मेरा मानना है कि धन का कुछ ही हाथों में एकत्रित होना खतरनाक है. इसका विकेंद्री-करण होना चाहिए. छोटे और मझोले उद्योग और व्यापारों को जितना हो सके सहयोग दें.
प्रयास करें कि रिलायंस फ्रेश की जगह फेरी वालों से सब्ज़ी खरीदें. Zepto से डिलीवरी मंगवाने की जगह अपने इलाके के परचून वालों से डिलीवरी लें. जहाँ तक हो सके बड़ी कम्पनियों को काम न दें.
आज आप अपने गली-मोहल्ले वालों को काम देंगे, कल वो आप को काम देंगे. एक मिसाल देता हूँ, मैंने हमेशा बिजली-पानी के बिल नवीन को भरने के लिए दिए. वर्षों से. वो दस-पन्द्रह रुपये प्रति बिल लेते हैं. जब मैं ऑनलाइन पेमेंट कर सकता हूँ, उस के बावज़ूद. उन को काम मिला मुझ से. मुझे काम मिला उन से. उन्होंने तकरीबन सत्तर लाख का एक फ्लोर लिया मेरे ज़रिये. और जिन का वो फ्लोर था उन्होंने आगे डेढ़ करोड़ रुपये का फ्लैट लिया मेरे ज़रिये. इस तरह कड़ी बनती चली गयी.
नौकरी-पेशा कह सकते हैं कि हमें क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है. दूसरे ढंग से फर्क पड़ता है. समाज को कलेक्टिव फर्क पड़ता है. यदि हम कॉर्पोरेट को सहयोग देंगे तो सम्पति धीरे-धीरे चंद हाथों चली जाएगी. जो अभी काफी हद तक जा ही चुकी है. नतीजा यह हुआ है कि अमीर और अमीर होता गया है और गरीब और गरीब.
न. यह गलत है.
चूँकि धन सिर्फ धन नहीं है, यह ताकत है. इस ताकत से सरकारें खड़ी की जाती हैं और गिराई जाती हैं.
जी. जनतंत्र में भी.
कैसे?
ऐसे कि यह जनतंत्र है ही नहीं. यह धन-तन्त्र है. चुनाव में अँधा धन खर्च किया जाता है. कॉर्पोरेट मनी. इस मनी से अँधा प्रचार किया जाता है. इस प्रचार से आप की सोच को प्रभावित किया जाता है. आप को सम्मोहित किया जाता है. बार-बार आप को बताया जाता है कि अमुक नेता ही बढ़िया है. जैसे सर्फ एक्सेल. भला उस की कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद कैसे? आप सर्फ एक्सेल खरीदने लगते हैं. आप ब्रांडेड नेता को ही चुनते हैं और समझते हैं कि आप जनतंत्र हैं.
यह एक मिसाल है.
आप से जनतंत्र छीन लिया गया अथाह धन की ताकत से. फिर आगे ऐसी सरकारें अँधा पैसा खर्च करती हैं आप को समझाने में कि उन्होंने आप के लिए क्या बेहतरीन किया है.
कुल मिला के आप की सोच पर कब्ज़ा कर लिया जाता है. आप वही सोचते हैं, वही समझते हैं जो यह अथाह धन शक्ति चाहती है. और आप को लगता है कि यह सोच आप की खुद की है.
न. अथाह धन शक्ति आप को गुलाम बनाती जाएगी. इस गुलामी को तोड़ने का एक ही जरिया है.
बजाए ब्रांडेड कपड़े खरीदने के गली के टेलर से शर्ट सिलवा लें. लेकिन वो टेलर जैसे ही कॉर्पोरेट बनने लगे उसे काम देना बंद कर दें. मैंने देखा है कि बिट्टू टिक्की वाले को. वो रानी बाग़ में रेहड़ी लगाता था. बहुत भीड़ रहती थी. धीरे-धीरे कॉर्पोरेट बन गया. क्या अब भी समाज को उसे काम देना चाहिए? नहीं देना चाहिए. चूँकि अब यदि उसे काम दोगे तो यह धन का केंद्री-करण हो जायेगा. न. ऐसा न होने दें. धन समाज में बिखरा रहने दें. ताकत समाज में बिखरी रहने दें. समाज को कोई मूर्ख नहीं बना पायेगा. समाज को कोई अंधी गलियों की तरफ न धकेल पायेगा.
इस पर और सोच कर देखिये. इस मुद्दे के और भी पहलू हो सकते हैं. ऐसे पहलू जो मैंने न सोचे हों. वो आप सोचिये.
तुषार कॉस्मिक
Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Sunday, 30 January 2022
Zepto से डिलीवरी मंगवाने की जगह अपने इलाके के परचून वालों से डिलीवरी लें. क्यों?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment