"टांका"

यह वो धन है जो प्रॉपर्टी डीलर  तयशुदा ब्रोकरेज के अलावा डील में से निकाल लेता है. 
कैसे संभव है यह?

खरीद-दार कभी नहीं चाहता कि  ऐसा हो, फिर भी यह होता है, अक्सर होता है और  अक्सर डील के अंत तक उसे पता लग ही जाता है कि डीलर ने उसकी डील में टांका मारा है. 

यह न हो इसके लिए Seller और Purchaser दोनों को प्रयास करना चाहिए. 

पहली हिदायत:-  यह Purchaser के लिए है. Purchaser को सीधा कहना चाहिए ब्रोकर को, "भाई आपको hire कर रहा हूँ लेकिन आपकी ईमानदारी  जांचने के लिए डील के दौरन मैं आपको किसी भी वक्त  पॉलीग्राफ (Lie Detector) टेस्ट करवाने के लिए बोल सकता हूँ और आपको लिख कर देना होगा कि आप यह टेस्ट करवाएंगे." 

यकीन जानें आपका डीलर बौखला जाएगा यह सुन कर. या तो डील छोड़ देगा या फिर नाक की सीध में चलेगा. 

दूसरी हिदायत:-  यह Seller के लिए है. यदि आप सेलर हैं तो कभी भी डीलर को यह न कहें, "हमें तो हमारी तयशुदा रकम दिलवा दीजिये, बाकी आप ऊपर से जितना मर्ज़ी ले लीजिये."  Seller ऐसा इसलिए कहता है कि  असल में ब्रोकरेज चाहे Seller  पक्ष की हो चाहे Purchaser पक्ष की, वो जाती Purchaser की जेब से ही है. कैसे? सिम्पल. ब्रोकरेज चाहे 10 प्रतिशत हो, Seller को कभी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो ठीक उतना प्रतिशत प्रॉपर्टी का रेट बढ़ा लेता है. 

सो सेलर की तरफ से तो अक्सर सीधा-सीधा ऑफर होता है  कि डीलर चाहे तो डील में टांका लगा ले.  यह सरासर गलत है. कल जब आप  Purchaser होंगे तब यदि आपको पता लगेगा कि आपकी डील में डीलर ने टांका मारा है तो आपको बहुत बुरा लगेगा. सो स्वार्थी मत बनें. लकीर पर चलें. डीलर भी लकीर पर तभी चलेगा. 

तीसरी हिदायत:- यह Seller और Purchaser दोनों के लिए है. डीलर पढ़ा-लिखा hire करें, जिसे प्रॉपर्टी के काम का तज़ुर्बा हो, प्रॉपर्टी से जुड़े कायदे-कानून की जानकारी हो. किसी भी नाई, कसाई, हलवाई को अपना डीलर मत बना लें. लोग तो दूधिये तक के ज़रिये  प्रॉपर्टी का लेन-देन  कर लेते हैं. पीछे पछताते हैं. 

प्रॉपर्टी का खरीदना-बेचना बिस्कुट का पैकेट खरीदने-बेचने जैसा सीधा काम नहीं है. इसमें तमाम तरह की कानूनी और प्रैक्टिकल जानकारियां होना ज़रूरी है, जो किसी प्रोफेशनल डीलर को ही होती हैं. 

भारत में डीलर की शिक्षा और ट्रेनिंग का कोई सिस्टम नहीं है और न ही यहाँ कोई सिस्टम है कि डीलर कितनी ब्रोकरेज लेगा. सिर्फ हरियाणा में एक कानून है, "प्रॉपर्टी डीलर एक्ट", जो एक तरफा है. ऐसा लगता है प्रॉपर्टी डीलर से दुश्मनी निकाली गई  हो. या फिर RERA ACT  है. लेकिन हर कोई High-Rise बिल्डिंग्स में ही तो डील नहीं करता.   

जो ब्रोकरेज डीलर को दी जाती है, वो उसके काम, उसके ऊपर लादी गयी ज़िम्मेदारी की अपेक्षा बहुत ही कम होती है. ऊँट के मुंह में जीरा. करोड़ों रुपये की डील उसके कंधे पर होती हैं और उसे 1  से 1/2 प्रतिशत कमीशन ही दी जाती है. कई बार तो वो भी नहीं दी जाती. ज़रा-ज़रा सी बात पर उसकी कमीशन काट ली जाती है. कमीशन के लिए उसे लड़ना पड़  जाता है. कमज़ोर डीलर को तो लोग छुट-पुट कमीशन दे कर ही भगा देते हैं.  ऐसे में होशियार डीलर चोर रास्ता अख्तियार करते हैं, टांका लगाने का. लेकिन दिक्कत यह है कि  फिर होशियार डीलर सीधी-शरीफ पार्टी को भी टाँका लगाने से नहीं चूकते. असल में शरीफ खरीदार को ही सबसे ज़्यादा टाँका  लगाया जाता है. 

मैं इस सबके खिलाफ हूँ.  

टांका लगाने के सख्त खिलाफ हूँ. लेकिन मैं कम कमीशन देने वालों के भी खिलाफ हूँ. मुझसे किसी खरीद-दार ने तयशुदा कमीशन से कम पैसे लेने के लिए कहा. मैंने कहा, "ठीक है फिर, मैं आपको प्रॉपर्टी के कुछ कागज़ात भी कम ही दूंगा, बोलिये मंज़ूर है?"

पूरे पैसे दीजिये, पूरा काम लीजिये.

तुषार

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