सतगुर नानक परगटया, मिटी धुंध जग चानण होया. सच में क्या?
क्या बाबा नानक "सिक्खों के गुरु" थे? यह कहना कि वो सिक्खों के गुरु थे, उन को सीमित करना है. नहीं. ऐसा नहीं था. सिक्ख तो तब थे ही नहीं. वो गुरु थे, लेकिन गुरु वो सब के थे. और जो सब का नहीं, वो असल में गुरु हो ही नहीं सकता. गुरु कौन है? जो भारी हो. गुरुत्व हो जिस में. मतलब जिस से कुछ सीखा जा सके. तो क्या बाबा नानक गुरु थे? निश्चित ही बहुत कुछ सीखने जैसा था उन से और आज भी है. वो गुर हैं निसंदेह. वो हरिद्वार में जा कर सूर्य की उल्टी दिशा में पानी चढाने लगते हैं. पूछने पर कहते हैं कि करतार पुर में उन के खेत हैं, और वो अपने खेतों को पानी दे रहे हैं. "खेत में पानी यहाँ से कैसे जा सकता है?" लोगों ने पूछा. "तो फिर सूर्य को यहाँ से पानी कैसे जा सकता है?" बाबा नानक ने पूछा. वैरी गुड. यह तरीका था ललकारने का तर्क-हीन कृत्यों को. लेकिन क्या बात वहीं खत्म हो गयी? क्या आज हम ने सीख लिया उन से कुछ? सतगुर नानक परगटया, मिटी धुंध जग चानण होया. मिट गयी धुंध? क्या लोग आज सूर्य को पानी नहीं चढ़ाते? अभी छठ पूजा हो कर हटी है. सूरज को ही अर्ध्य दिया जाता है. हिन्दू आज भी रोज़ाना सूर...