दीन-धरम अपनी आलोचना से क्यों डरता है?

यदि आप के नबी सच्चे हैं, आप के अवतार सही हैं तो फिर आलोचना से काहे की परेशानी, काहे का बवाल? चिकने घड़े पर पानी कहाँ टिक पाता है? नबी नबी हैं, अवतार तो हैं ही स्वयं भगवान. उन की आलोचना से फर्क ही क्या पड़ना है? उल्टा जिन को शँका होगी भी कोई, तो वो भी निरस्त हो जाएगी. ईमान-धर्म और पक्का हो जायेगा. और निखर जायेगा. लेकिन आप तो उल्टा करते हैं, यदि कोई कुरान-पुराण से ही कोई बात निकाल दिखाता है जो आज आपतिजनक दिखती है तो आप aggressive हो जाते हैं. इस से तो शंकाएं और मज़बूत होंगी कि ज़रूर दाल में कुछ काला है.

आप यूँ समझिये कि विज्ञान की किसी भी थ्योरी को कोई भी कभी भी चैलेंज कर सकता है, है या नहीं. वैज्ञानिक कोई झंडे-डंडे ले निकल पड़ते हैं कि नहीं, यह न होने देंगे? कि हमारे Newton की, आइंस्टीन की शान में गुस्ताखी हो गयी?

नहीं न. आलोचना से, चैलेंज से विज्ञान और दो कदम आगे बढ़ता है, निखरता है. फिर यही बात दीन पर, धर्म पर लागू क्यों नहीं? बताएं? ~ Tushar Cosmic

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