैं कि कोरोना हवा से फैलता है और घर में रहने से ज़्यादा फैलता है. यदि घर में रहने से ज़्यादा फैलता है तो फिर लॉक-डाउन से घटेगा या बढ़ेगा? 

एक खबर थी पीछे कि कोरोना २५००० साल से है. ठीक है. होगा. लेकिन इसका मतलब यह है २५००० साल से कोरोना के होने की बावजूद धरती पर जीवन पनपा है. फिर आज ऐसी क्या नई चीज़ हो गयी? जब २५००० साल से हम कोरोना के साथ जीए हैं, हमारी आबादी २५००० साल से कोरोना के होने के बावजूद बढ़ी है और आज भी बढ़ रही है तो फिर आज भी जी लेंगे न हम कोरोना मैडम के साथ. आज क्यों हाय-तौबा मचाई जा रही है?

बड़े मजे की बात है, जिस समय WHO ने कोरोना को वैश्विक महा-मारी घोषित किया था, तब भारत में तो किसी को कुछ पता ही नहीं था कि कोरोना भी कुछ है. यहाँ तो कोई मारा-मारी नहीं हुई थी. भारत में दुनिया की लगभग 18% आबादी रहती है. अगर सच में ही यह महा-मारी होती तो फिर WHO  को बताना थोड़ा न पड़ता, वो तो वैसे ही पता होता.

क्या आज तक आप ने कोई बीमारी ऐसी देखी  है जिसमें आप कहो कि  आपको कुछ नहीं हुआ लेकिन डॉक्टर कहे कि  नहीं आप बीमार हो? कोरोना ऐसी ही बीमारी है. An Asymptomatic Disease. मतलब बीमार होने के कोई लक्षण नहीं लेकिन फिर भी टेस्ट ने बता दिया कि आप बीमार हो तो हो. 

और इससे उल्टा भी कहा जा रहा है अगर टेस्ट नहीं भी हुआ या हुआ है लेकिन रिजल्ट आया नहीं है  लेकिन कोरोना के लक्षण हैं तो भी आपको कोरोना पॉजिटिव मान लिया जायगा. और कोरोना के लक्षण क्या हैं? वही जो खांसी ज़ुकाम नजले के होते हैं. 

वाह! एक्सपर्ट की Expertise.  

आगे देखिये, एक्सपर्ट्स कह रहे थे कि कोरोना अच्छी इम्युनिटी वालों पर कम असर करता है. गुड. अब ये क्या नई चीज़ बता दी? अच्छी इम्युनिटी वालों पर सभी रोग कम असर करते हैं. असल में आयुर्वेद तो वायरस को मानता ही नहीं. वो तो सीधा कहता है कि यदि आप मज़बूत हो तो रोग आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे यदि आप कमजोर हों तो कोई भी रोग आपको जकड़ लेगा. सिम्पल बात. और अच्छी इम्युनिटी कैसे होगी? घरों में बंद होकर? बेरोजगार होकर? रिश्तेदार-यार-दोस्तों से कट के? आपको याद है मुन्ना भाई MBBS फिल्म  में संजय दत्त की जादू की झप्पी. इम्युनिटी यारों से, रिश्तेदारों से, प्यारों से मिलने-जुलने से बढ़ती है भैया न कि घटती है. सब तो वो किया जा रहा है जिससे इम्युनिटी अच्छी हो तो  भी अच्छी न रहे. होना तो यह चाहिए था कि लोगों को खुले में रहने की सलाह दी जाती. खुली हवा-धूप लेने की सलाह दी जाती. प्राकृतिक खाना खाने की सलाह दी जाती. खुल के साँस लेने की सलाह दी जाती. प्राणयाम की सलाह दी जाती. अष्टांग योग में वायु को वायु मात्र नहीं माना गया. प्राण माना गया है. साँस द्वारा ली और छोड़े जाने वाली वायु को विभिन्न आयाम देने की क्रियाओं को प्राणायाम कहा है योग ने. लेकिन जब आप साँस द्वारा वायु ठीक से न अंदर लोगे और न ठीक से बाहर निकलोगे तो प्राण तो बाधित होगा कि नहीं. सिलिंडर बुक करना पड़ेगा कि नहीं. 

सब काम तो वो किये जा रहे हैं जिससे अच्छे-भले इंसान की इम्युनिटी गिर जाए. 

यह है एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़।  

एक टेस्ट RT-PCR खड़ा  कर दिया गया. टेस्ट बता रहा है कोरोना है तो है.  लेकिन टेस्ट का बताना  फर्जी भी तो हो सकता है. नहीं? चेक कीजिये, कहीं कोई विडियो है किसी के पास वायरस के अस्तित्व का? रियल टाइम में नुक्सान पहुंचाते हुए कोरोना का विडियो है क्या किसी के पास? क्या कोरोना, निपट कोरोना से मरने वाले का कोई पोस्ट मोर्टेम  का विडियो है किसी के पास? सवाल तो यह भी उठता है कि कोरोना जानवरों को नुक्सान क्यों नहीं पहुंचा रहा? वो भी तो जान-वर हैं. जब डॉक्टरी सिखाते हैं तो जान-वर को चीर-फाड़ दिल-गुर्दा-फेफड़ा दिखाते हैं कि नहीं। ज़हर  इंसान को दो, वो मर जायेगा, जानवर  को दो, वो मर जायेगा। लेकिन वायरस  मारता है सिर्फ इन्सान को ! एनाटोमी कहीं मिलती जुलती भी तो है. साँस तो वो भी ले रहे हैं. और जब वायरस हवा से ही फैलता है तो उनको नुक्सान क्यों नहीं पहुंचाता यह वायरस?  

मैंने तो अपनी गली का कोई कुत्ता इस ढेढ़ साल में मरते नहीं देखा. लेकिन अब खबर है कि शेरों में कोरोना पाया गया. एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है, सवाल कोई कैसे खड़ा करे? मजाल किसी की कहाँ? 

क्या कोई एक भी सबूत है टेस्ट के अलावा जिसे आम जनता को दिखाया सके  कि कोरोना  किसी भी लिविंग-बीइंग को कैसे और क्या नुक्सान करता है? क्या एक्सपर्ट्स ने साबित  किया कि कोरोना वायरस का साइज  ऐसा  है कि वो मास्क में से नहीं  गुज़र सकता?  अभी थोड़े महीने  पहले ही भारतीय सरकार  ने कहा था N -95 मास्क बेकार हैं. लेकिन कब कहा था? जब करोड़ों  N -95 बिक चुके थे. अब डबल मास्क लगाने को कहा जा रहा है.  कार में अकेले हैं फिर भी मास्क लगाने को कहा जा रहा है. कार में चलता हुआ अकेला व्यक्ति किसी के लिए क्या खतरा बनेगा? 

कोई भी वैक्सीन डेवेलप करने में १०-१५ साल लगते हैं और अब  एक-डेढ़ साल में ही वैक्सीन डेवेलप  भी हो गयी. और सबको लगेगी ही लगेगी. मतलब आप नहीं लगवाओगे तो आप पर पाबंदियां इतनी लगा दी जाएंगी की आप चाहो न चाहो वैक्सीन आपको ठुकवानी ही पड़ जाएगी.  

लेकिन आप सवाल नहीं उठा सकते.  एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है.

क्या दुनिया में सिर्फ एलॉपथी ही एक मात्र चिकित्सा विधि है? क्या प्राकृतिक  चिकित्सा, आयुर्वेद, योगिक-चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा, मनो-चिकित्सा  जैसी  कोई और विधि नहीं होती इलाज की? क्या इन विधियों ने वायरस को माना है? यदि नहीं तो फिर कैसे एकदम वायरस के अस्तित्व को आधार बना कर  वैश्विक आपदा घोषित कर दी? WHO के कहने मात्र से? एलॉपथी ने कितनी ही दवा दुनिया भर को खिलाने बाद वापिस नहीं ली क्या, ये कह के कि ये दवाएं घातक हैं? तब कहाँ जाती है, अंग्रेज़ी चिकित्सा की महा-विद्या?

लेकिन एक्सपर्ट की ऐक्सपर्टीज़ है. क्या बोलें?

इम्युनिटी, बीमारी और मृत्यु का मानसिक पहलु भी तो है. प्राणी सिर्फ शरीर थोड़ा न है. मेडिकल वर्ल्ड में प्लासीबो  इफ़ेक्ट और नोसीबो इफ़ेक्ट, दोनों को प्रभावी माना जाता है. 

ऐसे प्रयोग किये गए हैं कि दवा के नाम पर मीठी गोलियां दी गयी और बीमार ठीक हो गया. इसे प्लेसिबो इफ़ेक्ट कहते हैं. 

इसका उल्टा भी होता है. नोसीबो इफ़ेक्ट. बीमारी हो न लेकिन बीमारी घोषित हो जाये और लोग सच में बीमार होने शुरू हो जाएं. रस्सी को साँप समझाया जाये और लोग सांप ही  समझने लगें. खांसी-ज़ुकाम को कोरोना बताया जाये और लोग समझ जाएं. और अस्पतालों में भर्ती होने लगें. क्या आपको पता है कुत्तों को भी हार्ट अटैक होते हैं? डर इतना खतरनाक होता है कि पंगु कर देता है. ब्रेन हेमरेज हो जाये, हार्ट अटैक हो जाये. मन का तन पर असर है यह. क्वारंटाइन में पड़ा इन्सान तो वैसे ही अधमरा सा हो जायेगा. जिस तरह का माहौल  बनाया जा रहा है इसमें सब पग्गल से हो चुके हैं. क्या आज से पहले किसी ने खांसी ज़ुकाम होने पर ऑक्सीजन चेक की थी?  क्या आज से पहले ज़ुकाम होने पर नाक बंद नहीं होती थी? क्या सूंघेगा आदमी जब नाक बह रही हो? लेकिन आज घबराया हुआ है हर आदमी और यही घबराहट वजह बनेगी महा-मारी की. इससे बचना है तो थोड़ा डुबकी मारनी ही होगी स्थिति की वास्तविकता को समझने के लिए. Important यह नहीं है कि आप पढ़े-लिखे हैं, Important यह है कि आप पढ़ते-लिखते हैं कि नहीं. स्टडी कीजिये. टिक-टोक में टाइम मत गंवाईये. आपकी, आपके बच्चों की जिंदगियों का मामला है स्टडी कीजिये. 

सुनी होगी आपने कहानी। राजा सोया हुआ था,  एकदम नींद खुल गयी, हड़बड़ा कर उठा तो देखा, एक काला साया दिखा।  “कौन?”,  राजा ने पूछा. उसने कहा, “मैं महामारी हूँ. कोई एक हज़ार लोगों को मार दूंगी.”  महामारी अपने रस्ते निकल गयी।  फिर अगली रात राजा को वही साया दिखा. राजा बहुत परेशान था सो नहीं पाया था, कोई 10000 मौत हो चुकीं थी.  वो साया वापिस लौट रहा था। राजा ने पूछा, "तुमने तो 1000 लोग मारने का बोला था,  फिर भी 10000 लोग मार दिए?"  उसने जवाब दिया, "मैंने तो 1000 ही मारे हैं, बाकी 9000 तो डर से मरे हैं." 

कोरोना महामारी नहीं है, लेकिन डर निश्चित ही महा-मारी है और वैश्विक-डर वैश्विक-महामारी है. 

अब मैं  देता हूँ आपको कुछ नाम  एक्सपर्ट्स के. David Icke.  (डेविड आइक) इन के कोई 6 घंटे के  इंटरव्यू देखे मैंने.  कोरोना का पर्दाफाश करने वालों में सबसे बड़ा नाम है इनका. इनको फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब सब जगह बैन किया जा चुका है. davidicke.com यह वेबसाइट है इन की. इनकी वेबसाइट पर आपको कई लेख मिल जाएंगे पढ़ने लायक. विजिट कीजिये, वरना सरकारी मैटिरियल पर ही यकीन करते रहेंगे.

Dr Andrew Kaufmaan, Dr Rashid Buttar, Dr Shiva, ये कुछ एक्सपर्ट्स हैं अमेरिका के जो कोरोना वायरस को इंकार करते हैं. 

भारत के बिस्वरूप चौधरी को ढूँढो हालाँकि ये यूट्यूब, फेसबुक आदि पर बैन हैं. फिर भी ढूँढो. इनको सुनो. चंद लोगों में से हैं जो तुम्हें कोरोना से बचा सकते हैं. दवा नहीं देंगे, दुआ भी नहीं. अक्ल देंगे. ढूँढो कोरोना से बचना है तो.

ये चंद नाम हैं, इनको ढूंढिए और इनके विचार सुनिए. आपको तर्क करने के लिए मटेरियल चाहिए होगा. चाहे वो तर्क खुद से करना हो चाहे किसी और से. ये लोग आपको मटेरियल देंगे सोचने-समझने के लिए. कोरोना को विभिन्न पहलुओं से आपको समझायेंगे।  इन लोगों को आप तक पहुँचने ही नहीं दिया जा रहा. किसी भी निष्पक्ष सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि वो विरोधी विचारों को भी प्रवाहित होने दे, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया .

सरकार कह रही है कि अफवाहों से बचें. ठीक है. लेकिन अफवाह क्या है? कैसे साबित होगा? जब सरकार जनता को सोचने तक नहीं देगी तो क्या पता अफवाह क्या है? सच क्या है ? 

आप सवाल उठाते है कि कोरोना यदि घातक नहीं तो  फिर  सारी दुनिया में तहलका क्यों है? जवाब यह है कि इन्सान सिर्फ मानता है, वो सोचता कहाँ है?  

है क्या कि इन्सान को तर्क करना नहीं सिखाया गया. उसे विश्वास करना सिखाया गया है. सारी पेरेंटिंग, स्कूलिंग विश्वास करना सिखाती है. सारा समाज विश्वास करना सिखाता है. तर्क करना कोई नहीं  सिखाता. इसलिए आम इन्सान कुछ भी मान लेता है. 

दूसरी बात, वो तर्क करता भी है तो बड़ी जल्दी सरेंडर कर देता है. जैसा बच्चा पूछता है कि मैं कहाँ से आया. हनुमान जी दे गए थे. सवाल कितना गहरा है. आज तक कोई ठीक से जवाब न दे  पाया कि मैं कहाँ से आया लेकिन हनुमान जी दे  गए थे, बात खत्म. इतने बड़े सवाल का इतना सीधा जवाब, बात खत्म. ऐसे ही आम इन्सान बहुत आगे तक तर्क नहीं करता. बड़ी जल्दी हार जाता है. 

तीसरी  बात, आम इन्सान तर्क को तर्क की गहराई से नहीं नापता, बल्कि तर्क कहाँ से आ रहा है, वहां से आंकता है. वो यह नहीं देखता की तर्क "क्या" है,  वो यह देखता है तर्क "कौन"  दे रहा है. वो “क्या” की बजाए “कौन” से ज़्यादा प्रभावित होता है. अगर कोई डॉक्टर तर्क दे  रहा है, सरकार कोई तर्क दे  रही है तो ठीक ही होगा. आम इन्सान हिम्मत ही नहीं करता, उन तर्कों के खिलाफ सोचने का.

चौथी  बात, आम इन्सान भीड़ से बड़ी जल्दी प्रभावित हो जाता है, यदि भीड़ एक तरफ है तो उसे लगता है कि भीड़ सही ही होगी. वो भीड़ से सम्मोहित हो जाता है. Walter Lippmann के मशहूर शब्द हैं, 'Where all think alike, no one thinks very much.” जब सब एक ही जैसा सोचते हैं तो असल में कोई भी कुछ खास सोचता ही नहीं. भेडचाल में बहे जाते हैं सब. हमारे एक प्रॉपर्टी डीलर को कागज़ात देखने नहीं आते. ज़्यदातर डीलरों को कागज़ात देखने नहीं आते. तो वो बन्धु कागज़ात देखते हुए कहते, “यदि दस बार बिकी है ये प्रॉपर्टी तो कागज़ात ठीक ही होंगे, जिन दस लोगों ने पहले खरीद की है, वो कोई बेवकूफ थोड़ा न होंगे.” आप हंस सकते हैं लेकिन आप भी ऐसे ही तर्क खुद को देते हैं.   

पांचवी बात..... इंसान विचार कर सकता है लेकिन करता नहीं है. वो विश्वास करता है. विचार करने के लिए श्रम लगता है. विश्वास सीधा किया जा सकता है, कोई श्रम की ज़रूरत नहीं. विचार करने के लिए तन-मन-धन सब लगाना पड़ सकता है, विश्वास अंधे हो के किया जा सकता है. कोई किताब-रसाला पढ़ने की ज़रूरत नहीं. कोई यूट्यूब वीडियो देखने की ज़रूरत नहीं. विश्वास आसान रास्ता है, विचार बहुत श्रम मांगता है. तुम आसान रास्ता चुनते हो. मिसाल देता हूँ. तुम्हे कोरोना-कथा सुनाई गई. तुमने उसे सत्य-कथा मान लिया. तुमने कोशिश की क्या कोरोना-कथा के तथ्यों को परखने की? नहीं की. अधिकांश ने कोई कोशिश नहीं की गहरे में जाने की. 

छठवीं बात........आम बंदे को यह लगता है कि यदि कोरोना कुछ नहीं तो सरकार कैसे चुप है? सरकार क्यों कॉलर tune जबरदस्ती सुनवा रही है. असल बात यह है कि लोकतंत्र में जो सरकार चुनी जाती है, उसमें  कोई बहुत बुद्धिशाली लोग होते ही नहीं. हो ही नहीं सकते. इसलिए चूँकि उस सरकार को कोई वैज्ञानिक, कोई कलाकार, कोई इतिहासकार, कोई साहित्यकार नहीं चुनते. वो सरकार आम लोग चुनते हैं. और उस सरकार में कोई एक्सपर्ट नहीं चुने जाते. आम लोग चुने जाते हैं. जो साम-दाम-दंड-भेद जैसे भी सत्ता पर काबिज़ हो जाते हैं. सत्ता में आने के बाद भी इनका ज़्यादा समय सत्ता बचाने में ही लगा रहता है. ये कैसे किसी भी विषय की गहनता में जायेंगे? एक मंत्री राम दास अठावले तो “कोरोना गो, गो कोरोना” ऐसे गा रहे थे जैसे कोई मान्त्रिक भूत भगा रहा हो. एक मिनिस्टर अशोक गहलोत तो भूल ही गए कि उन्होंने लॉक- डाउन लगाया है कि क्या लगाया है. वैसे सरकार जी पर नेशनल/ इंटरनेशनल प्रेशर भी रहता है. एकदम स्वतंत्र निर्णय लेना मुश्किल काम है इनके लिए. कोरोना के मामले में ऐसा ही हुआ है, भारतीय सरकार ने WHO के दावों पर कोई भी स्वतंत्र स्टडी, कोई एक्सपेरिमेंट नहीं किये, बस WHO का कथन ब्रह्म-वाक्य की तरह मान लिया. 

अब चूँकि सरकार कह रही है कोरोना है, बल्कि सब सरकारें कह रही हैं, डॉक्टर कह रहे हैं. हर कोई कह रहा है कोरोना है तो कोरोना है. ऐसे में कौन तर्क भिड़ाये, क्यों तर्क भिड़ाये, क्यों आंकड़ों का विश्लेष्ण करे, कौन मेहनत करे?

फिर भी मैं आपको कह रहा हूँ कि हिम्मत करो. सोचो. 

आपको लगता है कोरोना-मास्क-लॉक-डाउन चंद दिनों का खेल है, जीवन वापिस पटरी पर आ जायेगा. नहीं आएगा. संभावना  यह है कि दुनिया को ऐसे डेड-एन्ड तक ले जाया जाएगा जहाँ से आम ज़िंदगी में कभी वापिसी नहीं हो पाएगी. सब planned  लग रहा है. प्लॉट Contagious फ़िल्म से उठाया गया लग रहा है. ऐसा लगता है जैसे इसमें Computer Programming  का एक्सपीरियंस भी जोड़ा गया है. Human Mind बड़ी आसानी से program किया जा सकता है, कंप्यूटर की तरह. Virus एक प्रोग्राम होता है औऱ Anti-virus  भी. Corona एक प्रोग्राम है और Vaccine भी. लेकिन प्लान वैक्सीन बेचने का ही नहीं है, उससे कहीं आगे का प्रतीत हो रहा है. अफरा-तफरी मचा के सब सिस्टम खत्म कर, New World Order  खड़ा करने का. 

The Johns Hopkins Center  और  Bill and Melinda Gates Foundation ने  Event 201 आयोजित की थी. यह एक एक्सरसाइज थी कि यदि वैश्विक महामारी फैलती है तो दुनिया इसे कैसे झेलेगी, कैसे रियेक्ट करेगी. 

सितम्बर 2019 में इवेंट 201 किया गया था और दिसंबर 2019 में covid -19 घोषित कर दी गयी. इत्तेफ़ाक़ इतना ज़्यादा है कि शक होना लाज़िम है कि रिहर्सल करने के बाद असल खेला शुरू कर  दिया गया. 

असल में यह जो सेकंड वेव कोरोना की बताई गयी है, पहले से ज़्यादा खतरनाक बताई गयी है, वो खतरनाक बताना ही पहले से ज़्यादा खतरा बन रहा है. पहले से ज़्यादा डर. फिर तीसरी वेव और ज़्यादा खतरा बताई जा सकती है. डर,  बद-इन्तेज़ामी, अफरा-तफरी और बेरोज़गारी जितनी बढ़ती जाएगी उतनी मृत्यु दर बढ़ने की सम्भावना है और वजह बताई जायेगी कोरोना. 

Corona  से इस दुनिया की कोई वैक्सीन, कोई डॉक्टर, कोई वैज्ञानिक, कोई सरकार तुम्हें नहीं बचा सकती. एक ही चीज़ बचा सकती है. डर से बाहर आओ. सरकारी आंकड़ों की छानबीन करो. आंकड़ों का विश्लेषण करो. देखो और सोचो, यदि कोरोना वैश्विक महा-मारी है तो विश्व की जनसँख्या बढ़ क्यों रही है जो मौतें हो रही हैं, पहले से बहुत ज़्यादा हो रही हैं क्या? उनमें से कितनी मौत के डर से, इलाज न मिलने की वजह से, बेरोज़गारी से, मानसिक तनाव से,  सामाजिकता न मिलने से, अफरा-तफरी की वजह से, पुलिस-कोर्ट में ठीक से सुनवाई न होने की वजह से हुईं? आँकड़े ढूंढों और विश्लेषण करो यदि बचना है तो.

पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत्त. गुरबाणी में कहा गया है. हवा गुरु है, पानी पिता है और धरती माता है. लेकिन अब पवन जो गुरु हैं वो हमारी दुश्मन है. उसमें ज़हर है, वायरस है. हो सकता है क्या ऐसा? लेकिन आप ज़िंदा अपनी वजह से नहीं हो. आप जिन्दा इसलिए हो क्यूंकि सामूहिक चेतना, Cosmic  Consciousness  ने  चाहा कि आप जिन्दा रहो. उसने सारे इंतज़ाम किये कि आप ज़िंदा रहो. उसने हवा, धुप, पानी सब इस ढंग से बुना कि आप जिन्दा रह सको. उसने गर्मी पैदा की तो तरबूज़ भी पैदा किये, नारियल भी पैदा किये। उसने सर्दी पैदा की तो मूंगफली भी पैदा की,  बादाम भी पैदा किये. उस सामूहिक चेतना का ताना-बाना ही है जो बाकी जानवर जिन्दा हैं. यदि उसने जीवन हवा से ही खत्म करना होता तो फिर जीवन सिर्फ इंसान का ही खत्म थोड़ा न होगा. साँस तो बाकी जानवर भी ले रहे हैं. सो कुदरत सपोर्ट ही नहीं कर सकती कि कोई वायरस इस तरह से जिंदा रहे और मात्र इंसानी जीवन को नुक्सान पहुंचाए.  चूँकि कुदरत का हवा-पानी- धुप-गर्मी-सर्दी का ताना बाना यदि जीवन को नुक्सान पहुंचाएगा तो फिर वो सारे तरह के जीवन को नुक्सान पहुंचाएगा. थोड़ा बुद्धि लगाएं, बात समझ आ जाएगी. 

किसान आंदोलन सबूत है कि कोरोना असल में कुछ नहीं है. किसान महीनों से बैठे हैं सड़क पर. कोई मास्क नहीं, कोई सोशल डिस्टेंसिंग  नहीं. कौन सी महा-मारी फ़ैल गयी वहाँ? जो मौतें हुईं, वो औसतन वैसे भी होनी थी. जब इतने लोग जमा होंगे कहीं तो कोई न कोई तो वैसे भी मर सकता है, इसमें क्या बड़ी बात? बंगाल में रैलिया होती रहीं भीड़ जमा होती रही, कुछ महा-मारी न हुई. अमित शाह और मोदी बिना मास्क के घुमते दीखते  हैं, क्यों? चूँकि उनको पता है कोरोना कुछ नहीं है. 

सवाल तो बनते हैं. उठाओ तो. नहीं उठाया तो कल फिर किसी और नाम से डराया जायेगा और दुनिया उथल पुथल कर दी जाएगी. कल कहा  जा सकता है की एलियन अटैक करने वाले हैं. शहर  छोड़ों, जंगल जाओ. कुछ भी कहा जा सकता है. सो आवाज़ उठाओ. हम अपनी ज़िन्दगी के इतने अहम फैसले क्या किसी सरकार को करने देंगे जो कि किसी भी संस्था के कहने मात्र से सब सिस्टम बदल दे. हमें आंकड़े चाहिए, आंकड़ों का विश्लेषण चाहिए, हमें कोरोना के सबूत चाहिए.

किशोर अवस्था में ओशो की एक किताब पढ़ी थी, "अस्वीकृति में उठा हाथ". आज मेरा हाथ भी कोरोना की जो थ्योरी पूरी दुनिया में चलाई जा रही है उसके खिलाफ अस्वीकृति में उठा है. इसका मेरे  पास प्रैक्टिकल सबूत भी है. जिस कॉलोनी में मैं रहता हूँ, कोई अढ़ाई-तीन हज़ार लोग होंगे यहाँ. पिछले डेढ़ साल में मात्र 5-6  लोग expire हुए हैं मेरी जानकारी में. जिनमें से एक मेरी माँ  भी थीं. वो कोई 85 -90  साल के बीच थीं. और तकरीबन आठ साल से बीमार थीं. दूसरे एक व्यक्ति भी कोई सात साल से बेड  पर थे और तकरीबन सत्तर साल के थे. बाकी लोग 60 -65  साल के थे. ये न तो कोई महामारी  हुई  और न ही कोई हाहा-कारी हुई. 

दूसरी बात, वो यह कि मेरा व्यक्तिगत तजुर्बा है कि नजले-खांसी में रहन-सहन, खान-पान बदलने से तुरत फायदा मिलता है. फ्रूट, सलाद ज़्यादा खाया जाये, अन्न बंद कर दिया जाये या कम कर दिया जाये, खुद बनाया हुआ सब्जियों का सूप और नीबूं पानी पीया जाये, स्टीम  सब्जियों खाई जायें तो फायदा मिलता है. हल्का व्यायाम और प्राणायाम भी फायदा देता है. स्टीम लेने से और गर्म पानी पीने से भी फायदा होता है. कुछ ही दिन में नजला गो, गो नजला हो जाता है. यह कोई बहुत चिंता वाली बात होती नहीं. अगर होती तो अब तक कई बार मर चुका होता मैं .  

आप समझ भी रहे है क्या कि आपके लगभग सब हक़, जिनके लिए इन्सान ने सदियों संघर्ष किया है एक झटके में खत्म किये जा रहे हैं? आज आपका कमाने का हक़, रिश्तेदारों-मित्रों को मिलने-जुलने का हक़, घूमने-फिरने का हक़, अपनी बात खुल कर कहने का हक़, इलाज पाने का हक़,.ठीक से साँस लेने का हक़.... सब हक़ खत्म किये जा रहे हैं.  शक्ल तक दिखाने का हक़ नहीं है आपको आज. आज आप एक शक्ल विहीन प्राणी हैं. आपकी कोई पहचान नहीं है. ...... ये हक़ आपको वापिस पाने होंगे। आपको बुद्धि प्रयोग करनी होगी. करनी ही होगी. 

आपने यहाँ तक मेरी बात को सुना, शुक्रिया. मेरी नजर में कोरोना Pandemic नहीं है, Plandemic है. Scamdemic है. कोरोना मृत्यु के आंकड़ों का गलत प्रेजेंटेशन है, समाज में फैलाया गया डर है, आम-जन को सब तरह के इलाज से विहीन करना है, मास्क लगवा कर कुदरती साँस लेने से दूर करना है, लॉक-डाउन लगवा के खुली हवा-खुली धूप से विहीन करना है, दाल-रोटी कमाने से महरूम करना है, डर के माहौल में मरे-मरे जीना सिखाना है कोरोना. कोरोना इन्सान को लगभग सभी बुनियादी हकों से महरूम करना है. यह मेरा नजरिया है. 

लेकिन मेरी नज़र खराब हो सकती है. नजरिया गलत हो सकता है. सौ प्रतिशत गलत. सो आपको मेरी कोई भी बात बिलकुल भी माननी नहीं है. बस विचार करनी है. नमस्कार. 

~  तुषार कॉस्मिक  ~

इसी लेख का विडियो रूप यहाँ देख सकते हैं.......

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/posts/10218774195007405

1 comment:

  1. Very nice and informative analysis. Everybody must read it to deal with and protest against this all world-wide propaganda.

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