Tuesday, 28 November 2017

मैं और धर्म

मैं सिरे का अधार्मिक व्यक्ति हूँ. किशोर-अवस्था से. गुरूद्वारे में ग्रन्थ-साहेब-जी-दी-ग्रेट के सामने किसी के मत्था टेके पैसे उठा लिए एक बार. फिर सोचा मन्दिर में हाथ आज़माया जाए, लेकिन कुछ हासिल न हुआ सिवा चरणामृत के. बंगला साहेब गुरूद्वारे जाना होता है, परिवार की जिद्द की वजह से, मुझे सिर्फ दो चीज़ पसंद हैं.....एक कड़ाह प्रसाद, दूजा लंगर प्रसाद. शनिवार को वो जो बर्तन में सरसों का तेल डाल के मंगते घूमते हैं न, उनमें से एक का तेल से भरा डोलू (बर्तन) ही धरवा लिया था मैंने. मोहल्ले में भागवत कथा हो रही है. मैं बीवी जी को कह रहा था, "मैं भी जा सकता हूँ क्या?" बीवी ने कहा, "नहीं. हमने मोहल्ले भर से लड़ाई नहीं करनी." "पंडित जी से पूछ तो लेता कि शंकर जी ने कौन सी विद्या से हाथी का सर इन्सान के धड़ से जड़ दिया था? पंडित जी की गर्दन काट कर भी ऐसा ही चमत्कार किया जा सकता है क्या? ट्राई करने में क्या हर्ज़ है? फिर सारी दुनिया उनकी भी पूजा करेगी. मॉडर्न गणेश जी. नहीं?" "नहीं....नहीं." "हनुमान जी तो उड़ते थे, जंगल-पहाड़ लाँघ जाते थे. ज़रा पंडी जी को भी दसवें माले से नीचे फेंक के देखते हैं, इन पर भी तो भगवान की कृपा होगी, आखिर दिन-रात भागवत जो करते हैं. नहीं?" "नहीं....नहीं....नहीं." भगवान आधी से ज्यादा आबादी के लिए सर-दर्द बना हुआ है. कोई आस्तिक है तो कोई नास्तिक. मुझे यह शब्द सुनते ही नींद आने लगती है. मुझे लगता है कि जिनके जीवन को मृत्यु का डर ढांप लेता है, वो ज्यादा रब्ब-रब्ब करते हैं, वरना जीवन से भरपूर व्यक्ति कहाँ चिंता करता है कि जीवन से पहले क्या था, जीवन के बाद क्या होगा? कौन पड़े इस बकवास में कि दुनिया किसी रब्ब ने बनाई कि किसी बिग-बैंग ने? मुझे तो विश्वास करने में ही विश्वास नहीं है. लोग तो हिजड़ों तक की दुआ-बद्दुआ पर विश्वास करते हैं. डरते हैं. रेड-लाइट पर भीख की कमाई करने में सबसे आगे हिजड़े होंगें. कितने असली हैं या कितने उनमें से नकली, यह अलग शोध का विषय है. शादी के बाद हिजड़े सुबह-सवेरे मेरे घर में शोर-शराबा कर रहे थे. माता-पिता जो दे रहे थे, वो उनकी नाक के नीचे नहीं आ रहा था. मैं उठा, प्यार से समझाया, जो उन्हें समझ न आया. कौन समझता है प्यार से? तुरत 100 नम्बर पर फोन कर दिया और बाहर आ कर हिजड़ों को बता दिया कि तुम से बड़े बदमाश आ रहे हैं, तुम्हें थोड़ा दान-दक्षिणा देने. हिजड़े शायद समझ गए, तुरत तितरी हो गए. सड़क पर ढोल बजाती औरत, उसके साथ अपने जिस्म पर हंटर चलाता आदमी. सटाक....सटाक. पैसे मांग रहे हैं, जैसे जिस्म पर हंटर नहीं कद्दू में तीर चल रहा हो. मैंने कहा, "ला मैं लठ बजा दूं तेरे जिस्म पर, फिर ले जाना पैसे". भाग गए. मैं नितांत अधार्मिक व्यक्ति हूँ. रावण जलाने के लिए धन इक्कठा करने वालों को चवन्नी नहीं दी लेकिन एक अंकल जो बड़ी मेहनत से ट्रैफिक मैनेज कर रहे थे, उनको बुला कर सौ का नोट दे दिया.
घर के पास वाले पार्क में घूमता हूँ तो अक्सर बुज़ुर्ग सामने से 'राम-राम' करते हैं. मैं 'नमस्ते जी' ही कहता हूँ. एक अंकल को मज़े-मज़े में 'रावण-रावण' कह दिया. पकड़ ही लिए मुझे. 

"क्यों भई? यह क्या बोला जवाब में?" 
"कुछ नहीं अंकल, वो रावण भी तो महान था न?"

"नहीं तो उसे राम के बराबर का दर्ज़ा दोगे क्या?"
"अंकल उसके दस सर थे. ब्राहमण था. अन्त में लक्ष्मण उससे ज्ञान लेने भी तो जाता है, तो थोड़ा सा सम्मान, थोड़ा सा क्रेडिट रावण को भी देना चाहिए कि नहीं?"

अंकल थोड़ा सोच में पड़ गए और मैं निकल लिया पतली गली से.
मृत्यु क्रिया में बैठ पंडित जी-भाई जी का क्रन्दन सुनना मुझे बेहोश कर जाता. "जीवन क्षण-भंगुर है, अस्थाई है." मैं सोचता जब जीवन इतना क्षण-भंगुर है, अस्थाई है तो मैं इसे इनकी बक-बक सुनने में क्यों बेकार करूं? वैसे ही इतना कम है जीवन. ऐसी क्रियाएं तकरीबन एक घंटे की होतीं हैं लेकिन अब आखिरी पांच मिनटों में ही एंट्री करता हूँ.
कान-फोडू लाउड-स्पीकरों की मदद से ये जो धार्मिक कीर्तन-जागरण-अज़ान करते हैं लोग, इनको तो उम्र-कैद होनी चाहिए. नहीं? ट्रैफिक रोक कर लंगर बांटने वाले, मीठा दूध पिलाने वाले धार्मिक हैं या अधार्मिक इसका फैसला भी समाज को करना चाहिए. सड़क पर बैठ नमाज़ पढ़ते लोग और कांवड़ियों की आव-भगत के लिए लगे शिविर देखिये. कितना धार्मिक है यह सब. लेकिन मैं ही पता नहीं क्यों इतना अधार्मिक हूँ, जिसे इनको देख झुंझलाहट होती है? इस्लाम में मोहम्मद साहेब जी दी ग्रेट को आखिरी पैगम्बर माना गया है अल्लाह ताला का. मतलब उनके बाद अल्लाह ने पैगम्बर भेजने वाली अपनी फैक्ट्री पर ताला जड़ दिया. यह कंसेप्ट मुझे कभी भी समझ ही नहीं आया. मेरी नज़र में जो भी दुनिया की बेहतरी का कोई पैग़ाम दे वो पैगम्बर है. आखिरी का तो सवाल ही नहीं. रोज़ नए पैगम्बर आते हैं और आते रहने चाहियें. खैर, ऐसा नहीं कि मैं शुरू से ऐसा था. अगर आप ब्रूस-ली की फिल्म देख कर निकलो तो एक बार तो मन करता है कि उसी की तरह दो-चार लोग धुन दो. ऐसे ही बचपने में भगत प्रहलाद पर फिल्म देख मैं भी लगा नारायण-नारायण करने. घर के मन्दिर के सामने बैठा रहता घंटो. बस नारायण प्रकट हुए ही हुए. लेकिन फिर किशोर-अवस्था तक पहुँचते-२ जब किताबी दुनिया ने मेरे दिमाग में प्रवेश करना शुरू किया तो खराबा हो गया और मैं अधार्मिक किस्म का हो गया. ये जो लड़ी-वार विशाल भगवती जागरण करवाते हैं लोग, या फिर साईं बाबा की चौकी, इन्हें देख मुझे लगता है कि मुल्क का यौवन बूढ़ा हो गया है. जवानी आई ही नहीं इन पर. मतलब इनकी सोच पर. बूढ़ी सोच ने इनको ढक लिया पूरी तरह से. इन्हें कोई वैज्ञानिक खोज नहीं करनी है, इन्हें कोई सामाजिक बेहतरी के प्रोग्राम में शामिल नहीं होना है, इन्हें जागरण-चौकियां और लीलाएं करवानी हैं बस. "यूनान, मिश्र, रोम मिट गए सब जहाँ से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा." यह कोई गर्व की बात है कि यूनान और मिश्र ने तो अपनी पुरानी सभ्यता छोड़ दी लेकिन हमारा युवक आज भी उसे ढोए जा रहा है, जो उसके पुरखे-चरखे ढोते थे. यह गर्व नहीं शर्म का विषय है. यह यौवन यौवन है ही नहीं. मेरी रूचि सिर्फ समाज की बेहतरी में है, लेकिन मैं तो नितांत अधार्मिक व्यक्ति हूँ, नक्कार-खाने की तूती हूँ, टूटी हुई टूटी हूँ. तुतियाता रहता हूँ, टिप-टिपाता रहता हूँ. कुछ समय पहले कुछ कवित्त जैसा लिखा था, हाज़िर है. ::: धर्म ::: धर्म का हिन्दू-मुस्लिम से क्या मतलब? धर्म है कुदरत को धन्यवाद... धर्म है खुद की खुदाई.... धर्म है दूसरे का सुख दुःख समझना..... धर्म है दूसरे में खुद को समझना.... धर्म है विज्ञान ... धर्म है प्रेम..... धर्म है नृत्य..... धर्म है गायन ..... धर्म है नदी का बहना.... धर्म है बादल का बरसना... धर्म है पहाड़ों के झरने.... धर्म है बच्चों का हँसना...... धर्म है बछिया का टापना..... धर्म है प्रेम-रत युगल...... धर्म है चिड़िया का कलरव...... धर्म का मोहम्मद से, राम से क्या मतलब? धर्म का गीता से, कुरआन से क्या मतलब? धर्म का मुर्दा इमारतों, मुर्दा बुतों से क्या मतलब? धर्म है अभी.... धर्म है यहीं.... धर्म है ज़िंदा होना... धर्म है सच में जिंदा होना.... धर्म का हिन्दू-मुस्लिम से क्या मतलब? नमन.....तुषार कॉस्मिक

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