Friday 5 January 2024

Sarkar Chor hai, सरकार षड्यंत्र-कारी है, सरकार दुश्मन है


(The above photo is created by Devendra Makkar)

सरकार ने न सिर्फ जान-बूझ कर जनता को कानून नहीं पढ़ाया बल्कि कानून की भाषा भी जटिल रखी:-


सरकार-निज़ाम ऐसा मान कर चलता है कि हर इंसान को हर कानून पता है. और यदि आप को कोई कानून नहीं पता, तो वो आप की गलती है न कि निज़ाम की. यह सरासर धोखा है. Sarkar Chor hai, दुश्मन है, sarkar shadyantrakari hai. मेरा सवाल है इस निज़ाम से, "आप ने आम आदमी को कानून कब पढ़ाया? आप का कानून तो ऐसे अगड़म-शगड़म भाषा में लिखा है कि किसी को समझ ही न आये."

ओशो ने तो यहाँ तक कहा है, "The priests and the politicians have always been in a conspiracy against humanity."

इस के अलावा आप के कानूनों के मतलब तो सुप्रीम कोर्ट तक तय नहीं हो पाते। आज एक कोर्ट कुछ मतलब निकालता है, कल कोई और कोर्ट कुछ और मतलब निकालता है। एक मुद्दे पर एक कोर्ट कुछ जजमेंट देता है, कल उसी मुद्दे पर कोई और कोर्ट कोई और जजमेंट दे देता है। और आम आदमी से यह तवक्को रखी जाती है कि उसे हर कानून पता होगा। चाहे खुद कानून के विद्वानों को पता न हो, कौन सा कानून क्या मतलब रखता है।


यकीन मानिये, मैं अंग्रेज़ी का कोई विद्वान् तो नहीं लेकिन फिर भी ठीक-ठाक अंग्रेजी लिख, पढ़ लेता हूँ, बोल भी लेता हूँ लेकिन मज़ाल कि मुझे कोई Bare Act आसानी से समझ आ जाए. डिक्शनरी खोल-खोल देख लुं, तब भी ठीक-ठीक पल्ले न पड़े, ऐसी तो भाषा है. आम-जन जिसे हिंदी या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा का ही ज्ञान उस बेचारे को क्या समझ आना है?

क्यों नहीं सरकार ने कानूनी भाषा को सुगम बनाया? क्यों नहीं सरकार ने, निज़ाम ने कानून की बेसिक जानकारी को स्कूलों में ही जरूरी विषय की तरह पढ़ाया?

कारण यह है कि यदि आम-जन कानून को समझेगा तो पुलिस, कोर्ट और बाकी की नौकर-शाही उस पर अपना डण्डा कैसे रखेगी?


कानून न समझने का नतीजा है कि आम-जन इन्साफ से कोसों दूर है
:- 


इसी का नतीजा है कि जरा सड़क पर, मोहल्ले में झगड़ा हो जाए, और पुलिस बुला ली जाए तो सही व्यक्ति के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। क्यों? क्यों कि उसकी कानून की जानकारी लगभग शून्य होती है. वो अब झगड़े से ज़्यादा पुलिस से डर रहा होता है. वो जानता है, पुलिस कैसी है.


आप लाख सही होते रहो, पुलिस आप को ही धमका के पैसे ऐंठ ही लेगी.

और थाने में तो पुलिस का एकछत्र राज ही चल रहा है. आप बतायेंगे कुछ, पुलिस सुनेगी कुछ और लिखेगी कुछ. मैंने तो यहां तक ​​देखा है कि थाने में मेन गेट ही बंद कर देते हैं, यार-रिश्तेदार को घुसने तक नहीं देते।

आप थाने में अपने साथ वकील ले जाओ, पुलिस वाले खफा हो जाएंगे. क्यों? चूँकि अब वो आप को आसानी से बरगला न पाएंगे.

कई दफ्तरों में-थाने में लिख कर लगा दिया गया कि अंदर मोबाइल फोन लाना मना है. क्यों? ताकि आप रिकॉर्डिंग न कर लें, जो इन अफसरों की बदतमीजियों की पोल खोल दे.

थाना-कोर्ट, ये सब कोई इंसाफ के लिए थोड़ा न बने हैं. इंसाफ लेने के लिए तो आप को सात जन्म लेने पड़ेंगें. कोई झगड़ा-झंझट हो जाये, पुलिस का पहला काम होता है दोनों तरफ से पैसे ऐंठ कर "मेडिएशन" करवाना. कोर्ट भी मेडिएशन को बढ़ावा देता है. ख्वाहमख़ाह मेडिएशन में केस भेज देते हैं. ज़बरदस्ती. मेरे साथ हुआ ऐसा एक बार, बिना मेरी मर्ज़ी पूछे आनन-फानन मेरा केस मेडिएशन में भेज दिया गया.

ऐसा लगता है पूरा निज़ाम इंसाफ का मरकज़ नहीं, "मेडिएशन सेंटर" है.

इसीलिये लिखता हूँ, तुम्हारी sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai. 

Sarkar Chor hai. राहत इन्दोरी का एक वीडियो है. पसंद तो नहीं मुझे यह बंदा फिर भी सुन लीजिये..

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सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें.

क्या कभी कोई ऑडिट हुआ है कि पुलिस ने कितने ऐसे केस बनाये जो बाद में कोर्ट में जा कर झूठे साबित हुए? और फिर  उन पुलिस वालों पर क्या कार्रवाई हुई?  क्या कोई ऑडिट हुआ कि जब पुलिस वाले सही व्यक्ति को भी पैसे के लालच में या किसी और वजह से धमका देते हैं, डांट-डपट देते हैं, या उस से रिश्वत लेते हैं या जबरन उस का किसी दोषी व्यक्ति से समझौता करवा देते हैं तो उस का उस व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर होता है? जब कोई पुलिस वाला या पुलिस अफसर कोई मिस-कंडक्ट करता हुआ पकड़ा जाता है तो उस का तबादला क्यों किया जाता है, उसे हमेशा के लिए बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता?

होना तो यह चाहिए की सरकारी कर्मचारियों, यहां तक कि न्यायाधीशों की भी उनकी नौकरी के प्रति पवित्रता की वैज्ञानिक जांच हो. मेरा मतलब है, उन्हें पॉलीग्राफ, ब्रेन मैपिंग, हस्तलेखन विश्लेषण, नार्को इत्यादि जैसे विभिन्न परीक्षणों से गुजरना चाहिए और यदि संदिग्ध पाया जाता है, तो तुरंत निकाल दिया जाना चाहिए। और यदि उन के पास आवश्यकता से अधिक धन/संपत्ति/परिसंपत्ति पाई जाती है, तो उस धन और संपत्ति आदि को छीन लिया जाना चाहिए. सरकारी नौकरी का अर्थ है सार्वजनिक नौकरी का अर्थ है सार्वजनिक धन से वित्त पोषित नौकरियां।  सरकारी सेवकों को जनता का सेवक होना चाहिए।

लेकिन अभी तो सरकार 
sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai. 

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