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Showing posts from January, 2024

मैं बीमार होना नहीं चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,

मैं बीमार होना नहीं चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ, मुझे दवा, टीकों और डॉक्टरों से बहुत डर लगता है, मुझे लाखों रुपये के खर्च से डर लगता है, मुझे अस्पतालों से, दवाखानों से बहुत डर लगता है मुझे घिसटती-सिसकती ज़िंदगी से डर लगता है मैं बीमार नहीं होना चाहता. मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ. मैंने देखे हैं हैरान-परेशान रिश्तेदार, बेचारे अपना भार नहीं ढो पा रहे होते, ऊपर से घर में कोई बीमार इंसान. पूरा घर बीमार-बीमार सा हो जाता है. हवा बीमार, पानी बीमार, सब बीमार मैं बीमार नहीं होना चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ. मैनें पढ़े हैं चेहरे अनमने से सेवा करते हुए, बीमार की मौत का इंतज़ार करते हुए, ज़बरन दुनियादारी निभाते हुए, बीमार के साथ बीमारी झेलते हुए मैं बीमार नहीं होना चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ. ज़िंदगी जितनी भी हो, बस ठीक-ठाक हो, चलती-फिरती हो, मुस्कराती, हंसती हो, ज़िंदगी ज़िंदा हो, मैं मरी-मरी सी ज़िंदगी नहीं चाहता, मैं बीमार नहीं होना चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ. तेरा तुझ को अर्पण, क्या लागे मेरा. Tushar Cosmic

धर्म - मेरी आपत्तियां

1. हम इतिहास का केवल कुछ अंश ही जानते हैं। बुद्ध और महावीर से परे मानव इतिहास स्पष्ट नहीं है। बुद्ध और महावीर से पहले, इतिहास पौराणिक कथाओं के साथ मिश्रित है। संभावनाओं के आधार पर, निश्चित रूप से हम कुछ हद तक भविष्यवाणी कर सकते हैं लेकिन हम एक निश्चित समय से अधिक की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं इसलिए अनंत काल के बारे में क्या कहा जाए? इसलिए कैसे कहें कि कुछ भी सनातन है? लेकिन हिंदू अपने आप को सनातनी कह रहे हैं। यह बस तनातनी है. क्या वे वास्तव में सनातन का अर्थ जानते हैं? सनातन कुछ भी नहीं है. परिवर्तन ही सनातन है प्रिय मित्रों। 2. सभी धर्म आदिम हैं, बचकाने हैं। बैटमैन, सुपरमैन जैसे किरदारों से भरपूर। परिकथाएं। और सब्सक्राइबर्स इतने मूर्ख हैं कि उनसे तार्किक बहस करना नामुमकिन है. दरअसल, उन्होंने प्रारंभ में ही तर्क को त्याग कर धर्म को अपना लिया था। उनसे किसी तार्किकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? 3. आमतौर पर लोग छोटी-छोटी चीज़ों पर अच्छा शोध करते हैं। वे एक अंडरवियर खरीदना चाहते हैं, वे बहुत सारे ब्रांड, आकार, फिटिंग आदि के बारे में सोचते हैं, लेकिन मुझे यह देखकर आश्चर्य हो...

श्री राम और उन का मंदिर - मेरी कुछ आपत्तियां

स्त्रियों को चाहिए कि वो राम को नकार दें। क्या वो राम जैसा पति चाहेगी, जिसके साथ वो तो जंगल-जंगल भटकें लेकिन पति उन्हें जंगल में छोड़ दे? वो भी तब, जब वो प्रेग्नेंट हो. हालाँकि मैं "जय श्री राम" के नारे का विरोध करता हूँ क्योंकि यह राम की विजय की घोषणा करता है और राम अब नहीं रहे, इसलिए ऐसे नारे लगाने का कोई मतलब नहीं है लेकिन मैं एक अन्य आधार पर "जय सिया राम" के नारे का विरोध करता हूँ। सीता को राम के साथ जोड़ना तथ्यात्मक नहीं है। राम ने स्वयं सीता को जंगल में छोड़ दिया था। उसके बाद वह जंगल में रहती है, जंगल में ही उन की मृत्यु हो जाती है। और यहां हिंदू सीता को राम से जोड़ रहे हैं? राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था, सीता को नहीं। फिर भी वह राम के साथ जंगल की ओर प्रस्थान कर गई। लेकिन यदि अयोध्यावासियों को सीता के आचरण पर किसी तरह का संदेह था तो राम सीता के साथ जंगल क्यों नहीं चले गये? नहीं, इस बार उन्होंने गर्भवती सीता को जंगलों में मरने के लिए छोड़ दिया। मर्यादा पुरूषोत्तम राम. पुरुषों में महान, राम। रावण के मारने के बाद राम ने जो शब्द सीता को कहे थे, वो बहुत अपमान ज...

राम मंदिर

मैं राम का घोर विरोधी हूँ, इस के बावजूद मैं इस पक्ष में हूँ कि राम मंदिर बनाया जाना चाहिए था और मुसलमानों को बहुत पहले माफी के साथ यह जगह तथाकथित हिन्दुओं को दे देनी चाहिए थी. न सिर्फ यह बल्कि "कृष्ण जन्म भूमि" और "काशी ज्ञानवापी" वाली जगह भी दे देनी चाहिए थी. लेकिन मुसलमानों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया. राम मंदिर वो हार चुके हैं. बाकी भी हार जाएंगे. चूँकि यह जग-विदित है कि मुसलमान मूर्ती-भंजक है. ताजा बड़ा उदाहरण तालिबान द्वारा बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ना था. ये मूर्तियां असल में पहाड़ों में ही खुदी हुई थीं. डायनामाइट लगा कर इन को उड़ाया गया. वैसे अक्सर खबर आती रहती है कि मुस्लिम ने दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थल ढेर कर दिए. मुझे कोई संदेह नहीं कि भारत में भी मुसलमानों ने मंदिर नहीं तोड़ें होंगे. कुतब मीनार पे जो मस्जिद बनी है, "क़ुव्वते-इस्लाम" वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनी है. ऐसे वहां Introductory पत्थर पर लिखा था. "क़ुव्वते-इस्लाम" यानि इस्लाम की कुव्वत. ताकत. यह थी इस्लाम की ताकत. दूसरों की इबादत-गाहों को तोडना. ऐसा ही कुछ अजमेर की ...

Sarkar Chor hai, सरकार षड्यंत्र-कारी है, सरकार दुश्मन है

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(The above photo is created by Devendra Makkar) सरकार ने न सिर्फ जान-बूझ कर जनता को कानून नहीं पढ़ाया बल्कि कानून की भाषा भी जटिल रखी :- सरकार-निज़ाम ऐसा मान कर चलता है कि हर इंसान को हर कानून पता है. और यदि आप को कोई कानून नहीं पता, तो वो आप की गलती है न कि निज़ाम की.  यह सरासर धोखा है. Sarkar Chor hai, दुश्मन है,  sarkar shadyantrakari hai . मेरा सवाल है इस निज़ाम से, "आप ने आम आदमी को कानून कब पढ़ाया? आप का कानून तो ऐसे अगड़म-शगड़म भाषा में लिखा है कि किसी को समझ ही न आये." ओशो ने तो यहाँ तक कहा है, "The priests and the politicians have always been in a conspiracy against humanity ." इस के अलावा आप के कानूनों के मतलब तो सुप्रीम कोर्ट तक तय नहीं हो पाते। आज एक कोर्ट कुछ मतलब निकालता है, कल कोई और कोर्ट कुछ और मतलब निकालता है। एक मुद्दे पर एक कोर्ट कुछ जजमेंट देता है, कल उसी मुद्दे पर कोई और कोर्ट कोई और जजमेंट दे देता है। और आम आदमी से यह तवक्को रखी जाती है कि उसे हर कानून पता होगा। चाहे खुद कानून के विद्वानों को पता न हो, कौन सा कानून क्या मतलब रखता है। यकीन मानिये, मैं...