Tuesday 17 August 2021

"ईद मुबारक"

मुझे कोई महान आत्मा ने दर्शन दे कर बताया कि बकरीद हिन्दुओं से प्रेरित है चूँकि बकरी को संस्कृत में अजा कहते हैं और बकरीद को ईद-उल-अजहा कहा जाता है.

एक और महान आत्मा ने बताया कि उसे मुस्लिम का कुर्बानी देनें का ढंग बहुत पसंद है.कैसे बकरे को प्यार से पालते पोसते हैं और फिर कुर्बान कर देते हैं. वाह! कैसे अपनी प्यारी चीज़ को कुर्बान कर देते हैं!
मैंने कहा, "कहाँ कुर्बान कर देते हैं. काट कर खुद ही खाना है तो कुर्बानी कहाँ हुई?
और
प्यारी चीज़ तो इंसान के अपनी जान होती है, बाल बच्चे होते हैं. अल्लाह पर भरोसा रखें और अपने बच्चे कुर्बान कर दें. बेचारे बकरे के बच्चे को क्यों कुर्बान करते हैं? बकरे को तो अल्लाह पे भरोसा भी न होगा. पूछ के देख लीजिये. सब से ज़्यादा वो ही कटा है अल्लाह के नाम पे, वो कैसे भरोसा करेगा अल्लाह पे?
भरोसा तो मुस्लिम को है अल्लाह पे तो उसे कुर्बान करना ही है तो खुद को कुर्बान करना चाहिए या खुद के परिवार को. बकरे और उस के परिवार को बीच में नहीं लाना चाहिए.
अल्लाह मेहरबान है. बेशक वो सब जानता है. जैसे ही मुस्लिम अपने आप को या अपने बच्चों को कुर्बान करने लगेगा अल्लाह उसे और उस के बच्चों को बचा लेगा. अल्लाह इंसानों को हटा कर बकरों में बदल देगा. जो-जो मुस्लिम अल्लाह ने हटा लिए और उन की जगह बकरे खड़े कर दिए, वो वो सच्चे-यकीनी-दीनी मुस्लिम, जो-जो मुस्लिम खुद ही कट गए, वो सब नकली मुस्लिम. नहीं? Try करना चाहिए, Try करने में क्या हर्ज़ है? फिर प्रयोग कर के ही तो पता लगता है कोई बात हकीकी है या नहीं.
और यदि मेरी ऊपर लिखी बात समझ न आती हो तो फिर समझो सीधी बात.
वैसे तो मांस खाना नहीं चाहिए लेकिन फिर भी खाना ही हो तो खा लिया करो, इस में बेचारे अल्लाह को लाने की क्या ज़रूरत है?"
Tushar Cosmic

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