नमस्कार, मैं तुषार कॉस्मिक
कोरोना असल में है या फर्ज़ी है, इसे तय करने के दो तरीके बता रहा हूँ.
अंग्रेज़ी दवाओं के, वैक्सीन के वर्षों तक ट्रायल होते हैं, फिर बाजार में उनको उतारा जाता है. मैं और मेरे अलावा दुनिया के बहुत से लोग, अलग-अलग मुल्कों के लोग, डॉक्टर, पैथोलोजिस्ट कोरोना को फ़र्ज़ी बता चुके हैं या इस सारी कोरोना कथा में छेद देख रहे हैं. एक तरीका है हम जैसों को संतुष्ट करने का. एक एक्सपेरिमेंट. मेरे जैसे लोगों में से 1000-2000 लोग लिए जाएं, जो न मास्क लगाएंगे, न वैक्सीन लेंगे. बस योग-व्ययाम करेंगे, प्राणायाम करेंगे, फल सब्ज़ियां मेवे खायेंगे, दिन में पेड़ों के नीचे खुली हवा लेंगे, सुबह की धूप लेंगे. इस के अलावा इन को प्रेरणादायक, उत्साहवर्धक किस्से, कहानियां, भाषण सुनाए जाएंगे. देखिये तो उनमे कितने बीमार होते हैं? मरते हैं? वालंटियर मिल जाएंगे, विश्वास है मुझे. कर के तो देखिए एक तज़ुर्बा. पता लगेगा कोरोना है भी या बस डर का खेल ही है?
कोरोना वाकई कुछ है या नहीं, इस बात की तह तक जाने का एक और आसान तरीका है. वो यह कि जिन भी लोगों पर मेरे जैसे तथाकथित Conspiracy Theorist शंका कर रहे हैं, उनका lie detector Test, Narco Test करवाया जाए. विभिन्न देशों के प्र्धानमंत्रों, राष्ट्रपतियों और बिल गेट्स और अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर Fauci और एलन Musk आदि के Lie detector Test, Narco Test करवाए जाएँ. इनसे उन टेस्ट में यह भी पूछा जाये कि इन्होने अपने परिवारों को, अपने बच्चों को, खुद को कोरोना से बचाने के लिए कौन सी वैक्सीन लगवाई है.
क्या सोच रहे हैं? यह नहीं हो सकता. हो सकता है. जब आधी दुनिया पर RT-PCR टेस्ट किया जा सकता है तो इन लोगों पर lie detector Test, Narco Test भी किये जा सकते हैं. पता तो लगे , माजरा क्या है. पूरी इंसानियत का सवाल है आखिर.
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बड़ा सवाल है कोरोना है और कोरोना से लोग मर रहे हैं. लेकिन मेरा मानना कुछ और है.
ओशो ने एक कहानी सुनाई है, सुनाता हूँ बात क्लियर हो जायेगी.
बर्नार्ड शॉ जब कोई साठ साल के आस-पास के हुए लंदन छोड़ दिया और दूर कहीं गाँव में जा बसे. क्यों? चूँकि उस गाँव के कब्रिस्तान से गुजरते हुए उन्होंने कब्र के एक पत्थर पर पढ़ा, "यहाँ सौ साल की कम उम्र में गुज़र जाने वाला व्यक्ति सो रहा है."
वो वहीं रुक गए. जहाँ सौ साल की उम्र में गुज़रे व्यक्ति को भी कम उम्र का समझा जा रहा हो, ऐसा गाँव निश्चित ही रहें लायक है. और वो वहीं बस गए और तकरीबन सौ साल ज़िंदा भी रहे. इतना ज़्यादा असर पड़ता है समाजिक मान्यताओं का इंसान की सेहत, उम्र और मौत पर. कलेक्टिव सम्मोहन. जिस समाज, जिस व्यक्ति ने मान लिया कि बीमारी है, बीमारी है तो वो बीमार हो ही जायेगा. इसे NOCEBO Effect भी कहते हैं. जिस समाज ने, जिस व्यक्ति ने मान लिया कि वो स्वस्थ है, स्वस्थ रहेगा तो वो स्वस्थ रहेगा. इसे Placebo Effect कहते हैं. अभी आपने देखा नकली Remidisivir से भी ९० प्रतिशत लोग ठीक हो गए. मुझे लगता है कि कोरोना का डर, यह डर कहीं घातक साबित हुआ है.
मेरा एक लेख है, "आओ जादू सिखाता हूँ", इसमें मैंने दो मिसाल दीं हैं. पहली मिसाल बुधिया सिंह है. एक छोटा बच्चा। दूसरी मिसाल फौजा सिंह हैं. फौजा सिंह १०० साल से ज़्यादा के हैं और मैराथन चैंपियन रहे हैं अपने ऐज ग्रुप में. ऐसे लोग किसी तरह से समाज ने जो लकीरें थोप रखीं होती हैं उन से बच गए और वो कर गए जो आम तौर पे लोग नहीं कर पाते.
मेरी समझ यह है कि इंसान की सेहत, उसकी उम्र, उसकी मौत पर उसकी मानसिकता और उसकी मनोस्थिति बहुत ही ज़्यादा असर डालती है.
ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के डर से हुईं? यह भी सवाल है.
ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या वैसे ही होनी होतीं औसतन, वही हुईं? यह भी सवाल है. आंकडें हैं क्या हमारे पास? ध्यान दीजिये महा-मारी में भी यदि जनसंख्या बढ़ रही हो तो महा-मारी को महामारी कहा जाए या नहीं? सवाल तो है. गूगल कीजिये Worldometers.info जनसंख्या बढ़ती हुई दिखा रहा है. लेकिन हो सकता है मौत का आंकड़ा कुछ बढ़ा भी हो. आईये थोड़ा आगे देखिये.
ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या बाकी बीमारियों का इलाज न मिलने से हुई या अफरा-तफरी से हुईं या बद -इन्तेज़ामी से हुईं, यह भी सवाल है. ध्यान कीजिये भारत में सरकारी अस्पताल कोई बहुत अच्छे नहीं हैं, एक ही बेड पर दो-दो लोग देखें हैं मैंने.
ये जो मौतें हुईं, वो कोरोना से हुईं या कोरोना के इलाज में गलत-शलत इलाज देने से हुईं यह भी सवाल है. याद कीजिये कोरोना के बहुत से तथाकथित इलाज सरकार खुद बंद कर चुकी है. पिछले साल Hydroxychloroquine कोरोना की दवा बताई जा रही थी, फिर प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा था, फिर Remdesivir दी जा रही थी. अब ये सब दवा कोरोना की दवा नहीं मानी जा रहीं. इन दवाओं ने कितना नुक्सान किया, किसे पता है?
यहाँ एक पॉइंट और क्लियर करना चाहता हूँ, जो लोग डॉक्टरों की मौतों का हवाला दे कर कोरोना का अस्तित्व साबित करना चाहते हैं, उन्हें बता दूं कि डॉक्टर भी उन्ही सब भ्रमों का शिकार हैं, जिनका आम इन्सान शिकार है. मेरे पास खबर है, डॉक्टर की आंत में फंगस हो गया चूँकि गलत दवा दी गयी उन को. हमारे यहाँ पढाई किस तरह से होती है सब को पता है. पढ़ाई कोई अनुसन्धान करने के लिए, कोई विश्लेष्ण करने के लिए, कुछ discover करने के लिए, कोई इन्वेंशन करने के लिए नहीं होती. पढ़ाई का एक मात्र उद्देश्य डिग्री हासिल कर के पैसा कमाना होता है. हमारे डॉक्टरों ने कोरोना के अस्तित्व को समझने के लिए कोई अलग से एक्सपेरिमेंट नहीं किये हैं. वो सिर्फ सरकार का कहा मान कर काम रहे हैं और सरकार WHO का कहा मान कर काम कर रही है.
एक और पॉइंट है, यदि कोरोना कुछ नहीं है तो लोग ऑक्सीजन के लिए एका-एक क्यों चीख-पुकार लगाये हुए थे. मेरा मानना यह है कि लोगों ने ऑक्सीजन अपने से नहीं माँगी होगी. आम-जन को कैसे पता कि उसे ऑक्सीजन चाहिए. हाँ, उसे साँस लेने में दिक्कत ज़रूर महसूस हुई होगी. Breathlessness महसूस हुई होगी. इस की फौरी राहत ऑक्सीजन सुझाई गयी डॉक्टर्स द्वारा. लेकिन सवाल यह है कि Breathlessness क्यों महसूस हुई लोगों को. उसका जवाब मेरी तरफ से यह है कि खांसी-नज़ला-ज़ुकाम पहले भी होता था लोगों को और ऐसा अक्सर होता था कि नाक बंद हो और बंद नाक की वजह से ठीक से साँस न आ पा रही हो. या खांसते-खांसते इन्सान बदहवास सा हो जाये और उसे Breathlessness महसूस हो. लेकिन चूँकि अब कोरोना का डर है तो इस डर ने इस Breathlessness को कहीं ज़्यादा गुणित कर दिया, multiply कर दिया.
अभी विवाद चल रहा है एलॉपथी और आयुर्वेद का.......यहाँ मुझे राम देव ज़्यादा सही लगते हैं. सब जगह सही नहीं लगे लेकिन यहाँ सही है. एलॉपथी बिलकुल इस्लाम की तरह है. इनकी नज़र में आयुर्वेद, हिकमत, नेचुरोपैथी, होमियोपैथी , हिप्नोथेरपी कोई ख़ास माने नहीं रखती. .........और ये तन से शुरू करती है ......मन के प्रभाव को इग्नोर कर देती है...जबकि अभी मैंने आपको बताया कि इंसान के जीवन-मरण में उसकी मानसिकता का बहुत बड़ा प्रभाव होता है.
डॉक्टर बस प्रिस्क्रिप्शन लिखता है और हजार रुपये ले लेता है. यह कंसल्टेशन नहीं है. कंसल्टेशन मतलब सलाह, वो कोई सलाह थोडा न देता है, वो बस दवा क्या लेनी है, कैसे लेनी है यह बताता है.........थोडा बहुत कुछ और बस.
आयुर्वेद सब बताता है क्या खाओ, क्या न खाओ, क्या पीयो, पीयो, कैसे जीओ. आयुर्वेद, आयु का वेद है.
प्राणयाम साँस द्वारा ली जाने वाली हवा को सिर्फ हवा नहीं मानता, वो इसे प्राण मानता है, तो प्राण को विभिन्न आयाम देने की विधियों को प्राणायाम कहा है हमने. प्राणायाम मात्र साँस के प्रयोगों से आपके प्राणों में प्राण डालता है, जान डालता है.
सम्मोहन, यह भी अपने आप में एक शक्तिशाली विधा है. नकली दवा से भी लोग ठीक हो गए, बताया ही है मैंने. यह सम्मोहन है.
नेचुरोपैथी कहती है कि आप हवा, पानी, मिटटी, सूरज की रौशनी अदि से ही बीमारियों का इलाज कर सकते है. और बिलकुल ठीक कहती है. असल में हम मिटटी, हवा, पानी, आकाश , अग्नि से ही तो बने हैं. यही तो कुदरत है. मिटटी में लौटना, खुली हवा में साँस लेना, साफ़ पानी पीना, नरम धुप लेना यह सब नेचुरोपैथी है. स्वस्थ शब्द का मतलब ही है स्वयं में स्थित होना. और कुदरत के साथ रहना स्वयं में स्थित होना ही होता है इसलिए तो आप घरों में धुआं उगलती हुई फैक्ट्री के चित्र नहीं लगाते, आप पेड़, पौधों, नदी, पहाड़ के चित्र लगाते हैं. यही नेचुरोपैथी है.
क्या कोरोना का अस्तित्व तय करने में और कोरोना के इलाज में सरकार ने एलॉपथी से हट के जो भी प्रमुख इलाज की विधियाँ हैं, उन विधियों के विशेषज्ञों से सलाह ली, उन विधियों का प्रयोग किया? नहीं किया.
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यहाँ एक और मुद्दा गौर-तलब है. जो भी लोग कोरोना को फ़र्ज़ी बता रहे हैं उनको Conspiracy Theorist बताया रहा है. Conspiracy Theorist कौन हैं?
हर मुद्दे को बेवजह साज़िश समझने वाले, साज़िश देखने वाले लोग. यह बढ़िया है. गुड. बस किसी संज्ञा विशिष्ठ का ठप्पा मार के सवाल खड़े करने वाले का चरित्र-हनन कर दो. उसकी बात की अहमियत ही खत्म कर दो. कुछ मिसाल देना चाहता हूँ. जिस वक्त सुकरात को ज़हर दिया गया तो उन पर आरोप यही था कि वो युवाओं को भड़का रहे हैं, भ्र्ष्ट कार रहे थे. व्यवस्था खराब कर रहे थे. वो उस वक्त के Conspiracy Theorist थे. जीसस भी वही थे Conspiracy Theorist. जॉन ऑफ़ आर्क भी वहीं थीं Conspiracy Theorist. गैलेलिओ भी वही थे Conspiracy Theorist. तभी तो ऐसे लोगों को या तो मार दिया गया या कष्ट दिया गया. क्या कुछ भी मान लेने वाले लोग ही सही होते हैं? असल बात यह है कि जो लोग सोचते हैं, तर्क करते हैं, सवाल उठाते हैं वो हमेशा ही Conspiracy Theorist नजर आयेंगे। मेरी गुज़ारिश है, ठप्पा मत मारें, सवाल उठाने वालों का मुंह बंद न करें। उनके सवालों का सामना करें और जवाब दें.
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जवाब दीजिये कि कोरोना कथा Contagious फिल्म से क्यों इतना मिलती है कि ऐसे लग रहा है जैसे फिल्म को असल ज़िंदगी में फिट कर दिया गया हो.
जवाब दीजिये कि वर्ल्ड बैंक वेबसाइट पे यह क्यों मेंशन है कि 2018 में ही 382200 कोरोना टेस्ट किट दुनिया के विभिन्न मुल्कों में पहुंचा दी गईं थी.
जवाब दीजिये कि October 2019 में बिल गेट्स फाउंडेशन और जॉन हॉपकिंस सेंटर द्वारा जो इवेंट 201 आयोजित किया गया था, वो कोरोना महामारी की एक दम रिहेर्सल जैसा क्यों था? और इसके ठीक बाद दिसम्बर 2019 में ही कोरोना का पहला केस कैसे मिल गया? इतना संयोग कैसे?
जवाब दीजिये कि आपने WHO के कथन को ब्रह्म वाक्य कैसे मान लिया? WHO द्वारा बताई बीमारी को बीमारी मान लिया, उसके बताये इलाज को इलाज मान लिया, अंतिम क्रिया तक को लिफ़ाफाबंद क्यों कर दिया WHO के कहे अनुसार? आपने लोगों को अपने हिसाब से इलाज क्यों चुनने नहीं दिया? आपने दुनिया जहां की जो इलाज पधतियों को लोगों के इलाज का मौका क्यों नहीं दिया?
डॉक्टर बिसरूप चौधरी शुरू से बता रहे हैं कि तथाकथित कोरोना मरीज़ों का इलाज बिना दवा के कर सकते हैं, सिर्फ खान-पान बदल कर. उनको खुल कर मौका क्यों नहीं दिया गया?
बाबा रामदेव कह रहे हैं कि वो पूरा कोरोना मैनेजमेंट अपने हाथ में लेने को तैयार हैं, उनको एक्सपेरिमेंट के तौर पे ही सही, कुछ मौका शुरू क्यों नहीं दिया गया?
दक्षिण भारत के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर है BM Hegde जी. कोरोना पर, इम्युनिटी पर उनकी सलाह ली क्या सरकार ने? या आम-जन को उनकी सलाह लेने की सलाह सराकर ने दी क्या? जवाब दीजिये
जवाब दीजिये डॉक्टर विलास जगदाले को, डॉक्टर tarun कोठारी को जो कोरोना को पूरी तरह षड्यंत्र बता रहे हैं, वो गलत हैं क्या?
उठते सवालों पे मौन मत रहिये, जवाब दीजिये.
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एक सवाल मैं पूछता हूँ ..... आपको कोई दिक्क्त-तकलीफ होगी तो आप ही तो डॉक्टर से सम्पर्क करोगे और उसे बताओगे कि आप सही फील नहीं कर रहे? या कोई भी डॉक्टर आप के घर आएगा और आपको बताएगा कि आप बीमार हैं और आप मान जाएंगे कि हाँ, यार मैं बीमार हूँ? सोचिये. बड़ा ही सिंपल सा सवाल है.
जवाब यह है, अगर दिक्क्त परेशानी आपको है तो आप ही डॉक्टर के पास जाते हैं, आप ही बताते हैं डॉक्टर को कि आपको कोई दिक्क्त है. राइट?
अब याद कीजिये कोरोना की शुरुआत को. भारत को कैसे पता लगा कि कोरोना भी कोई बीमारी है? भारत को खुद से पता लगा कि कोरोना कोई बीमारी है या उसे बताया गया? याद कीजिये. भाई जी, भारत, वो भारत जहाँ दुनिया की लगभग २०% आबादी रहती है, उसे कुछ पता नहीं था कि कोरोना किस चिड़िया का नाम है जब कोरोना को बीमारी नहीं, महामारी नहीं, वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया WHO द्वारा. वैश्विक महामारी, जबकि २०% विश्व को कुछ पता ही नहीं था ऐसी किसी महामारी का, क्योंकि यहाँ कोई महा-मारी हुई ही नहीं थी. लेकिन डॉक्टर ने, यानि WHO ने बताया कि महामारी है तो एक भले चंगे इंसान यानि भारत जी ने मान लिया कि बीमारी है.
क्या हमारे प्रधान मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री का यह फ़र्ज़ नहीं बनता था कि वो पूछते कि किस आधार पर मान लें कि कोरोना कोई घातक वायरस है. ठीक है, आपका टेस्ट RT -PCR बता रहा है कि कोरोना है तो मान लेते हैं कि है लेकिन उस वायरस से क्या नुक्सान हो रहा है इसके आंकड़े कहाँ है?मौतें? मौत तो हज़ार वजह से हो सकती है. आपका टेस्ट कोरोना बता भी दे तब भी. कैसे पता कि मौत किसी और वजह से नहीं हुईं और सिर्फ और सिर्फ कोरोना से ही हुईं हैं?
एक कमरे में प्रोफेसर मोरीआरटी की मौजूदगी मात्र से ही शर्लाक होल्म्स मान लेगा क्या कि कत्ल मोरीआरटी ने ही किया है जबकि वहां सैकड़ों लोग और मौजूद थे और कत्ल किसी ने भी किया हो सकता था?
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क्या हमारी सरकार को WHO की बात मानने से पहले यह नहीं पूछना चाहिए था कि ठीक है हम देखना चाहते हैं कुछ लाशें चीर-फाड़ के. देखें तो सही, समझें तो सही कोरोना कैसे काम करता है?
क्या हमारी सरकार को पूछना नहीं चाहिए था कि वायरस का साइज क्या है? जब वो हवा के साथ साँस में जा सकता है तो हवा तो इंसान मास्क लगाने के बाद भी अंदर खींच रहा है साँस द्वारा, फिर वायरस मास्क होने के बाअवज़ूद शरीर के अंदर जायेगा या नहीं? वायरस का साइज कितना है? क्या वो कपड़े को पार कर के आती हवा या मास्क के दाएं-बाएं से आती हवा के साथ शरीर में आएगा या नहीं?
नहीं हमारी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया.
जैसा मुझे पता है, वो यह कि WHO ने RT-PCR टेस्ट, और फिर कोरोना का इलाज, और फिर कोरोना से मौत के बाद संस्कार तक का प्रोटोकॉल दे दिया और हमारी सरकार ने उस प्रोटोकॉल को आंख बंद कर के फॉलो किया. अगर यह सही है तो बस यही है क्या सरकार का दाइत्व? सरकार अपनी जनता के प्रति जवाबदेय नहीं है क्या , वो WHO के प्रति जवाबदेय है क्या? सरकार को सरकार भारत की जनता ने बनाया था या WHO ने?
सरकार ने WHO की हर बात को फॉलो किया और अपनी जनता से करवाया.
WHO ने कहा, जिनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आ रहे हाँ, वो बीमार हैं, सरकार ने अपने लोगों से मनवा दिया कि वो बीमार हैं,
WHO ने बताया कि प्लाज्मा इलाज है सरकार ने मान लिया कि प्लाज्मा इलाज है. WHO ने बोला प्लाज्मा इलाज नहीं है, हज़ारों, लाखों लोगों को प्लाज्मा दिए जाने के बाद सरकार ने बोला प्लाज्मा इलाज नहीं है.
WHO ने बोला Remdisivir इलाज है, सरकार ने हज़ारों लाखों लोगों को Remdisivir दे दी. फिर WHO ने बोला नहीं, नहीं Remdisivir इलाज नहीं है, सरकार ने बोला, ठीक है Remdisivir इलाज नहीं है.
स्टेरिओड्स दवा के रूप में प्रयोग हुए लेकिन अब कहा जा रहा है की ब्लैक फंगस पैदा ही स्टेरॉइड्स की वजह से हुई है. इस सबके चलते एक बड़ी हैरानी की बात यह हुई कि कुछ लोगों ने कहीं नकली Remdisivir की सप्लाई कर दी लेकिन उस नकली दवा से भी अधिकांश लोग ठीक ही गए.
पहले कहा गया कि कोरोना वायरस वाले सरफेस को छूने से फ़ैल सकता है, बाद में बताया गया की सरफेस टचिंग से कोई नुक्सान नहीं होता.
पहले कहा जा रहा था कि दो गज दूरी, है ज़रूरी, अभी बताया जा रहा है कि कम से काम ११ गज कि दूरी होनी चाहिए दो लोगों में यदि कोरोना से बचना है तो.
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इतनी विसंगतियां. इतनी कॉन्ट्रडिक्शन्स. सोचना बनता कि नहीं?
हो सकता है, मेरी हर बात गलत हो, बकवास हो? मैं कह भी नहीं रहा कि मैंने ही कोई सब सही-सही बोलने का ठेका लिया है. मैं सिर्फ यही गुज़ारिश कर रहा हूँ कि थोड़ सोच -विचार कर के देखिये. पहले मुर्गी आई या पहले अंडा आया, यह तो शायद समझ न भी आये लेकिन पहले बीमारी आई या पहले बीमारी का डर, यह शायद समझ आये. सोच के देखिये.
शुरू से दुनिया भर में शंकाएं ज़ाहिर की जा रही हैं कि कोरोना फ़र्ज़ी महामारी है, जलसे-जूल्स निकल रहे हैं कि कोरोना, lockdown , वैक्सीन सब बकवास है. आप यूट्यूब पर प्रोटेस्ट अगेंस्ट कोरोना टाइप कीजिये आपको दुनिया भर के लोग सड़कों पर कोरोना कथा का विरोध करते हुए मिल जायेंगे.
शुरू से कहा जा रहा है कि कोरोना-कथा में बिल गेट्स का भी हाथ है. अभी पीछे गेट्स ने भारत में बनी वैक्सीन का विरोध किया.
अब सुना है कि WHO भी भारतीय वैक्सीन को मान्यता नहीं दे रहा. अब IMF कह रहा है भारत एक अरब वैक्सीन का आर्डर दे. IMF, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, वो यह कह रहा है कि भारत को एक अरब वैक्सीन का आर्डर देना चाहिए. IMF? मतलब ऐसी सस्थां जिसका मेडिकल वर्ल्ड से सीधे से कोई मतलब नहीं। वो तय करना चाहती है कि भारत को कितनी वैक्सीन खरीदनी चाहिए. मतलब वैक्सीन लेनी है या नहीं, लेनी है तो कितनी लेनी है यह भारत तय नहीं करेगा, IMF तय करेगी. और वैक्सीन भी उन कंपनियों की जो कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं लेना चाहतीं कि उनकी वैक्सीन से कोई मरेगा या बचेगा. क्या है ये सब. पिक्चर साफ़ है. यह सारे फसाद में वैक्सीन बेचने का एजेंडा भी है. थोड़ी सी अक्ल लगाएंगे बात समझ आ जाएगी.
मैं आम आदमी, मैंने थोड़ी रिसर्च की थी पिछले साल और मुझे कोरोना कथा में तमाम छेड़ दिखाई दे रहे थे. बहुत से देशी-विदेशी लोग कोरोना कथा पर अपनी शंकाएं ज़ाहिर कर रहे थे. Dr. Andrews Kaufmaan, Dr.Rashid Buttar, David Icke, डॉ. विलास जगदाले, डॉ बिसवरूप चौधरी, जैसे लोगों के कई-कई वीडियो इंटरनेट पर तैर रहे थे. लेकिन भारत ने अपनी तरफ से कोई क्रॉस चेकिंग नहीं की.
सब उल्ट-फेर सामने दिख रहे हैं.
WHO ने बोला तीसरी लहर में बच्चे मर सकते हैं, हम ने मान लिया. अबे, दुश्मन कभी बता के आता है कि वो कहाँ अटैक करेगा, वो भी वायरस! मतलब वायरस न हुआ कोई दोस्त हुआ जो सारा प्लान बता कर आएगा कि उसका अगला कदम क्या होगा. हैरानी है.
अब कहा जा रहा है कि ऐसी कितनी ही लहरें और आ सकती हैं. पीढ़ियों तक कोरोना रहेगा. लेकिन पीढ़ियां बचेंगी तब न. लोग तो बेरोज़गारी से, घबराहट से,गरीबी से, भूखमरी से ही मर जाएंगे यदि यही सब चलता रहा था. आगे आने वाली लहरें किसे मारेंगी? लाशों को?
और कहा यह जा रहा है कि वैक्सीन ही कोरोना को रोक सकती है. गुड. लेकिन हो तो यह रहा है कि जिन लोगों ने दो-दो वैक्सीन ले ली, वो भी मर रहे हैं. और वैक्सीन के नतीजे ज़रूरी थोड़ा न है तुरंत आ जाएँ, वर्षों लग सकते हैं, कैसे इतना पक्का हुआ जा सकता है वैक्सीन के प्रति?
भारत ने डेढ़ साल में यह भी नहीं देखा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि कोरोना के आंकड़ें जान-बूझ के बढ़ाये जा रहे हों? मैंने पढ़ा पीछे कि अल्लाहाबाद हाई कोर्ट ने बोला कि जो सर्दी-ज़ुकाम से मरे हैं उनका अगर टेस्ट का रिजल्ट नहीं भी आया तो भी उनको कोरोना लिस्ट में डाला जाये. और ऐसा किया गया लगता भी है चूँकि अब बाकी बीमारियों से जो लोग मरते थे, वो आंकड़ें किधर गए. कोई स्पष्टीकरण है इस पॉइंट का?.
अब मैं पढ़ रहा था, अखबार तो लिखा था कि ऐसी वैक्सीन इम्पोर्ट की जाने वाली है जो बिना ट्रायल के ही, सीधे ही भारतियों को लगवाई जाएगी. गुड. लेकिन मैंने तो यह पढ़ा था कि १०-१५ साल लगते हैं किसी वैक्सीन को बज़्ज़ार में उतारने में चूँकि बड़ी minutely स्टडी किया जाता है, कहीं वैक्सीन के कोई एडवर्स इफ़ेक्ट तो नहीं. मैंने तो यह भी पढ़ा था कि फाईज़र कम्पनी का भारत सरकार से जो अनुबंध होने जा रहा था वैक्सीन के लिए, उसमें पेच बस इन्डेम्निटी क्लॉज़ पे अटका था. इन्डेम्निटी क्लॉज़..मतलब अगर वैक्सीन से कोई मर जाए, बीमार हो जाये तो फ़ायज़र क्या हर्ज़ा खर्चा देगी. देगी भी या नहीं. शायद ऐसा ही कोई मामला था. लेकिन हो सकता है मैने गलत पढ़ा हो, आप चेक कर लीजियेगा.
मैंने तो यह भी पढ़ा कि को-वैक्सीन बनाने वाले अदार पूनावाला लंदन चले गए, और उनके पिता भी वहीं चले गए. हो सकता है वैसे ही गए हों, लेकिन मुझे शंका है. वो इसलिए भी गए हो सकते हैं कि वैक्सीन से कोई अनिष्ट हो तो सीधे ही एक दम से पकड़ में न आ जाएं. शंका है मुझे, ज़रूरी नहीं मेरी शंका सही हो. मेरी असेसमेंट गलत भी हो सकती है.
आज आपके बहुत से सिविल राइट खत्म हैं. आप ठीक से कमा नहीं सकते, साँस नहीं ले सकते, यार-दोस्त-रिश्तेदार से मिल नहीं सकते, खुल कर शादी-ब्याह नहीं कर सकते, ऐसे में भी अगर आप नहीं सोचते तो कब सोचेंगे? सोचिये.....मेरी किसी भी बात का विश्वास मत कीजिये ...सब बकवास हो सकती हैं .....लेकिन सोचिये तो सही।
सोचिये जैसे जेम्स वाट ने भाप से पतीली के ढक्कन को उठते देख स्टीम इंजन बना दिया, जैसे newton ने गिरते हुए सेब को देख ग्रेविटी को discover किया. सोचिये तर्कशीलता से. सोचिये फैक्ट्स और आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए. सोचिये क्रिटिकल ढंग से. 5-D Stereogram एक ख़ास तरह के चित्र होते हैं. चित्र में चित्र छिपा होता है. बड़े ध्यान से देखने पट छिपा चित्र दिखने लगता है. छिपा चित्र देखने का प्रयास कीजिये.
बचपन में आप ने छोटे-छोटे डॉट्स को जोड़ा होगा और जोड़ते ही एक चित्र उभर आया होगा, याद कीजिये, हम सब ने यह खेल खेला होगा. अब फिर जोड़िये. अलग अलग सूचनाओं को जोड़ के देखिये चित्र उभरने शुरू हो जायेंगे. इसे ही connecting the dots कहते हैं.
सोचने के तरीके हैं. सोच के देखिये तो.
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नमस्कार
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