क्या #CAA संविधान के खिलाफ है?- #NRC/ #CAA-2
अमित शाह ने साफ़ कहा है कि मुस्लिम को छोड़ कर जो भी शरणार्थी भारत में आना चाहें उन्हें सिटीजनशिप दी जायेगी.
मुस्लिम चिल्लम-चिल्ली कर रहे हैं कि हमारे खिलाफ है. लेकिन यह उनके खिलाफ कम है, गैर-मुस्लिम के पक्ष में ज़यादा है.
जो मुस्लिम घुसपैठिये हैं, उनको ही निकालने की बात हो रही है, हालांकि भारत जैसे मुल्क में,
जहाँ बड़ी आसानी से ऐसे लोगों का ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है जो गाडी चलाने तक नहीं जानते,
चालीस साल का आदमी साठ साल की उम्र दिखा कर पासपोर्ट बनवा लेता है,
लोग नकली इनकम सर्टिफिकेट बनवा कर EWS कोटा में अपने बच्चे स्कूलों में भरती करवा लेते हैं,
वहां घुसपैठिये अब तक वोटर कार्ड, आधार कार्ड न बनवा पाए हों, यह अपने आप में एक चमत्कार होगा. खैर. होगा. फिर भी होगा. कुछ तो होगा.
मुस्लिम भाई लोग परेशान हैं. परेशान कुछ तो इसलिए हैं कि यह जो चमत्कार होगा, तो कई बेचारे शरीफ ईमानदार लोग दर-बदर, घर-बेघर कर दिए जायेंगे.
और ज़्यादा परेशानी इस बात की है कि भारत क्लियर स्टेटमेंट देगा. स्टेटमेंट कि मुस्लिम का स्वागत नहीं है भारत में.
और फिर यह डेमोग्राफी बदलने का प्रयास है. मुस्लिम की आबादी का दबाव कम करने का पर्यास होगा. इसे वो साफ़-साफ़ समझते हैं. और यह उनके दीन के खिलाफ है. चूँकि दीन तो दिन दोगुनी-रात चौगुनी रफ्तार से फैलना चाहिए.
अब किसी ने बड़ा ही मासूम सवाल पूछा है कि यार, भारत जैसे मध्यम दर्जे के देश में लोग क्यों भागे चले आते हैं जबकि यहाँ से धड़ा-धड़ लोग कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों को भाग रहे हैं?
देखिये, इन्सान सिर्फ बेहतर ज़िंदगी का तलबगार है. Better Life. बाकी सब बकवास है.
उसे भारत में बेहतर ज़िंदगी अगर दिख रही है तो इसलिए चूँकि जिस मुल्क में वो रहता है, वहां ज़िंदगी बदतर है, बेहतरी की संभावनाएं क्षीण हैं. इसी तरह जो लोग भारत को छोड़ कर जा रहे हैं, उनको आगे कहीं बेहतर ज़िन्दगी दिख रही है. कल अगर लोगों को किसी और प्लेनेट पर बेहतर ज़िन्दगी दिखेगी तो लोग वहां शिफ्ट होना शुरू हो जायेंगे. बस, इत्ती सी बात है.
दूसरी बात यह है कि मैं पूरी तरह से भाजपा सरकार के इस कदम पे उसके साथ हूँ.
क्यों?
चूँकि मेरा साफ़ मानना है कि इस्लाम दुनिया के लिए खतरा है.
इस्लामिक समाज बाकी समाजों के साथ घुलता-मिलता नहीं है बल्कि उन्हें लील जाता है. उनकी सभ्यता-संस्कृति, रीति-रिवाज़ सब खा जाता है.
और
इस्लाम सदैव तख़्त-पलट के लिए प्रयासरत रहता है. इस्लाम का मकसद है दीन को तख़्त पे बिठाना.
और
इस्लामिक समाज की मान्यताएं जड़ हैं जो इस पूरी धरती को ही लील जाने वाली हैं. अँधा-धुंध आबादी पैदा करो और पृथ्वी के सारे स्त्रोत सोख लो, अल्लाह-अल्लाह करते रहो और कुरान से बाहर सोचो ही नहीं. सोचा तो ईश-निंदा और ईश-निंदा तो क़त्ल. ऐसे में क्या ज्ञान-विज्ञान पैदा होगा? इस तरह की सोच सिर्फ अंधे-अंधेरों में ले जा सकती है.
सो कुछ भी बुरा नहीं कि अगर कोई मुल्क, कोई समाज इस्लाम से अलग-थलग रहना चाहता है, इस्लामिक लोगों को अलग-थलग करना चाहता है. NRC वही करने का प्रयास है. पूरी तरह से मुस्लिम को आप खदेड़ नहीं सकते तो फिलहाल यह सब ही करें. उनकी आबादी पर कण्ट्रोल करें. डेमोग्राफी को बैलेंस करें.
और
ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं कर रहा. ट्रम्प का दुनिया भर में मजाक उड़ाया गया, आज भी उड़ाया जाता है, लेकिन एजेंडा उनका भी यही था.
कम से कम यह चीन जैसा तो नहीं है जहाँ मुस्लिम को नमाज़ तक पढने नहीं दिया जाता.
वैसे जो नित्यानानद ने किया वह भी कर सकते हैं. दुनिया भर में अनजान टापू खरीदें और वहां मुस्लिम को छोड़ बाकी लोगों का स्वागत करें.
शम्मी कपूर याद है. वो कहते थे, "हम सिर्फ इत्ता ही चाहते हैं कि बारातियों का स्वागत पान-पराग से हो."
हम सिर्फ इत्ता ही चाहते हैं कि इस्लामिक लोग अलग रहें.
उनके मुल्क अलग हों.
उनके टापू अलग हों.
या
और बेहतर है कि उनके प्लेनेट ही अलग हों.
वैसे भी यह हरेक कम्युनिटी की, हरेक इन्सान की आज़ादी होनी चाहिए कि अगर वो किसी जमात के साथ नहीं रहना चाहता तो न रहे. कोई सवाल नहीं होना चाहिए. कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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