Thursday 19 December 2019

क्या #CAA (citizenship amendment act 2019) संविधान के खिलाफ है?- #NRC/ #CAA-2

मियाँ भाई फरमा रिये हैं :- "ये जो CAA है न यह कंटीटूशन के खिलाफ है. हमारा कंटीटूशन तो सब को बराबर धार्मिक/मज़हबी का हक़ देता है." मेरा मानना है कि CAA बिलकुल भी संविधान के खिलाफ नहीं है. और अपनी इस मान्यता की सपोर्ट में जो मैं आपको बताने वाला हूँ वो आज तक किसी ने भी ने भारत में न कहा है न लिखा है. बात ठीक है कि कंटीटूशन बराबर का हक़ देता है सब मज़हब/ दीन /धरम को लेकिन कुछ शर्त भी हैं संविधान में. देखिये संविधान का अनुच्छेद २५ :-- ये कहता है (1) Subject to public order, morality and health and to the other provisions of this Part, all persons are equally entitled to freedom of conscience and the right freely to profess, practise and propagate religion मतलब सबको धार्मिक आज़ादी है बशर्ते कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य बना रहे. अब देखिये क़ुरआन क्या कहती है "ओ नबी, जो भी नहीं मानते, या असल में नहीं मानते लेकिन मानने का झूठा नाटक करते हैं, उनके खिलाफ भंयकर युद्ध कर. जहन्नुम ही उनका घर है. ( आयत नम्बर -66.9) O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites, and be hard against them; and their abode is hell; and evil is the resort. (Quran 66.9)" अब जो दीन न मानने वालों के खिलाफ भयंकर युद्ध करने की ठाने बैठा हो, क्या उसे हमारा कंस्टीटूशन में बराबरी का दर्जा सकता है? दे रहा है? नहीं दे रहा. संविधान तो कहता है कि आपको धार्मिक आज़ादी है लेकिन तभी जब सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, नैतिकता बनी रहे. लेकिन यदि धर्म/दीन सिर्फ इसलिए युद्ध करता है कि उसे नहीं माना जा रहा तो उससे सार्वजानिक व्यवस्था बनी रहेगी या भंग होगी, उससे सर्वजन का स्वास्थ्य बनेगा या बिगड़ेगा? जब बम फूटेंगे, क़त्ल होंगे, मार-काट होगी तो सार्वजानिक स्वास्थ्य बना रहेगा या भंग होगा? और जब हम किसी ऐसे दीन/ धर्म को अपने आप को फैलाने की आज़ादी देंगे जो खुद को न मानने वालों के खिलाफ जंग करे तो समाज में कैसी नैतिकता को बढ़ावा दे रहे हैं हम? दुबारा से संविधान का आर्टिकल 25 पढ़ें. धार्मिक आज़ादी है लेकिन उसके साथ जो शर्तें जुड़ी हैं वो भी पढ़िए. फिर कहिये कि मौजूदा सरकार के उठाये कदम असंवैधानिक है. इस्लाम को धर्मों की श्रेणी से बाहर करना चाहिए चूँकि यह धर्म के नाम पर छद्म सामाजिक, राजनीतिक और सैनिक संगठन है. इस्लाम की मुक्कदस किताब कुरान गवाह है, पढ़ सकते हैं. और यह कोई मेरा ओरिजिनल आईडिया नहीं है, अमेरिका और बहुत से अन्य मुल्कों में ऐसे सुझाव दिए जा रहे हैं कि इस्लाम को धर्मों की श्रेणी से बाहर किया जाये. इस्लाम कोई रोज़े, नमाज़, रमजान, ईद, बकरीद का ही नाम नहीं है. इस्लाम में शरिया है जो एक पूरी सामाजिक व्यवस्था है, जिसके अपने कानून हैं. इस्लाम जिहाद है. इस्लाम में इस्लाम के पसारे के लिए हिंसा है. इस्लाम सियासी आइडियोलॉजी है. तो यह कैसे कोई धर्म हो गया? और जब धर्म की परिभाषा में ही इस्लाम फिट नहीं होता तो कैसी धार्मिक बराबरी? तो फिर कैसे CAA संविधान के खिलाफ? ज़ाकिर ना-लायक की बड़ी इज़्ज़त है इस्लामिक दुनिया में. वो श्रीमन कहते हैं कि दीन सिर्फ एक है और वो है इस्लाम. बाकी को करो आखिरी सलाम. गुड बाई. इसलिए तो इस्लामिक मुल्कों में किसी भी और धर्म के इबादतगाह नहीं बनने दिए जाते. सीधी बात. बाकी सब धर्म हैं बकवास.Of Course according to Islam. इस्लाम किसी भी और धर्म को बराबरी का हक़ नहीं देता. बराबरी का हक़ उसे ही मिलना चाहिए जो दूसरों को भी बराबरी का हक़ देने को तैयार हो. तो मित्रवर, मेरे मुताबिक CAA के अंतर्गत जो मुस्लिम को नागरिकता देने से परहेज़ किया जा रहा है, वो बिलकुल सही है. और CAA कतई संविधान के खिलाफ नहीं है. इसका स्वागत होना चाहिए. इसका पालन होना चाहिए. मेरी नज़र में धरती माता भारत माता से बड़ी हैं. मैं वसुधैव कुटुंबकम को मानता हूँ. विश्व बंधुत्व को मानता हूँ. राष्ट्र को मात्र राजनीतिक सीमाएं मानता हूँ, जिन्हें आज नहीं तो कल खत्म होना ही चाहिए. किसी एक संस्कृति-सभ्यता को नहीं मानता हूँ. सारी धरती हमारी है और इस धरती का सारा ज्ञान -विज्ञान हमारा है, चाहे वो धरती के किसी कोने से आया हो. और मेरा मानना है कि दुनिया को Nation- State से World-state में बदलना चाहिए. लेकिन लोकल मान्यताओं का भी जहाँ तक हो सके पालन करते हुए. तो फिर मैं CAA का क्यों स्वागत कर रहा हूँ? वो इसलिए चूँकि अभी इंसानियत वसुधैव कुटुंबकम से बहुत दूर है. दुनिया में फैले भांति-भांति के धर्म/दीन/ मज़हब वसुधैव कुटुंबकम की राह में रोड़ा हैं. इस्लाम सबसे बड़ा रोड़ा है. इस्लाम अवैज्ञानिक है, अतार्किक है, हिंसक है. यदि हम इस्लाम को इस दुनिया से हटाने में कामयाब हो जाते हैं तो बाकी धर्मों का सामना करना, उनमें सामंजस्य बिठाना बड़ा आसान हो जायेगा. ग्लोबल Culture, ग्लोबल आइडियोलॉजी पैदा करना आसान हो जायेगा. राष्ट्रों को महाराष्ट्रों में तब्दील करना और इन महाराष्ट्रों को एक ग्लोबल गवर्नमेंट के झंडे के नीचे लाना आसान हो जायेगा.
इसलिए वक्त ज़रूरत के मुताबिक मैं CAA का स्वागत करता हूँ और पुरज़ोर स्वागत करता हूँ. नमन... तुषार कॉस्मिक

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